Thursday, 2 January 2025

गलियों मे पढ़ाने वाला टीचर कैसे बना ग्लोबल टीचर प्राईज का हकदार

पश्चिम बंगाल के रहने वाले दीप नारायण नायक की पहचान भारत के उन विशेष शिक्षकों में से है जिन्होंने विश्व में शिक्षा जगत में अपना अलग नाम बनाया है

गलियों मे पढ़ाने वाला टीचर कैसे बना ग्लोबल टीचर प्राईज का हकदार

Global Teacher Prize 2023 पश्चिम बंगाल के रहने वाले दीप नारायण नायक की पहचान भारत के उन विशेष शिक्षकों में से है जिन्होंने विश्व में शिक्षा जगत में अपना अलग नाम बनाया है। दीप नारायण ने ग्लोबल टीचर प्राइज 2023 के टॉप 10 में जगह बनाई है।

दीप नारायण का पारिवारिक जीवन

दीप नारायण के पिता सत्य नारायण नायक पर 10 लोगों के परिवार को पालने की जिम्मेदारी थी। अपने परिवार मे बड़े होते हुए उन्होने परिवार में चीजों का आभाव देखा। उनके पिता पश्चिम बंगाल के आसनसोल के नंदी गांव में दिहाड़ी मजदूर थे। उनके पास कभी काम होता तो कभी खाली रहते थे। घर में इतने पैसे नहीं होते थे कि चाय के लिये दूध लिया जाये। इसलिये पॉउडर वाला दूध खरीदा जाता था और जिसे महीनेभर चलाना होता था। दीप नारायण पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। इनका बचपन बहुत कठिनाइयों से गुजरा था।

आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी फिर भी पढ़ाई की

उन्होंने दूसरों से मांग कर चीजों का इस्तेमाल किया। स्कूल बैग, किताबें, कॉपियां, कपड़े या यूनिफॉर्म हों या फिर फटी-पुरानी पाठ्यपुस्तकें। लेकिन कभी ना नाउम्मीद ना होने वाले दीप नारायण ने जिन्दगी की इस लड़ाई में कभी हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई जारी रखा। 2006 में आसनसोल से बर्दवान विश्वविद्यालय के बीबी कॉलेज से बायोसाइंसेज में ग्रेजुएशन किया। घर में आ रही आर्थिक परेशानी की वजह से उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। एमएससी की पढ़ाई पूरी ना कर पाने का दुख रहा। अपने परिवार की मदद करने के लिये और अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिये उन्होंने 200 रुपये के लिए रात में कैटरर के रूप में काम किया। सुबह ट्यूशन देने लगे।

टीचर बनने का सफर

उन्‍होंने 2010 में बर्दवान के बमुनिया प्राइमरी स्‍कूल में बतौर टीचर पढ़ाना शुरू किया था। इसके बाद दीप नारायण ने 2018 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से लगभग 183 किमी दूर छोटे से गांव जमुरिया (आसनसोल) में तिलका मांझी आदिवासी फ्री प्राइमरी स्कूल में बतौर शिक्षक काम किया।

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एमबीए की पढ़ाई ड्रॉप करी

दीप नारायण ने भले ही एमएससी पूरी नहीं की लेकिन उन्होंने एमबीए की पढ़ाई के लिये पैसे इकट्ठे किये और उन्होंने आईसीएफएआई, कोलकाता में दूसरा सेमेस्टर पूरा किया। लेकिन एक बार फिर घर की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। लेकिन उन्होने मुसीबतों का डट कर सामना किया।

गलियों की दीवारों को ब्लैक बोर्ड बनाया

दीप नारायण वो शिक्षक हैं जिन्होंने नवीन शिक्षण विधियों से गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले और शिक्षा तक पहुंच की कमी वाले वंचित बच्चों के लिए सीखने की खाई को पाट दिया है। उन्‍होंने क्‍लास को गरीब बच्‍चों की चौखट तक पहुंचा दिया है। कितने ही बच्चे उनकी क्लास में खुली हवा के नीचे पढ़ते थे। उनकी कक्षा पेड़ के नीचे चलती थी। 2014 में नायक के ओपन-एयर स्कूल में मिट्टी की दीवारें ब्लैकबोर्ड बन गईं। लॉकडाउन के समय में गलियों की दिवारों को ब्लैक बोर्ड बना दिया और वहीं क्लास लेने लगे । शिक्षा में उनके असाधारण प्रयासों के लिए उन्हें “सड़कों का शिक्षक” उपनाम मिला। उनका उद्देश्य डिजिटल अंतर को पाटना और दूरदराज और आर्थिक रूप से वंचित समुदायों में रहने वाले वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान करना था।

ग्लोबल टीचर पुरस्कार मे जगह बनायी

गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले वंचित समाज के बच्चों को उनके इस विशेष तरीके का काफी लाभ मिला। दीप नारायण नें ग्लोबल टीचर प्राइज 2023 की शीर्ष 10 सूची में जगह बनाई है। यह पुरस्कार एक असाधारण शिक्षक को पहचानने के लिए बनाया गया था, जिसने पेशे में उत्कृष्ट योगदान दिया है और साथ ही समाज में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला है।10 लाख डॉलर का पुरस्कार वर्की फाउंडेशन की ओर से यूनेस्को और दुबई केयर के सहयोग से दिया जाता है। दीप नारायण की इस शिक्षा नीति से गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहे बच्चों के के लिए विशेष फायदेमंद रहा। उन्होंने बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को भी शिक्षित किया। शैक्षिक और सामाजिक रूप से चुनौतियों का सामना कर रहे वर्ग में उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षा की ज्योति जलाए रखी।

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