Noida News : मेरा ऑफिस सेक्टर-83 नोएडा (Noida) में है। अप्रैल का महीना शुरू होते ही मेरे ऑफिस के रास्ते में बाउंड्री से पहले एक मोड़ आता है। उस मोड पर एक पिलहन का पेड़ है। उस पिलहन के पेड़ के नीचे ही एक दिन एक आदमी तिरपाल सा बांध रहा था। लगा कि कोई दुकान सी लगाएगा। अगले ही दिन जब मैं उसी पॉइंट पर पहुंची। तिरपाल की छत के नीचे एक महिला अपने दो लडक़ों जिनके बाल गंजे पन से कुछ कम कटे थे के साथ घड़े सुराही गुल्लक और भी मिट्टी के गुलदस्ते गमले इत्यादि को बड़े करीने से लगाकर दुकान सजा रही थी।
हर रोज उस पॉइंट से गुजरते मेरी नजर उस दुकान की ओर घूम जाती पहले तो बच्चे कुछ गोरे थे माँ तो पहले दिन से ही सांवली थी। लेकिन अभी 15 मई आते-आते बच्चे भी भूरे रंग के और माँ तो बिल्कुल ही काली हो गई। इस गर्मी में उनके व्यापार को देखकर मैंने छुट्टी के दिन बहुत सारा सामान खरीदने की ठानी। 5 मई सुबह 10 बजे थे धूप चिलचिला रही थी। मुझसे पहले भी वहां दो ग्राहक आए एक ने पूछा घड़ा कितने का है। महिला ने कहा 100 रुपये का। सुराही कितने की है जिसमें टोटी लगी है लडक़ों जैसे बाल कटे निकर बुशर्ट पहने बच्चों के मुंह से आवाज आई डेढ़ सौ रुपए की उनके गले की आवाज से ही मुझे यकीन हुआ कि ये बच्चियाँ हैं। आदमी के साथ एक महिला थी उसने छुटते ही कहा तुमने तो लूट की हद ही मचा रखी है। मिट्टी की सुराही डेढ़ सौ रुपए? और वह पैर पटकती चली गई। उसके पीछे भी एक गाड़ी रुकी उसमें ड्राइविंग सीट पर बैठी महिला ने शीशा गिराकर पूछा? वह वास कितने का है? तीनों एक साथ बोलीं 100 का। वह महिला चिलाई मिट्टी का गुलदस्ता कहाँ 100 का आता है? गमले कितने के लगाओगी उसने कहा बड़ा गमला डेढ़ सौ रुपया बीच का साइज गमला 100 का। महिला को बहुत गुस्सा आया तुमने तो लूट की हद ही मचा रखी है। मिट्टी के गमले पाँच 500 के क्यों नहीं बेच देती? और वह भी गाड़ी बढा आगे को चली गई।
जैसे ही मैं आगे बड़ी मैंने पूछा यह गुल्लक कितने की है मेरा दिल उस खूबसूरत सी गुल्लक पर आ गया था अपने बच्चों को यहीं से पैसों को बचाना सिखाऊंगी। तीनों ही चुप कुछ नहीं बोलीं। बहुत पहले ही हम काम शुरू करते हैं घड़े सुराही कटोरे कुल्हाड़ बनाते हैं मैडम इनको बनाना धूप दिखाना फिर मिट्टी में पकाना लकड़ी कितनी महंगी है? फिर इन पर रंग करना बारिश तेज धूप से बचाना और इतने नाजुक होते हैं। एक मिनट में लटक जाते हैं, टूट जाते हैं। काश हमारी कोई मेहनत देख पाता लेकिन इस मेहनत के साथ हमारी बहुत सी उम्मीदें भी जुड़ी होती हैं। हम कहते हैं मेहनत चाहे हमारी बार-बार टूट जाए लेकिन हमारी उम्मीदें ना टूटें? क्योंकि यहां से जो मैं पैसा ले जाऊँगी वह हमारे लिए बहुत बड़ी पूंजी रहेगा।
खुर्जा के पास के गाँव से आई हूँ। आग बरसाती गर्मी ऐसे में एक मां और दो बेटियां पिलहन की छाँव में एक तिरपाल के सहारे। मैंने ठान लिया था इस बार 7 मई को बेटे के जन्मदिन पर सब ही को रिटर्न गिफ्ट इस दुकान से खरीद हुआ माल ही दूँगी। मैंने गिनती बोलनी शुरू की 5 वास 4 घड़े 2 सुराही 10 कटोरे आदि आदि। चिंता थी रास्ते में गाड़ी में टूट ही न जाएं तीनों चिलाईं न आंटी न हम पैक करके देंगे और कुछ फालतू टूट-फुट हमारी ओर से भी।
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कहते हैं ना जैसे पानी के बिना नदी बेकार है। वैसे ही आप कहीं भी जाकर रहें। यदि वहां आपसे कोई मिलने पूछने ना आए या आपका ऐसा कोई सगा संबंधी ना हो, जिसमें आपके लिए प्रेम न हो तो जीवनयापन बहुत मुश्किल तथा थोड़ा निरर्थक सा ही हो जाता है। मैं भी यही देख रही थी साइकिल पर एक आदमी थैली में खाने-पीने का सामान टांग आता है और उन तीनों के हाथों में भोजन पानी और एक बर्तन में चाय भी पकड़ाता है। छोटी बोली आंटी हम सुबह से तीनों आती हैं। हम दुकान लगाते हैं मामा खाना दे जाता है। मैं सोच में थी कई रिश्तों का मूल्यांकन न पैसों न लाभ किसी भी आधार पर नहीं किया जा सकता। क्योंकि कुछ निवेशों में कहीं कोई लाभ तो दिखाई देता ही नहीं। लेकिन जो प्रेम दिखाई देता है वह हमें धनी बनाए रखता है और वही गर्मजोशी से हमें अपने अच्छे जीवन के लिए नए-नए कदम उठाने का रास्ता भी बनाता है।
एक बेहतर कल की उम्मीद में ही मां मेरे मामा के कहने पर ही हम दोनों को गर्मी की छुट्टी तथा दशहरे से दिवाली तक लाती हैं। दादी और पापा गाँव में ये सब बनाते हैं छोटे भाई को रखते हैं। पापा की रीड की हड्डी में दर्द रहता है। हम दोनों गाँव के स्कूल में पढ़ते भी हैं। माँ लगातार पिलहन के पेड़ को दुआ दे रही थी। नोएडा में चारों और से थूका जाने वाला ऐस्टोनीय भी आज मुझे हीरो सा लग रहा था मैंने पूछा अरे इसपर से कीड़े नहीं गिरते वो बोली कहाँ जाएंगे कीड़े वो भी इसके बच्चे ही तो हैं क्या हम सबको भी इस बार गर्मी में खाली फ्रिज ही नहीं घड़े, सुराही, बच्चों के लिए गुल्लक घर नहीं लाने चाहियें। आओ लाएं और अपने देश की रीड मजबूत बनाएँ। Noida News
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