Tuesday, 3 December 2024

जो न हो सो कम !! पूरी बेहयाई से दलबदल चालू है

UP Politics : राजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम…

जो न हो सो कम !! पूरी बेहयाई से दलबदल चालू है

UP Politics : राजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है । पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली के लिए विगत 8 फरवरी को हुए चुनावों में तो अजब ही तमाशा हो गया । सिंध प्रांत की एक सीट पर जब मतपेटियां खुलीं तो प्रत्याशियों के बजाय फुटबॉल जगत के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी  क्रिस्टियानो रोनाल्डो, लियोनेल मेसी, नेमार और किलियन एमबाप्पे के नाम वाली वोटिंग पर्चियां दिखाई पड़ीं । ऐसी दस बीस अथवा सौ दो सौ नहीं वरन भारी संख्या में पर्चियां मतपेटियों से निकलीं। सामने आ रहे वीडियोज से साफ पता चल रहा है कि मतदाताओं को अब अपने नेताओं से कोई उम्मीद नहीं बची है और उन्हें लगता है कि फुटबॉल के मैदान में लगातर गोल पर गोल करने वाले बड़े खिलाड़ी ही शायद अब कुछ कर सकते हैं। चलिए पाकिस्तान को जाने दें और अपने मुल्क की ही बात करें तो यहां क्या कम प्रहसन हो रहा है ?

रवि अरोड़ा

राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी गला फाड़ फाड़ कर दावा करते थे कि मैं चवन्नी नहीं हूं जो पलट जाऊंगा और पानी पी पीकर भाजपा को कोसते थे मगर चुग्गा मिलते ही भाजपा की झोली में जाने को बेताब हो उठे । नीतीश कुमार ने तो बेशर्मी के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए और एक बार फिर पाला बदल लिया । वे जहां जाते हैं, वहीं के बाबत दावा करते हैं कि अब यहीं रहूंगा मगर हर साल दो साल में फिर पलटी मार जाते हैं। नीतीश और जयंत की ही क्या बात करें देश का हर तीसरा बड़ा नेता पूरी बेहयाई से दलबदल कर चुका है। पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देश बेशक क्रॉसिंग दा लाईन यानी दलबदल को को घटिया और ओछा समझते हों मगर अपने मुल्क में तो राजनीतिक सफलता की यही सबसे बड़ी गारंटी है। यह प्रहसन नहीं तो और क्या है कि पूरी दुनिया में भारत के सबसे बडे़ लोकतंत्र का ढोल पीटने वाली खुद मोदी जी की भाजपा ही सर्वाधिक दलबदल में लिप्त रहती है। ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स जैसे इदारों के जरिए दूसरे दल के नेताओं को इस कदर दबाव में ले लिया जाता है कि वे त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए भाजपा की शरण में आ जाते हैं। यह अभी इतिहास नहीं हुआ है कि भाजपा ने कर्नाटक, मध्य प्रदेश, और गोवा में दूसरे दलों की चुनी हुई सरकारों के विधायक तोड़ कर वहां अपना भगवा झंडा फहरा दिया था और भारतीय लोकतंत्र की एक नई परिभाषा ही गढ़ दी थी। आसन्न लोकसभा चुनावों से पहले भी राम मंदिर के उद्घाटन के नाम पर पूरे मुल्क की सरकारी मशीनरी को उसमे झोंकने, थोक के भाव भारत रत्न देने , सीएए , यूसीसी और न जाने क्या क्या टोटके आजमाए जा रहे हैं और अभी क्या क्या प्रहसन होने बाकी हैं यह किसी को पता नहीं। उस पर भी तुर्रा यह कि जनता से अपेक्षा की जा रही है कि वह इस बात पर गर्व करे कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

हल्के नेताओं और अपढ़ जनता वाले मुल्क में जो न हो सो कम UP Politics

खबरें बता रही हैं कि इस बार लोकसभा चुनाव में 96.8 करोड़ से अधिक नागरिक मतदान कर सकेंगे । 2019 के चुनावों में यह संख्या 89.6 करोड़ थी मगर इस बात 8.1 फीसदी बढ़ गई है। यानी यह देश की कुल आबादी का 66.8 परसेंट है। खास बात यह है कि मुल्क में इस बार 21.6 करोड़ मतदाता 18 से 29 वर्ष की आयु के हैं। इनकी संख्या कुल मतदाताओं के 22 फीसदी से अधिक हैं। क्या गजब है कि देश में ज्यों ज्यों लोकतांत्रिक मूल्य रसातल में जा रहे हैं, त्यों त्यों मतदाताओं की संख्या में इजाफा हो रहा है। रही सही कसर नेताओं की छिछोरी हरकतें पूरा कर रही हैं। चलिए गनीमत है कि हमारे देश में मतदान वोटिंग मशीन ( उसकी ईमानदारी भी ईश्वर जाने या सरकार ) से हो होता है। यदि पर्चियों से होता तो क्या पता लोग बाग नेताओं की बजाय विराट कोहली अथवा अमिताभ बच्चन जैसों के नाम उस पर लिख आते । हल्के नेताओं और अपढ़ जनता वाले मुल्क में जो न हो सो कम ।UP Politics

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