Wednesday, 1 May 2024

ज्ञान के हथियार से सब कुछ पाया जा सकता है, मिल जाते हैं भगवान भी

Sri Aurobindo  : भारतीय परंपरा में ज्ञान का विशेष महत्व है। भारत के सभी ऋषि, मुनि, संत महात्मा तथा तमाम…

ज्ञान के हथियार से सब कुछ पाया जा सकता है, मिल जाते हैं भगवान भी

Sri Aurobindo  : भारतीय परंपरा में ज्ञान का विशेष महत्व है। भारत के सभी ऋषि, मुनि, संत महात्मा तथा तमाम धार्मिक दर्शन ज्ञान को सर्वोपरि मानते हैं। इसी ज्ञान के बल पर विज्ञान का भी जन्म हुआ है। भारत ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्ध महर्षि अरविंद का मानना है कि ज्ञान वह मार्ग है जिसके द्वारा भगवान से भी मिलना हो जाता है।

Sri Aurobindo : ज्ञान मिलाता है भगवान से

महर्षि अरविंद ने बार-बार ज्ञान के मार्ग का समर्थन किया है। महर्षि अरविंद कहते थे कि संसार के समस्त पदार्थों में जो ‘सत्य’ पाया गया, वह समस्त हमारे भीतर आ जाए, और हमारा शरीर भी उसी से भर उठे, यही हमारा उद्देश्य है। हमारा अंतज्ञनि पहले मस्तिष्क में ही उत्पन्न होता है। पर यदि वह इसी स्थान पर बना रहे, तो जब तक हम ऊपर रहेंगे, तभी तक वह काम देगा। जैसे ही हम नीचे के स्तर पर आए, उसका संबंध टूट जाएगा। इसलिए हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने समाधि पर इतना जोर दिया था। इस उपाय से वे इस ज्ञान शक्ति को मनोमय क्षेत्र में ले आते थे। वहीं पर सूक्ष्म इंद्रियों की सुष्टि होती है। ये सूक्ष्म इंद्रियां बाहर की इंद्रियों की सहायता के बिना भी दर्शन, स्पर्शन करने में समर्थ होती हैं। जब तक शरीर का रूपांतर नहीं होगा (इसका अर्थ यह नहीं है कि शरीर और सुख का स्वरूप बदल जाएगा), तब तक हमें अपनी विजय पूर्ण और सारयुक्त नहीं समझनी चाहिए। पर ऐसा होने पर शरीर की कार्य-शक्ति में अंतर आ जाए?गा। तब शरीर अमृतमय हो जाएगा, रोग और बुढ़ापा दूर हो जाएगा। सब इंद्रियां सुष्टि के गूढ़ और वास्तविक तत्व को ग्रहण करने लगेंगी। यह अंतरंग ज्ञान की शक्ति मानव इंद्रियों को प्राप्त हो सकती है, इसमें संदेह नहीं है। वैदिक युग के ऋषि समस्त चैतन्य और ज्ञान- शक्ति को सार रूप करके उ?द्दीप्त करते थे। उस समय वैज्ञानिक यंत्र तो थे नहीं। इसलिए ज्ञानी जन भीतरी ज्ञान के जरिये ही सृष्टि के रहस्यों का पता लगाते थे। ज्वाला के पुत्र सत्यकाम ने गायें चराते- चराते ही अनंत प्रकृति के स्वरूप को समझ लिया था। उनको पशु, पक्षी, वृक्ष, लप्ता आदि से ज्ञान मिला था। यही सनातन ज्ञान पथ है और यही ज्ञान की मुक्त प्रणाली है। पर आजकल की वैज्ञानिक धारणा के अनुसार, अनुभव के साथ पदार्थ का मिलान करना ही ज्ञान प्राप्त करने का एकमात्र साधन है। हम जो कुछ देखते-सुनते हैं, पढ़ते हैं, समझते हैं, उतना ही ज्ञान हम सत्य मानते हैं, उसके सिवाय और कुछ हम नहीं जानते, न मानते हैं। पर अब विज्ञान के क्षेत्र में भी कुछ नवीन विचारक मान रहे हैं कि अंतर्ज्ञान एक बहुत बड़ी शक्ति है। शक्ति के साथ साधन का परिचय होने पर ही ज्ञान का विकास होता है। हमारे यहां भक्ति-भाव की कमी नहीं है, पर भक्ति के साथ ज्ञान का होना भी परमावश्यक है। यह सत्य है कि भक्ति होने से भगवान का कार्य करने में शक्ति का अभाव नहीं रहेगा, पर इससे ज्ञान का विकास नहीं हो सकता। ज्ञान प्राप्त न होने से वृहत सृष्टि में प्रवेश असंभव है। ज्ञान द्वारा ही भगवान के अनंत स्वरूप को ग्रहण किया जा सकता है। अनंत विचित्रताओं-भेदों में ऐक्यता स्थापित किए बिना हमें क्षुद्र सृष्टि में रहना पड़ेगा और ऐसी क्षुद्रता भगवान की इच्छा के विरुद्ध होती है। इसलिए सबको वृहत होना चाहिए और ज्ञान के वास्तविक स्वरूप को ग्रहण करना चाहिए। ज्ञान का ही अनुगानी समता का भाव है और समता ही वृहत सृष्टि का बीज मंत्र है। सिर्फ कर्म ही जीवन का उद्देश्य नहीं है, ज्ञान का प्रकाश सृष्टि का सर्वोच्च अंग है।

Sri Aurobindo

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