PMC चुनाव: शरद पवार गुट MVA में लौटने को तैयार

पुणे महानगरपालिका (PMC) चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP-SP) ने अजित पवार गुट के साथ संभावित गठबंधन की बातचीत विफल होने के बाद फिर से महाविकास आघाड़ी (MVA) के साथ बातचीत शुरू कर दी है।

Pune Municipal Corporation
PMC चुनाव में नया मोड़ (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar27 Dec 2025 04:56 PM
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पिछले सात दिनों से दोनों एनसीपी गुटों के बीच पीएमसी चुनाव को लेकर गठबंधन पर चर्चा चल रही थी, लेकिन ये वार्ता सफल नहीं हो पाई। सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार ने कोई अंतिम निर्णय नहीं दिया और शरद पवार गुट की प्रमुख मांगों को ठुकरा दिया। अजित पवार का कहना था कि शरद पवार गुट के समर्थित उम्मीदवार केवल 'घड़ी' चुनाव चिह्न पर ही चुनाव लड़ें। साथ ही उन्होंने NCP-SP की 68 सीटों की मांग को भी अस्वीकार कर दिया।

अजित पवार ने 68 सीटों का प्रस्ताव ठुकराया

बता दें कि अजित पवार का तर्क था कि 2017 के पीएमसी चुनाव में एनसीपी एकजुट थी, तब केवल 43 सीटें ही जीत पाई थीं, इसलिए 68 सीटें देना व्यावहारिक नहीं है। शरद पवार गुट के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर हम अजित पवार की शर्त मान लेते, तो पुणे शहर में शरद पवार गुट की एनसीपी का अस्तित्व ही मिट जाता। इसलिए यह प्रस्ताव अस्वीकार्य था। शरद पवार गुट की शर्तों को अजित पवार द्वारा ठुकराए जाने के बाद सुप्रिया सुले, जयंत पाटिल और अन्य वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। इसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि पीएमसी चुनाव एमवीए के साथ मिलकर लड़ा जाएगा। इस फैसले के बाद पुणे में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी-एसपी के बीच नई वार्ता शुरू हो गई है। वहीं, पिंपरी-चिंचवड़ में दोनों एनसीपी गुटों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना बनी हुई है।

शरद पवार गुट की एमवीए में वापसी

बता दें कि अजित पवार के साथ गठबंधन की संभावनाओं ने पहले पुणे में एमवीए में दरार पैदा कर दी थी। उस समय कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) एक साथ चुनाव लड़ने का विकल्प सोच रहे थे। लेकिन अब एनसीपी-एसपी की एमवीए में वापसी से तीनों दलों के बीच समन्वय बैठकें फिर से शुरू हो गई हैं। वहीं अजित पवार ने शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे से संपर्क साधा है। सूत्रों के मुताबिक एनसीपी की शिंदे गुट के नेताओं के साथ बातचीत चल रही है, और अजित पवार पुणे में समर्थन हासिल करने के लिए सक्रिय हैं।

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गिरगिट ही नहीं, ये भारतीय पक्षी भी रंगों से हो जाते हैं गायब

हम सभी ने गिरगिट के बारे में सुना है कि वह शिकार करने या दुश्मनों से बचने के लिए अपना रंग बदल लेता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के जंगलों में कुछ ऐसे पक्षी भी पाए जाते हैं, जो बिल्कुल गिरगिट की तरह अपने आसपास के वातावरण में घुल-मिलकर खुद को लगभग अदृश्य कर लेते हैं?

Indian birds
भारतीय पक्षी (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar27 Dec 2025 03:56 PM
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इन पक्षियों की शारीरिक बनावट और रंग ऐसे होते हैं कि वे जिस जगह बैठते हैं—चाहे वह जमीन हो, पेड़ की टहनी हो या सूखी पत्तियां—उसी में पूरी तरह समा जाते हैं। यही खासियत उन्हें शिकारियों से बचाती है और कई बार शिकार करने में भी मदद करती है। आइए जानते हैं भारत में पाए जाने वाले ऐसे ही कुछ खास पक्षियों के बारे में।

इंडियन नाइटजार स्थानीय नाम: चिपका, पहचान: घोस्ट बर्ड

बता दें कि इंडियन नाइटजार भारत में पाया जाने वाला एक रहस्यमयी पक्षी है, जो खुद को छिपाने की कला में बेहद माहिर होता है। यह पक्षी रात के समय सक्रिय रहता है और शिकार करता है, जबकि दिन के समय जमीन पर बिल्कुल स्थिर होकर लेटा रहता है। इसका रंग सूखी पत्तियों, झाड़ियों और मिट्टी से इतना मेल खाता है कि सामने होते हुए भी इसे पहचानना मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि इसे ‘घोस्ट बर्ड’ भी कहा जाता है। खास बात यह है कि यह पक्षी घोंसला नहीं बनाता, बल्कि जमीन पर ही अंडे देता है।

