साइलेंट रणनीति से ग्लोबल गेम तक.. ऐसे ही नहीं 24 साल से सत्ता पर काबिज मोदी

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो गए हैं। राजनीति की दुनिया में उनका सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। कहा जाता है कि उनकी जन्म कुंडली में राजयोग है, और शायद यही राज है कि उन्होंने चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री और लगातार तीन बार देश के प्रधानमंत्री बनने का अभूतपूर्व रिकॉर्ड बनाया। पिछले 24 सालों से सत्ता की चोटी पर रहते हुए, उन्होंने विरोधियों के “आज गए कि कल गए” जैसे दावे हमेशा धूल चटाई हैं। 2014 से लेकर आज तक कई नेता खुद को मोदी का विकल्प साबित करने आए, लेकिन हर बार उन्हें मोदी की मजबूती, चालाकी और जनता के बीच लोकप्रियता के आगे हाथ जोड़कर झुकना पड़ा। PM Modi Birthday
राजयोग और राजनीतिक चतुराई
ज्योतिषियों की मान्यता है कि नरेंद्र मोदी की जन्म कुंडली में राजयोग है, और यही शायद उनकी राजनीति की चमक का रहस्य है। अक्टूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने मोदी ने लगातार चार बार यह पद संभाला, और 2014 में सीधे देश के प्रधानमंत्री बने। हां, इसे खास बनाता है कि इससे पहले वे न तो कभी मंत्री रहे, न सांसद, और न ही किसी नगर या ब्लॉक के सभासद – सीधे शिखर पर कूद पड़े! पिछले 24 सालों से सत्ता की कुर्सी पर बैठे रहने का यह कारवां किसी के लिए आसान नहीं।
मोदी से पहले पांच मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनमें से किसी ने भी लगातार शीर्ष पर नहीं टिक पाए। वहीं, “आज गए कि कल गए!” जैसी भविष्यवाणियों के बावजूद मोदी लगातार सातवीं बार सत्ता के शिखर पर शपथ ले चुके हैं। विरोधियों की कितनी ही कटु टिप्पणियां आईं, लेकिन जनता के बीच उनकी लोकप्रियता इतनी मजबूत रही कि उन्हें कोई हिला नहीं पाया। PM Modi Birthday
सकारात्मक नफरत और खुला प्रेम
नरेंद्र मोदी की राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है – नफरत और प्रेम का खुला खेल। वे कभी ढोंग नहीं करते और किसी भी समुदाय की भावनाओं को अनावश्यक रूप से भड़काने का प्रयास नहीं करते। अगर राजनीति में हिंदू समुदाय को मजबूती चाहिए, तो इसे छिपाते भी नहीं। प्रेस को भले ही सीधे संबोधित कम करें, लेकिन पिछले 11 सालों से हर महीने के अंतिम रविवार को रेडियो के जरिए सीधे जनता से बात करना उनकी खासियत बन गई है। मोदी की शैली में घृणा और प्रेम दोनों खुलकर खेलते हैं, और वोट की रणनीति में वे मास्टर हैं।
जनता के बीच अपनी लोकप्रियता बनाए रखने का एक भी मौका वे हाथ से नहीं जाने देते। चाहे संसद हो या मंच, उनका ध्यान हमेशा बहुसंख्यक जनता को अपने पाले में करने पर रहता है। यही कारण है कि आज बीजेपी को हराने की हिम्मत किसी भी दल में नहीं है – और यही उनकी सियासी चालाकी का असली कमाल है। PM Modi Birthday
साइलेंट कार्रवाई और सामाजिक बदलाव
कुछ काम मोदी चुपचाप और साइलेंट तरीके से करते हैं, और यही उनकी राजनीति की सबसे बड़ी ताकत है। उदाहरण के लिए, सत्ता में सामाजिक रूप से पिछड़े और दलित समुदाय की हिस्सेदारी बढ़ाना। कांग्रेस के दौर की ब्राह्मण सुप्रीमेसी अब उनके जमाने में खत्म हो गई है। 1952 से 1989 तक अधिकांश राज्यों की कमान ब्राह्मण और द्विज जातियों के पास रही, लेकिन अब बीजेपी शासित राज्यों में यह प्रभुत्व कहीं दिखाई नहीं देता – बस राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोड़कर। PM Modi Birthday
