Thursday, 26 December 2024

गुर्जर समाज धूमधाम से मना रहा है सम्राट मिहिर भोज की जयंती

Gurjar Samaj : गुर्जर समाज भारत का एक प्रसिद्ध समाज है। 6 सितंबर 2024 को गुर्जर समाज पूरी दुनिया में…

गुर्जर समाज धूमधाम से मना रहा है सम्राट मिहिर भोज की जयंती

Gurjar Samaj : गुर्जर समाज भारत का एक प्रसिद्ध समाज है। 6 सितंबर 2024 को गुर्जर समाज पूरी दुनिया में अपने पूर्वज महान सम्राट मिहिर भोज की जयंती मना रहा है। गुर्जर समाज के वि़द्वानों का मत है कि सम्राट मिहिर भोज की जयंती 22 मार्च, 30 अगस्त तथा 6 सितंबर को मनाई जाती है। दरअसल सम्राट मिहिर भोज के जन्म की तारीख को लेकर गुर्जर समाज के इतिहासकारों का अलग-अलग मत है। 6 सितंबर को भारत ही नहीं दुनिया के हर कोने में जहां-जहां गुर्जर समाज के लोग रहते है। वहीं-वहीं सम्राट मिहिर भोज की जयंती मनाई जा रही है।

सम्राट मिहिर भोज की जयंती पर अनेक आयोजन

6 सितंबर 2024 को गुर्जर समाज के द्वारा अनेक आयोजन किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के दादरी नगर में स्थापित मिहिर भोज बालिका डिग्री कॉलिज में महान गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की जयंती समारोह पूर्वक मनाई जा रही है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के ही दनकौर कस्बे के द्रौण मेले में भी गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की जयंती मनाई जा रही है। इसी कड़ी में देश तथा दुनिया भर में सम्राट मिहिर भोज की जयंती के अवसर पर 6 सितंबर 2024 को अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

गुर्जर समाज का इतिहास Gurjar Samaj

सम्राट मिहिर भोज की जयंती के अवसर पर गुर्जर समाज के इतिहास की चर्चा करना जरूरी हो जाता है। आपको बता दें कि गुर्जर एक वैश्विक समुदाय है जोकि प्राचीन काल से भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान और कुछ मध्य एशियाई देशों में रह रहा हैं। एलेग्जेंडर कनिंघम ने कुषाणों की पहचान गुर्जरों से की हैं। उसके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र ही प्राचीन कुषाण हैं। डॉ. सुशील भाटी ने इस मत का अत्यधिक विकास किया हैं और इस विषय पर अनेक शोध पत्र लिखे हैं, जिसमें “गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत” काफी चर्चित हैं। उनका कहना है कि ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हैं।

कनिष्क का साम्राज्य भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि उन सभी देशों में फैला हुआ था जहां आज गुर्जर रहते हैं। कनिष्क के साम्राज्य की एक राजधानी मथुरा भारत में तथा दूसरी पेशावर पाकिस्तान में थी। कनिष्क के साम्राज्य का एक वैश्विक महत्व हैं, दुनिया भर के इतिहासकार इसमें रूचि रखते हैं। कनिष्क के साम्राज्य के अतरिक्त गुर्जरों से सम्बंधित ऐसा कोई अन्य साम्राज्य नहीं हैं जोकि पूरे दक्षिणी एशिया में फैले गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इससे अधिक उपयुक्त हो। यहां तक कि मिहिर भोज द्वारा स्थापित प्रतिहार साम्राज्य केवल उत्तर भारत तक सीमित था तथा पश्चिमोत्तर में करनाल इसकी बाहरी सीमा थी।

गुर्जर समाज से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य

कनिष्क के राज्यकाल में भारत में व्यापार और उद्योगों में अभूतपूर्व तरक्की हुई, क्योंकि मध्य एशिया स्थित रेशम मार्ग, जोकि समकालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग था तथा जिससे यूरोप और चीन के बीच रेशम का व्यापार होता था, पर कनिष्क का नियंत्रण था। भारत के बढ़ते व्यापार और आर्थिक उन्नति के इस काल में तेजी के साथ नगरीकरण हुआ। इस समय पश्चिमोत्तर भारत में करीब 60 नए नगर बसे। इन नगरों में एक कश्मीर स्थित कनिष्कपुर था। बारहवीं शताब्दी के इतिहासकार कल्हण ने अपनी राजतरंगिनी में कनिष्क द्वारा कश्मीर पर शासन किये जाने और उसके द्वारा कनिष्कपुर नामक नगर बसाने का उल्लेख किया गया है।

सातवीं शताब्दी कालीन गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान क्षेत्र) की राजधानी भीनमाल थी। भीनमाल नगर के विकास में भी कनिष्क का बहुत बड़ा योगदान था। प्राचीन भीनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण कश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। कहते हैं कि भीनमाल के वर्तमान निवासी देवडा लोग एवं श्रीमाली ब्राह्मण कनक (कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से आए थे। कनिष्क ने ही पहली बार भारत में कनिष्क ने ही बड़े पैमाने सोने के सिक्के चलवाए।

