सावधान : बाबा रामदेव की पतंजलि का सामान है मिलावटी

पतंजलि का नमूना फेल होने के बादा निर्देश जारी कर दिया गया है कि पतंजलि के लाल मिर्च पाउडर को बाजार से रीकॉल किया जाए। इस प्रकार भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि में बनने वाला सामान सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।

पतंजलि उत्पादों पर गुणवत्ता जांच की रिपोर्ट ने बढ़ाई हलचल
पतंजलि उत्पादों पर गुणवत्ता जांच की रिपोर्ट ने बढ़ाई हलचल
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar16 Dec 2025 04:37 PM
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Patanjali News : यदि आप बाबा रामदेव की पतंजलि फूड्स कंपनी का सामान इस्तेमाल करते हैं तो आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। सावधान रहने की आवश्यकता इसलिए है कि बाबा रामदेव की पतंजलि फूड्स कंपनी के द्वारा बनाया गया सामान मिलावटी हो सकता है। बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी का सामान मिलावटी है। यह बात हम नहीं कह रहे हैं। बाकायदा भारत सरकार ने संसद में यह बात बताई है। भारत सरकार ने संसद में दिए गए एक बयान में बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी की लाल मिर्च (लाल मिर्च पाउडर) को मिलावटी बताया है।

बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि का मिर्च पाउडर असुरक्षित है

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रताप राव जाधव ने संसद में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया है कि वर्ष-2024-25 में चलाये गये मसालों को सैंपलिंग अभियाान के दौरान बाबा रामदेव की पतंजलि फूड्स निर्माण इकाई में बनाये लाल मिर्च पाउडर का नमूना असुरक्षित पाया गया है। श्री जाधव ने बताया कि पतंजलि के नमूने की जांच से पता चला है कि उसमें पाये गये कीटनाशक अवशेषों का स्तर निर्धारित सीमा से बहुत अधिक है। किसी भी खाद्यय पदार्थ में कीटनाशक अवशेषों का स्तर निर्धारित अधिकतम अवशेष सीमा MRL के तहत नापा जाता है। पतंजलि का नमूना फेल होने के बादा निर्देश जारी कर दिया गया है कि पतंजलि के लाल मिर्च पाउडर को बाजार से रीकॉल किया जाए। इस प्रकार भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि में बनने वाला सामान सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।

पहले भी फेल हो चुके हैं पतंजलि के अनेक सैंपल

आपको बता दें कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के सैंपल फेल होने का यह पहला मामला नहीं है। दिसंबर के पहले सप्ताह में ही पतंजलि के द्वारा बनाये जाने वाले घी का सैंपल भी फेल हो चुका है। पतंजलि से बनने वाले घी का सैंपल राष्ट्रीय स्तर की लैब तथा उत्तराखंड राज्य स्तर की लैब से फेल साबित हुआ है। इस मामले में उत्तराखंड राज्य की अदालत ने पतंजलि के ऊपर जुर्माना भी लगाया है। बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि अनेक प्रकार के खाने के सामान जैसे  कि घी, बिस्कुट, न्यूडल्स, शहद, मिर्ची पाउडर समेत अनेक सामान बनाकर बेचती है। कुछ दिन पहले ही पतंजलि के CEO संजीव अस्थाना ने पतंजलि फूड्स द्वारा बनाये गये लाल मिर्च पाउडर को बाजार से वापस लेने की घोषणा थी।

पतंजलि के खराब उत्पाद के कारण जेल भी जा चुके हैं कंपनी के अधिकारी

बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी के नमूने फेल होने का सिलसिला बहुत पुराना है। वर्ष-2024 की बात करें तो उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के CGM ने पतंजलि के सोन पापड़ी की गुणवत्ता खराब होने के कारण पतंजलि कंपनी के एक असिस्टेंट मैनेजर सहित 3 लोगों को 6 महीने की जेल की सजा भी सुनाई थी। इससे पहले उत्तराखंड प्रदेश के राजय लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने पतंजलि आयुर्वेद लि. दिव्य फार्मेंसी के 14 उत्पादों के लाइसेंस सस्पेंड कर दिए थे। यह कार्यवाही ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स-1945 के बार-बार उल्लंघन के आरोप में की गई थी। दिव्य फार्मेसी तथा पतंजलि आयुर्वेद लि. भी बाबा रामदेव की ही कंपनी है। बाबा रामदेव की कंपनी के द्वारा बनाये जाने वाले ‘स्वसारि गोल्ड’, ‘स्वसारि वटी’, ‘ब्रॉन्चोम’, ‘स्वसारि प्रवाही’, ‘स्वसारि अवालेह’, ‘मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर’, ‘लिपिडोम’, ‘बीपी ग्रिट’, ‘मधुग्रिट’, ‘मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर’, ‘लिवामृत एडवांस’, ‘लिवोग्रिट’, ‘आईग्रिट गोल्ड’ और ‘पतंजलि दृष्टि आई ड्रॉप’ के लाइसेंस सस्पेंड किए जा चुके हैं। Patanjali News

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बड़ी खबर: नेशनल हेराल्ड केस में गांधी परिवार को राहत, ED को लगा झटका

