Tuesday, 26 November 2024

बिहार की एक गुफा में सदियों से छिपा हुआ है सोने का भंडार

Bihar News : भारत का प्रमुख राज्य बिहार अनेक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। बिहार ही वह प्रदेश है जहां…

बिहार की एक गुफा में सदियों से छिपा हुआ है सोने का भंडार

Bihar News : भारत का प्रमुख राज्य बिहार अनेक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। बिहार ही वह प्रदेश है जहां पर एक जमाने में दुनिया का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हुआ करता था। बिहार प्रदेश ही दुनिया के सबसे बुद्धिमान राजनीतिज्ञ चाणक्य की जन्मभूमि रहा है। इसी बिहार राज्य में सदियों से एक गुफा में स्वर्ण भंडार छिपा हुआ है। लाखों बार कोशिश करने के बाद भी बिहार की गुफा से स्वर्ण भंडार को निकाला नहीं जा सका है।

राजगीर की गुफाओं में छुपा है स्वर्ण भंडार

बिहार प्रदेश का एक प्रसिद्ध जिला है नालंदा जिला। बिहार के इस जिले में इतिहास के अनेक दस्तावेज फैले हुए हैं। बिहार के इसी जिले में दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय भी रहा है। बिहार के इस विश्वविद्यालय का नाम नालंदा विश्वविद्यालय था। नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर ही इस जिले का नाम नालंदा पड़ा है। इसी नालंदा जिले में सदियों से छुपा हुआ है बड़ा भारी स्वर्ण भंडार। जहां यह स्वर्ण भंडार छिपा होने का दावा किया जाता है बिहार के उस स्थान का नाम राजगीर की गुफा है। राजगीर की गुफा को लेकर तरह-तरह की कहानिया दुनिया भर में प्रचलित हैं। हाल ही में भूपेन्द्र कुमार नाम के विश्लेषक ने बिहार में मौजूद राजगीर की गुफाओं को लेकर बड़ा आलेख लिखा है।

गुफा में खजाने का रहस्य Bihar News

‘देवेन्द्र कुमार ने लिखा है कि बिहार के नालंदा जिले में कदम-कदम पर पुरावशेष बिखरे हैं। इन्हीं में से एक है सोन भंडार यानी स्वर्ण भंडार। जैसा नाम है, वैसा ही इसका मिथक है। हरे-भरे जंगल के बीच स्थित इन गुफाओं का रास्ता बेहद सुरम्य है। इस आख्यान की शुरुआत छठी शताब्दी ईसा पूर्व हर्यक वंश के प्रतापी शासक महाराज बिंबिसार से होती है, जिन्होंने राजगृह (राजगीर) का निर्माण कराया था। बिंबिसार 543 ईसा पूर्व में मगध पर राज करते थे। बताया जाता है कि उन्हीं के काल में सोन भंडार गुफाओं का निर्माण खजाने को रखने के लिए किया गया। इस आयताकार गुफा में दो हिस्से हैं। एक हिस्सा सैनिकों के लिए था, जो खजाने की रक्षा करते थे और दूसरा हिस्सा बताया जाता है।

अंग्रेजों ने खजाने की खोज के लिए तोपों का सहारा लिया, लेकिन दीवार को तोड़ नहीं पाए। दरअसल खजाने का तिलिस्म एक ऐसी प्राचीन शंख लिपि से जुड़ा है, जिसे कभी पढ़ा नहीं जा सका। किंवदंती है कि गुफा की दीवार पर शंख लिपि में खजाने के दरवाजे को खोलने का तरीका लिखा है। ये गुफाएं विभागिरी पहाडय़िों की तलहटी में हैं। सम्राट बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु ने जब उन्हें बंदी बनाकर कारागार में डाला, तो उनकी रानी ने खजाना इन गुफाओं में छिपा दिया। बाद में ‘बिंबिसार की मौत हो गई थी। इसके बाद खजाने के बारे में कहीं कोई लिखित वृतांत नहीं मिलता।

वायु पुराण में लिखा है कि हर्यक वंश से 2500 साल पहले मगध पर सम्राट वृहद्रथ का शासन था। उनका पुत्र जरासंध महाप्रतापी शासक था, जिसने 80 राजाओं को हराकर जो संपत्ति अर्जित की, उसे इसी गुफा में छिपा दिया था। महाभारत से जुड़े प्रसंग के अनुसार, जरासंध को भीम ने मार डाला था और इसी के साथ खजाने का राज भी दफन हो गया। हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संस्थापक सर अलेक्जेंडर कनिंघम और कुछ अन्य इतिहासकार इन गुफाओं को बौद्ध धर्म से जोड़ते हैं।

वहीं दर्ज इतिहास में इन गुफाओं को जैन मुनियों द्वारा ईसा पूर्व चौथी सदी में निर्मित माना जाता है। यहां जैन धर्म से जुड़ी छह मूर्तियां मिली हैं। भगवान विष्णु की प्रतिमाएं भी मिली हैं। चौथी शताब्दी के एक शिलालेख पर लिखा है कि मुनि वैरादेव ने दो शुभ गुफाओं का निर्माण कराया, जो तपस्वियों के योग्य हैं और जिनमें अर्हतों (तीर्थंकरों) की मूर्तियां स्थापित हैं। हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं, यह गुफाओं का पुनर्निर्माण भी हो सकता है। बहरहाल, इन गुफाओं के अंदर की चमक बेमिसाल है, जो किसी खजाने से कम नहीं है। Bihar News

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