दरिंदगी की नग्न कहानी : आखिर फिर क्यों चर्चाओं में अजमेर शरीफ, दहल जाएगा आपका दिल

Rajsthan News जयपुर। ब्रह्मा जी के पवित्र स्थल तीर्थराज पुष्कर और सूफी मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के कारण पूरे विश्व में अपनी विशेष पहचान रखने वाला राजस्थान का प्रमुख शहर अजमेर एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। इस शहर के फिर से सुर्खियों में आने की वजह बेहद ही खास है। अजमेर फिर से क्यों सुर्खियों में आया है, इसकी वजह बहुत ही खास है। चलिए बताते हैं कि अजमेर शहर क्यों चर्चाओं में आया है।
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दरअसल, अजमेर में 1990 से 1992 के बीच कुछ ऐसा हुआ था जिससे अजमेर शहर पर न केवल बदनुमा दाग लगा था, बल्कि पूरे विश्व में अजमेर शहर सुर्खियों में आ गया था। असल में, 1990 में राजस्थान के एक प्रमुख समचार पत्र नवज्योति में प्रकाशित एक खबर से न केवल पूरे भारत देश बल्कि विश्व में भी भूचाल आ गया था। इस खबर ने लोगों को भीतर तक पूरी तरह से झकझोर दिया था। इस खबर में स्कूली छात्राओं को उनके नग्न फोटो क्लिक करके ब्लैकमेल करते हुए उनका यौन शौषण किए जाने का पर्दाफाश किया गया था।
''बड़े लोगों की पुत्रियां 'ब्लैकमेल का शिकार'' हेडिंग से प्रकाशित खबर ने पाठकों के हाथों में अखबार पहुंचने के साथ ही भूचाल ला दिया। उस वक्त भले ही सोशल मीडिया का जमाना न रहा हो, लेकिन यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई थी। पुलिस, प्रशासन से लेकर राज्य और केंद्र सरकार में बैठे अधिकारी और नेता सभी लोगों की कुर्सी हिल गई थी।
अजमेर के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वालीं 17 से 20 साल की 100 से भी ज्यादा लड़कियों को बहाने से जाल में फंसा कर उनकी नग्न तस्वीर खींचकर ब्लैकमेल कर उनका यौन शोषण करने वाले गिरोह का भंडाफोड़ हुआ था।
आरोपी अपने कुकर्मों के सबूत मिटाने में लग गए तो ओहदेदार खुद को बचाने में। पीड़िता छात्राओं के परिवारजन अपने इज्जत के खातिर नगर से अपना नाता तोड़कर दबे पांव पलायन करने की जुगाड़ में जुट गए। प्रशासन के लोग शासन के आदेश की पालना में तो उधर शासन अपने सिंहासन और कुर्सी बचाने में व्यस्त हो गया।
Rajsthan -अजमेर दरगाह के कई युवा थे शामिल
एक टीवी चैनल में प्रकाशित समाचार के अनुसार, बताया जाता है कि अजमेर की शान और पहचान में बदनुमा दाग के अखबारों के जरिए जाहिर होने से पहले अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने गोपनीय जांच में ही यह खुलासा पा लिया था कि गिरोह में अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा यानी खादिम परिवारों के कई युवा रईसजादे शामिल हैं। इतना ही नहीं पुलिस ने यह भी जान लिया था कि राजनीतिक रूप से वे युवा कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं और आर्थिक रूप से संपन्न भी।
Rajsthan -पुलिस हो गई थी बेबस
जिला पुलिस प्रशासन को यह अच्छी तरह पता चल गया था कि पीड़िताओं के सामने आए बिना यदि किसी पर भी हाथ डाला जाएगा तो नगर की शांति और कानून व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने का बड़ा जोखिम होगा और यदि शांति और कानून व्यवस्था संभाल भी लेंगे तो क्या पता इसमें अजमेर के किन-किन प्रभावशाली और प्रतिष्ठत परिवारों की बच्चियां प्रभावित हों। नगर के कौन-कौन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी या उच्च पदस्थ राजनीति जनप्रतिनिधि तक इसके तार जुड़े हैं। लिहाजा बहुत ही सोच विचार के बाद स्थानीय जिला पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री भाजपा के भैरोसिंह शेखावत को स्थिति से अवगत कराया।
सीएम ने दिए थे एक्शन लेने के आदेश
