Wednesday, 15 January 2025

Hindi Kavita – रोज एक नया फसाना

वो बचपन भी कितना सुहाना था, जिसका रोज एक नया फसाना था। कभी पापा के कंधो काश, तो कभी मां…

Hindi Kavita – रोज एक नया फसाना

वो बचपन भी कितना सुहाना था,
जिसका रोज एक नया फसाना था।
कभी पापा के कंधो काश,
तो कभी मां के आँचल का सहारा था।
कभी बेफिक्र मिट्टी के खेल का,
तो कभी दोस्तों का साथ मस्ताना था।
कभी नंगे पाँव वो दौड़ का,
तो कभी पतंग ना पकड़ पाने का पछतावा था।
कभी बिन आँसू रोने का,
तो कभी बात मनवाने का बहाना था।
सच कहूँ तो वो दिन ही हसीन थे,
ना कुछ छिपाना और दिल मे जो आए बताना था।

— नेहा वनकर

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