Chanakya Niti : सुख प्राप्त करने के लिए आज का मनुष्य क्या कुछ नहीं करता है। सुखी की प्राप्ति के लिए वह अनेकों प्रकार के दान पुण्य करता है। अनेकों प्रकार के उपाय करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे बड़ा सुख किस वस्तु से और कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
देश के महान अर्थशास्त्री, कूट राजनीतिज्ञ और महान ज्ञानी आचार्य चाणक्य परम सुख और सबसे बड़ा सुख पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं। आचार्य चाणक्य का कहना है कि सबसे बड़ा सुख प्राप्त करने के लिए मनुष्य को न जंगल में जाने की जरुरत है और न ही किसी तरह के देव दर्शन करने की आवश्यकता है। सबसे बड़ा सुख प्रदान करने वाली औषधि तो मनुष्य के आसपास ही रहती है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सबसे बड़ा सुख हासिल करने के लिए उसे अपनी इंद्रियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
Chanakya Niti in hindi
आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ में सबसे बड़े सुख के बारे में लिखा है…
सर्वोषधीनामममृतं प्रधानं सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम्।
सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम्॥
आचार्य चाणक्य यहां वस्तु की सामान्य में महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि सभी औषधियों में अमृत (गिलोय) प्रधान है। सभी सुखों में भोजन प्रधान है। सभी इन्द्रियों में आंखें मुख्य हैं। सभी अंगों में सिर महत्त्वपूर्ण है।
मतलब यह हुआ कि औषधियों में गिलोय महत्त्वपूर्ण है। भोजन करने और उसे पचाने की शक्ति सदा बनी रहे यही सबसे बड़ा सुख है। हाथ, कान, नाक आदि सभी इन्द्रियों में आंखें सबसे आवश्यक है। सिर शरीर का सबसे महत्त्व वाला अंग है। इसलिए सबसे बड़ा सुख मानव को भोजन करने से ही प्राप्त होता है।
विडम्बना
गन्धं सुवर्णे फलमिक्षुवण्डे नाकारिपुष्यं खलु चन्दनस्य।
विद्वान धनी भूपतिवीर्घजीवी धातुः पुरा कोऽपि न बुद्धिवोऽभूत् ।।
महत् गुणर्णी वस्तु में प्रदर्शन का गुण नहीं होता इसकी चर्चा करते हुए आचार्य कहते हैं कि सोने में सुगंध, गन्ने में फल, चन्दन में फूल नहीं होते। विद्वान धनी नहीं होता और राजा दीर्घजीवी नहीं होते। क्या ब्रह्मा को पहले किसी ने यह बुद्धि नहीं दी?
आशय यह है कि सोना कीमती धातु है, किन्तु इसमें सुगन्ध नहीं होती। गन्ने में मिठास होती है, पर इसमें फल नहीं लगते। चन्दन में सुगन्ध है, पर फूल नहीं आते। विद्वान व्यक्ति निर्धन होते हैं और राजाओं को लम्बी उम्र नहीं होती। क्या सृष्टि बनाने वाले ब्रह्मा को इन सब बातों की सलाह पहले किसी ने न दी होगी?
इनका त्याग कर दो
मुक्तिमिच्छसि चेतात विषयान् विषवत् त्यज।
क्षमाऽऽर्जवदयाशौचं सत्यं पीयूषवत् पिब ।।
आचार्य चाणक्य यहां मोक्ष के लिए अपेक्षित स्थितियों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि हे प्रिय! यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष समझकर इनका त्याग कर दो। क्षमा, आर्जव, दया, पवित्रता, सत्य आदि गुणों का अमृत के समान पान करो।
आशय यह है कि यदि कोई मनुष्य मोक्ष चाहता है, तो सबसे पहले उसे अपनी इन्द्रियों के विषयों को विष मानकर इनका त्याग कर देना चाहिए। अर्थात् उसे अपनी सारी इच्छाओं बुराइयों को त्याग देना चाहिए। फिर क्षमा, दया आदि गुणों को अपनाना चाहिए तथा सच्चाई की राह पर चलते हुए अपनी आत्मा को पवित्र करना चाहिए। तभी मोक्ष मिल सकता है।
परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः।
ते एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत्।।
आचार्य कहते हैं कि जो व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे की बातों को अन्य लोगों को बता देते हैं वे बांबी के अन्दर के सांप के समान नष्ट हो जाते हैं। अर्थात् जो दुष्ट पहले तो एक दूसरे को अपने भेद बता देते हैं और फिर उन भेदों को अन्य लोगों को बता देते हैं, ऐसे लोग उस सांप के समान नष्ट हो जाते हैं, जो अपने बिल के अन्दर ही मारा जाता है जिसे बचने का कोई अवसर ही नहीं मिलता।
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