बताते हैं कि उस समय के सीएम भैरोसिंह शेखावत ने शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं देने और अपराधियों को नहीं छोड़ने के स्पष्ट संकेत देते हुए इस मामले में समुचित एक्शन लेने के आदेश दिए। बावजूद इसके जिला पुलिस प्रशासन किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका। उलटा यह कि इस दरमियान संभावित आरोपितों को अपने खिलाफ इस्तेमाल होने वाले साक्ष्य मिटाने और अजमेर से भाग जाने का अवसर मिल गया।
अखबार में स्कूली छात्राओं को अश्लील फोटो के जरिए ब्लैकमेल करने के कांड की पहली खबर प्रकाशित होने के लगभग एक पखवाड़े बाद भी जिला पुलिस और प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। इसके बाद दैनिक नवज्योति के पत्रकार संतोष गुप्ता ने दूसरी खबर ''छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?'' शीर्षक से प्रकाशित किया।
Rajsthan -खबर के साथ नग्न फोटो भी किए गए प्रकाशित
इस बार के साथ वह फोटो भी प्रकाशित किए जिससे अजमेर में छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सकता था। फोटो के प्रकाशन के बाद तो समूचे राजस्थान में जैसे कोई तूफान आ गया।
तीसरी खबर ''सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!'' शीर्षक से प्रकाशित हुई। चौथी खबर में प्रदेश के गृहमंत्री भाजपा के दिग्विजय सिंह का बयान आया ''उन्होंने डेढ़ माह पहले ही देख लिए थे अश्लील छाया चित्र'' इसके बाद क्या था जनता ने सड़कों पर उतर कर अजमेर बंद का ऐलान कर दिया। शासन और प्रशासन पर भारी दवाब पड़ा। नगर के जागरूक संगठन गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए सक्रिय हो गए। स्कूल छात्राओं के साथ यौन शोषण का सारा खेल शहर में सुनियोजित तरीके से एक समुदाय विशेष के प्रभावशाली युवाओं द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ किया जा रहा था। इसे लेकर विश्व हिन्दू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने मुट्ठियां तान ली।
Rajsthan - वकीलों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
अजमेर जिला बार एसोसिएशन ने मीटिंग कर शहर के बिगड़ते हाल और हालात को लेकर आपस में चर्चा शुरू कर दी और पीड़िताओं के अभाव में अपराधियों को सजा दिलाने के लिए उचित मार्ग खोजना शुरू कर दिया। वकीलों के शिष्टामण्डल ने तत्कालीन जिला कलक्टर अदिति मेहता से मुलाकात की। पुलिस अधीक्षक एम.एन धवन की मौजूदगी में हुई वार्ता में रास्ता निकाला गया कि जिन भी आरोपितों को पहचाना जा चुका है उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाला जाए, जिससे जनता का गुस्सा शांत हो और माहौल साम्प्रदायिक होने से बचे।
इसी बैठक में यह भी खुलासा हुआ कि जिला पुलिस प्रशासन को सबसे पहले अजमेर के युवा भाजपा नेता और पेशे से वकील वीर कुमार और विश्व हिन्दु परिषद के पदाधिकारी ने फोटो उपलब्ध कराकर षडयंत्र पूर्व हिन्दू लड़कियों का एक विशेष समुदाय के युवकों द्वारा यौन शोषण किए जाने की सूचना दी थी। साथ ही यह भी मंशा दर्शाई थी कि यदि कानूनन अपराधियों को नहीं पकड़ा गया तो हिन्दू संगठन कानून अपने हाथ में लेने से नहीं चूकेगा।
जिला पुलिस प्रशासन ने भाजपा और हिन्दूवादी संगठनों की इस चेतावनी से ही थोड़ी सक्रियता तो दिखाई, लेकिन तत्कालीन उप-अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच करने को कहा। गोपनीय जांच में हुए खुलासे के बाद तो जिला प्रशासन के हाथ पैर ही फूल गए। जिला पुलिस प्रशासन ने मामले का खुलासा किए जाने और अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेले जाने के बजाय पूरा प्रकरण ही ठंडे बस्ते में डालने कवायद कर डाली।
तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने वाकायदा प्रेस कांफ्रेस कर खुलासा किया कि मामला वैसा नहीं है जैसा प्रचारित किया जा रहा है। अजमेर कि स्कूली छात्राओं के साथ किसी तरह का षडयंत्र पूर्वक ब्लैकमेल कर यौन शोषण नहीं किया गया है। मामले में जिन चार लड़कियों के साथ यौन शोषण होने के फोटो मिले हैं, पुलिस ने उनकी तहकीकात में पाया कि उनका चरित्र ही संदिग्ध है।
