National : नौ फरवरी 2014 को चेन्नई में कट्टनकुलाथुर में एसआरएम विश्वविद्यालय के डॉ. टीपी गणेशन ऑडिटोरियम में छात्रों को संबोधित करते हुए आज के देश के प्रधानमंत्री और उस समय के भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने कहा कि दुनिया झुकती है, लेकिन इसे झुकाने वाला चाहिए।
और ये आज उन्होंने साबित करके दिखा दिया। 2005 में नरेंद्र मोदी के गुजरात के सीएम थे। गुजरात दंगों को तीन साल हुए थे। गुजरात दंगों को लेकर उनके खिलाफ मामला भी चल रहा था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया था। उस समय नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के वीजा के लिए आवेदन किया था। तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने उन्हें वीजा देने से मना कर दिया था। अब उसका उल्टा हुआ है।
अमेरिका ने मोदी को स्टेट गेस्ट ही नहीं बनाया, उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछा दिए। अमेरिका के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी का खुली बाहों से स्वागत किया। उनके स्वागत में तोपों की सलामी दी गई। इतना ही नहीं, पीएम मोदी इस बार अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करके इतिहास रचा। वो ऐसा करने वाले पहले भारतीय पीएम बने।
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1965 के युद्ध के समय भारत ने अमेरिका से अपनी जरूरत के लिए शस्त्र खरीदने चाहे थे। अमेरिक ने पाकिस्तान से अपनी दोस्ती निभाई। उसने भारत को शस्त्र देने से साफ मना कर दिया। कारगिल युद्ध के समय भारत ने अमेरिका से कहा कि वह अपना नेवीगेशन सिस्टम प्रयोग करने की अनुमति दे, किंतु अमेरिका ने मना कर दिया। 1971 के भारत और पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिका ने भारत को धमकाने के लिए बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां बेड़ा भेजा था।
आज हालत यह है कि अमेरिका भारत को एक से एक आधुनिक शस्त्र देने का तैयार है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की हाल की यात्रा के दौरान रक्षा, दूरसंचार, सेमी कंडक्टर, ऊर्जा, शिक्षा और अंतरिक्ष एक्सप्लोरेशन और क्वांटम कंप्यूटिंग सहित अन्य अग्रणी प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में कई अहम समझौते हुए। अमेरिका की प्रतिष्ठित कंपनी जनरल इलेक्ट्रॉनिक्स एंड एयरस्पेस और भारत की हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड के बीच समझौता हुआ कि लाइट कॉम्बैट एयर क्राफ्ट तेजस एमके–दो लिए जीईफ414 इंजिन बनाया जाएगा।द्रोण खरीदने, स्पेस मिशन और भारत में चिप बनाने से जुड़े समझौते भी अहम घोषणाओं में शामिल हैं, पर इन सबमें लड़ाकू विमान के इंजन बनाने की घोषणा काफी अहम है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए बताया कि अब उन्हें एच−वन वीजा के नवीनीकरण के लिए अमेरिका के बाहर नहीं जाना होगा। उन्होंने बताया कि यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उनके के बीच हुई बैठक में हुआ। अब भारतीय अमेरिका में ही रहते एच−वन बीजा का नवीनीकरण करा सकेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने औपचारिक स्वागत और आधिकारिक भोज के अलावा व्हाइट हाउस में एक निजी रात्रिभोज के लिए प्रधानमंत्री मोदी की मेजबानी की। इसमें 500 से अधिक अतिथि शामिल हुए।
राजकीय यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी दो अवसरों पर अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने वाले पहले भारतीय नेता बने। इस सत्र के संबोधन के दौरान अमेरिका के सांसदों ने लगभग 70 बार ताली बजाई। संबोधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की लोकप्रियता दिखाई दी। अमेरिकी सांसद उनसे हाथ मिलाने और उनके आटोग्राफ लेने के उत्सुक दिखाई दिए। कई सांसद ने तो मोदी के साथ अपनी सैल्फी ली।
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दर्जनों बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ से मिलने के अलावा, प्रधानमंत्री ने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में दो बार भारतीय प्रवासियों को भी संबोधित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे की बड़ी उपलब्धि यह भी है कि अमेजॉन और गूगल अब भारत में करोड़ों डालर का निवेश करेंगे। भारत से तस्करी होकर अमेरिका गए 100 से ज्यादा पुरावशेष भी अमेरिका ने भारत को लौटाने का वायदा किया है। इतना ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता और एनएसजी में भारत के प्रवेश के समर्थन को दोहराया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से परहेज करने वाला अमेरिका आगे बढ़कर अब उन्हें गले लगाते लगा रहा है। सब जानते हैं कि अमेरिका संबंध सिर्फ फायदे के लिए बनाता है। भारत में बदलते राजनीतिक बदलाव के बीच अमेरिका ने भी अपनी नीति में बदलाव कर दिया। आज आलम ये है कि अन्य भारतीय नेताओं ने पहले भी कांग्रेस को संबोधित किया है, लेकिन किसी ने भी दो बार ऐसा नहीं किया है। यहां तक कि वे तीन भारतीय प्रधानमंत्री भी नहीं जो मोदी से अधिक समय तक पद पर रहे।
