Chanakya Niti : कभी कभी व्यक्ति बहुत सारे काम बिना सोचे समझे ही कर देता है, जिस कारण उसे बाद में पछताना पड़ता है। मनुष्य के कर्म करने को लेकर आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ में स्पष्ट व्यख्या की है। चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने बताया कि इंसान को कौन से काम करने चाहिए और कौन से नहीं। चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने यह भी कहा है कि हर काम दिल, दिमाग और आंख खोलकर करना चाहिए।
Chanakya Niti in hindi
आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य भारत देश के महान अर्थशास्त्री हैं। उन्हें कूट राजनीतिज्ञ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि आचार्य चाणक्य की चाणक्य नीति को आत्मसात करके आदमी प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है। चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को हर काम सोच विचार कर ही करना चाहिए।
सोच विचार कर कर्म करें
दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।
शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मनःपूतं समाचरेत्।।
यहां आचार्य कर्म के प्रतिपादन की चर्चा करते हुए कहते हैं कि आँख से अच्छी तरह देख कर पांव रखना चाहिए, जल वस्त्र से छानकर पीना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार ही बात कहनी चाहिए तथा जिस काम को करने की मन आज्ञा दे, वही करना चाहिए।
आशय यह है कि अच्छी तरह देखकर ही कहीं पर पांव रखना चाहिए, कपड़े से छना हुआ ही पानी ही पीना चाहिए, मुंह से कोई गलत बात नहीं निकालनी चाहिए और पवित्र मन जिस काम में गवाही दे वही करना चाहिए। देखने की बात यह है कि ध्यानपूर्वक (कर्म से पूर्व विचारकर) आचरण करने से सावधानीपूर्वक कर्म की प्रक्रिया पूरी होती है। इसमें सन्देह के लिए अवकाश ही नहीं रहता।
सुखार्थी चेत् त्यजेद्विद्यां त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत् त्यजेत्सुखम्।
सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।।
आचार्य कहते हैं कि यदि सुखों की इच्छा है, तो विद्या त्याग दो और यदि विद्या की इच्छा है, तो सुखों का त्याग कर दो। सुख चाहने वाले को विद्या कहां तथा विद्या चाहने वाले को सुख कहां।
आशय यह है कि विद्या बड़ी मेहनत से प्राप्त होती है। विद्या प्राप्त करना तथा सुख प्राप्त करना, दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। जो सुख-आराम चाहता है, उसे विद्या को छोड़ना पड़ता है और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है. उसे सुख-आराम छोड़ना पड़ता है।
कौए क्या नहीं खाते?
कवयः किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषितः।
मद्यपा किं न जल्पन्ति किं न खादन्ति वायसाः।।
आचार्य चाणक्य व्यक्ति की अपेक्षा (सीमा) से अधिक कल्पना व कर्म की चर्चा करते हुए कहते हैं कि कवि क्या नहीं देखते ? स्त्रियां क्या नहीं करती? शराबी क्या नहीं बकते? तथा कौए क्या नहीं खाते?
आशय यह है कि अपनी कल्पना से कवि लोग सूर्य से भी आगे पहुंच जाते हैं। वे जो न सोचें, वही कम है। स्त्रियां हर अच्छा-बुरा काम कर सकती हैं। शराबी नशे में जो न बके वही कम है; वह कुछ भी बक सकता है। कौए हर अच्छी गन्दी वस्तु खा जाते हैं।
विद्या अर्थ से बड़ा धन
धनहीनो न च हीनश्च धनिक स सुनिश्चयः।
विद्या रत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु।।
आचार्य चाणक्य यहां विद्या को अर्थ से बड़ा धन प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि धनहीन व्यक्ति हीन नहीं कहा जाता। उसे धनी ही समझना चाहिए। जो विद्यारत्न से हीन है, वस्तुतः वह सभी वस्तुओं में हीन है।
आशय यह है कि विद्वाः व्यक्ति यदि निर्धन है, तो उसे हीन नहीं माना जाता, बल्कि वह श्रेष्ठ ही माना जाता है। विद्याहीन मनुष्य सभी गुणों से हीन ही कहा जाता है। चाहे वह धनी ही क्यों न हो, क्योंकि विद्या से गुण अथवा हुनर से व्यक्तिं अर्थोपार्जन कर सकता है। इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह विद्या का उपार्जन करे, कोई हुनर सीखे जिससे उसे धन की प्राप्ति हो और वह अपने जीवन को अवश्यतानुसार चला सके।
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