हालांकि, फैसले के साथ एक ‘टेक्निकल’ झटका भी लगा कोर्ट ने साफ किया कि सोनिया गांधी समेत अन्य आरोपियों को अभी एफआईआर की प्रति उपलब्ध नहीं कराई जाएगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया में उनके लिए अगला कदम थोड़ा जटिल हो सकता है।

सोनिया-राहुल को फिलहाल राहत
सोनिया-राहुल को फिलहाल राहत
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar16 Dec 2025 01:09 PM
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National Herald Case : नेशनल हेराल्ड मामले में गांधी परिवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से दाखिल अभियोजन शिकायत पर फिलहाल संज्ञान लेने से इनकार कर दिया, जिससे सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित अन्य आरोपियों को इस चरण पर राहत मिली। हालांकि, फैसले के साथ एक ‘टेक्निकल’ झटका भी लगा कोर्ट ने साफ किया कि सोनिया गांधी समेत अन्य आरोपियों को अभी एफआईआर की प्रति उपलब्ध नहीं कराई जाएगी,  जिससे कानूनी प्रक्रिया में उनके लिए अगला कदम थोड़ा जटिल हो सकता है।

कोर्ट ने ED की शिकायत पर संज्ञान क्यों नहीं लिया?

मंगलवार को राउज एवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज विशाल गोगने ने सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि ईडी की कार्रवाई किसी एफआईआर से नहीं, बल्कि सुब्रमण्यम स्वामी की निजी शिकायत और उस पर मजिस्ट्रेट की ओर से जारी समन आदेशों की प्रक्रिया से निकली है। ऐसे में अदालत के मुताबिक, मौजूदा चरण में ईडी की अभियोजन शिकायत पर संज्ञान लेना न्यायिक रूप से उचित नहीं है।

“प्रीडिकेट ऑफेंस” का मुद्दा क्या रहा?

अदालत ने अपने आदेश में ईडी की कार्रवाई की कानूनी नींव पर सीधा सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी CBI ने अब तक कोई ‘प्रीडिकेट ऑफेंस’ दर्ज नहीं किया है, इसके बावजूद ईडी ने जांच को आगे बढ़ाया। अदालत के मुताबिक, जब आधारभूत एफआईआर ही मौजूद नहीं है, तो मनी लॉन्ड्रिंग की जांच और उसी पर टिकी प्रोसिक्यूशन कम्प्लेंट को टिकाऊ नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस स्तर पर मामले के गुण-दोष यानी ‘मेरिट्स’ पर बहस में जाने की जरूरत नहीं है। 

FIR कॉपी पर गांधी परिवार को क्यों लगा झटका?

कोर्ट ने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि इस चरण पर आरोपियों को एफआईआर की प्रति उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। इस फैसले को दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से जुड़ी एफआईआर के संदर्भ में खासा अहम माना जा रहा है। इसी मुद्दे पर दिल्ली पुलिस की याचिका पर सोमवार के बाद मंगलवार को भी सुनवाई हुई, जिससे संकेत मिलता है कि एफआईआर कॉपी से जुड़ा कानूनी पहलू फिलहाल न्यायिक जांच के केंद्र में है।

नई FIR कब दर्ज हुई?

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने 3 अक्टूबर को नेशनल हेराल्ड से जुड़े मामले में एक नई एफआईआर दर्ज की थी। इस एफआईआर में राहुल गांधी, सोनिया गांधी, सैम पित्रोदा, सुमन दुबे, यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड सहित कई अन्य को आरोपी बनाया गया है। एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपियों की ओर से इसकी प्रति उपलब्ध कराने की मांग उठी, लेकिन राउज एवेन्यू कोर्ट के ताज़ा आदेश ने साफ कर दिया है कि फिलहाल इस मांग पर राहत नहीं दी जाएगी।

नेशनल हेराल्ड केस की पृष्ठभूमि क्या है?

नेशनल हेराल्ड की कहानी आज़ादी के दौर की राजनीति और पत्रकारिता से जुड़ी रही है। 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस अख़बार की नींव रखी थी और इसका प्रकाशन Associated Journals Limited (AJL) के जरिए होता था। लेकिन आर्थिक दबावों के चलते 2008 में अख़बार का प्रकाशन बंद हो गया, जिसके बाद यह मामला धीरे-धीरे एक बड़े विवाद में बदलता गया। आगे चलकर 2010 में ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 38-38 प्रतिशत हिस्सेदारी होने की बात कही जाती है।

ED की जांच में क्या आरोप/दावे सामने आए?