Rajsthan - पूरे राजस्थान में आंदोलन शुरू
पुलिस महानिरीक्षक के बयान अखबारों में सुर्खियां बनने के बाद अजमेर ही नहीं पूर राजस्थान में आंदोलन शुरू हो गए। जगह-जगह मुलजिमों को गिरफ्तार किए जाने की मांग उठने लगी और पीड़िताओं को न्याय देने की आवाज बुलंद होने लगी। शहर कस्बों के बंद होने की खबरें आने लगीं। राजस्थान की भाजपा सरकार पर प्रकरण को लेकर भारी दवाब बना। तत्कालीन कांग्रेस नेताओं जिनमें वर्तमान राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा सहित अनेक कांग्रेस नेताओं ने ही अजमेर में स्कूली छात्राओं के साथ हुए यौन शोषण अपराध की निंदा करते हुए अपराधियों को सजा दिए जाने की मांग उठानी शुरू कर दी। कांग्रेस नेताओं ने प्रकरण की जांच सीआईडी से कराए जाने का भी भाजपा सरकार पर दवाब बनाया।
मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंपा
30 मई 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप कर जांच कराए जाने का ऐलान कर दिया। इसकी सूचना अजमेर जिला पुलिस प्रशासन को मिली तो अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने सीआईडी सीबी के हाथों जांच शुरू होने से पहले तत्कालीन उपअधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा के हाथों एक सादा पेपर पर प्राथमिकी लेकर उसे दर्ज कर लिया। इससे जिला पुलिस की भद्द पिटने से बच गई।
पहली रिपोर्ट में गोपनीय अनुसंधान अधिकारी होने के नाते हरि प्रसाद शर्मा ने उन चारों अश्लील फोटो का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट दी। जिसमें लिखा था ''अजमेर में स्कूली छात्राओं को किसी तरह अपने जाल में फंसाकर उनके अश्लील फोटो खींचे गए। इसके बाद उन्हें ब्लैकमेल किया गया साथ ही उनका यौन शोषण हुआ। साथ ही उन पर अन्य लड़कियों को लेकर आने का दबाव गिरोह द्वारा बनाए जाने की जानकारी मिली है।''
रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि गिरोह में सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक रूप से प्रभावशाली युवा शामिल हैं। फोटो के आधार पर अनुसंधान अधिकारी ने दो-तीन पीड़िताओं की पहचान होने का भी पुलिस केस में जिक्र किया और मामले की आगे जांच होने पर अन्य अपराधियों के नाम भी सामने आने की संभावना दर्शाई।
खादिम चिश्ती के परिवार के लोगों के नाम आए सामने
अजमेर जिला पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज होने के अगले ही दिन सीनियर आईपीएस अधिकारी एन.के पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंच गए और 31 मई 1992 से जांच अपने हाथों में लेकर अनुसंधान शुरू कर दिया। जांच शुरू हुई तो गिरोह में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना एवं हरीश तोलानी नामक अपराधियों के नाम सामने आए।
इनमें शामिल हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर हुआ करता था। जहां अपराधी युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती और अपराधी सोहेलगनी छात्राओं के साथ यौन शोषण की नग्न रील धुलवाने और प्रिंट बनवाने के लिए लाते थे। फोटो प्रिंट के लिए कलर लैब का मालिक घनश्याम भूरानी के माध्यम से लैब पर आती थी।
रील प्रिंट करने वाले से खुला मामला
जानकारी के अनुसार पुरुषोत्तम उर्फ बबना रील से प्रिंट बनाया करता था। यही वह व्यक्ति है जिसके जरिए सबसे पहले स्कूली छात्राओं की नग्न अश्लील फोटो अपराधियों को सबक सिखाने और आरोपी युवकों द्वारा छात्राओं का यौनाचार बंद कराए जाने के उद्देश्य से कलर लैब से बाहर निकल कर पहले एक आर्किटेक्ट के पास पहुंचे, फिर वकील के माध्यम से भाजपा नेता वीर कुमार के पास पहुंचे। इससे अपराधी सजग हो गए और उन्होंने साक्ष्य लीक करने वाली कलर लैब के मालिक धनश्याम भूरानी का गला पकड़ लिया। फिर क्या था मामला प्याज के छिलकों की तरह खुलने लगा।
केस से जुड़े कई लोगों ने की आत्महत्या
