धामी सरकार को बड़ा झटका: राजभवन से लौटा UCC संशोधन बिल
अब सरकार को इन आपत्तियों के हिसाब से प्रावधानों की फिर से ड्राफ्टिंग कर, संशोधित मसौदा तैयार करना होगा। इसके बाद सरकार के पास दो विकल्प रहेंगे या तो अध्यादेश के जरिए संशोधन लागू करने की कोशिश करे, या फिर विधानसभा से दोबारा विधेयक पारित कराकर राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजे।

Uttarakhand News : उत्तराखंड की धामी सरकार को UCC संशोधन विधेयक के मोर्चे पर बड़ा झटका लगा है। राजभवन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) और धर्म की स्वतंत्रता/गैर-कानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम से जुड़े संशोधन विधेयकों को वापस लौटा दिया है। अधिकारियों के अनुसार, आपत्तियां सिर्फ भाषा या व्याकरण तक सीमित नहीं रहीं कुछ धाराओं में तकनीकी खामियां बताई गई हैं और कुछ अपराधों के लिए प्रस्तावित सज़ा की अवधि पर भी राजभवन ने सवाल उठाए हैं। अब सरकार को इन आपत्तियों के हिसाब से प्रावधानों की फिर से ड्राफ्टिंग कर, संशोधित मसौदा तैयार करना होगा। इसके बाद सरकार के पास दो विकल्प रहेंगे या तो अध्यादेश के जरिए संशोधन लागू करने की कोशिश करे, या फिर विधानसभा से दोबारा विधेयक पारित कराकर राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजे।
क्यों अहम है यह मुद्दा?
उत्तराखंड में UCC और धर्मांतरण से जुड़े प्रावधान धामी सरकार के सबसे चर्चित और महत्वाकांक्षी एजेंडे का हिस्सा रहे हैं। इन्हीं मुद्दों पर सरकार को सियासी समर्थन भी मिलता रहा है और तीखा विरोध भी। विपक्ष खासकर कांग्रेस लगातार सवाल उठाती रही है कि सरकार इन कानूनों को “सुधार” के नाम पर आगे बढ़ा रही है या “सियासी संदेश” देने के लिए। कांग्रेस का आरोप है कि ऐसे प्रावधानों के लागू होने से अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ संदेह और कार्रवाई का दायरा बढ़ सकता है, जबकि सरकार इसे कानून-व्यवस्था और सामाजिक संतुलन के लिए जरूरी कदम बताती रही है।
संशोधनों में क्या प्रस्तावित था?
सूत्रों के मुताबिक, उत्तराखंड UCC के प्रस्तावित संशोधनों में सरकार ने दंड प्रावधानों को और सख्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया था। मसौदे के प्रमुख बिंदुओं के अनुसार, कुछ खास परिस्थितियों में सज़ा की अधिकतम सीमा सात साल तक ले जाने का प्रावधान रखा गया था। साथ ही धोखे, दबाव या जबरदस्ती के जरिए रिश्तों/संबंधों से जुड़े मामलों में कड़ी दंडात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव भी शामिल था। एक अहम बदलाव के तौर पर नई धारा 390-A जोड़ने की बात सामने आई थी, जिसके तहत रजिस्ट्रार जनरल को विवाह, तलाक, लिव-इन और विरासत से जुड़े रजिस्ट्रेशन को रद्द करने जैसी शक्तियां देने का प्रावधान प्रस्तावित किया गया था। वहीं धर्मांतरण कानून में, पहले से मौजूद व्यवस्था के बावजूद, अलग-अलग संशोधनों के जरिए सज़ा को और कठोर बनाने तथा अधिकतम दंड सीमा बढ़ाने की दिशा में भी प्रस्ताव रखे गए थे।
कांग्रेस का हमला
राज्य सरकार ने विधेयक लौटाए जाने को “मामूली त्रुटियों” का नतीजा बताया है, लेकिन विपक्ष ने इसे तुरंत सियासी बहस के केंद्र में ला दिया। कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि यदि खामियां सचमुच छोटी होतीं तो राजभवन स्तर पर अनौपचारिक सुधार कराए जा सकते थे औपचारिक रूप से विधेयक वापस किया जाना संकेत देता है कि आपत्तियां सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं हैं। कांग्रेस का दावा है कि या तो राजभवन कानून के कुछ प्रावधानों पर मूलतः असहमत है, या फिर 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले इन्हें दोबारा सदन में लाकर “बड़ा मुद्दा” बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है।
आगे क्या?
