5 स्वयंसेवकों से शुरू हुआ RSS का सफर, जानिए कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा संगठन

5 स्वयंसेवकों से शुरू हुआ RSS का सफर, जानिए कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा संगठन
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calendar30 Sep 2025 03:30 PM
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27 सितंबर 1925… नागपुर का मोहिते का बाड़ा… और पर्व था विजयादशमी। इसी दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने महज़ पाँच साथियों के साथ मिलकर एक एक ऐसे संगठन की नींव रखी, जिसने आने वाले समय में भारतीय समाज और राजनीति की दिशा बदल दी। जिसकी छाया आज पूरी दुनिया में फैल चुकी है। शुरुआत में लोगों ने हंसी उड़ाई—“पाँच बच्चों के सहारे क्रांति?” लेकिन किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि यह छोटा-सा कदम आने वाले समय में विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी और हिंदू संगठन खड़ा कर देगा।  How RSS was formed

आज 100 साल बाद RSS के पास 1 करोड़ से ज्यादा प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं, जो देशभर में 75 हजार से अधिक शाखाओं के जरिए सक्रिय हैं। संघ का प्रभाव इतना व्यापक है कि इसके परिवार में 80 से ज्यादा समविचारी संगठन काम कर रहे हैं और इसकी पहुँच करीब 40 देशों तक है। केवल भारत में ही रोज़ाना 56 हजार से अधिक शाखाएं लगती हैं, जबकि 14 हजार साप्ताहिक मंडलियां और 9 हजार मासिक शाखाएं भी सक्रिय रहती हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि पाँच स्वयंसेवकों से शुरू हुई यह यात्रा आज अनुशासन, संगठन और राष्ट्रभावना की मिसाल बन चुकी है।  How RSS was formed

स्थापना से लेकर विस्तार तक

पहला विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और कभी ताकतवर माने जाने वाला तुर्की का ऑटोमन साम्राज्य अब बिखराव की कगार पर था। अंग्रेजों ने तुर्की के खलीफा जिसे पूरी दुनिया के मुसलमान अपना धार्मिक मुखिया मानते थे को सत्ता से बेदखल कर दिया। यह खबर आग की तरह फैली और मुस्लिम समाज का गुस्सा फूट पड़ा। भारत, जो पहले ही गुलामी की बेड़ियों से जकड़ा था, वहां भी मुसलमान सड़क पर उतर आए। इसी माहौल से जन्म हुआ खिलाफत आंदोलन का। इस आंदोलन की कमान अली बंधुओं शौकत अली और मोहम्मद अली ने संभाली।

उनका लक्ष्य था खलीफा को दोबारा तुर्की के सिंहासन पर बैठाना। आंदोलन तेजी से फैला और लाखों लोग इसमें शामिल हो गए। उधर भारत का वातावरण पहले से ही विस्फोटक था। जलियांवाला बाग की त्रासदी ताज़ा थी, पंजाब में मार्शल लॉ लागू था और रौलेट एक्ट जैसे काले कानून जनता के गुस्से को भड़का रहे थे। ऐसे में दक्षिण अफ्रीका से लौटे महात्मा गांधी एक बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे थे। उन्हें लगा कि खिलाफत आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता का सेतु बन सकता है। गांधी ने कहा था जिस तरह हिंदुओं के लिए गाय पूज्य है, उसी तरह मुसलमानों के लिए खलीफा।

खिलाफत आंदोलन से जन्मी नई सोच

महात्मा गांधी का यह विचार हर किसी को स्वीकार्य नहीं था। नागपुर के युवा कांग्रेसी डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार इसे खतरनाक मानते थे। उनका स्पष्ट मत था कि धर्म को राष्ट्र से ऊपर रखना देशहित के लिए विनाशकारी साबित होगा। फिर भी, गांधी के आग्रह पर उन्होंने खिलाफत आंदोलन में भाग लिया और अपने तेज़ भाषणों के कारण जेल भी गए। लेकिन 1921 में जब आंदोलन केरल के मालाबार पहुँचा, तो हालात बेकाबू हो गए। मुस्लिम किसानों और हिंदू जमींदारों के बीच टकराव ने खूनी दंगे का रूप ले लिया। हजारों लोग मारे गए, जबरन धर्मांतरण हुआ और मंदिरों पर हमले हुए।    How RSS was formed