टॉनी फिश आउल, इलाका: भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र

टॉनी फिश आउल एक बड़ी प्रजाति का उल्लू है, जो घने जंगलों और कम रोशनी वाले इलाकों में रहना पसंद करता है। इसका भूरा रंग पेड़ों की छाल और लकड़ी जैसा होता है, जिससे यह पेड़ों पर बैठकर पूरी तरह अदृश्य हो जाता है। यह उल्लू दिन के उजाले से बचता है और ज्यादातर रात में ही सक्रिय रहता है। इसकी यही खासियत इसे जंगल के सबसे चतुर शिकारी पक्षियों में शामिल करती है।

इंडियन थिक-नी, इलाका: मुख्य रूप से दक्षिण भारत

इंडियन थिक-नी ऐसा पक्षी है, जो पथरीली और सूखी जमीन में भी खुद को बखूबी छिपा सकता है। इसका रंग पत्थरों, धूल, मिट्टी और सूखे पत्तों जैसा होता है, जिससे यह जमीन पर बैठते ही आसपास के माहौल में घुल जाता है। यह पक्षी घने जंगलों के साथ-साथ शुष्क और खुले इलाकों में भी पाया जाता है, जहां इसका छद्म रंग (Camouflage) इसे पूरी सुरक्षा देता है।

पेंटेड स्परफाउल, इलाका:केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक

पेंटेड स्परफाउल दक्षिण भारत के जंगलों में पाया जाने वाला एक बेहद शर्मीला पक्षी है। इसका रंग मिट्टी और सूखी पत्तियों जैसा होता है, जिससे यह झाड़ियों और पेड़ों के बीच आसानी से छिप जाता है। यह पक्षी इंसानों से दूरी बनाकर रखना पसंद करता है और ज्यादातर घने जंगलों में ही रहता है। इसकी छिपने की क्षमता इसे जंगल में सुरक्षित रहने में मदद करती है।

प्रकृति का अद्भुत कमाल

इन पक्षियों की छद्मावरण (कैमोफ्लाज) क्षमता यह साबित करती है कि प्रकृति ने जीवों को जीवित रहने के लिए कितने अनोखे हथियार दिए हैं। ये पक्षी न तो रंग “बदलते” हैं, बल्कि उनका प्राकृतिक रंग ही ऐसा होता है, जो उन्हें माहौल में विलीन कर देता है—और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है।

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सैंटा क्लॉस: 12वीं सदी का मध्यकालीन शहर और नॉर्मन्स का इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार, सैंटा क्लॉस, सेंट निक, फ़ादर क्रिसमस और क्रिस क्रिंगल—ये सभी पात्र एक ही ऐतिहासिक व्यक्ति से प्रेरित हैं। सेंट निकोलस का जन्म प्राचीन रोम के पतारा शहर (वर्तमान तुर्की) में हुआ था। उन्होंने अपनी पूरी विरासत ग़रीबों, बीमारों और ज़रूरतमंदों में बांट दी थी।

Santa Claus History
सैंटा क्लॉस इतिहास (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar27 Dec 2025 02:26 PM
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क्रिसमस आते ही दुनिया भर में सैंटा क्लॉस की चर्चा शुरू हो जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सैंटा क्लॉस से जुड़े अवशेष आयरलैंड में दफ़्न होने का भी दावा किया जाता है? आयरलैंड के काउंटी किलकेनी स्थित जेरपॉइंट पार्क इस रहस्य के केंद्र में है, जहां एक प्राचीन क़ब्र को मायरा के सेंट निकोलस—यानी सैंटा क्लॉस के ऐतिहासिक प्रेरणा स्रोत—से जोड़ा जाता है।

जेरपॉइंट पार्क: भूतिया शहर से रहस्य का केंद्र

किलकेनी शहर से लगभग 20 किलोमीटर दक्षिण में स्थित जेरपॉइंट पार्क एक 12वीं सदी का मध्यकालीन शहर था, जो नोर और लिटिल एरिंगल नदियों के संगम पर बसा था। 120 एकड़ में फैले इस इलाके को नॉर्मन्स ने 1160 के आसपास आबाद किया था। पुरातात्त्विक साक्ष्यों के अनुसार, 15वीं सदी में यहां घर, बाज़ार, पुल, टावर, गलियां, मिल और जल प्रबंधन प्रणाली तक मौजूद थी। पास ही बना जेरपॉइंट एबी आज भी खड़ा है। लेकिन 17वीं सदी में यह शहर रहस्यमय ढंग से उजड़ गया। माना जाता है कि हिंसक हमलों या महामारी के कारण लोग यहां से चले गए और यह इलाका एक “घोस्ट टाउन” बन गया।

