भारत के टॉप अमीर नेता जिनकी संपत्ति जानकर चौंक जाएंगे

भारतीय नेताओं के वित्तीय खुलासे राजनीति में हमेशा चर्चा का विषय बने रहते है नेताओं की संपत्ती हर वर्ष दो गुना से चौ गुना हो जाती है जब भी भारतीय नेताओं के संपती का खुलासा हुआ है सभी लोगों ने उस पर अचंभा जताया है।

Politics and property
टॉप नेताओं की फाइल फोटो
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar15 Nov 2025 04:46 PM
bookmark

बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (न्यू) के नवीनतम विश्लेषण के अनुसार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 10 मुख्यमंत्रियों ने सामूहिक रूप से 1,632 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति घोषित की है। विश्लेषक बताते है कि एक मुख्यमंत्री की औसत स्व-घोषित वार्षिक आय 13.34 लाख रुपये है, हालाँकि उनके बीच संपत्ति में भारी अंतर है। जहाँ दो मुख्यमंत्री, यानी कुल का 7 प्रतिशत, अरबपति हैं, वहीं अन्य ने कहीं अधिक मामूली आय की घोषणा की है। पार्टीवार, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 14 अरबपति मंत्रियों के साथ इस सूची में सबसे आगे है, जो उसके कुल मंत्रियों की संख्या का 4% है। कांग्रेस दूसरे स्थान पर है, जिसके 61 में से 11 मंत्री (18%) अरबपति हैं। तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) तीसरे स्थान पर है, जिसके 23 में से छह मंत्रियों (26%) की संपत्ति ₹100 करोड़ से अधिक है। आम आदमी पार्टी, जनसेना पार्टी, जेडी(एस), एनसीपी और शिवसेना के मंत्री भी इस सूची में शामिल होते हैं।

आए जानते हैं यह टॉप नेताओं के बारे में

टॉप—1 : टीडीपी सांसद डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानी 

बता दें कि देश के सबसे अमीर मंत्री आंध्र प्रदेश के गुंटूर से टीडीपी सांसद डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानी हैं, जिनकी संपत्ति ₹5,705 करोड़ से ज़्यादा है जो कि डॉ. पेम्मासानी पेशे से एक चिकित्सक हैं। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की और बाद में पेन्सिलवेनिया के गीसिंगर मेडिकल सेंटर से इंटरनल मेडिसिन में एमडी किया। उन्होंने जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के सिनाई अस्पताल में एक प्रोफेसर और चिकित्सक के रूप में भी काम किया।

टॉप—2 : कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार

बता दें कि कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार भारत के सबसे धनी विधायकों में से एक हैं। उनकी संपत्ति मुख्य रूप से ₹1,413 करोड़ से अधिक है। 2023 के चुनावी हलफनामे के अनुसार, उन्होंने ₹1,413 करोड़ से अधिक की संपत्ति घोषित की थी, हालांकि बाद के कुछ समाचारों में यह आंकड़ा ₹14,000 करोड़ से अधिक भी बताया गया है, जिससे वह भारत के सबसे धनी राज्य मंत्रियों में गिने जाते हैं। 

टॉप—3 : आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू

बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (न्यू) की एक रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भारत के सबसे अमीर सीएम हैं, जिनकी घोषित संपत्ति 931 करोड़ रुपये से अधिक है।33 वर्ष पहले इसकी स्थापना उन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता के की थी। चंद्रबाबू नायडू के पास हेरिटेज फूड्स लिमिटेड में कोई शेयर नहीं है। दूध और डेरी उत्पादों की खुदरा विक्रेता इस कंपनी की स्थापना 1992 में केवल 7,000 रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ की गई थी। 1994 में यह शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हुई थी। चंद्रबाबू की पत्नी भुवनेश्वरी नारा के पास 24.37 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जिसे चंद्रबाबू की संपत्ति में गिना जाता है।