उत्तर प्रदेश की राजनीति तो जैसे पहेली बन गई है। वहां पिछड़ी और दलित जातियां क्रमशः सपा और बसपा के पास हैं, और बिना किसी अगड़ी जाति की मदद के सत्ता तक पहुँचना लगभग असंभव। लेकिन मोदी ने इन जटिल गणितों को समझते हुए बेहद चतुराई से सामरिक संतुलन बनाया और राजनीतिक खेल को अपनी तरफ मोड़ लिया
सहयोगी दलों से संतुलन
2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तब पहली बार बीजेपी अकेले बहुमत के दम पर सत्ता में आई। लेकिन मोदी ने यहां भी राजनीति की सूझ-बूझ दिखाई और सहयोगी दलों के साथ तालमेल बनाए रखा। किसानों के मुद्दे पर शिरोमणि अकाली दल से टकराव हुआ, महाराष्ट्र में राज्य की कमान को लेकर शिवसेना से खींचतान हुई, और नीतीश का जनता दल (यू) कई बार NDA से बाहर गया और फिर वापस लौटा। इसके बावजूद मोदी ने हर बार गठबंधन को संतुलित रखा। PM Modi Birthday
2014 के बाद से लगातार कई नेता खुद को मोदी का विकल्प साबित करने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उन्हें हर बार धूल चाटनी पड़ी। बस राहुल गांधी ही ऐसे खड़े रहे हैं, जिनके सामने मोदी की राजनीति का असली मुकाबला दिखता है। यानी, विरोधियों की कोशिशों के बावजूद मोदी ने राजनीतिक मोर्चे पर हर बार अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी और गठबंधन का खेल अपनी तरफ मोड़ दिया।
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और कांग्रेस की चुनौती
राहुल गांधी मोदी के सामने इसलिए खड़े रहे क्योंकि उनके पीछे कांग्रेस जैसी पुरानी ताकत है, जिसने आजादी के बाद करीब 55 साल देश पर सीधे या परोक्ष रूप से राज किया। नौकरशाही, पुलिस, प्रशासन, सेना और न्यायपालिका – लगभग हर बड़े ढांचे में कांग्रेस की सोच गहरी बैठी हुई है। देश के कई शिक्षा संस्थानों ने जो राजनीतिक और सामाजिक सोच तैयार की, वह भी लंबे समय तक कांग्रेस के नजरिए पर आधारित रही।
बीजेपी की चुनौती यह रही कि उसने लंबे समय तक कोई समानांतर सोच विकसित नहीं की। जनसंघ के दौर से लेकर बीजेपी के आज तक, स्वतंत्र विचारधारा की कमी रही है। हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनीतिक मंच माना जाता है, लेकिन उसकी सोच देश-दुनिया के लिए हमेशा सर्वमान्य नहीं रही। उनका फोकस मुख्य रूप से हिंदू समाज के उत्थान और उसकी जनसंख्या बनाए रखने तक सीमित रहा। यानी, मोदी के सामने खड़ा होना आसान नहीं था, लेकिन यही राजनीतिक पृष्ठभूमि उन्हें चुनौती देती रही।
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व्यापारी की सूझ-बूझ और वैश्विक कूटनीति
राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि एक दर्शन भी है। इसमें विदेश नीति, सुरक्षा नीति, जनकल्याण, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के उत्थान की स्पष्ट दिशा होनी चाहिए। यह कमी बीजेपी में अब तक देखने को मिली है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी इसका कोई ठोस खाका नहीं था, लेकिन वाजपेयी 1957 से लगातार संसद में रहे और विदेश नीति का गहराई से अध्ययन किया। पंडित नेहरू की गुट निरपेक्षता और डॉ. राम मनोहर लोहिया की पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते बनाने की नीतियों को अपनाकर उन्होंने बीजेपी को नई दिशा दी, भले ही कट्टर हिंदू जनता की भावनाओं को पूरी तरह संतुष्ट न कर पाए हों।