कहते है सीआईडी सीबी ने अनुसंधान करते हुए सियासी दबाव में काम किया। यही वजह रही कि जिस फोटो लैब के मालिक, टेक्निशियन, मैनेजर को सरकारी गवाह बनाया जा सकता था, उनमें से मालिक को तो छोड़ ही दिया और मैनेजर व टेक्निशियन को अपराधी बना दिया। आखिर अच्छी मंशा रखने के बाद भी मुलजिम बच जाने तथा अपराधियों द्वारा निरंतर प्रताड़ित किए जाने से निराश एवं हताश, पीड़ित होकर पुरुषोषत्तम ने जमानत पर रिहा होने के कुछ दिन बाद ही पत्नी के साथ मिलकर आत्महत्या कर ली।
कई लड़कियों ने भी दी अपनी जान
स्कैंडल में जिन लड़कियों की फोटो खींची गईं, उनमें से कई लड़कियों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त करनी शुरू कर दी। उन दिनों में अचानक एक के बाद एक करीब एक दर्जन लड़कियों ने सुसाइड कर लिया। इस घटना में सबसे दर्दनाक बात यह रही कि इन लड़कियों के लिए न समाज और न ही घरवाले आगे आए, मामले के खुलासे में यह एक दुखद कड़ी साबित हुआ।
फोटोज और वीडियोज के जरिए लड़कियों की पहचान
आरोपियों के सियासी रसूख के चलते कोई भी आगे नहीं आया। हालांकि, बाद में फोटो और वीडियो के आधार पर लड़कियों की पहचान की गई। इनसे बात करने की कोशिश की गई, लेकिन समाज में बदनामी के डर से कोई आगे आने को तैयार नहीं हुआ। समझापे के बाद लड़कियों ने मामला दर्ज करवाया, लेकिन धमकियां मिलने के बाद सिर्फ कुछ ही लड़कियां डटी रहीं। इनके बयानों के आधार पर 16-17 आरोपियों की पहचान की गई, जिसमें से एक अलमास महाराज को छोड़कर वर्तमान में सभी आरोपियों को पकड़ा जा चुका है।
ये आरोपी थे शामिल
पीड़ित लडकियों के आधार पर करीब 16-17 आरोपियों की पहचान हुई। इनमें से अलमास महाराज विदेश में अमेरिका न्यूजर्सी में होना बताया जाता है। मामले में वर्तमान में पांच आरोपियों सोहेल गनी, इकबाल, जमीर, सलीम को छोड़ कर सभी की सजाएं पूरी हो गई हैं। जिनकी सजाएं पूरी नहीं हुई है वे जमानत पर हैं।
पीड़िताओं को इंसाफ का इंतजार
100 से ज्यादा इन लड़कियों को आज भी इंसाफ नहीं मिल पाया है। कोर्ट में आज भी मामला दर्ज है। जिन लड़कियों के साथ हैवानियत हुई, उनकी आज उम्र 50 से 54 साल के पार हो गई है, लेकिन उनको आज भी इंसाफ का इंतजार है। 2018 में इस मामले का मुख्य आरोपी पकड़ा गया। आरोप है कि अजमेर ब्लैकमेल कांड में फारुक, नफीस के साथ अनवर, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, सलीम, शमशुद्दीन, सुहैलगनी, कैलाश सोनी, महेशलुधानी, पुरुषोत्तम, हरीश तोलानी वगैरह लड़कियों के यौन शोषण के लिए फार्म हाउस और एक पोल्ट्री फार्म पर लेकर जाया करते थे और वहीं पर उनका यौन शोषण करते थे और अश्लील तस्वीरों के सहारे ब्लैकमेल करते रहते थे।
झूठ बोलकर पेशियों पर आना पड़ता है: पीड़िता
नफीस और फारूक चिश्ती जो मुख्य आरोपी थे वग आज भी पूरी शान से जीवन जी रहे हैं। उधर, पीड़िताएं है जो अदालत से मिल रहे समन से परेशान होकर अब कोर्ट में हाजिर पेशी पर बयानों के लिए आना बंद कर दिया है। बताया जाता है कि इस ब्लैकमेल कांड में शामिल अधिकतर महिलाएं अब दादी-नानी बन गई हैं और उन्हें पेशियों पर आने के भी घर पर झूठ बोलना पड़ता है। इस बात का खुलासा पिछले साल पेशी पर आई एक पीड़िता ने किया था। क पीड़िता ने कोर्ट को कहा कि उनके साथ जो हुआ वह घर पर बता नहीं सकती और उन्हें झूठ बोलकर पेशियों पर आना पड़ता है।
Rajsthan -अब क्यों चर्चाओं में आया यह कांड
दरअसल, इस सच्ची घटना पर एक फिल्म बनाई जा रही है जिसका नाम ‘अजमेर 92’ है। दावा किया जा रहा है कि इस फिल्म उन उन लड़कियों की कहानी है, जिन्हें जाल में फंसाया गया और उनका रेप किया गया और फिर उन्हें सिलसिलेवार ब्लैकमेल किया गया। इस केस में सबसे पहले अजमेर के एक स्कूल की लड़की को फंसाकर उसके न्यूड फोटोज क्लिक गए थे और उसके बाद फोटो के आधार पर उसे और लड़कियों को इस खेल में शामिल करने के लिए ब्लैकमेल किया गया था और फिर एक चेन बनती गई, जिसमें कई लड़कियां शिकार बनीं। सच्ची घटना पर आधारित फिल्म ‘अजमेर 92’ को पुष्पेन्द्र सिंह ने निर्देशित किया है। फिल्म करण वर्मा, सुमित सिंह, अलका अमीन, राजेश शर्मा, ईशान शर्मा, महेश बलराज, बृजेंद्र काला, मनोज जोशी आदि कई कलाकार शामिल हैं। यह फिल्म 14 जुलाई को रिलीज हो रही है और इसे उमेश कुमार तिवारी ने निर्मित किया है। Rajsthan News