टॉप—4 : आंध्र प्रदेश के टीडीपी नेता पोंगुरु नारायण

बता दे किटीडीपी नेता पोंगुरु नारायण आंध्र प्रदेश सरकार में एक प्रमुख मंत्री हैं और राज्य के सबसे धनी विधायकों में से एक हैं। जो कि 2024 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने हलफनामे के अनुसार, पोंगुरु नारायण ने कुल ₹824 करोड़ से अधिक की संपत्ति घोषित की है। यह उन्हें भारत के सबसे अमीर विधायकों में से एक बनाता है। उनकी अधिकांश संपत्ति उनके द्वारा स्थापित शैक्षिक साम्राज्य, नारायण ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस से आती है।

टॉप—5 : कर्नाटक शहरी विकास और नगर नियोजन मंत्री बैरथी सुरेश बीएस

बता दें कि कांग्रेस नेता और कर्नाटक सरकार में शहरी विकास और नगर नियोजन मंत्री बैरथी सुरेश बी.एस. (Byrathi Suresh B.S.) कर्नाटक के सबसे धनी विधायकों में से एक हैं और अपनी संपत्ति हैं। बता दें कि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए उनके चुनावी हलफनामे के अनुसार, बैरथी सुरेश ने ₹648 करोड़ से अधिक की संपत्ति घोषित की थी।

टॉप—6 : तेलंगाना मंत्री कांग्रेस नेता गद्दाम विवेकानंद

बता दें कि कांग्रेस नेता गद्दाम विवेकानंद (Gaddam Vivekanand), जिन्हें जी. विवेक के नाम से भी जाना जाता है, तेलंगाना के एक प्रमुख राजनेता और व्यवसायी हैं। वह वर्तमान में तेलंगाना सरकार में मंत्री हैं। जो कि नवंबर 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए दाखिल हलफनामे के अनुसार, गद्दाम विवेकानंद ने ₹606 करोड़ से अधिक की पारिवारिक संपत्ति घोषित की थी। यह उन्हें तेलंगाना के सबसे अमीर विधायक उम्मीदवारों में से एक बनाता था।

टॉप—7 : आंध्र प्रदेश संचार तेलुगु देशम पार्टी मंत्री नारा लोकेश

बता दें कि आंध्र प्रदेश के सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार मंत्री नारा लोकेश, राज्य को निवेश के लिए एक पसंदीदा स्थान बनाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वह तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के राष्ट्रीय महासचिव और मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के बेटे हैं। अप्रैल 2024 में दिए गए चुनावी हलफनामे के अनुसार, नारा लोकेश ने अपने परिवार की कुल संपत्ति ₹542.7 करोड़ से अधिक घोषित की एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, वह आंध्र प्रदेश के सबसे अमीर विधायकों में से हैं।

टॉप—8 : महाराष्ट्र भाजपा सरकार कैबिनेट मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा

बता दें कि भाजपा के नेता मंगल प्रभात लोढ़ा महाराष्ट्र सरकार में एक कैबिनेट मंत्री हैं और वह भारत के सबसे अमीर रियल एस्टेट कारोबारियों में से एक हैं। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए दाखिल हलफनामे में, उन्होंने और उनकी पत्नी ने कुल ₹441 करोड़ से अधिक की संपत्ति घोषित की थी, जिसमें ₹252 करोड़ से अधिक की चल संपत्ति और ₹189 करोड़ की अचल संपत्ति शामिल थी। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चुनावी हलफनामे में अक्सर व्यावसायिक संपत्ति का केवल एक हिस्सा ही दर्शाया जाता है।

टॉप—9 : अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू

बता दें कि भाजपा के पेमा खांडू हैं, जो अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनकी घोषित संपत्ति 332 करोड़ रुपये से अधिक है। भारत के दो अरबपति मुख्यमंत्रियों में से एक, खांडू, पूर्वोत्तर राज्यों में धनी राजनेताओं की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाते हैं।