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में इस त्रासदी का उल्लेख किया है, वहीं एनी बेसेंट ने भी गांधी की रणनीति पर सवाल उठाए और अखबारों में लिखा कि यदि गांधी मालाबार आते, तो उन्हें अपने निर्णय का कठोर परिणाम खुद देखने को मिलता। इन घटनाओं ने हेडगेवार को भीतर तक झकझोर दिया। उन्होंने अनुभव किया कि हिंदुओं के पास ऐसा कोई मंच नहीं है जो पूरी निष्ठा से उनके हितों की रक्षा कर सके। उन्होंने हिंदू महासभा से उम्मीदें लगाईं, लेकिन वहां भी उन्हें केवल राजनीतिक सौदेबाज़ी नज़र आई। नतीजा यह हुआ कि हेडगेवार ने एक बिल्कुल नए संगठन की परिकल्पना की, जो धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखे।  How RSS was formed

शाखाओं से फैला असर

27 सितंबर 1925… विजयादशमी का दिन और नागपुर का मोहिते का बाड़ा। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अपने घर पर पाँच साथियों—गणेश सावरकर, डॉ. बी.एस. मुंजे, एल.वी. परांजपे और बी.बी. थोलकर—को बुलाया। उसी बैठक में उन्होंने ऐलान किया—“आज से हम संघ की नींव रख रहे हैं।” यही क्षण बना उस संगठन का जन्मदिवस, जिसे आज पूरी दुनिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के नाम से जानती है। शुरुआत बेहद साधारण थी। सप्ताह में दो दिन मुलाकात होती—रविवार को व्यायाम और गुरुवार को राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा। इन बैठकों को “शाखा” कहा गया, जो आगे चलकर संघ की पहचान और ताकत दोनों बनी। 17 अप्रैल 1926 को इस संगठन को आधिकारिक नाम मिला—राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। उसी वर्ष रामनवमी पर स्वयंसेवक पहली बार एक जैसी पोशाक में दिखे खाकी शर्ट-पैंट, टोपी और बूट। अनुशासन और एकरूपता का यह दृश्य कुछ ही समय में संघ की सबसे बड़ी पहचान बन गया।

अनोखा था चयन का तरीका

डॉ. हेडगेवार के पास युवाओं को जोड़ने का अपना अनोखा अंदाज था। वे अक्सर कहा करते—“पढ़ाई सिर्फ नागपुर तक मत सीमित रखो, बाहर जाओ और जहां जाओ वहां शाखा शुरू करो।” यही वजह रही कि जब छात्र मैट्रिक पास करके दूसरे शहर पढ़ने जाते, तो अपने कॉलेज में शाखा खड़ी करते और दोस्तों को भी संघ से जोड़ लेते। छुट्टियों में जब वही छात्र नागपुर लौटते, तो हेडगेवार उनसे विस्तार से पूछते—शाखा कैसी चल रही है? कितने नए चेहरे जुड़े? किन दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा? इस सतत संवाद ने संघ की गतिविधियों को मजबूत आधार दिया।

महाराष्ट्र से बाहर संघ की पहली शाखा 1930 में वाराणसी में शुरू हुई, जो आगे चलकर ऐतिहासिक साबित हुई। इसी शाखा से दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरुजी’ जुड़े। हेडगेवार का तरीका सिर्फ संगठनात्मक नहीं, मानवीय भी था। जो लड़के नियमित शाखा में नहीं आते, उनके घर तक वे खुद पहुंचते, उनसे खुलकर बातचीत करते और परिवार से भी मिलते। उनकी सादगी और सहजता ने कई परिवारों को इतना प्रभावित किया कि वे अपने बच्चों को खुद शाखा में भेजने लगे। धीरे-धीरे यह प्रभाव इतना व्यापक हुआ कि हर महीने नए स्वयंसेवक जुड़ते चले गए और शाखा नागपुर से निकलकर पूरे देश में फैल गई।

