एक नहीं पूरे 5 दिन का त्योहार है दिवाली,जान लीजिये पूजा विधि और महत्व

शास्त्रों में इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धनवंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है

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Diwali 2023
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 09:51 AM
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 Diwali 2023 : दिवाली भले एक दिन मनाई जाती है लेकिन यह पर्व पांच दिनों का होता है। यानि धनत्रयोदशी से शुरू होकर यम द्वितीया तक। शास्त्रों में इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धनवंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है।

धनत्रयोदशी

इसे धनतेरस भी कहते हैं। इस दिन का मुख्य संबंध यमराज की आराधना से है। यह पर्व 10 नवंबर शुक्रवार को मनाया जाएगा। आयुर्वेद के प्रवर्तक धनवंतरि की जयंती भी इसी दिन होती है। यम दीप जलाना इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण है। शाम को यमराज के निमित्त दीप जलाकर घर के दरवाजे के बाहर रखना चाहिए। इस दिन लक्ष्मी पूजन की परंपरा भी है। लोक मान्यता के अनुसार इस दिन स्वर्ण या रजत मुद्राएं अथवा बर्तन खरीदना शुभ होता है।

नरक चतुर्दशी-

रूप चतुर्दशी के दिन क्यों लगाया जाता है विशेष उबटन ?

नरक चतुर्दशी को नरका चौदस और हनुमान जयंती के रूप में भी प्रतिष्ठा प्राप्त है। यह पर्व 11 नवंबर को मनाया जाएगा। शास्त्रतीय मान्यताओं के इस दिन शाम को चार बातियों वाला दीपक घर के बाहर कूड़े के ढेर पर जलाना चाहिए। खास यह कि दीपक पुराना होना चाहिए। इसके पीछे मान्यता यह है कि स्थान चाहे कोई भी हो शुभता का वास हर जगह है। समय विशेष पर उसका महत्व होता है। इस क्रिया से पूर्व प्रातकाल सरसों का तेल और उपटन लगाकर स्नान करना चाहिए। यमराज के निमित्त तर्पण करना न भूलें।

दिवाली

दीपावली सनातनी परंपरा में रात में मनाए जाने वाले प्रमुख पर्वों में एक है। यह पर्व 12 नवंबर रविवार को मनाया जाएगा। तीसरी महानिशा में शुमार कालरात्रि का पर्व जनसामान्य में दीपावली या दिवाली के नाम से प्रतिष्ठित है। दीपावली के दिन सूर्यास्त से अगले सूर्योदय के बीच का काल विशेष रूप से प्रभावी है। मोहरात्रि, शिवरात्रि, होलिका दहन, शरद पूर्णिमा की भांति ही दीपावली में भी संपूर्ण रात्रि जागरण का विधान है। कालरात्रि वह निशा है जिसमें तंत्र साधकों के लिए सर्वाधिक अवसर होते हैं।

अन्नकूट या गोवर्धन पूजा-

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट मनाया जाता है। इस दिन सभी छोटे-बड़े देवालयों में छप्पन भोग अर्पित होते हैं। इस वर्ष दीपावली के अगले दिन सूर्य ग्रहण से अन्नकूट 14 नवंबर को होगा। काशी विश्वनाथ मंदिर और अन्नपूर्णा मंदिर में अन्नकूट की झांकी विश्वविख्यात है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में विस्तारपूर्वक अन्नकूट का महत्व बताया गया है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का विधान भी है लेकिन उत्तर भारत में काशी की परम्परा के अनुसार यह पूजन यम द्वितीया (भाई दूज) के दिन किया जाता है।

भाईदूज

भाई दूज भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व है। यह पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा। यह पर्व रक्षाबंधन के भी पहले से सनातनी समाज का हिस्सा रहा है। स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण दोनों में ही इसकी महत्ता का वर्णन है। इस दिन प्रत्येक भाई का दायित्व है कि वह विवाहित बहन के घर जाए। उसके हाथ का पका भोजन ग्रहण कर सामर्थ के अनुसार द्रव्य, वस्त्रत्त्, मिष्ठान्न आदि भेंट करे। यदि बहन अविवाहित और छोटी है तो उसकी इच्छानुसार भेंट दे। लोक मान्यताओं में गोधन पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। इसी दिन कायस्थ समाज चित्रगुप्त पूजन भी करता है।