नरेंद्र मोदी गुजरात से आए और खुद कह चुके हैं कि व्यापार उनका खून में है। यही कारण है कि अमेरिका, रूस और चीन जैसी महाशक्तियों को समय पर साधने और उनके साथ कूटनीतिक संतुलन बनाने का कौशल उन्हें बखूबी आता है। मोदी ने कौशल विकास और स्व-रोजगार को बढ़ावा देकर देश में मध्य वर्ग की आर्थिक ताकत को मजबूत किया। आज भारत में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ी है, वे सिर्फ सस्ती चीज़ों पर भरोसा नहीं करते; गाड़ी, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और ऑर्गेनिक खाने-पीने की चीज़ें अब उनकी प्राथमिकता हैं। और हाँ, इसके साथ-साथ मुफ्त राशन पाने वालों की संख्या भी लगातार बनी हुई है, जो उनकी लोकप्रिय नीतियों का संकेत है। PM Modi Birthday
सफलता की कुंजी: कुंडली और रणनीति
मोदी का शिखर तक पहुंचना केवल भाग्य का परिणाम नहीं है, बल्कि रणनीति, परिश्रम और जनता के साथ संवाद का परिणाम है। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें उत्तर प्रदेश में थोड़ी असफलता मिली, जिसकी बड़ी वजह उनके अपने पार्टी के प्रादेशिक नेताओं का भितरघात था। लोकसभा में बीजेपी भले ही अल्पमत में हो, लेकिन NDA के सहयोगी दलों के समर्थन से उनकी सरकार मजबूत बनी हुई है, और वे सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री बने हुए हैं।
उनके सहयोगी दलों में अधिकांश नेता अपनी मौकापरस्ती के लिए जाने जाते हैं, लेकिन फिर भी मोदी ने पिछले डेढ़ साल से निष्कंटक और मज़बूत शासन किया है। यही उनकी सच्ची राजनीतिक सफलता है। मज़ेदार बात यह है कि जिन लालू यादव ने पहले लाल कृष्ण आडवाणी के लिए कहा था कि “आपकी कुंडली में राजयोग नहीं है,” वही लालू आज अपने ही अनुयायी मोदी के शक्तिशाली राजयोग से अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। PM Modi Birthday
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो गए हैं। राजनीति की दुनिया में उनका सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। कहा जाता है कि उनकी जन्म कुंडली में राजयोग है, और शायद यही राज है कि उन्होंने चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री और लगातार तीन बार देश के प्रधानमंत्री बनने का अभूतपूर्व रिकॉर्ड बनाया। पिछले 24 सालों से सत्ता की चोटी पर रहते हुए, उन्होंने विरोधियों के “आज गए कि कल गए” जैसे दावे हमेशा धूल चटाई हैं। 2014 से लेकर आज तक कई नेता खुद को मोदी का विकल्प साबित करने आए, लेकिन हर बार उन्हें मोदी की मजबूती, चालाकी और जनता के बीच लोकप्रियता के आगे हाथ जोड़कर झुकना पड़ा। PM Modi Birthday
राजयोग और राजनीतिक चतुराई
ज्योतिषियों की मान्यता है कि नरेंद्र मोदी की जन्म कुंडली में राजयोग है, और यही शायद उनकी राजनीति की चमक का रहस्य है। अक्टूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने मोदी ने लगातार चार बार यह पद संभाला, और 2014 में सीधे देश के प्रधानमंत्री बने। हां, इसे खास बनाता है कि इससे पहले वे न तो कभी मंत्री रहे, न सांसद, और न ही किसी नगर या ब्लॉक के सभासद – सीधे शिखर पर कूद पड़े! पिछले 24 सालों से सत्ता की कुर्सी पर बैठे रहने का यह कारवां किसी के लिए आसान नहीं।
मोदी से पहले पांच मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनमें से किसी ने भी लगातार शीर्ष पर नहीं टिक पाए। वहीं, “आज गए कि कल गए!” जैसी भविष्यवाणियों के बावजूद मोदी लगातार सातवीं बार सत्ता के शिखर पर शपथ ले चुके हैं। विरोधियों की कितनी ही कटु टिप्पणियां आईं, लेकिन जनता के बीच उनकी लोकप्रियता इतनी मजबूत रही कि उन्हें कोई हिला नहीं पाया। PM Modi Birthday
