Saturday, 10 May 2025

सुप्रीम कोर्ट : धारा 498A जरूरी, दुरुपयोग के बावजूद कोई बदलाव नहीं

Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को आईपीसी की धारा 498A से जुड़े एक अहम मामले में…

सुप्रीम कोर्ट : धारा 498A जरूरी, दुरुपयोग के बावजूद कोई बदलाव नहीं

Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को आईपीसी की धारा 498A से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि इस कानून में किसी तरह का हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। अदालत (Supreme Court) ने साफ किया कि भले ही कुछ मामलों में इस धारा का दुरुपयोग हुआ हो, लेकिन यह महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक जरूरी प्रावधान है।

क्या है आईपीसी की धारा 498A

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अंतर्गत, यदि पति या उसके परिवार के सदस्य महिला के साथ क्रूरता करते हैं, तो यह एक दंडनीय अपराध है। इसका उद्देश्य विवाहिता महिलाओं को घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना है।

अदालत (Supreme Court) में क्या था मामला

इस मामले में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि धारा 498A का महिलाओं द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। लेकिन न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि इस धारा की संवैधानिक वैधता पर कोई सवाल नहीं है। उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए विशेष कानून अनुच्छेद 15(3) के तहत वैध हैं।

दूसरे देशों से तुलना को खारिज किया

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अन्य देशों में घरेलू हिंसा के मामलों में पुरुष और महिलाएं दोनों ही न्याय की मांग कर सकते हैं, जबकि भारत में केवल महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है। इस पर अदालत (Supreme Court) ने टिप्पणी करते हुए कहा, “हमें दूसरों का अनुसरण नहीं करना चाहिए, बल्कि दूसरे देशों को हमारा अनुसरण करना चाहिए।”

दुरुपयोग पर क्या कहा कोर्ट (Supreme Court) ने

कोर्ट (Supreme Court) ने माना कि किसी भी कानून का दुरुपयोग हो सकता है, लेकिन वह किसी कानून को खत्म करने या कमजोर करने का आधार नहीं बनता। ऐसे मामलों में अदालत की जिम्मेदारी है कि वह साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर निर्णय ले।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह भी दोहराया कि धारा 498A जैसे प्रावधान समाज में महिलाओं के खिलाफ व्याप्त क्रूरता और भेदभाव को समाप्त करने के लिए बेहद जरूरी हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह कानून एक मजबूत कदम है और इसके संरक्षण की आवश्यकता है। Supreme Court :

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