Budget-2025 : भारत सरकार का बजट-2025 जल्दी ही संसद में पेश किया जाएगा। बजट-2025 से भारत के हर नागरिक को कोई-न-कोई उम्मीद लगी हुई है। बजट से सबसे बड़ी उम्मीद भारत के मध्यवर्ग ने लगा रखी है। बजट-2025 को लेकर जाने-माने पत्रकार मधुरेन्द्र सिन्हा ने बड़ा विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण से साफ जाहिर किया गया है कि बजट-2025 से भारत का मध्यवर्ग क्या-क्या उम्मीद लगा कर बैठा हुआ है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी बजट-2025
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण एक बार फिर बजट पेश करने की तैयारी में हैं। लोकसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने जो अंतरिम बजट पेश किया था, वह भले ही संतुलित बजट था, लेकिन उसमे मध्यवर्ग को कोई राहत नहीं दी गई थी। अब जब वह पूर्ण बजट पेश करने वाली हैं, तो लोगों, खासकर मध्यवर्ग की उनसे उम्मीदें बढ़ गई हैं, क्योंकि फिलहाल वह राहत देने की स्थिति में हैं।
यह मध्यवर्ग ही है, जो बड़े पैमाने पर खरीदारी करके अर्थव्यवस्था की रफ्तार बनाए रखने में मदद करता है। वित्तमंत्री ने स्वयं स्वीकार किया है कि देश में बढ़ती खपत के कारण ही जीडीपी में तेजी दिख रही है। उन्होंने माना कि खपत्त बढऩे से कारखानों की भी रफ्तार बाड़ जाती है, जिससे रोजगार बढ़ता है, जो अंतत: लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाकर खपत को बढ़ावा देता है। आज भारत का ऑटोमोबाइल उद्योग भी इसी वर्ग के बूते फल-फूल रहा है। यही नहीं, देश का उच्च
मध्यवर्ग लग्जरी आइटमों की खरीदारी करके भारी टैक्स भी दे रहा है। वह अच्छी शिक्षा पाने के लिए अपने बच्चों को विदेशी कॉलेज यूनिवर्सिटी में भेजता है और भारतीय बैंकों को मोटा ब्याज देकर मालामाल करता है। मध्यवर्ग का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान उल्लेखनीय है, इसलिए वह सरकार से कुछ प्रोत्साहन की उम्मीद रखता है।
ज्यादा हुई है टैक्स वसूली
इस बार सरकार की उम्मीदों से कहीं ज्यादा टैक्स की वसूली हुई है। प्रत्यक्ष और परोक्ष करों में आशातीत बढ़ोत्तरी हुई है। जीएसटी वसूली बढ़ाकर हर महीने औसतन पौने दो लाख करोड़ रुपये तक जा पहुंची है। दूसरी ओर आयकर में बसूली भी बढ़ गई है। यानी सरकार के पास राहत देने के लिए काफी गुंजाइश है। वित्तमंत्री चाहे तो आयकर दरों में कटौती कर सकती हैं, जिसकी मांग लंबे समय से हो रही है। मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के समक्ष आयकर एक बड़ी बाधा है, जो उसकी खर्च करने की क्षमता को सीमित कर रहा है। देश में महंगाई बढऩे से लोगों को घर चलाने में दिक्कतें आ रही है। जनता की मांग है कि पुरानी आयकर दर को घटाकर 5 से 20 फीसदी कर दिया जाए, क्योंकि आयकर देने वाला जीएसटी भी दे रहा है। कुछ मामलों में तो करदाता कुल मिलाकर 50 फीसदी टैक्स दे रहा है। फिर भी उसे अपने बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा या मुफ्त स्वास्थ्य सेवा नहीं मिल रही है। टैक्स में कटौती करने से उनकी खपत करने की ताकत भी बढ़ेगी।
एक देश एक टैक्स का सुझाव
कुछ कारोबारियों का सुझाव है कि सभी प्रकार के टैक्स हटाकर एक देश-एक टैक्स की व्यवस्था करनी चाहिए। यानी बैंक लेन-देन कर प्रणाली लागू करनी चाहिए, ताकि कर अनुपालन में लगने वाले समय को बचाकर उसे कारोबार में लगाया जा सके। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वित्तमंत्री 80सी की सीमा बढाए। वर्ष 2014 में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसे बढ़ाकर 1.50 लाख रुपये कर दिया था, जिससे करदाताओं को फायदा हुआ था। पिछले दस साल में महंगाई इतनी बढ़ गई कि अब इसका भी ज्यादा फायदा नहीं हो पा रहा है। इसलिए 80 सी की सीमा को बढ़ाकर दो लाख रुपये कर देना चाहिए। गौरतलब है कि 80 सी में लगाया गया धन सरकार के भी काम आता है। लोग पीपीएफ, एनएससी वगैरह में जो निवेश करते हैं, उसे सरकार अपने काम में लगाती है।
सरकार को 80 डी की सीमा में भी बढ़ोतरी करनी चाहिए। यह मेडिकल खर्च से जुड़ा हुआ है, जिसकी सीमा लंबे समय से नहीं बढ़ी है, जबकि चिकित्सा लागत में काफी बढ़ोतरी हुई है। साथ ही चिकित्सा बीमा पर लगने वाले 18 फीसदी जीएसटी को भी कम करना चाहिए, क्योंकि बीमा कंपनियों ने अपने प्रीमियम अनाप-शनाप तरीके से बढ़ा दिए हैं। इस वजह से लाखों लोग बीच में ही स्वास्थ्य बीमा छोड़ देते हैं। बीमा को लोकप्रिय बनाने के लिए जरूरी है कि उसकी प्रीमियम पर टैक्स घटे। इससे बड़े पैमाने पर रोजगार भी सृजित होगा।
अभी सरकार का खजाना भरा हुआ है और आने वाले समय में इसमें कुछ और बढ़ोतरी होगी। इसलिए वित्तमंत्री लोगों की मांगें पूरी कर सकती हैं। इतिहास गवाह है कि टैक्स दर घटाने से टैक्स वसूली नहीं घटती। जीडीपी बढ़ाने के लिए यह जरूरी है, क्योंकि कुछ मध्यवर्ग को दी गई टैक्स छूट, खरीदारी की शक्ल में बाजारों में आएगी और फिर खपत बढ़ेगी, जो जीडीपी में तेजी का कारण बनेगी। Budget-2025
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