सकारात्मक नफरत और खुला प्रेम
नरेंद्र मोदी की राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है – नफरत और प्रेम का खुला खेल। वे कभी ढोंग नहीं करते और किसी भी समुदाय की भावनाओं को अनावश्यक रूप से भड़काने का प्रयास नहीं करते। अगर राजनीति में हिंदू समुदाय को मजबूती चाहिए, तो इसे छिपाते भी नहीं। प्रेस को भले ही सीधे संबोधित कम करें, लेकिन पिछले 11 सालों से हर महीने के अंतिम रविवार को रेडियो के जरिए सीधे जनता से बात करना उनकी खासियत बन गई है। मोदी की शैली में घृणा और प्रेम दोनों खुलकर खेलते हैं, और वोट की रणनीति में वे मास्टर हैं।
जनता के बीच अपनी लोकप्रियता बनाए रखने का एक भी मौका वे हाथ से नहीं जाने देते। चाहे संसद हो या मंच, उनका ध्यान हमेशा बहुसंख्यक जनता को अपने पाले में करने पर रहता है। यही कारण है कि आज बीजेपी को हराने की हिम्मत किसी भी दल में नहीं है – और यही उनकी सियासी चालाकी का असली कमाल है। PM Modi Birthday
साइलेंट कार्रवाई और सामाजिक बदलाव
कुछ काम मोदी चुपचाप और साइलेंट तरीके से करते हैं, और यही उनकी राजनीति की सबसे बड़ी ताकत है। उदाहरण के लिए, सत्ता में सामाजिक रूप से पिछड़े और दलित समुदाय की हिस्सेदारी बढ़ाना। कांग्रेस के दौर की ब्राह्मण सुप्रीमेसी अब उनके जमाने में खत्म हो गई है। 1952 से 1989 तक अधिकांश राज्यों की कमान ब्राह्मण और द्विज जातियों के पास रही, लेकिन अब बीजेपी शासित राज्यों में यह प्रभुत्व कहीं दिखाई नहीं देता – बस राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोड़कर। PM Modi Birthday
उत्तर प्रदेश की राजनीति तो जैसे पहेली बन गई है। वहां पिछड़ी और दलित जातियां क्रमशः सपा और बसपा के पास हैं, और बिना किसी अगड़ी जाति की मदद के सत्ता तक पहुँचना लगभग असंभव। लेकिन मोदी ने इन जटिल गणितों को समझते हुए बेहद चतुराई से सामरिक संतुलन बनाया और राजनीतिक खेल को अपनी तरफ मोड़ लिया
सहयोगी दलों से संतुलन
2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तब पहली बार बीजेपी अकेले बहुमत के दम पर सत्ता में आई। लेकिन मोदी ने यहां भी राजनीति की सूझ-बूझ दिखाई और सहयोगी दलों के साथ तालमेल बनाए रखा। किसानों के मुद्दे पर शिरोमणि अकाली दल से टकराव हुआ, महाराष्ट्र में राज्य की कमान को लेकर शिवसेना से खींचतान हुई, और नीतीश का जनता दल (यू) कई बार NDA से बाहर गया और फिर वापस लौटा। इसके बावजूद मोदी ने हर बार गठबंधन को संतुलित रखा। PM Modi Birthday
2014 के बाद से लगातार कई नेता खुद को मोदी का विकल्प साबित करने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उन्हें हर बार धूल चाटनी पड़ी। बस राहुल गांधी ही ऐसे खड़े रहे हैं, जिनके सामने मोदी की राजनीति का असली मुकाबला दिखता है। यानी, विरोधियों की कोशिशों के बावजूद मोदी ने राजनीतिक मोर्चे पर हर बार अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी और गठबंधन का खेल अपनी तरफ मोड़ दिया।
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और कांग्रेस की चुनौती
राहुल गांधी मोदी के सामने इसलिए खड़े रहे क्योंकि उनके पीछे कांग्रेस जैसी पुरानी ताकत है, जिसने आजादी के बाद करीब 55 साल देश पर सीधे या परोक्ष रूप से राज किया। नौकरशाही, पुलिस, प्रशासन, सेना और न्यायपालिका – लगभग हर बड़े ढांचे में कांग्रेस की सोच गहरी बैठी हुई है। देश के कई शिक्षा संस्थानों ने जो राजनीतिक और सामाजिक सोच तैयार की, वह भी लंबे समय तक कांग्रेस के नजरिए पर आधारित रही।