कनिष्क के दरबार में अश्वघोष, वसुबंधु और नागार्जुन जैसे विद्वान थे। आयुर्विज्ञानी चरक और श्रुश्रत कनिष्क के दरबार में आश्रय पाते थे। कनिष्क के राज्यकाल में संस्कृत सहित्य का विशेष रूप से विकास हुआ। भारत में पहली बार बोद्ध साहित्य की रचना भी संस्कृत में हुई। गांधार एवं मथुरा मूर्तिकला का विकास कनिष्क महान के शासनकाल की ही देन हैं। अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार कनिष्क ने अपने राज्य रोहण के अवसर पर 78 ईस्वीं में शक संवत प्रारम्भ किया। शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैं। शक संवत भारतीय संवतों में सबसे ज्यादा वैज्ञानिक, सही तथा त्रुटिहीन हैं। शक संवत भारत सरकार द्वारा कार्यलीय उपयोग लाया जाना वाला अधिकारिक संवत हैं। शक संवत का प्रयोग भारत के ‘गज़ट’ प्रकाशन और ‘आल इंडिया रेडियो’ के समाचार प्रसारण में किया जाता है। भारत सरकार द्वारा ज़ारी कैलेंडर, सूचनाओं और संचार हेतु भी शक संवत का ही प्रयोग किया जाता हैं।

अंतर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस Gurjar Samaj

भारत सरकार द्वारा 1954 में गठित प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक मेघनाथ साहा की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय संवत सुधार समिति के अनुसार शक संवत प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को आरम्भ होता है। डॉ. सुशील भाटी का मत है कि क्योंकि शक संवत 22 मार्च को शुरू होता हैं अतः 22 मार्च कनिष्क के राज्य रोहण की तिथि हैं। उनका कहना हैं कि यह दिन भारतीय विशेषकर गुर्जर इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए यह दिन अन्तर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। यह तिथि अन्तर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस मनाने के लिए इसलिए भी उचित है।

गुर्जरों के प्राचीन इतिहास में यह एक मात्र तिथि हैं, जिसे अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्य पूरी दुनिया में प्रचलित कलेंडर के अनुसार निश्चित किया जा सकता हैं। अतः अन्य पंचांगों पर आधारित तिथियों की विपरीत यह भारत, पाकिस्तान अफगानिस्तान अथवा अन्य जगह जहां भी गुर्जर निवास करते हैं, यह एक ही रहेगी, प्रत्येक वर्ष बदलेगी नहीं। कनिष्क द्वारा अपने राज्य रोहण पर प्रचलित किया गया शक संवत प्राचीन काल में भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता था। भारत में शक संवत का व्यापक प्रयोग अपने प्रिय सम्राट कनिष्क के प्रति प्रेम और सम्मान का सूचक है और उसकी कीर्ति को अमर करने वाला हैं। प्राचीन भारत के महानतम ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर (500 इस्वीं) और इतिहासकार कल्हण (1200 इस्वीं) अपने कार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे। प्राचीन काल में उत्तर भारत में कुषाणों और शको के अलावा गुप्त सम्राट भी मथुरा के इलाके में शक संवत का प्रयोग करते थे। दक्षिण के चालुक्य और राष्ट्रकूट और राजा भी अपने अभिलेखों और राजकार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे।

गुर्जर समाज का प्रसिद्ध निशान

सम्राट कनिष्क के सिक्कों पर पाए जाने वाले राजसी चिन्ह को कनिष्क का तमगा भी कहते हैं, तथा इसे आज अधिकांश गुर्जर समाज अपने प्रतीक चिन्ह के रूप में देखता हैं। कनिष्क के तमगे में ऊपर की तरफ चार नुकीले काटे के आकार की रेखाए हैं तथा नीचे एक खुला हुआ गोला हैं इसलिए इसे चार शूल वाला ‘चतुर्शूल तमगा” भी कहते हैं। कनिष्क का चतुर्शूल तमगा सम्राट और उसके वंश/‘कबीले’ का प्रतीक हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना हैं कि चतुर्शूल तमगा शिव की सवारी ‘नंदी बैल के पैर के निशान’ और शिव के हथियार ‘त्रिशूल’ का ‘मिश्रण’ हैं, अतः इस चिन्ह को शैव चिन्ह के रूप में स्वीकार करते हैं। डॉ. सुशील भाटी, जिन्होंने इस चिन्ह को गुर्जर प्रतीक चिन्ह के रूप में प्रस्तावित किया हैं, इसे शिव के पाशुपतास्त्र और नंदी के खुर (पैर के निशान) का समिश्रण मानते हैं, क्योंकि शिव के पाशुपतास्त्र में चार शूल होते हैं। गुर्जर प्रतीक के रूप में कनिष्क के राजसी चिन्ह को अधिकांश गुर्जरों द्वारा अपनाये जाने से 22 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस और अधिक प्रसांगिक हो गया है। Gurjar Samaj 

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