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दरअसल, अजमेर में 1990 से 1992 के बीच कुछ ऐसा हुआ था जिससे अजमेर शहर पर न केवल बदनुमा दाग लगा था, बल्कि पूरे विश्व में अजमेर शहर सुर्खियों में आ गया था। असल में, 1990 में राजस्थान के एक प्रमुख समचार पत्र नवज्योति में प्रकाशित एक खबर से न केवल पूरे भारत देश बल्कि विश्व में भी भूचाल आ गया था। इस खबर ने लोगों को भीतर तक पूरी तरह से झकझोर दिया था। इस खबर में स्कूली छात्राओं को उनके नग्न फोटो क्लिक करके ब्लैकमेल करते हुए उनका यौन शौषण किए जाने का पर्दाफाश किया गया था।
''बड़े लोगों की पुत्रियां 'ब्लैकमेल का शिकार'' हेडिंग से प्रकाशित खबर ने पाठकों के हाथों में अखबार पहुंचने के साथ ही भूचाल ला दिया। उस वक्त भले ही सोशल मीडिया का जमाना न रहा हो, लेकिन यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई थी। पुलिस, प्रशासन से लेकर राज्य और केंद्र सरकार में बैठे अधिकारी और नेता सभी लोगों की कुर्सी हिल गई थी।
अजमेर के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वालीं 17 से 20 साल की 100 से भी ज्यादा लड़कियों को बहाने से जाल में फंसा कर उनकी नग्न तस्वीर खींचकर ब्लैकमेल कर उनका यौन शोषण करने वाले गिरोह का भंडाफोड़ हुआ था।
आरोपी अपने कुकर्मों के सबूत मिटाने में लग गए तो ओहदेदार खुद को बचाने में। पीड़िता छात्राओं के परिवारजन अपने इज्जत के खातिर नगर से अपना नाता तोड़कर दबे पांव पलायन करने की जुगाड़ में जुट गए। प्रशासन के लोग शासन के आदेश की पालना में तो उधर शासन अपने सिंहासन और कुर्सी बचाने में व्यस्त हो गया।
Rajsthan -अजमेर दरगाह के कई युवा थे शामिल
एक टीवी चैनल में प्रकाशित समाचार के अनुसार, बताया जाता है कि अजमेर की शान और पहचान में बदनुमा दाग के अखबारों के जरिए जाहिर होने से पहले अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने गोपनीय जांच में ही यह खुलासा पा लिया था कि गिरोह में अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा यानी खादिम परिवारों के कई युवा रईसजादे शामिल हैं। इतना ही नहीं पुलिस ने यह भी जान लिया था कि राजनीतिक रूप से वे युवा कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं और आर्थिक रूप से संपन्न भी।
Rajsthan -पुलिस हो गई थी बेबस
जिला पुलिस प्रशासन को यह अच्छी तरह पता चल गया था कि पीड़िताओं के सामने आए बिना यदि किसी पर भी हाथ डाला जाएगा तो नगर की शांति और कानून व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने का बड़ा जोखिम होगा और यदि शांति और कानून व्यवस्था संभाल भी लेंगे तो क्या पता इसमें अजमेर के किन-किन प्रभावशाली और प्रतिष्ठत परिवारों की बच्चियां प्रभावित हों। नगर के कौन-कौन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी या उच्च पदस्थ राजनीति जनप्रतिनिधि तक इसके तार जुड़े हैं। लिहाजा बहुत ही सोच विचार के बाद स्थानीय जिला पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री भाजपा के भैरोसिंह शेखावत को स्थिति से अवगत कराया।
सीएम ने दिए थे एक्शन लेने के आदेश
बताते हैं कि उस समय के सीएम भैरोसिंह शेखावत ने शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं देने और अपराधियों को नहीं छोड़ने के स्पष्ट संकेत देते हुए इस मामले में समुचित एक्शन लेने के आदेश दिए। बावजूद इसके जिला पुलिस प्रशासन किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका। उलटा यह कि इस दरमियान संभावित आरोपितों को अपने खिलाफ इस्तेमाल होने वाले साक्ष्य मिटाने और अजमेर से भाग जाने का अवसर मिल गया।