टॉप—10 : ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया - भाजपा

बता दें कि ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया - भाजपा के केंद्रीय संचार मंत्री और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री। उन्होंने ₹424 करोड़ (₹62 करोड़ चल, ₹362 करोड़ अचल) की संपत्ति घोषित की है। सिंधिया परिवार की लगभग 40,000 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति के बंटवारे को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच कानूनी विवाद अभी भी चल रहा है। ग्वालियर हाई कोर्ट ने हाल ही में (सितंबर 2025 में) इस मामले को आपसी बातचीत के जरिए सुलझाने के लिए 90 दिनों की मोहलत दी थी।

टॉप—11 : कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया

बता दें कि कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया 51 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति के साथ तीसरे स्थान पर हैं। हालाँकि उनकी संपत्ति नायडू और खांडू से काफ़ी कम है, फिर भी यह उन्हें भारत के सबसे अमीर राज्य नेताओं की सूची में शीर्ष पर रखती है। उनके खुलासे से इस सूची में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उपस्थिति को भी बल मिलता है।

टॉप—12 : नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो

बता दें कि नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, जो नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के प्रतिनिधि हैं, उन्होंने 46.95 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है। रियो पूर्वोत्तर के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले लोगों में से एक हैं, और उनके वित्तीय खुलासे भारत के धनी राजनीतिक अभिजात वर्ग में क्षेत्रीय पार्टी नेताओं की भूमिका को उजागर करते हैं।

टॉप—13 : डॉ. मोहन यादव-मध्यप्रदेश

बता दें कि पाँचवें स्थान पर मध्य प्रदेश के भाजपा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव हैं। उनकी संपत्ति 42 करोड़ रुपये से ज़्यादा है। भारत के सबसे ज़्यादा कमाई करने वाले राजनीतिक नेताओं की सूची में अपेक्षाकृत नए नाम वाले यादव, सत्तारूढ़ दल के नेताओं की आर्थिक मज़बूती का उदाहरण हैं।

टॉप—14 : एन. रंगासामी – पुडुचेरी

अमीर मुख्यमंत्री अखिल भारतीय एनआर कांग्रेस के एन रंगासामी हैं, जो केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के मुख्यमंत्री हैं। उनकी घोषित संपत्ति 38 करोड़ रुपये से ज़्यादा है। इस सूची में शामिल कुछ केंद्र शासित प्रदेश के नेताओं में से एक, रंगासामी की संपत्ति दर्शाती है कि मुख्यमंत्रियों की आर्थिक मज़बूती सिर्फ़ बड़े राज्यों तक ही सीमित नहीं है।

भारत के अमीर ​नेताओं की लिस्ट यही समाप्त नहीं हो रही है हर वर्ष नेताओं की संपत्ती बढ़ती ही जा रही है उसी तरह इस लिस्ट में भी नेताओं का नाम बढ़ता जा रहा है।

अगली खबर पढ़ें

बिहार चुनाव में PK का फ्लॉप शो, दर्जनों सीटों पर NOTA बना मतदाताओं की पहली पसंद

इस तुलना से यह भी साफ होता है कि जनसुराज का प्रदर्शन भले ही उम्मीद से बहुत कमजोर रहा हो, लेकिन कई पुराने छोटे दलों की तुलना में JSP की स्थिति थोड़ी बेहतर थी, क्योंकि वह हर जगह NOTA से नीचे नहीं गई।

प्रशांत किशोर की नई पार्टी की पहली परीक्षा फेल
प्रशांत किशोर की नई पार्टी की पहली परीक्षा फेल, कई सीटों पर ‘किसी को नहीं’ बनी पहली पसंद
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar15 Nov 2025 01:38 PM
bookmark

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने प्रशांत किशोर की नई पार्टी जनसुराज पार्टी (JSP) की असली चुनावी हैसियत साफ कर दी है। राज्यस्तर पर पार्टी को 3.44% वोट शेयर जरूर मिला, जो किसी नई पार्टी के लिए खराब शुरुआत नहीं मानी जाएगी और इस मामले में JSP ने पुराने वामपंथी दल CPI(ML)(L) के 3.05% वोट शेयर को भी पीछे छोड़ दिया। लेकिन जब बात सीट-दर-सीट प्रदर्शन की आती है, तो तस्वीर बिल्कुल उलट दिखाई देती है।

