मैंने ईश्वर को देखा है ,
हां मैंने ईश्वर को देखा है ,
शत शत बार देखा है।
दुलराकर गोद में बैठाकर
आंचल से छिपा , दूध पिलाती
मां की स्मित आंखों में,
ईश्वर को देखा हैं।
हां मैंने…..
विस्मृत अपने सुख दुख,
पल पल संतति हित में रत,
उंगली थामे राह दिखाते
पथ प्रदर्शक ,
कल्पवृक्ष पिता की
शीतल छाया में ,
ईश्वर को ..
उठते गिरते ,
माटी में खेलते ,
बच्चो की निश्चलता, सरलता में ,
गुंजित किलकारियों में ,
उनकी चंचलता चपलता में,
ईश्वर को देखा है।
कांपते थर्राते स्वरो में,
आशीर स्वरूप सिर पर रखे
हाथो में , वृद्ध जनों की पथराई आंखो में
दादा ,दादी ,नाना ,नानी की सुन्दर कहानियों मे ,
मैंने ईश्वर को देखा है ।
जीवन को जीवंत बनाते,
सरसता घोलते बनकर बहार,
पल पल थामा हाथ,
मित्रो की मित्रता में ,
मित्रता की दिव्यता में ,
ईश्वर को देखा है ।
पर्वतों की उच्चता में,
पवन की गति में ,
तरुवर की शीतल छाया में,
सागर की गहराई में,
नदियों के सतत प्रवाह में,
पक्षियों के कलरव में,
सावन की हरियाली में ,
प्रस्तर की निर्मल कठोरता में ,
फूलो के मोहक रंगों में ,
प्रकृति के कण कण में
ईश्वर को देखा है।
कवि कंठ से निसृत,
पावन भावो की निर्मल धारा मे,
देश हित में प्राणों की
आहुति देने वाले,
रण बांकुरो के समर्पित समर्पण भाव में,
शहीदों के अमर बलिदानो में ,
मैंने ईश्वर को देखा है।
बंजर धरा को उर्वर बनाते ,अन्न उपजाते अन्नदाताके अन्न मे,
हलधर के हल मे, कृषको के श्रम मोतियो मे मैने ईश्वर को देखा है । पति, संतति की दीर्घायु की अन्नत कामना से रखे
मातृ शक्ति के व्रतो की निष्ठा मे, समर्पण मे, त्याग मे
ईश्वर को देखा है।
हाँ मैने ईश्वर को देखा है ,शत शत बार देखा है !!
कमलेश (कमल )