अखबार में स्कूली छात्राओं को अश्लील फोटो के जरिए ब्लैकमेल करने के कांड की पहली खबर प्रकाशित होने के लगभग एक पखवाड़े बाद भी जिला पुलिस और प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। इसके बाद दैनिक नवज्योति के पत्रकार संतोष गुप्ता ने दूसरी खबर ''छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?'' शीर्षक से प्रकाशित किया।
Rajsthan -खबर के साथ नग्न फोटो भी किए गए प्रकाशित
इस बार के साथ वह फोटो भी प्रकाशित किए जिससे अजमेर में छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सकता था। फोटो के प्रकाशन के बाद तो समूचे राजस्थान में जैसे कोई तूफान आ गया।
तीसरी खबर ''सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!'' शीर्षक से प्रकाशित हुई। चौथी खबर में प्रदेश के गृहमंत्री भाजपा के दिग्विजय सिंह का बयान आया ''उन्होंने डेढ़ माह पहले ही देख लिए थे अश्लील छाया चित्र'' इसके बाद क्या था जनता ने सड़कों पर उतर कर अजमेर बंद का ऐलान कर दिया। शासन और प्रशासन पर भारी दवाब पड़ा। नगर के जागरूक संगठन गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए सक्रिय हो गए। स्कूल छात्राओं के साथ यौन शोषण का सारा खेल शहर में सुनियोजित तरीके से एक समुदाय विशेष के प्रभावशाली युवाओं द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ किया जा रहा था। इसे लेकर विश्व हिन्दू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने मुट्ठियां तान ली।
Rajsthan - वकीलों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
अजमेर जिला बार एसोसिएशन ने मीटिंग कर शहर के बिगड़ते हाल और हालात को लेकर आपस में चर्चा शुरू कर दी और पीड़िताओं के अभाव में अपराधियों को सजा दिलाने के लिए उचित मार्ग खोजना शुरू कर दिया। वकीलों के शिष्टामण्डल ने तत्कालीन जिला कलक्टर अदिति मेहता से मुलाकात की। पुलिस अधीक्षक एम.एन धवन की मौजूदगी में हुई वार्ता में रास्ता निकाला गया कि जिन भी आरोपितों को पहचाना जा चुका है उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाला जाए, जिससे जनता का गुस्सा शांत हो और माहौल साम्प्रदायिक होने से बचे।
इसी बैठक में यह भी खुलासा हुआ कि जिला पुलिस प्रशासन को सबसे पहले अजमेर के युवा भाजपा नेता और पेशे से वकील वीर कुमार और विश्व हिन्दु परिषद के पदाधिकारी ने फोटो उपलब्ध कराकर षडयंत्र पूर्व हिन्दू लड़कियों का एक विशेष समुदाय के युवकों द्वारा यौन शोषण किए जाने की सूचना दी थी। साथ ही यह भी मंशा दर्शाई थी कि यदि कानूनन अपराधियों को नहीं पकड़ा गया तो हिन्दू संगठन कानून अपने हाथ में लेने से नहीं चूकेगा।
जिला पुलिस प्रशासन ने भाजपा और हिन्दूवादी संगठनों की इस चेतावनी से ही थोड़ी सक्रियता तो दिखाई, लेकिन तत्कालीन उप-अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच करने को कहा। गोपनीय जांच में हुए खुलासे के बाद तो जिला प्रशासन के हाथ पैर ही फूल गए। जिला पुलिस प्रशासन ने मामले का खुलासा किए जाने और अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेले जाने के बजाय पूरा प्रकरण ही ठंडे बस्ते में डालने कवायद कर डाली।
तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने वाकायदा प्रेस कांफ्रेस कर खुलासा किया कि मामला वैसा नहीं है जैसा प्रचारित किया जा रहा है। अजमेर कि स्कूली छात्राओं के साथ किसी तरह का षडयंत्र पूर्वक ब्लैकमेल कर यौन शोषण नहीं किया गया है। मामले में जिन चार लड़कियों के साथ यौन शोषण होने के फोटो मिले हैं, पुलिस ने उनकी तहकीकात में पाया कि उनका चरित्र ही संदिग्ध है।
Rajsthan - पूरे राजस्थान में आंदोलन शुरू
