Congress News: नवा रायपुर। छत्तीसगढ़ में आयोजित हो रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय महाधिवेशन में यूं तो पार्टी की मजबूति से लेकर आगे की राजनीति रणनीति तय करने, विपक्षी दलों की एकजुटता पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन इस सबके बीच एक संदेश यह भी दिया जा रहा है कि भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी नेता हो, परंतु पार्टी में अभी भी राहुल गांधी अहम भूमिका रखते हैं।
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आपको बता दें कि कांग्रेस का राष्ट्रीय महाधिवेशन गुरुवार को नवा रायपुर में शुरू हुआ था। तीन दिवसीय इस अधिवेशन में जहां कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जा चुके हैं, वहीं सूत्रों का दावा है कि अधिवेशन के समापन से पहले कई और महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं।
कांग्रेस का यह पहला राष्ट्रीय अधिवेशन है, जिसका नेतृत्व संभवत: एक गैर गांधी नेता द्वारा किया जा रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को सारी जिम्मेदारी दी गई है। महाधिवेशन में कार्यसमिति के लिए सदस्यों के चयन और नामित का अधिकार भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही दिया गया है। लेकिन अंदर से यह रणनीति भी अपनाई जा रही है कि कांग्रेस में गांधी परिवार की अहमियत कभी कम न हो।
पिछले दिनों ही राहुल गांधी द्वारा निकाली गई भारत जोड़ो यात्रा संपन्न हुई है। राहुल ने अपनी इस यात्रा के जरिए देशभर के लोगों को न केवल अपनी ओर आकर्षित किया, बल्कि ऐतिहासिक रुप से लोगों को कांग्रेस से जोड़ने का काम भी किया है। यही वजह है कि अधिवेशन स्थल पर लगाए गए होर्डिंग्स आदि में राहुल गांधी को महात्मा गांधी के समकक्ष दर्शाया गया है। अधिवेशन स्थल पर लगाए गए होर्डिंग्स में एक तरफ जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आदमकद तस्वीर लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर महात्मा गांधी के ठीक सामने राइट हैंड पर राहुल गांधी की भी आदमकद तस्वीर लगाई गई है। इस तस्वीर से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि कांग्रेस में राहुल गांधी की भूमिका महात्मा गांधी से कम नहीं है।
आने वाले चुनाव में यदि कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति बनती है तो राहुल गांधी की भूमिका और दायित्वों को नकारा नहीं जा सकेगा। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस का यह अधिवेशन एक दलित राष्ट्रीय अध्यक्ष की सरपरस्ती में आयोजित किया जा रहा है। जिसका दूर तक असर दिखाई देने वाला है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि शनिवार को पार्टी पदाधिकारियों द्वारा यह कहना कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो, लेकिन तीसरे मोर्च के गठन की जरुरत नहीं है, सही है। क्योंकि यदि भाजपा के खिलाफ तीसरे मोर्चे का गठन होता है तो इसका विपरित असर भविष्य की राजनीति पर पड़ सकता है।
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