नरक चतुर्दशी के दिन ही क्यों मनाई जाती है हनुमान जयंती, जानिए महत्व 

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एक नहीं पूरे 5 दिन का त्योहार है दिवाली,जान लीजिये पूजा विधि और महत्व

शास्त्रों में इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धनवंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है

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Diwali 2023
locationभारत
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 Diwali 2023 : दिवाली भले एक दिन मनाई जाती है लेकिन यह पर्व पांच दिनों का होता है। यानि धनत्रयोदशी से शुरू होकर यम द्वितीया तक। शास्त्रों में इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धनवंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है।

धनत्रयोदशी

इसे धनतेरस भी कहते हैं। इस दिन का मुख्य संबंध यमराज की आराधना से है। यह पर्व 10 नवंबर शुक्रवार को मनाया जाएगा। आयुर्वेद के प्रवर्तक धनवंतरि की जयंती भी इसी दिन होती है। यम दीप जलाना इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण है। शाम को यमराज के निमित्त दीप जलाकर घर के दरवाजे के बाहर रखना चाहिए। इस दिन लक्ष्मी पूजन की परंपरा भी है। लोक मान्यता के अनुसार इस दिन स्वर्ण या रजत मुद्राएं अथवा बर्तन खरीदना शुभ होता है।

नरक चतुर्दशी-

रूप चतुर्दशी के दिन क्यों लगाया जाता है विशेष उबटन ?

नरक चतुर्दशी को नरका चौदस और हनुमान जयंती के रूप में भी प्रतिष्ठा प्राप्त है। यह पर्व 11 नवंबर को मनाया जाएगा। शास्त्रतीय मान्यताओं के इस दिन शाम को चार बातियों वाला दीपक घर के बाहर कूड़े के ढेर पर जलाना चाहिए। खास यह कि दीपक पुराना होना चाहिए। इसके पीछे मान्यता यह है कि स्थान चाहे कोई भी हो शुभता का वास हर जगह है। समय विशेष पर उसका महत्व होता है। इस क्रिया से पूर्व प्रातकाल सरसों का तेल और उपटन लगाकर स्नान करना चाहिए। यमराज के निमित्त तर्पण करना न भूलें।

दिवाली

दीपावली सनातनी परंपरा में रात में मनाए जाने वाले प्रमुख पर्वों में एक है। यह पर्व 12 नवंबर रविवार को मनाया जाएगा। तीसरी महानिशा में शुमार कालरात्रि का पर्व जनसामान्य में दीपावली या दिवाली के नाम से प्रतिष्ठित है। दीपावली के दिन सूर्यास्त से अगले सूर्योदय के बीच का काल विशेष रूप से प्रभावी है। मोहरात्रि, शिवरात्रि, होलिका दहन, शरद पूर्णिमा की भांति ही दीपावली में भी संपूर्ण रात्रि जागरण का विधान है। कालरात्रि वह निशा है जिसमें तंत्र साधकों के लिए सर्वाधिक अवसर होते हैं।

अन्नकूट या गोवर्धन पूजा-

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट मनाया जाता है। इस दिन सभी छोटे-बड़े देवालयों में छप्पन भोग अर्पित होते हैं। इस वर्ष दीपावली के अगले दिन सूर्य ग्रहण से अन्नकूट 14 नवंबर को होगा। काशी विश्वनाथ मंदिर और अन्नपूर्णा मंदिर में अन्नकूट की झांकी विश्वविख्यात है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में विस्तारपूर्वक अन्नकूट का महत्व बताया गया है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का विधान भी है लेकिन उत्तर भारत में काशी की परम्परा के अनुसार यह पूजन यम द्वितीया (भाई दूज) के दिन किया जाता है।