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सरसंघचालकों की परंपरा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना से लेकर अब तक उसकी कमान केवल छह सरसंघचालकों के हाथों में रही है। यह परंपरा 1925 में डॉ. हेडगेवार से शुरू हुई, जिन्होंने संघ की नींव रखते हुए 1940 तक संगठन का नेतृत्व किया। उनके निधन के बाद संघ की बागडोर माधव सदाशिवराव गोलवलकर के हाथों में आई। ‘गुरुजी’ के नाम से लोकप्रिय गोलवलकर ने 33 वर्षों तक यानी 1973 तक संघ को दिशा दी। इसके बाद नेतृत्व मिला मधुकर दत्तात्रेय देवरस को, जिन्हें बालासाहेब देवरस के नाम से जाना जाता है।    How RSS was formed

1993 में संघ की कमान प्रोफेसर राजेंद्र सिंह ‘रज्जू भैया’ के पास आई। स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने 2000 में अपने रहते ही पद कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन को सौंप दिया। सुदर्शन जी ने भी 2009 में स्वास्थ्य कारणों से जिम्मेदारी छोड़ दी और संघ की बागडोर डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत के हाथों में आई। वर्तमान में मोहन भागवत संघ के छठे सरसंघचालक के रूप में संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं और आधुनिक दौर में आरएसएस को नई दिशा दे रहे हैं।

आज का संघ

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल भारत तक सीमित संगठन नहीं है, बल्कि एक विराट सामाजिक शक्ति के रूप में उभर चुका है। संघ के पास एक करोड़ से भी अधिक प्रशिक्षित स्वयंसेवकों की सक्रिय फौज है। देशभर में हर रोज़ 56 हज़ार से अधिक शाखाओं में अनुशासन और राष्ट्रभक्ति की साधना होती है। इसके अलावा 14 हज़ार साप्ताहिक मंडलियां और 9 हज़ार मासिक शाखाएं भी लगातार सक्रिय रहती हैं। संघ परिवार के दायरे में 80 से ज़्यादा आनुषांगिक संगठन शिक्षा, सेवा, श्रमिक, किसान और संस्कृति जैसे विविध क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।      How RSS was formed

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इंडिगो फ्लाइट को बम से उड़ाने की धमकी, दिल्ली एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट

इंडिगो फ्लाइट को बम से उड़ाने की धमकी, दिल्ली एयरपोर्ट पर हाई अलर्ट
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calendar28 Nov 2025 07:00 PM
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मंगलवार को मुंबई से दिल्ली आ रही इंडिगो की फ्लाइट 6E 762 को बम धमकी मिलने से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (IGI) पर हड़कंप मच गया। लगभग 200 यात्री उड़ान में मौजूद थे जिन्हें सुरक्षा एजेंसियों ने इमरजेंसी प्रोटोकॉल के तहत सुरक्षित तरीके से उतारा। Bomb Threats

धमकी मिलने पर क्या हुआ?

जब मुश्किल समय में धमकी का पता चला तो एयरलाइन और एयरपोर्ट सुरक्षा तंत्र तुरंत सक्रिय हो गए। IGI एयरपोर्ट पर आपात स्थिति घोषित की गई और सुरक्षा स्तर बढ़ा दिया गया। संबंधित सुरक्षा एजेंसियों ने फ्लाइट और हवाई अड्डे की पूरी जांच-पड़ताल शुरू कर दी। फ्लाइट को सुबह 7:53 बजे सुरक्षित रूप से उतराया गया। धमकी अस्पष्ट थी लेकिन जोखिम को देखते हुए सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किए गए।

इंडिगो का बयान

इंडिगो की ओर से जारी बयान में कहा गया, “30 सितंबर 2025 को मुंबई से दिल्ली को उड़ान भरने वाली 6E 762 फ्लाइट में सुरक्षा संबंधी खतरा देखा गया। हमने तुरंत संबंधित अधिकारियों को जानकारी दी और उनके सहयोग से आवश्यक सुरक्षा जांच की। हमारी प्राथमिकता हमेशा यात्रियों, चालक दल और विमान की सुरक्षा रही है। हम ग्राहकों की असुविधा को न्यूनतम करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।” बयान में यह भी कहा गया कि एयरलाइन ने यात्रियों को जलपान और समय-समय पर अपडेट्स भी दिए।

