खजुराहो मामले में गुस्सा या गुस्ताखी? कोर्ट की मर्यादा तार-तार करने वाले वकील कौन?

कौन हैं राकेश किशोर? Who is Rakesh Kishore?
राकेश किशोर दिल्ली के मयूर विहार इलाके में रहने वाले एक वरिष्ठ वकील हैं। वे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, शाहदरा बार एसोसिएशन, और दिल्ली बार काउंसिल के पंजीकृत सदस्य हैं। उन्होंने 2009 में दिल्ली बार काउंसिल में नामांकन कराया था और लंबे समय से विभिन्न बार संगठनों से जुड़े रहे हैं।क्यों फेंका जूता?
यह घटना सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर 1 में उस समय हुई जब एक नियमित सुनवाई चल रही थी। मामला मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में क्षतिग्रस्त विष्णु मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़ा था। कुछ सप्ताह पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान CJI गवई की "जाओ और भगवान से पूछो" जैसी एक टिप्पणी को लेकर काफी विवाद हुआ था। इसी संदर्भ में राकेश किशोर ने आक्रोशित होकर जूता फेंकने की कोशिश की और कोर्ट रूम में चिल्लाए , "भारत सनातन धर्म का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगा।"कोर्ट की कार्रवाई और प्रतिक्रिया
घटना के तुरंत बाद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें हिरासत में ले लिया और कोर्ट रूम से बाहर कर दिया गया। हालांकि, उन्हें बाद में कोर्ट परिसर में ही रिहा कर दिया गया। इस शर्मनाक कृत्य के बावजूद CJI गवई ने शांति बनाए रखी और कहा, "ये चीजें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।" इसके बाद कोर्ट की कार्यवाही सामान्य रूप से जारी रही।बार काउंसिल की सख्त कार्रवाई
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। BCI अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने बयान जारी कर कहा कि अधिवक्ता का यह कृत्य न्यायालय की गरिमा और वकील के आचरण के मानकों के पूरी तरह खिलाफ है। BCI ने कहा, "ऐसा आचरण न केवल अनुशासनहीन है बल्कि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुंचाता है।" यह निलंबन अस्थायी है और मामले की आगे जांच जारी है।यह भी पढ़ें: जूता फेंक मामला: CJI गवई ने दिखाई उदारता, आरोपी वकील को मिली रिहाई
देशभर में हो रही है निंदा
इस घटना की देशभर में निंदा हो रही है। राजनीतिक दलों, कानूनी समुदाय और आम जनता ने भी इसे भारतीय लोकतंत्र की सबसे पवित्र संस्था न्यायपालिका के अपमान के रूप में देखा है। यह घटना न केवल एक अधिवक्ता की असंवेदनशीलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि लोकतंत्र में असहमति जताने का तरीका मर्यादित और संवैधानिक होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और निष्पक्षता को हर हाल में बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। Rakesh Kishorअगली खबर पढ़ें
कौन हैं राकेश किशोर? Who is Rakesh Kishore?
राकेश किशोर दिल्ली के मयूर विहार इलाके में रहने वाले एक वरिष्ठ वकील हैं। वे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, शाहदरा बार एसोसिएशन, और दिल्ली बार काउंसिल के पंजीकृत सदस्य हैं। उन्होंने 2009 में दिल्ली बार काउंसिल में नामांकन कराया था और लंबे समय से विभिन्न बार संगठनों से जुड़े रहे हैं।क्यों फेंका जूता?
यह घटना सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर 1 में उस समय हुई जब एक नियमित सुनवाई चल रही थी। मामला मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में क्षतिग्रस्त विष्णु मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़ा था। कुछ सप्ताह पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान CJI गवई की "जाओ और भगवान से पूछो" जैसी एक टिप्पणी को लेकर काफी विवाद हुआ था। इसी संदर्भ में राकेश किशोर ने आक्रोशित होकर जूता फेंकने की कोशिश की और कोर्ट रूम में चिल्लाए , "भारत सनातन धर्म का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगा।"कोर्ट की कार्रवाई और प्रतिक्रिया
घटना के तुरंत बाद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें हिरासत में ले लिया और कोर्ट रूम से बाहर कर दिया गया। हालांकि, उन्हें बाद में कोर्ट परिसर में ही रिहा कर दिया गया। इस शर्मनाक कृत्य के बावजूद CJI गवई ने शांति बनाए रखी और कहा, "ये चीजें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।" इसके बाद कोर्ट की कार्यवाही सामान्य रूप से जारी रही।बार काउंसिल की सख्त कार्रवाई
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। BCI अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने बयान जारी कर कहा कि अधिवक्ता का यह कृत्य न्यायालय की गरिमा और वकील के आचरण के मानकों के पूरी तरह खिलाफ है। BCI ने कहा, "ऐसा आचरण न केवल अनुशासनहीन है बल्कि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुंचाता है।" यह निलंबन अस्थायी है और मामले की आगे जांच जारी है।यह भी पढ़ें: जूता फेंक मामला: CJI गवई ने दिखाई उदारता, आरोपी वकील को मिली रिहाई
देशभर में हो रही है निंदा
इस घटना की देशभर में निंदा हो रही है। राजनीतिक दलों, कानूनी समुदाय और आम जनता ने भी इसे भारतीय लोकतंत्र की सबसे पवित्र संस्था न्यायपालिका के अपमान के रूप में देखा है। यह घटना न केवल एक अधिवक्ता की असंवेदनशीलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि लोकतंत्र में असहमति जताने का तरीका मर्यादित और संवैधानिक होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और निष्पक्षता को हर हाल में बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। Rakesh Kishorसंबंधित खबरें
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