पुलिस महानिरीक्षक के बयान अखबारों में सुर्खियां बनने के बाद अजमेर ही नहीं पूर राजस्थान में आंदोलन शुरू हो गए। जगह-जगह मुलजिमों को गिरफ्तार किए जाने की मांग उठने लगी और पीड़िताओं को न्याय देने की आवाज बुलंद होने लगी। शहर कस्बों के बंद होने की खबरें आने लगीं। राजस्थान की भाजपा सरकार पर प्रकरण को लेकर भारी दवाब बना। तत्कालीन कांग्रेस नेताओं जिनमें वर्तमान राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा सहित अनेक कांग्रेस नेताओं ने ही अजमेर में स्कूली छात्राओं के साथ हुए यौन शोषण अपराध की निंदा करते हुए अपराधियों को सजा दिए जाने की मांग उठानी शुरू कर दी। कांग्रेस नेताओं ने प्रकरण की जांच सीआईडी से कराए जाने का भी भाजपा सरकार पर दवाब बनाया।
मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंपा
30 मई 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप कर जांच कराए जाने का ऐलान कर दिया। इसकी सूचना अजमेर जिला पुलिस प्रशासन को मिली तो अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने सीआईडी सीबी के हाथों जांच शुरू होने से पहले तत्कालीन उपअधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा के हाथों एक सादा पेपर पर प्राथमिकी लेकर उसे दर्ज कर लिया। इससे जिला पुलिस की भद्द पिटने से बच गई।
पहली रिपोर्ट में गोपनीय अनुसंधान अधिकारी होने के नाते हरि प्रसाद शर्मा ने उन चारों अश्लील फोटो का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट दी। जिसमें लिखा था ''अजमेर में स्कूली छात्राओं को किसी तरह अपने जाल में फंसाकर उनके अश्लील फोटो खींचे गए। इसके बाद उन्हें ब्लैकमेल किया गया साथ ही उनका यौन शोषण हुआ। साथ ही उन पर अन्य लड़कियों को लेकर आने का दबाव गिरोह द्वारा बनाए जाने की जानकारी मिली है।''
रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि गिरोह में सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक रूप से प्रभावशाली युवा शामिल हैं। फोटो के आधार पर अनुसंधान अधिकारी ने दो-तीन पीड़िताओं की पहचान होने का भी पुलिस केस में जिक्र किया और मामले की आगे जांच होने पर अन्य अपराधियों के नाम भी सामने आने की संभावना दर्शाई।
खादिम चिश्ती के परिवार के लोगों के नाम आए सामने
अजमेर जिला पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज होने के अगले ही दिन सीनियर आईपीएस अधिकारी एन.के पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंच गए और 31 मई 1992 से जांच अपने हाथों में लेकर अनुसंधान शुरू कर दिया। जांच शुरू हुई तो गिरोह में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना एवं हरीश तोलानी नामक अपराधियों के नाम सामने आए।
इनमें शामिल हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर हुआ करता था। जहां अपराधी युवक कांग्रेस के उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती और अपराधी सोहेलगनी छात्राओं के साथ यौन शोषण की नग्न रील धुलवाने और प्रिंट बनवाने के लिए लाते थे। फोटो प्रिंट के लिए कलर लैब का मालिक घनश्याम भूरानी के माध्यम से लैब पर आती थी।
रील प्रिंट करने वाले से खुला मामला
जानकारी के अनुसार पुरुषोत्तम उर्फ बबना रील से प्रिंट बनाया करता था। यही वह व्यक्ति है जिसके जरिए सबसे पहले स्कूली छात्राओं की नग्न अश्लील फोटो अपराधियों को सबक सिखाने और आरोपी युवकों द्वारा छात्राओं का यौनाचार बंद कराए जाने के उद्देश्य से कलर लैब से बाहर निकल कर पहले एक आर्किटेक्ट के पास पहुंचे, फिर वकील के माध्यम से भाजपा नेता वीर कुमार के पास पहुंचे। इससे अपराधी सजग हो गए और उन्होंने साक्ष्य लीक करने वाली कलर लैब के मालिक धनश्याम भूरानी का गला पकड़ लिया। फिर क्या था मामला प्याज के छिलकों की तरह खुलने लगा।
केस से जुड़े कई लोगों ने की आत्महत्या
कहते है सीआईडी सीबी ने अनुसंधान करते हुए सियासी दबाव में काम किया। यही वजह रही कि जिस फोटो लैब के मालिक, टेक्निशियन, मैनेजर को सरकारी गवाह बनाया जा सकता था, उनमें से मालिक को तो छोड़ ही दिया और मैनेजर व टेक्निशियन को अपराधी बना दिया। आखिर अच्छी मंशा रखने के बाद भी मुलजिम बच जाने तथा अपराधियों द्वारा निरंतर प्रताड़ित किए जाने से निराश एवं हताश, पीड़ित होकर पुरुषोषत्तम ने जमानत पर रिहा होने के कुछ दिन बाद ही पत्नी के साथ मिलकर आत्महत्या कर ली।
