Noida News : अपनी पीड़ा के लिए संसार को दोष मत दो, अपने मन को समझाओ क्योंकि तुम्हारे मन का परिवर्तन ही तुम्हारे दुखों का अंत है। भगवान कृष्ण-द्वारा रचित गीता का भी ये ही सार है।
हुआ यूं कि हमारे इलाके का इलेक्शन अपने आप में ही एक पूरा बॉम्ब था। या यूं कहें की फुल बेशर्मी की एक मिसाल। जिसका असर कुछ ऐसा सा ही रहा। क्योंकि इस इलेक्शन में घराती-बराती दोनों एक ही टीम से थे। एक तरफा ही तालियों की पट्टर 2। रीति- रिवाज भी सब हुए, व्यंजन किन्होंने चखे इसका भी कुछ पता नहीं। मालाएं क्यों पहनी बस इसी पे चर्चा है।
यूं तो हमारे इलाके में दो दिन तक लोग एक-दूसरे को फोन कर करके एक दूसरे के कान में पहली दफे ही हुई इस दुर्घटना स्वरूप इलेक्शन के बारे में ही फुसफुसाते रहे। कुछ तो खास हुआ था जो समाज सेवी भी दो दिन तक हमारे इलाके में ही जमावड़ा लगाते रहे। अब किसी को क्या पता! यह कोई खेल नहीं बड़ा मुश्किल काम है। किसी एक समूह में सबका यू मिलजुल कर इलाके का इलेक्शन ही लूट ले जाना। एक नए रिवाज को चलाना। बल्कि दिल से नहीं बल्कि दीमाग चला कुछ नकारात्मक सी भूमिका निभाना। आसान नहीं था पकौड़ी चबाते लोगों की नजरों के दंश को झेलना, फिर भी मुस्कुराते हुए अगडम बगडम बोलना ऊपर से स्वयं को खूब चहचहाते हुए दिखाना और सब कुछ नॉर्मल ही तो है जताना।
दिन तो कुछ गुजर गए हैं पर चर्चा आज भी यही है। आखिर कौन था वह बड़े दिल वाला जो इनका भाग्य जगा गया। वरना ये मूंग और मसूर की दाल वह भी फ्राइड पकड़ा गया। लेकिन करना चाहिए ऐसा भी जरूर करना चाहिए। नहीं तो बहाव को रोक दिया जाता है मैं बड़ा हूं मैं बहुत बड़ा हूं इस गुमान से ही अच्छी समाज-व्यवस्था को भी तोड़ दिया जाता है। सर पर ना चढ़ जाए यह गुमान, इसीलिए तो यह राह दिखाई। जो थे सोते आज तक वैभव में उन्हें भी समाज सेवा की विपक्ष ने असली घुट्टी पिलाई । समाज सेवा किसे कहते हैं का ये जो नया रास्ता निकाला है। असल में असली सेवा करने वालों को कितना खटना पड़ता है अब ये बता डाला है कहीं आज का बढ़ता हुआ युवक इनकी चाल में ना आ जाए। सही रास्ते छोड़ इनके कदमों पर चलना न सीख जाए का पाठ विपक्ष ने पढ़ाया है। बहुत सोच–विचार के बाद कुछ इन्हीं को जिम्मेदार बनाया है इन पर जिम्मेदारी डालना इनके कदमों को तथा आसपास के बढ़ते युवाओं को भी संभालना अब इन्हीं की जिम्मेदारी रहेगी। कभी-कभी किसी के इस बड़े दिल से भी बड़े सकारात्मक काम हो जाते हैं। हमने तो यह भी देखा है कि बिगड़े हुए भी सुधर जाते हैं।
कर्मवीर तो करके ही खाएंगे। प्रतिभा कहीं जाती नहीं है यहाँ नहीं तो किसी और क्षेत्र को चमकाएंगे। अब देखना यह है क्यों हंगामा चारों ओर है कहीं छोड़ जाने वालों के लिए तकलीफ है या आगे क्या होगा का शोर है? कुछ दिन पहले हुए इस तमाशे का असर सिद्धिविनायक गणेश चतुर्थी पर भी नजर आ रहा है। श्रद्धालु बप्पा के आगमन पर भी। उस दिन की ही चर्चा चला रहे हैं। इतने छोटे इलेक्शन में भी उम्मीदवारों के घरों में सम्मानों का आना पर चर्चा तो आज भी है। इसलिए बप्पा इस बार तो आप भी गुरुनानक देव जी बन जाना। यह समूह बस यहीं बसे रसे। बस ये ही आशीर्वाद देते जाना। यदि समाज है तो हम हैं और हम से ही समाज है। ये खुद को खुदा बताने वाले ऊंचे होर्डिंग में टंगे ही सही हैं। कितने ऊंचे टंग जाएं झांकते नीचे हीं हैं कि क्या नीचे घूमने वाले लोग मेरे बिछाए जाल को भूल गए या अभी भी चर्चाएं वही हैं आखिर ऐसा भी हंगामा क्या बरपा है? जो समाज में अभी तक वही चर्चा है?
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