लेकिन, 2014 में मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीजें तेजी से बदल गईं। उस वर्ष उन्होंने मेडिसिन स्क्वायर गार्डन में एक भाषण दिया। उन्होंने पहली बार 2016 में कांग्रेस को संबोधित किया और फिर तीन साल बाद, दोबारा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद ह्यूस्टन में एक संयुक्त रैली के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात की। ऐसे में राजकीय रात्रिभोज और कांग्रेस का संबोधन उगते सूरज को सलाम वाली कहावत की पुष्टि करता है। ओबामा, ट्रंप और अब बाइडन नरेंद्र मोदी की दिल खोलकर वाहवाही और प्रशंसा करते रहे हैं।
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आज के विश्व परिदृश्य में अमेरिका को भारत की जरूरत है। वह चीन की आक्रामकता को लेकर परेशान है। वह देख रहा है कि चीन उसके नजदीकी वियतनाम पर कभी भी हमला कर सकता है। ऐसे में उसे युद्ध में उतरना पड़ेगा। भारत और चीन की सीमाएं सटी हैं। पिछले एक साल से ज्यादा सयम से भारत और चीन की सेनाएं सीमा पर तैनात हैं।
चीन की आक्रामकता का भारत बखूबी जवाब दे रहा है। ऐसे में अमेरिका चाहता है कि भारत उसके साथ रहे। इसीलिए वह भारत के प्रधानमंत्री के लिए पलक पांवड़े बिछा रहा है, जबकि उसने भारत के विरोध के बावजूद सिंतबर 2022 को पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के उच्चीकरण के लिए 45 करोड़ डालर (3,651 करोड़ रुपये) की धनराशि स्वीकृत की थी।
आज अमेरिकी मीडिया भी जमकर भारत और मोदी की प्रशंसा कर रहा है। अमेरिका ने पिछले दिनों कई बार भारत पर अपने निर्णय थोपने चाहे, किंतु भारत ने साफ मना कर दिया। रूस के यूक्रेन पर हमले के समय अमेरिका और उसके गुट के देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, किंतु भारत ने इन्हें स्वीकार नहीं किया। उसने साफ कह दिया कि उसके अपने हित हैं, जहां से उसे अच्छा लगेगा, वहीं से खरीदारी करेगा। रूस से उसके जरूरत के सामान और शस्त्र की आपूर्ति निरंतर जारी है।
रूस से भारत ने जब एस400 मिसाइल सिस्टम खरीदने की बात चलाई, तब भी अमेरिका ने बहुत विरोध किया था। धमकी दी गई थी कि ऐसा करने पर उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया जाएगा। भारत ने इन धमकी पर कोई ध्यान नहीं दिया। ये सिस्टम खरीदा और भारत की सीमा पर तैनात भी हो गया। अमेरिका सब देखता रहा और भारत का कुछ भी नहीं कर सका। वह जान गया कि भारत को सम्मान देकर, उसके हित के कार्य करके उसे अपने साथ लिया जा सकता है, धमका और डराकर नहीं।
आज भारत और अमेरिका के बीच के रिश्ते बेहतरी की तरफ जा रहे हैं। अमेरिका के भारत के साथ ज्यादातर मुद्दों पर सहमति है। चाहे आतंकवाद का मुद्दा हो या तकनीक का। हो सकता है कि दोनों देशों की कुछ उम्मीदों पर नहीं उतरे हों, लेकिन यदि आप इस बात को नजरअंदाज कर दें तो समझेंगे कि भारत ने भविष्य के लिए क्वाड समूह देशों के साथ-साथ अमेरिका के साथ खास तौर पर सहयोग और सामंजस्य की नींव रखी है।
इतना सब होने के साथ ही एक बात साफ होती जा रही है कि भारत अमेरिका के बढ़ते संबंधों के कारण पाकिस्तान अलग-थलग पड़ता जा रहा है, जबकि कभी पाकिस्तान अमेरिका की नाक का बाल होता था। 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत को डराने के लिए बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां बेड़ा भेजा था। रूस अमेरिका को जानता था। उसने पहले ही इस क्षेत्र में अपनी पंनडुब्बी तैनात कर रखी थी। आज अमेरिका से पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ रहे हैं, जबकि भारत−अमेरिका के करीब जा रहा है।
पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की रणनीति कामयाब रही है। इतना सब होने पर भी भारत का यह प्रयास होना चाहिए कि वह कहीं अमेरिका के हाथ का खिलौना न बन जाए। अमेरिका चाहता रहा है कि रूस−यूक्रेन युद्ध में भारत रूस की निंदा करे और अमेरिका के साथ रहे। अब तक भारत इस मामले में तटस्थ रहा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते रहे हैं कि ये समय युद्ध का नहीं है। मामले मिल बैठकर निपटाने चाहिए। हमें यह देखना होगा कि बढ़ते अमेरिकी संबंधों के बीच कहीं हमारी और रूस की मित्रता में दरार न आ जाए। अमेरिका से संबंध बनाते समय हम ध्यान रखें कि रूस हमारा प्रत्येक संकट में सच्चा मित्र और मददगार बनकर साथ खड़ा रहा है, इस नई मित्रता के कारण कहीं हम पुराने और संकट के साथी मित्र को न खों दें।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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