Supreme Court : भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले का असर पूरे देश में चल रहे लाखों केसों पर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला प्रवर्तन निदेशालय ईडी (ED) से जुड़े हुए मामलों को सबसे अधिक प्रभावित करेगा। सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला उस समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट ईडी (ED) से जुड़े हुए तमाम विवादित मामलों में जमानत के फैसले कर रहा है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला?
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला यह है कि किसी भी मामले में कोई भी अदालत जमानत की शर्तों को हथियार बनाकर किसी अभियुक्त को अधिक समय तक जेल में नहीं रख सकती। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए साफ-साफ कहा है कि जमानत की कठोर शर्तें किसी व्यक्ति को जेल में रखने का हथियार नहीं बन सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले की पूरे देश में खूब चर्चा हो रही है। कानून के तमाम जानकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला मानकर इस बड़े फैसले की समीक्षा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला ईडी (ED) के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला समझने के लिए पूरे मामले को जानना जरूरी है। दरअसल बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांविधानिक अदालतें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को आरोपी को बिना सुनवाई जेल में रखने के लिए पीएमएलए की सख्त जमानत शर्तों को औजार के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दे सकतीं। यह आरोपी के त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। शीर्ष कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री और द्रमुक नेता सेंथिल बालाजी को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। बालाजी ने जमानत याचिका खारिज करने के चेन्नई हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, बालाजी गिरफ्तारी के बाद 15 माह से अधिक वक्त से जेल में हैं। धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा-4 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के लिए न्यूनतम सजा तीन साल है, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है। मामले में 2,000 से अधिक आरोपी और 600 से अधिक गवाह होने का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, निकट भविष्य में सुनवाई पूरी होने की संभावना नहीं है। मुकदमा पूरा होने में अत्यधिक देरी और जमानत देने में देरी एकसाथ नहीं चल सकती। पीठ ने कहा, पीएमएलए, यूएपीए और एनडीपीएस कानूनों में जमानत के सख्त प्रावधान ऐसा साधन नहीं बन सकते, जिनका इस्तेमाल आरोपी को बिना सुनवाई के अनुचित रूप से लंबे समय तक जेल में रखने के लिए किया जा सके। पीठ ने कहा, जमानत की तय उच्च सीमा को देखते हुए केस का शीघ्र निपटान भी जरूरी है। इसलिए शीघ्र निपटारे की जरूरत को इन कानूनों में शामिल किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, आपराधिक न्यायशास्त्र का सुस्थापित सिद्धांत है, जमानत नियम है और जेल अपवाद है। Supreme Court
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