कई लड़कियों ने भी दी अपनी जान
स्कैंडल में जिन लड़कियों की फोटो खींची गईं, उनमें से कई लड़कियों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त करनी शुरू कर दी। उन दिनों में अचानक एक के बाद एक करीब एक दर्जन लड़कियों ने सुसाइड कर लिया। इस घटना में सबसे दर्दनाक बात यह रही कि इन लड़कियों के लिए न समाज और न ही घरवाले आगे आए, मामले के खुलासे में यह एक दुखद कड़ी साबित हुआ।
फोटोज और वीडियोज के जरिए लड़कियों की पहचान
आरोपियों के सियासी रसूख के चलते कोई भी आगे नहीं आया। हालांकि, बाद में फोटो और वीडियो के आधार पर लड़कियों की पहचान की गई। इनसे बात करने की कोशिश की गई, लेकिन समाज में बदनामी के डर से कोई आगे आने को तैयार नहीं हुआ। समझापे के बाद लड़कियों ने मामला दर्ज करवाया, लेकिन धमकियां मिलने के बाद सिर्फ कुछ ही लड़कियां डटी रहीं। इनके बयानों के आधार पर 16-17 आरोपियों की पहचान की गई, जिसमें से एक अलमास महाराज को छोड़कर वर्तमान में सभी आरोपियों को पकड़ा जा चुका है।
ये आरोपी थे शामिल
पीड़ित लडकियों के आधार पर करीब 16-17 आरोपियों की पहचान हुई। इनमें से अलमास महाराज विदेश में अमेरिका न्यूजर्सी में होना बताया जाता है। मामले में वर्तमान में पांच आरोपियों सोहेल गनी, इकबाल, जमीर, सलीम को छोड़ कर सभी की सजाएं पूरी हो गई हैं। जिनकी सजाएं पूरी नहीं हुई है वे जमानत पर हैं।
पीड़िताओं को इंसाफ का इंतजार
100 से ज्यादा इन लड़कियों को आज भी इंसाफ नहीं मिल पाया है। कोर्ट में आज भी मामला दर्ज है। जिन लड़कियों के साथ हैवानियत हुई, उनकी आज उम्र 50 से 54 साल के पार हो गई है, लेकिन उनको आज भी इंसाफ का इंतजार है। 2018 में इस मामले का मुख्य आरोपी पकड़ा गया। आरोप है कि अजमेर ब्लैकमेल कांड में फारुक, नफीस के साथ अनवर, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, सलीम, शमशुद्दीन, सुहैलगनी, कैलाश सोनी, महेशलुधानी, पुरुषोत्तम, हरीश तोलानी वगैरह लड़कियों के यौन शोषण के लिए फार्म हाउस और एक पोल्ट्री फार्म पर लेकर जाया करते थे और वहीं पर उनका यौन शोषण करते थे और अश्लील तस्वीरों के सहारे ब्लैकमेल करते रहते थे।
झूठ बोलकर पेशियों पर आना पड़ता है: पीड़िता
नफीस और फारूक चिश्ती जो मुख्य आरोपी थे वग आज भी पूरी शान से जीवन जी रहे हैं। उधर, पीड़िताएं है जो अदालत से मिल रहे समन से परेशान होकर अब कोर्ट में हाजिर पेशी पर बयानों के लिए आना बंद कर दिया है। बताया जाता है कि इस ब्लैकमेल कांड में शामिल अधिकतर महिलाएं अब दादी-नानी बन गई हैं और उन्हें पेशियों पर आने के भी घर पर झूठ बोलना पड़ता है। इस बात का खुलासा पिछले साल पेशी पर आई एक पीड़िता ने किया था। क पीड़िता ने कोर्ट को कहा कि उनके साथ जो हुआ वह घर पर बता नहीं सकती और उन्हें झूठ बोलकर पेशियों पर आना पड़ता है।
Rajsthan -अब क्यों चर्चाओं में आया यह कांड
दरअसल, इस सच्ची घटना पर एक फिल्म बनाई जा रही है जिसका नाम ‘अजमेर 92’ है। दावा किया जा रहा है कि इस फिल्म उन उन लड़कियों की कहानी है, जिन्हें जाल में फंसाया गया और उनका रेप किया गया और फिर उन्हें सिलसिलेवार ब्लैकमेल किया गया। इस केस में सबसे पहले अजमेर के एक स्कूल की लड़की को फंसाकर उसके न्यूड फोटोज क्लिक गए थे और उसके बाद फोटो के आधार पर उसे और लड़कियों को इस खेल में शामिल करने के लिए ब्लैकमेल किया गया था और फिर एक चेन बनती गई, जिसमें कई लड़कियां शिकार बनीं। सच्ची घटना पर आधारित फिल्म ‘अजमेर 92’ को पुष्पेन्द्र सिंह ने निर्देशित किया है। फिल्म करण वर्मा, सुमित सिंह, अलका अमीन, राजेश शर्मा, ईशान शर्मा, महेश बलराज, बृजेंद्र काला, मनोज जोशी आदि कई कलाकार शामिल हैं। यह फिल्म 14 जुलाई को रिलीज हो रही है और इसे उमेश कुमार तिवारी ने निर्मित किया है। Rajsthan News







