Road Construction : नौ साल में हुआ 50 हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण

Road
Construction of 50 thousand kilometer national highway in nine years
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 04:09 AM
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नई दिल्ली। देश में पिछले नौ साल में लगभग 50 हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण हुआ है। आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। देश में 2014-15 में राष्ट्रीय राजमार्ग कुल 97,830 किलोमीटर था, जो मार्च, 2023 तक बढ़कर 1,45,155 किलोमीटर हो गया है।

Road Construction

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हर दिन 28.6 किलोमीटर सड़क का निर्माण

आंकड़ों के अनुसार, 2014-15 में प्रतिदिन 12.1 किलोमीटर सड़क निर्माण से 2021-22 में देश में सड़क निर्माण की रफ्तार बढ़कर 28.6 किलोमीटर प्रतिदिन हो गई है। सड़क और राजमार्ग की किसी देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सड़क परिवहन न केवल आर्थिक विकास बल्कि सामाजिक विकास, रक्षा क्षेत्रों के साथ-साथ जीवन की बुनियादी चीजों तक पहुंच का आधार है। एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रति वर्ष लगभग 85 प्रतिशत यात्री और 70 प्रतिशत माल ढुलाई सड़क मार्ग से होती है। इससे राजमार्गों के महत्व का पता चलता है। भारत में लगभग 63.73 लाख किमी सड़क नेटवर्क है, जो दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा है।

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Punjab News: शांति भंग करने की कोशिश की तो कानूनी कार्रवाई : मान

आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं राजमार्ग

राष्ट्रीय राजमार्ग माल और यात्रियों की कुशल आवाजाही, लोगों को जोड़ने और आर्थिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाकर देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत सरकार ने देश में राष्ट्रीय राजमार्ग ढांचे की क्षमता बढ़ाने के लिए पिछले नौ साल में कई कार्यक्रम लागू किए हैं। भारतमाला परियोजना के तहत 1,386 किलोमीटर के देश के सबसे बड़े एक्सप्रेसवे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का विकास किया जा रहा है, जिसका दिल्ली-दौसा-लालसोट खंड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र को समर्पित कर चुके हैं। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
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Punjab News: शांति भंग करने की कोशिश की तो कानूनी कार्रवाई : मान

Bhagwant mann
Punjab News
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 05:12 AM
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Punjab News / चंडीगढ़। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने खालिस्तान समर्थक अलगाववादी अमृतपाल सिंह के गिरफ्तार होने के बाद रविवार को कहा कि शांति एवं सौहार्द भंग करने की कोशिश करने वाले लोगों को कानून के अनुसार कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

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मान ने अमृतपाल को पकड़ने के लिए 30 दिन से अधिक समय तक चले अभियान के दौरान राज्य में शांति बनाए रखने के लिए पंजाब के लोगों का भी आभार जताया।

मान ने एक वीडियो संदेश में कहा कि आज, 35 दिन बाद अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।

उन्होंने कहा कि जो लोग शांति एवं सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करेंगे और देश का कानून तोड़ेंगे, उन पर कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। हम किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान नहीं करेंगे। हम बदले की राजनीति नहीं करते।

मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं इन 35 दिनों के दौरान शांति एवं सौहार्द बनाए रखने के लिए पंजाब के 3.5 करोड़ लोगों का आभार जताता हूं।

अमृतपाल को आज सुबह मोगा जिले के रोडे गांव से गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने बताया कि उसे घेर लिया गया था जिससे उसके फरार होने की कोई गुंजाइश नहीं थी। उसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत असम के डिब्रूगढ़ ले जाया गया है।

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Nagar Nikay Chunav 2023: सपा की दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश

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Nagar Nikay Chunav 2023
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 02:15 AM
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Nagar Nikay Chunav 2023: लखनऊ। उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (SP) नगर निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) को कड़ी चुनौती देने के लिए अपने परंपरागत मुस्लिम और यादव मतों के साथ ही विस्तार की रणनीति पर कार्य करते हुए दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को साधने की फिर से कोशिश करती दिख रही है।