सेंट निकोलस की क़ब्र का दावा

आज इस ऐतिहासिक स्थल के मालिक मेव और जो ओ’कॉनेल हैं। जेरपॉइंट पार्क में स्थित सेंट निकोलस चर्च टावर के खंडहर और उसके क़ब्रिस्तान को लेकर स्थानीय लोगों का दावा है कि यहीं सेंट निकोलस के अवशेष दफ़्न हैं। क़ब्र के ऊपर बनी एक पत्थर की प्रतिमा में एक आकृति सामने की ओर देखते हुए दिखाई देती है, जिसे दान देते हुए दर्शाया गया है। मेव ओ’कॉनेल का कहना है कि यह आकृति सेंट निकोलस की दानशील प्रवृत्ति का प्रतीक है।

क्या सेंट निकोलस ही सैंटा क्लॉस हैं?

इतिहासकारों के अनुसार, सैंटा क्लॉस, सेंट निक, फ़ादर क्रिसमस और क्रिस क्रिंगल—ये सभी पात्र एक ही ऐतिहासिक व्यक्ति से प्रेरित हैं। सेंट निकोलस का जन्म प्राचीन रोम के पतारा शहर (वर्तमान तुर्की) में हुआ था। उन्होंने अपनी पूरी विरासत ग़रीबों, बीमारों और ज़रूरतमंदों में बांट दी थी। बाद में वे मायरा के बिशप बने और 325 ईस्वी में काउंसिल ऑफ़ नाइसिया में भी शामिल हुए। उनकी मृत्यु 6 दिसंबर 343 ईस्वी को मायरा में हुई।

अवशेष कहां हैं? विद्वानों में मतभेद

सेंट निकोलस की क़ब्र को लेकर विद्वानों में आज भी मतभेद हैं।

बता दें कि कुछ मानते हैं कि उनका मकबरा तुर्की के अंतालया स्थित सेंट निकोलस चर्च में है और कुछ का दावा है कि उनके अवशेष चोरी कर इटली के बारी शहर ले जाए गए, जहां बासिलिका दी सैन निकोला के तहख़ाने में उन्हें दफ़्न किया गया। वहीं जेरपॉइंट पार्क से जुड़ी कहानी कहती है कि क्रूसेडर योद्धा उनके कुछ अवशेष इटली ले जाते समय आयरलैंड ले आए और यहां दफ़्न कर दिए।

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

आयरलैंड के इमीग्रेशन म्यूज़ियम EPIC के विशेषज्ञ नैथन मेनियन के अनुसार, इस क़ब्र को 1839 में मौजूदा स्थान पर लाया गया था। उनका कहना है कि बिना खुदाई और डीएनए जांच के यह तय करना असंभव है कि क़ब्र में वास्तव में किसके अवशेष हैं। उनके मुताबिक, संतों के अवशेष दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पाए जाने की परंपरा रही है, इसलिए यह मामला ऐतिहासिक प्रमाणों से ज़्यादा आस्था से जुड़ा है।

आस्था, रहस्य और पर्यटन

मेव ओ’कॉनेल का मानना है कि इतनी बड़ी प्रतिमा यूं ही नहीं बनाई जाती—यह संकेत है कि इस स्थान का विशेष महत्व है। हालांकि वे क़ब्र की खुदाई के पक्ष में नहीं हैं। आज जेरपॉइंट पार्क में हर साल करीब 10 हज़ार पर्यटक आते हैं। यह स्थल आमतौर पर सार्वजनिक रूप से खुला नहीं रहता, लेकिन पूर्व अनुमति लेकर निजी टूर किए जा सकते हैं। दिसंबर में यहां ख़ास शांति रहती है। मेव बताती हैं कि उनका परिवार हर साल 6 दिसंबर को सेंट निकोलस के फ़ीस्ट डे पर सादगी से उत्सव मनाता है।

उनके शब्दों में, “मुझे क्रिसमस से प्यार है। यह वाक़ई जादूई है।” तो क्या सैंटा क्लॉस आयरलैंड में दफ़्न हैं? इस सवाल का कोई पक्का जवाब नहीं, लेकिन जेरपॉइंट पार्क से जुड़ा यह रहस्य क्रिसमस की जादुई कहानियों में एक और दिलचस्प अध्याय ज़रूर जोड़ देता है।