वोट शेयर से उम्मीदें, लेकिन जमीन पर असर सीमित

राज्यभर में पड़े कुल वैध मतों में से 3.44% वोट जनसुराज पार्टी के खाते में गए। इससे JSP सीधे तौर पर वोट शेयर की रैंकिंग में सातवें नंबर पर पहुंच गई। उससे ज्यादा वोट सिर्फ इनको मिले:

  • राजद (RJD) – 22.76%
  • भाजपा (BJP) – 20.87%
  • जदयू (JD(U)) – 18.91%
  • कांग्रेस – 8.46%
  • एलजेपी (RV) – 5.11%
  • निर्दलीय – 4.66%

कागज पर यह आंकड़ा JSP के लिए “उम्मीद की शुरुआत” जैसा दिखता है, लेकिन किसी भी पार्टी की असली ताकत इस बात से मापी जाती है कि वह सीटों पर कितनी मजबूती से खड़ी है। यहीं आकर जनसुराज का ग्राफ अचानक नीचे चला जाता है।

238 में से 68 सीटों पर NOTA ने JSP को पीछे छोड़ा

जनसुराज ने 238 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन इनमें से 68 सीटों पर पार्टी को ‘किसी को नहीं’ यानी NOTA से भी कम वोट मिले। यानी करीब 28.6% सीटों पर मतदाताओं ने JSP को विकल्प मानने के बजाय सीधे-सीधे NOTA का बटन दबाना ज्यादा बेहतर समझा। यह स्थिति साफ संकेत देती है कि राज्यस्तर की पहचान के बावजूद कई इलाकों में JSP अभी “स्वीकार्य विकल्प” के रूप में भी जनता के मन में जगह नहीं बना पाई। प्रशांत किशोर की लंबी पदयात्रा, गांव-गांव बैठकों और व्यापक कैंपेन के बावजूद यह समर्थन वोटों में तब्दील नहीं हो सका।

कुछ सीटों पर नोटा बनाम जनसुराज – आंकड़े क्या कहते हैं?

कई सीटों पर यह अंतर साफ दिखा कि मतदाता ने जनसुराज की बजाय NOTA को प्राथमिकता दी। उदाहरण के तौर पर:

अलीनगर: JSP उम्मीदवार बिप्लव कुमार चौधरी – 2,275 वोट, NOTA – 4,751 वोट

अमरपुर: JSP उम्मीदवार सुजाता वैद्य – 4,789 वोट, NOTA – 6,017 वोट

अररिया: JSP उम्मीदवार फरहत आरा बेगम – 2,434 वोट, NOTA – 3,610 वोट

अत्रि: JSP उम्मीदवार शैलेंद्र कुमार – 3,177 वोट, NOTA – 3,516 वोट

औरंगाबाद: JSP उम्मीदवार नंद किशोर यादव – 2,755 वोट NOTA – 3,352 वोट

कोचाधामन: JSP उम्मीदवार अबु अफ्फान फारुकी – 1,976 वोट , NOTA – 2,039 वोट

इन आंकड़ों से साफ है कि कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं ने “जनसुराज को चुनने” की बजाय “किसी को नहीं चुनने” का रास्ता अपनाया। यह किसी भी नई पार्टी के लिए गंभीर चेतावनी की तरह है।

अन्य छोटे दलों के मुकाबले JSP कहां खड़ी दिखी?

अगर छोटे और उभरते दलों से तुलना करें तो जनसुराज की स्थिति मिश्रित नजर आती है। AIMIM के उम्मीदवार करीब 14.3% सीटों पर NOTA से पीछे रह गए। VSIP सिर्फ 8.3% सीटों पर ही NOTA से कम वोट लेकर हारा। आजाद समाज पार्टी की स्थिति और भी कमजोर रही, वह लगभग आधी सीटों पर NOTA से पिछड़ गई।दूसरी ओर, कुछ छोटे दल – जैसे SUCI, समता पार्टी, बिहारी लोक चेतना पार्टी और NCP (बिहार यूनिट) – जिस-जिस सीट पर लड़े, वहां एक भी जगह NOTA को पीछे नहीं छोड़ पाए। यानी हर जगह NOTA ने इन दलों से ज्यादा वोट हासिल किए। इस तुलना से यह भी साफ होता है कि जनसुराज का प्रदर्शन भले ही उम्मीद से बहुत कमजोर रहा हो, लेकिन कई पुराने छोटे दलों की तुलना में JSP की स्थिति थोड़ी बेहतर थी, क्योंकि वह हर जगह NOTA से नीचे नहीं गई।