बीजेपी की चुनौती यह रही कि उसने लंबे समय तक कोई समानांतर सोच विकसित नहीं की। जनसंघ के दौर से लेकर बीजेपी के आज तक, स्वतंत्र विचारधारा की कमी रही है। हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनीतिक मंच माना जाता है, लेकिन उसकी सोच देश-दुनिया के लिए हमेशा सर्वमान्य नहीं रही। उनका फोकस मुख्य रूप से हिंदू समाज के उत्थान और उसकी जनसंख्या बनाए रखने तक सीमित रहा। यानी, मोदी के सामने खड़ा होना आसान नहीं था, लेकिन यही राजनीतिक पृष्ठभूमि उन्हें चुनौती देती रही।
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व्यापारी की सूझ-बूझ और वैश्विक कूटनीति
राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि एक दर्शन भी है। इसमें विदेश नीति, सुरक्षा नीति, जनकल्याण, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के उत्थान की स्पष्ट दिशा होनी चाहिए। यह कमी बीजेपी में अब तक देखने को मिली है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी इसका कोई ठोस खाका नहीं था, लेकिन वाजपेयी 1957 से लगातार संसद में रहे और विदेश नीति का गहराई से अध्ययन किया। पंडित नेहरू की गुट निरपेक्षता और डॉ. राम मनोहर लोहिया की पड़ोसियों से बेहतर रिश्ते बनाने की नीतियों को अपनाकर उन्होंने बीजेपी को नई दिशा दी, भले ही कट्टर हिंदू जनता की भावनाओं को पूरी तरह संतुष्ट न कर पाए हों।
नरेंद्र मोदी गुजरात से आए और खुद कह चुके हैं कि व्यापार उनका खून में है। यही कारण है कि अमेरिका, रूस और चीन जैसी महाशक्तियों को समय पर साधने और उनके साथ कूटनीतिक संतुलन बनाने का कौशल उन्हें बखूबी आता है। मोदी ने कौशल विकास और स्व-रोजगार को बढ़ावा देकर देश में मध्य वर्ग की आर्थिक ताकत को मजबूत किया। आज भारत में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ी है, वे सिर्फ सस्ती चीज़ों पर भरोसा नहीं करते; गाड़ी, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और ऑर्गेनिक खाने-पीने की चीज़ें अब उनकी प्राथमिकता हैं। और हाँ, इसके साथ-साथ मुफ्त राशन पाने वालों की संख्या भी लगातार बनी हुई है, जो उनकी लोकप्रिय नीतियों का संकेत है। PM Modi Birthday
सफलता की कुंजी: कुंडली और रणनीति
मोदी का शिखर तक पहुंचना केवल भाग्य का परिणाम नहीं है, बल्कि रणनीति, परिश्रम और जनता के साथ संवाद का परिणाम है। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें उत्तर प्रदेश में थोड़ी असफलता मिली, जिसकी बड़ी वजह उनके अपने पार्टी के प्रादेशिक नेताओं का भितरघात था। लोकसभा में बीजेपी भले ही अल्पमत में हो, लेकिन NDA के सहयोगी दलों के समर्थन से उनकी सरकार मजबूत बनी हुई है, और वे सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री बने हुए हैं।
उनके सहयोगी दलों में अधिकांश नेता अपनी मौकापरस्ती के लिए जाने जाते हैं, लेकिन फिर भी मोदी ने पिछले डेढ़ साल से निष्कंटक और मज़बूत शासन किया है। यही उनकी सच्ची राजनीतिक सफलता है। मज़ेदार बात यह है कि जिन लालू यादव ने पहले लाल कृष्ण आडवाणी के लिए कहा था कि “आपकी कुंडली में राजयोग नहीं है,” वही लालू आज अपने ही अनुयायी मोदी के शक्तिशाली राजयोग से अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। PM Modi Birthday