ईडी ने अपनी जांच में इस सौदे को विवाद की जड़ बताया है। एजेंसी का दावा है कि ‘यंग इंडियन’ ने मात्र 50 लाख रुपये में एजेएल की लगभग 2,000 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर अधिकार स्थापित कर लिया, जबकि वास्तविक बाजार कीमत इससे कहीं ज्यादा मानी जा रही है। इसी आधार पर ईडी ने नवंबर 2023 में एजेएल की करीब 661 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियां और 90.2 करोड़ रुपये के शेयरों को कार्रवाई के दायरे में लाकर ‘प्रोसीड्स ऑफ क्राइम’ करार देने की बात कही थी। National Herald Case

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ग्रामीण रोजगार की नई रूपरेखा, मनरेगा के विकल्प पर सरकार का ड्राफ्ट बिल तैयार

इस ड्राफ्ट का नाम ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025’ बताया जा रहा है। यानी अब बहस का केंद्र यह है कि सरकार गांवों में रोजगार की गारंटी को किस नए ढांचे में परिभाषित करने जा रही है।

100 नहीं, 125 दिन ग्रामीण रोजगार गारंटी का नया प्रस्ताव
100 नहीं, 125 दिन ग्रामीण रोजगार गारंटी का नया प्रस्ताव
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar15 Dec 2025 01:00 PM
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MGNREGA Repeal Bill 2025 : केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार नीति में बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाते हुए मनरेगा (MGNREGA) की जगह नया कानून लाने का संकेत दिया है। जानकारी के मुताबिक, लोकसभा के सदस्यों को एक प्रस्तावित विधेयक की प्रति वितरित की गई है, जिसमें मनरेगा को निरस्त कर ग्रामीण भारत के लिए नई रोजगार-व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। इस ड्राफ्ट का नाम ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025’ बताया जा रहा है। यानी अब बहस का केंद्र यह है कि सरकार गांवों में रोजगार की गारंटी को किस नए ढांचे में परिभाषित करने जा रही है।

100 दिन से 125 दिन तक ‘कानूनी गारंटी’ का प्रस्ताव

प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक, हर ग्रामीण परिवार को हर वित्तीय वर्ष में 125 दिनों के मजदूरी-आधारित रोजगार की कानूनी/संवैधानिक गारंटी देने का लक्ष्य रखा गया है। यह गारंटी उन ग्रामीण परिवारों के लिए होगी, जिनके युवा सदस्य स्वयं अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए तैयार हों। वर्तमान में मनरेगा अधिनियम, 2005 के तहत ग्रामीण परिवारों को 100 दिन रोजगार की गारंटी का प्रावधान रहा है। नए मसौदे में इसे 125 दिन करने की बात सामने आई है।

‘विकसित भारत 2047’ के विजन से जोड़ने की मंशा

विधेयक का उद्देश्य एक ऐसा ग्रामीण विकास ढांचा तैयार करना बताया गया है, जो ‘विकसित भारत 2047’ के राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुरूप हो। मसौदे में “समृद्ध और लचीले ग्रामीण भारत” के लिए सशक्तिकरण, विकास और प्रगति को बढ़ावा देने की बात भी कही गई है। लोकसभा सदस्यों को प्रति बांटे जाने के साथ यह संकेत भी मिला है कि इसे संसद में पेश कर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 को रद्द किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है, तो ग्रामीण रोजगार और आजीविका सुरक्षा के क्षेत्र में यह नीतिगत स्तर पर बड़ा बदलाव माना जाएगा।

मनरेगा क्या है और इसकी अहमियत क्यों रही?

मनरेगा (MGNREGA) भारत के ग्रामीण श्रम बाजार का सबसे बड़ा “सेफ्टी-नेट” माना जाता है, जिसने काम के अधिकार को कागज़ से निकालकर ज़मीन पर उतारने की कोशिश की। 2005 में नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट के रूप में शुरू हुई इस व्यवस्था का वादा साफ था—हर ग्रामीण परिवार को साल में कम-से-कम 100 दिन मजदूरी-आधारित रोजगार। नियम यह भी रहा कि काम मांगने के 15 दिन के भीतर रोजगार उपलब्ध कराया जाए, और यदि काम न मिले तो बेरोज़गारी भत्ता देने की कानूनी व्यवस्था लागू हो। योजना को गांव-केंद्रित बनाने के लिए पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत भूमिका दी गई—ग्राम सभा को कामों की सिफारिश का अधिकार मिला और कम-से-कम 50% कार्य स्थानीय स्तर पर कराने पर जोर रहा। साथ ही, महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए कम-से-कम एक-तिहाई हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का प्रावधान रखा गया। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 तक करीब 15.4 करोड़ एक्टिव वर्कर मनरेगा में दर्ज बताए जाते हैं।

आगे की तस्वीर क्या होगी?

अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह प्रस्तावित विधेयक संसद के पटल पर कब आता है और किस रूप में पेश किया जाता है। क्या सरकार मनरेगा की मौजूदा व्यवस्था को पूरी तरह “रीप्लेस” करने जा रही है, या फिर उसे संशोधित ढांचे के साथ नए नाम और नए प्रावधानों में आगे बढ़ाया जाएगा? जवाब जो भी हो, असर सीधा गांवों तक जाएगा रोजगार की गारंटी कितनी मजबूत रहेगी, काम के अधिकार की कानूनी धार कैसे बदलेगी, और पंचायतों/ग्राम सभाओं की भूमिका पहले जैसी निर्णायक रहेगी या कागज़ी रह जाएगी इन तीनों मोर्चों पर आने वाले बदलाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दिशा तय कर सकते हैं। MGNREGA Repeal Bill 2025

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