भाईदूज

भाई दूज भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व है। यह पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा। यह पर्व रक्षाबंधन के भी पहले से सनातनी समाज का हिस्सा रहा है। स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण दोनों में ही इसकी महत्ता का वर्णन है। इस दिन प्रत्येक भाई का दायित्व है कि वह विवाहित बहन के घर जाए। उसके हाथ का पका भोजन ग्रहण कर सामर्थ के अनुसार द्रव्य, वस्त्रत्त्, मिष्ठान्न आदि भेंट करे। यदि बहन अविवाहित और छोटी है तो उसकी इच्छानुसार भेंट दे। लोक मान्यताओं में गोधन पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। इसी दिन कायस्थ समाज चित्रगुप्त पूजन भी करता है।

नरक चतुर्दशी के दिन ही क्यों मनाई जाती है हनुमान जयंती, जानिए महत्व 

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नरक चतुर्दशी के दिन ही क्यों मनाई जाती है हनुमान जयंती, जानिए महत्व 

नरक चतुर्दशी के दिन ही क्यों मनाई जाती है हनुमान जयंती, जानिए इसका महत्व 

HANUMAN
Narak Chaturdashi 2023
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 04:33 AM
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Narak Chaturdashi 2023 : छोटी दिवाली के दिन हनुमान जी का पूजन विशेष रुप से किया जाता है देश भर में यह दिन अलग अलग तरह से कइ रुपों में मनाया जाता है वहीं कुछ स्थानों पर इस दिन को हनुमान जयंती के रुप में भी पूजे जाने का महत्व प्राप्त होता है. इस का वर्णन वाल्मिकि रामायण से भी प्राप्त होता है जहां कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का दिन भगवान हनुमान के जन्म से संबंधित रहा है. धर्म कथाओं में उल्लेख अनुसार हनुमान जयंती के कई अन्य समय पर भी मनाए जाने का महत्व प्राप्त होता है और उसी में से एक है यह, कार्तिक माह में आने वाला हनुमान जयंती का उत्सव. जहां चैत्र माह में आने वाली हनुमान जयंती का समय उत्तर भारत में लोकप्रिय रहा है वहीं कार्तिक माह की जयंती का समय दक्षिण भारत में देखा जा सकता है. इस दिन पर भगवान हनुमान जी का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है. इस दिन पर मंदिरों में राम कथा के साथ साथ हनुमान जी के जन्म की कथाओं का श्रवण एवं पठन किया जाता है. इस दिन पर विशेष भंडारों का आयोजन होता है तथा हनुमान जी के निमित्त धार्मिक पूजा पाठ अनुष्ठान इत्यादि संपन्न किए जाते हैं.

हनुमान जयंती पूजन तिथि 

इस वर्ष 11 नवंबर के दिन हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाएगा. हनुमान जी को भगवान शिव के अवतार के रुप में भी पूजा जाता है. हनुमान जी का अवतरण श्री राम भक्त के रुप में होता है जिनके प्रयासों के द्वारा राम जी और सीता जी का मिलन संभव हो पाता है. हनुमान जी के जन्मोत्सव के दिन सभी भक्त भगवान के पूजन के साथ साथ इस दिन व्रत का भी पालन करते हैं. मान्यताओं के अनुसार कलियुग में हनुमान जी का पूजन शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है.

हनुमान जयंती महत्व 

कार्तिक माह में आने वाली हनुमान जयंती के दिन कई अन्य शुभ योग भी निर्मित होते हैं. इस समय पर ही भगवान शिव का पूजन करने का नियम मासिक शिवरात्रि के रुप में प्राप्त होता है. इसी समय के दौरान यम के निमित्त दीपदान की परंपरा भी रही है. इस दिन पर देवी काली का पूजन होता है. यह दिन तंत्र और मंत्र दोनों ही सिद्धियों हेतु विशिष्ट होता है. हनुमान भक्तों को आज के दिन हनुमान जी का पूजन पूरे विधि विधान से करना चाहिए. इस दिन भगवान को लाल सिंदूर तथा चोला अर्पित करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. हनुमान जयंती का यह दिवस समस्त प्रकार की आपदाओं से बचाता है तथा सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करके जीवन में सकारात्मकता को देने वाला माना गया है. एस्ट्रोलॉजर राजरानी

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