JSP को लंबा सफर तय करना होगा

RJD, BJP, JD(U), LJP (RV) और CPI(ML)(L) जैसे स्थापित दलों ने इस चुनाव में हर सीट पर NOTA से ज्यादा वोट हासिल किए। यह दिखाता है कि:इन दलों का संगठनात्मक नेटवर्क मजबूत है,इनके पास स्थायी वोट बैंक है, उम्मीदवार चयन और बूथ स्तर की तैयारियां अभी भी इनके पक्ष में काम कर रही हैं। इसके उलट, जनसुराज जैसी नई पार्टी के लिए यह चुनाव साफ संकेत है कि राज्य-स्तर का नैरेटिव खड़ा करना और लोकल स्तर पर भरोसेमंद विकल्प बन जाना,दो बिल्कुल अलग चीजें हैं। प्रशांत किशोर की रणनीति ने JSP को पूरे बिहार में चर्चा तो दिलाई, लेकिन 68 सीटों पर NOTA से भी कम वोट मिलना इस बात का सबूत है कि पार्टी को अभी गांवों, कस्बों और बूथ स्तर पर संगठन खड़ा करने, चेहरा तैयार करने और विश्वसनीयता बनाने के लिए लंबी राजनीतिक साधना करनी होगी।

अगली खबर पढ़ें

आरके सिंह की टिप्पणी पर भाजपा का पलटवार

भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। पार्टी ने यह निर्णय पार्टी विरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता के आरोप में लिया है, जिससे संगठन की छवि को नुकसान पहुंचने का संदेह जताया गया है।

Former Union Minister RK Singh
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar30 Nov 2025 06:35 PM
bookmark

बता दे कि आरके सिंह ने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान कई विवादित बयान दिए थे, जिनसे पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार पर गंभीर आरोप लगाए और बिहार में कथित बिजली घोटाले का आरोप भी लगाया। इसके अलावा, सिंह ने एनडीए के उम्मीदवारों पर सवाल उठाए और जेडीयू के नेताओ पर भी आरोप लगाए। उनके इन बयानों ने चुनावी माहौल को गर्म कर दिया था, और विपक्षी दलों को इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ लेने का अवसर भी मिला।

उच्च नेताओं पर भी साधा निशाना

आरके सिंह ने डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, जेडीयू के अनंत सिंह और आरजेडी के सूरजभान सिंह जैसे नेताओं को अपराध से जुड़ा बताया और जनता से ऐसे प्रत्याशियों को समर्थन न करने की अपील की। इन बयानों से पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह चिंता का माहौल बन गया था।

पार्टी का रुख

भाजपा ने शुरुआत में इन बयानों का राजनीतिकरण होने से रोकने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाया। लेकिन जैसे ही चुनाव नतीजे आए, पार्टी ने तत्काल कार्रवाई करते हुए आरके सिंह को छह वर्षों के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। पार्टी का कहना है कि सिंह के बयानों से संगठन की छवि को नुकसान पहुंच रहा था और वे बार-बार अनुशासनहीनता कर रहे थे।

आगे की राह

बता दें कि आरके सिंह पहले भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शामिल रहे हैं, लेकिन उनके हालिया बयानों ने पार्टी को कड़ी प्रतिक्रिया देने पर मजबूर कर दिया। अब देखना होगा कि इस निर्णय का उनके राजनीतिक करियर पर क्या प्रभाव पड़ेगा और पार्टी इन घटनाक्रम से किस तरह से आगे बढ़ती है।