अब उत्तराखंड की धामी सरकार के सामने अब अगला और सबसे अहम फैसला यही है कि वह संशोधनों को अध्यादेश के रास्ते तुरंत आगे बढ़ाती है, या राजभवन की आपत्तियों के अनुसार मसौदा दुरुस्त कर विधानसभा से दोबारा पारित कराकर मंजूरी लेती है। फिलहाल इतना साफ है कि उत्तराखंड में UCC संशोधन की रफ्तार पर विराम लग चुका है। ऐसे में सरकार का अगला कदम ही तय करेगा कि यह मुद्दा कानूनी प्रक्रिया में कितना आगे बढ़ता है और सियासत के मैदान में बहस कितनी तेज़ होती है। Uttarakhand News
Uttarakhand News : उत्तराखंड की धामी सरकार को UCC संशोधन विधेयक के मोर्चे पर बड़ा झटका लगा है। राजभवन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) और धर्म की स्वतंत्रता/गैर-कानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम से जुड़े संशोधन विधेयकों को वापस लौटा दिया है। अधिकारियों के अनुसार, आपत्तियां सिर्फ भाषा या व्याकरण तक सीमित नहीं रहीं कुछ धाराओं में तकनीकी खामियां बताई गई हैं और कुछ अपराधों के लिए प्रस्तावित सज़ा की अवधि पर भी राजभवन ने सवाल उठाए हैं। अब सरकार को इन आपत्तियों के हिसाब से प्रावधानों की फिर से ड्राफ्टिंग कर, संशोधित मसौदा तैयार करना होगा। इसके बाद सरकार के पास दो विकल्प रहेंगे या तो अध्यादेश के जरिए संशोधन लागू करने की कोशिश करे, या फिर विधानसभा से दोबारा विधेयक पारित कराकर राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजे।
क्यों अहम है यह मुद्दा?
उत्तराखंड में UCC और धर्मांतरण से जुड़े प्रावधान धामी सरकार के सबसे चर्चित और महत्वाकांक्षी एजेंडे का हिस्सा रहे हैं। इन्हीं मुद्दों पर सरकार को सियासी समर्थन भी मिलता रहा है और तीखा विरोध भी। विपक्ष खासकर कांग्रेस लगातार सवाल उठाती रही है कि सरकार इन कानूनों को “सुधार” के नाम पर आगे बढ़ा रही है या “सियासी संदेश” देने के लिए। कांग्रेस का आरोप है कि ऐसे प्रावधानों के लागू होने से अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ संदेह और कार्रवाई का दायरा बढ़ सकता है, जबकि सरकार इसे कानून-व्यवस्था और सामाजिक संतुलन के लिए जरूरी कदम बताती रही है।
संशोधनों में क्या प्रस्तावित था?
सूत्रों के मुताबिक, उत्तराखंड UCC के प्रस्तावित संशोधनों में सरकार ने दंड प्रावधानों को और सख्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया था। मसौदे के प्रमुख बिंदुओं के अनुसार, कुछ खास परिस्थितियों में सज़ा की अधिकतम सीमा सात साल तक ले जाने का प्रावधान रखा गया था। साथ ही धोखे, दबाव या जबरदस्ती के जरिए रिश्तों/संबंधों से जुड़े मामलों में कड़ी दंडात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव भी शामिल था। एक अहम बदलाव के तौर पर नई धारा 390-A जोड़ने की बात सामने आई थी, जिसके तहत रजिस्ट्रार जनरल को विवाह, तलाक, लिव-इन और विरासत से जुड़े रजिस्ट्रेशन को रद्द करने जैसी शक्तियां देने का प्रावधान प्रस्तावित किया गया था। वहीं धर्मांतरण कानून में, पहले से मौजूद व्यवस्था के बावजूद, अलग-अलग संशोधनों के जरिए सज़ा को और कठोर बनाने तथा अधिकतम दंड सीमा बढ़ाने की दिशा में भी प्रस्ताव रखे गए थे।
कांग्रेस का हमला
राज्य सरकार ने विधेयक लौटाए जाने को “मामूली त्रुटियों” का नतीजा बताया है, लेकिन विपक्ष ने इसे तुरंत सियासी बहस के केंद्र में ला दिया। कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि यदि खामियां सचमुच छोटी होतीं तो राजभवन स्तर पर अनौपचारिक सुधार कराए जा सकते थे औपचारिक रूप से विधेयक वापस किया जाना संकेत देता है कि आपत्तियां सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं हैं। कांग्रेस का दावा है कि या तो राजभवन कानून के कुछ प्रावधानों पर मूलतः असहमत है, या फिर 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले इन्हें दोबारा सदन में लाकर “बड़ा मुद्दा” बनाने की रणनीति पर काम हो रहा है।
आगे क्या?
अब उत्तराखंड की धामी सरकार के सामने अब अगला और सबसे अहम फैसला यही है कि वह संशोधनों को अध्यादेश के रास्ते तुरंत आगे बढ़ाती है, या राजभवन की आपत्तियों के अनुसार मसौदा दुरुस्त कर विधानसभा से दोबारा पारित कराकर मंजूरी लेती है। फिलहाल इतना साफ है कि उत्तराखंड में UCC संशोधन की रफ्तार पर विराम लग चुका है। ऐसे में सरकार का अगला कदम ही तय करेगा कि यह मुद्दा कानूनी प्रक्रिया में कितना आगे बढ़ता है और सियासत के मैदान में बहस कितनी तेज़ होती है। Uttarakhand News