Nagar Nikay Chunav 2023

अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में नगर निकाय चुनाव राजनीतिक दलों के जनाधार परखने की एक खास कसौटी है और 2024 के लक्ष्य को ही ध्‍यान में रखते हुए राजनीतिक दल अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं। इस नये राजनीतिक समीकरण में दलितों के उभरते नेता और आजाद समाज पार्टी (एएसपी) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

दिसंबर में अखिलेश ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में यदि सपा सत्ता में आयी तो तीन महीने के अंदर जातीय जनगणना करायेगी।

पिछले वर्ष सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उनके प्रतिनिधित्व वाली मैनपुरी संसदीय सीट पर उपचुनाव में सभी मतभेदों को भुलाकर पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव अपने भतीजे अखिलेश यादव के साथ मिलकर सत्तारूढ़ दल को चुनौती देने को खड़े हुए तो सपा को भी अपनी ताकत में इजाफा होने का अहसास हुआ। इस उपचुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की जीत ने इस पर मुहर भी लगाई।

2017 में निकाय चुनाव में खाता नहीं खोल सकी थी सपा

सपा 2017 के नगर निकाय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और 16 महापौर सीटों में से किसी पर भी खाता नहीं खोल सकी थी। जहां भाजपा ने नगर निगमों के महापौर की 14 सीटें जीती थीं, वहीं बसपा को दो सीटें मिली थीं। पिछले चुनावों से उलट अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव इस बार साथ हैं और पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हैं।

सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने कहा, "हम (अखिलेश और शिवपाल) पार्टी द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार एक साथ प्रचार करेंगे।"

प्रयागराज में 15 अप्रैल की रात पुलिस अभिरक्षा में पूर्व सांसद अतीक अहमद और उनके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ की हत्या भाजपा के खिलाफ मुस्लिम वोटों को मजबूत करने में मदद कर सकती है और सपा को फायदा हो सकता है।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इसकी तस्दीक करते हुए कहा "निश्चित रूप से, जिस तरह से दोनों को मारा गया, वह संदेह पैदा करता है। आशंका थी कि वे मारे जा सकते हैं, लेकिन सरकार ने कोई उपाय नहीं किया। हम धर्म की राजनीति नहीं करते हैं, लेकिन राज्य के मुस्लिम सपा के साथ थे और रहेंगे।"

जातीय जनगणना की मांग हो सकती मददगार

जातीय जनगणना की मांग को लेकर पूरे राज्य में पार्टी का अभियान भी इन चुनावों में सपा के लिए मददगार हो सकता है, क्योंकि नेता पार्टी के उम्मीदवारों के लिए ओबीसी वोटों की उम्मीद कर रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधान परिषद सदस्य राजपाल कश्यप ने कहा, "हमारी एकमात्र पार्टी है जिसने जातीयत जनगणना की मांग करते हुए जमीन पर काम किया। हमारा अभियान बहुत सफल रहा और लोगों ने इसका समर्थन किेया। यह चुनाव का समय है और यह निश्चित रूप से पार्टी उम्मीदवारों के लिए मददगार साबित होगा।"

कश्यप समाजवादी पार्टी के पिछड़ा मोर्चा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्‍यक्ष हैं और उन्‍होंने जातीय जनगणना के मामले को लेकर प्रदेश व्यापी दौरा भी किया था।

दूसरी तरफ सपा मायावती के कोर दलित वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही है और आक्रामक रूप से खुद को इस समुदाय के हमदर्द के रूप में दिखा रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि बसपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 22 फीसदी से ज्‍यादा मत हासिल करते हुए राज्य की 403 सीटों में से 19 पर जीत हासिल की थी, जबकि 2022 में उसके मतों का ग्राफ नीचे गिरकर 12 प्रतिशत से कुछ अधिक ही रहा और सिर्फ एक सीट पर जीत मिली।

दलितों को मुहिम के तौर पर साधने की पहल

बसपा के परंपरागत मतों में कमी देखते हुए सपा ने दलितों को मुहिम के तौर पर साधने की पहल की और अंबेडकर जयंती पर 14 अप्रैल को अखिलेश यादव अपने चंद्रशेखर आजाद के साथ बाबा साहब के जन्म स्थल महू (मध्य प्रदेश) में श्रद्धांजलि अर्पित करने भी गये थे। इसी महीने के प्रारंभ में अखिलेश यादव ने दलित नेता कांसीराम की मूर्ति का अनावरण किया था।

राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस ने कहा कि कांशीराम की प्रतिमा के अनावरण से लेकर महू (एमपी) में डॉ भीम राव आंबेडकर के जन्मदिन में शामिल होने तक, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने दलितों को सपा को अपनी पसंद मानने का विकल्प देने की कोशिश की।

अखिलेश यादव, रालोद प्रमुख जयंत चौधरी और आज़ाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे पश्चिम उप्र में दलित वोटों पर प्रभाव रखते हैं, एक साथ भाजपा के खिलाफ हैं।

कलहंस ने कहा कि 2017 में राज्य में महापौर के 16 पदों में से कुल 213 उम्मीदवार मैदान में थे और केवल 18 ही अपनी जमानत बचा सके। उन्होंने कहा कि शहरी इलाकों में भाजपा का गढ़ होने की वजह से सपा-कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई और ज्यादातर सीटों पर सभी की जमानत जब्त हो गई।

2024 के चुनाव से पहले लोगों का रुझान भांपना

उन्होंने कहा कि इस बार महापौर पद की 17 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं और सपा ने स्थानीय जनसांख्यिकी सहित सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए अच्छे उम्मीदवार उतारे हैं। कलहंस ने कहा कि यह सिर्फ चुनावी जीत और हार का ही मसला नहीं है बल्कि एक आकलन भी है और सपा का मुख्‍य उद्देश्‍य 2024 के चुनावों से पहले लोगों की रुझान को भांपना और अपने मतों में इजाफा करना भी होगा। उन्होंने कहा कि भले ही वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाये, पर वह इस चुनाव से सबक लेते हुए अपनी रणनीति फिर से तैयार कर सकती है।

राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में 16 महापौर सीटों में से 10 सीटों पर सपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई, जबकि कांग्रेस और बसपा उम्मीदवारों की 11-11 सीटों पर जमानत जब्त हुई। नामांकन के समय हर उम्मीदवार एक निश्चित राशि जमा करता है। यदि वह कुल वैध मतों का 1/6 प्राप्त करने में विफल रहता/रहती है, तो उसकी जमानत जब्त कर ली जाती है। यदि वह 1/6 से अधिक वोट प्राप्त करता है तो जमा राशि वापस कर दी जाती है। उम्मीदवार की मृत्यु, नामांकन रद्द या वापस लेने की स्थिति में भी राशि वापस कर दी जाती है।

घर घर दस्तक देने का फैसला

पिछले रिकॉर्ड को देखें तो महापौर और अध्यक्ष के कुल 652 पदों पर सपा के उम्मीदवारों की 51.19 फीसदी सीटों पर, बसपा की 73.35 फीसदी सीटों पर और 86.97 फीसदी सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है। भाजपा ने 184 सीटों में बहुमत हासिल किया और उसके उम्मीदवार 38.94 सीटों पर हारे भी, जबकि भाजपा के पास स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य हैं और उन्होंने "घर-घर दस्तक" देने का फैसला किया है। सपा अपने पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव पर निर्भर होगी।

शिवपाल सिंह यादव ने कहा, "पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को उनके संबंधित क्षेत्रों में पहले ही जिम्मेदारियां दी जा चुकी हैं। हम नगरीय निकाय चुनाव जीतने में निश्चित रूप से सफल होंगे।"

नगर निकाय चुनावों में सपा की पैठ बनाने के प्रयासों के बारे में पूछे जाने पर, भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने कहा, "लोग ट्रैक रिकॉर्ड देखते हैं। जब राज्य में सपा की सरकार थी तो उसने अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों के लिए कुछ नहीं किया। 2012 से 2017 के बीच वास्तव में सपा शासन में दलित अत्याचार के सबसे अधिक मामले देखे गए थे। और सच यह भी है कि नगर निकाय चुनाव में सपा कभी भी दौड़ में नहीं रहती है।' Nagar Nikay Chunav 2023

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