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बढ़ती धमकियों का आंकड़ा

दिल्ली में पिछले समय में कई मौकों पर बम धमकियों की घटनाएं सामने आई हैं। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और यहां तक कि कोर्ट तक को लक्ष्य बनाया गया। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठा दिया है कि राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था कितनी सक्षम है और किन-किन कमियों को दूर करने की जरूरत है। Bomb Threats
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हर हिंदू को पता होनी चाहिए मां दुर्गा और महिषासुर की अद्भुत कथा

हर हिंदू को पता होनी चाहिए मां दुर्गा और महिषासुर की अद्भुत कथा
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calendar30 Sep 2025 02:00 PM
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नवरात्रि केवल एक पर्व नहीं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा, धर्म की रक्षा और नारी शक्ति के जागरण का उत्सव है। यह नौ दिनों तक चलने वाला पर्व हमें मां दुर्गा और महिषासुर के युद्ध की याद दिलाता है। एक ऐसा पौराणिक संघर्ष जो आज भी अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक बना हुआ है। Navratri 2025 

महिषासुर वध की कथा

पुराणों के अनुसार, असुरराज महिषासुर ने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से वरदान पाया था कि उसे कोई भी पुरुष या देवता मार नहीं सकता। यह वरदान पाकर वह अहंकारी हो गया और तीनों लोकों में आतंक फैलाने लगा। जब देवता उससे पराजित हो गए तब समस्त देवशक्तियों ने मिलकर एक नई शक्ति को जन्म दिया और उसी से प्रकट हुईं मां दुर्गा। हर देवता ने उन्हें अपना दिव्य अस्त्र दिया। भगवान शिव का त्रिशूल, विष्णु का सुदर्शन चक्र और इंद्र का वज्र। इस दिव्य स्वरूप में मां दुर्गा ने महिषासुर से पंद्रह दिन तक भीषण युद्ध किया। महिषासुर हर बार नया रूप धारण करता रहा भैंस, सिंह, मनुष्य लेकिन जब उसने पुनः भैंस का रूप लिया तभी मां दुर्गा ने अपने त्रिशूल से उसका अंत कर दिया। यही दिन कहलाया विजयादशमी जो बताता है कि जब बुराई अपनी सीमा पार कर देती है तो धर्म और शक्ति उसका अंत करती है।

नवदुर्गा: शक्ति के नौ रूप

नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित होते हैं जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। हर दिन एक विशेष शक्ति और जीवन की एक सीख का प्रतीक है। शैलपुत्री – प्रकृति और स्थिरता की देवी ब्रह्मचारिणी – तप और ज्ञान का प्रतीक चंद्रघंटा – शौर्य और साहस का स्वरूप कूष्मांडा – सृष्टि की रचयिता स्कंदमाता – ममता और सुरक्षा का रूप कात्यायनी – युद्ध और पराक्रम की देवी कालरात्रि – बुराई का अंत करने वाली महागौरी – पवित्रता और शांति का स्वरूप सिद्धिदात्री – सिद्धियों और चमत्कार की अधिष्ठात्री

भक्ति, संस्कृति और ऊर्जा का संगम

नवरात्रि केवल पूजा-पाठ का ही नहीं सांस्कृतिक रंगों का उत्सव भी है। गुजरात में जहां गरबा और डांडिया की धुनें गूंजती हैं वहीं बंगाल में दुर्गा पूजा की भव्य मूर्तियां और पंडालों की रोशनी श्रद्धा को नया रूप देती है। उपवास इस दौरान शरीर और मन की शुद्धि का माध्यम बनता है। लोग इन दिनों भक्ति गीत, कीर्तन और सामूहिक आराधना में लीन हो जाते हैं। यह पर्व सामूहिक ऊर्जा, विश्वास और सांस्कृतिक एकता को भी गहराई से जोड़ता है।

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अपने अंदर की देवी को जगाएं

मां दुर्गा और महिषासुर की यह पौराणिक कथा केवल इतिहास नहीं बल्कि हर युग में प्रासंगिक है। यह हमें सिखाती है कि जब बुराई सिर उठाती है चाहे वह बाहरी हो या भीतर की नकारात्मकता तो आत्मबल, साहस और सच्चाई से उसका अंत संभव है। नवरात्रि हमें याद दिलाती है कि हर महिला, हर इंसान में देवी की शक्ति है जिसे पहचानना और जागृत करना ही असली साधना है। Navratri 2025