फिर सक्रिय होगा भाजपा का ‘सहयोग सेल

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar27 Nov 2025 06:09 PM
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राष्ट्रीय ब्यूरो। अगले साल सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं का असंतोष थामने के लिए भाजपा ने फिर से अपने ‘सहयोग सेल’ को सक्रिय करने का फैसला किया है। अगले सोमवार यानि 11 अक्टूबर से भाजपा मुख्यालय में यह सुविधा दोबारा से बहाल हो जाएगी,जहां केंद्रीय मंत्री पार्टी कार्यकर्ताओं की समस्याओं को सुनेंगे और मौके पर उनका निदान करेंगे।

उल्लेखनीय है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद ‘सहयोग सेल’ का गठन कर इसके माध्यम से कार्यकर्ताओं की समस्याओं को सुनने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। बारी-बारी से केंद्रीय मंत्री भाजपा मुख्यालय में बैठकर लोगों से मिलते थे और उनकी समस्याओं का निदान करते थे। हालांकि 2019 में मोदी के दोबारा सत्ता में आने के बाद से यह ‘सहयोग सेल’ निष्क्रिय हो गया था। लेकिन अब इसे फिर से चालू किया जा रहा है। रोस्टर से केंद्रीय मंत्री पार्टी मुख्यालय पहुंचते रहेंगे। सोमवार से दोबारा इसकी शुरुआत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया करेंगे। जबकि 12 अक्टूबर को यह दायित्व केंद्रीय कानूनमंत्री किरेन रिजिजू,13 अक्टूबर को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर और 14अक्टूबर को रेल एवं संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव निभाएंगे। सभी मंत्री अपने-अपने मंत्रालय से संबंधित समस्याओं को सुनेंगे और मौके पर ही उनका निदान करेंगे। इस दौरान उनके स्टॉफ के सदस्य भी सहयोग के लिए मौजूद रहेंगे।

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रेल का सफर होगा आसान, घट सकता है किराया

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar09 Oct 2021 02:25 PM
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नई दिल्ली। रेल में सफर करने वालों को जल्द ही राहत की खबर मिल सकती है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने इसके संकेत दिए हैं। रेलवे बोर्ड के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार त्योहारी सीजन के बाद रेलवे बोर्ड रेल के बढ़े हुए किराए में कटौती करने पर विचार कर रहा है। स्थित की समीक्षा कर जल्द ही इस पर कोई फैसला लिया जा सकता है। हालांकि त्योहारी सीजन रेलवे की कमाई का सीजन है। इसलिए फिलहाल इसमें किसी तरह के संशोधन की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। पर त्योहारी सीजन के बाद बोर्ड स्तर पर इस पर फैसला किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार बंद पड़ी ट्रेनों को चलाने को लेकर विस्तृत फीडबैक के बाद ही इस पर कोई फैसला होगा। इनमें वे ट्रेनें जो कोरोना काल से पहले भी कम यात्रियों के साथ चलती थीं, उन ट्रेनों को स्थायी तौर पर बंद किया जा सकता है या फेरे कम कर चलाने जैसे निर्णय लिए जा सकते हैं।

किराया कम होने के पीछे क्या है तर्क

जैसा कि हम जानते हैं, कोरोना की पहली लहर के बाद रेलवे ने 22 मार्च, 2021 को सभी ट्रेनों का परिचालन बंद कर दिया था। इसके बाद धीरे-धीरे कर ट्रेनों का परिचालन एक बार फिर शुरू किया गया। उस समय जो भी ट्रेनें चलाई गईं उन्हें स्पेशल का दर्जा दे दिया गया। अभी जितनी भी ट्रेनें चल रहीं हैं सब स्पेशल हैं। इन सभी ट्रेनों के नंबर के आगे 0 लगाकार चलाया जा रहा है। 0 नंबर स्पेशल ट्रेन की पहचान है। स्पेशल ट्रेनों का किराया अधिक होता है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो रेलवे स्पेशल का दर्जा समाप्त कर सकता है। अगर ऐसा होता है कि ट्रेनों का किराया स्वतः ही कम हो जाएगा।

समीक्षा के बाद होगा निर्णय

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन सुनीत शर्मा ने सभी जोनल मुख्यालय और रेल मंडलों के अधिकारियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की। उसी दौरान वे मीडिया से भी रूबरू हुए थे। इस वीडियो कांफ्रेंसिंग के बाद से ही रेल किराए को घटाए जाने और बंद ट्रेनों को एक बार फिर से चलाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि संभावित तीसरी लहर के मद्देनजर अगले दो-तीन माह अहम है। इसके बाद ही ट्रेनों के पूरी तरह से सामान्य होने या किराए से जुड़े निर्णय की संभावना है।

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कमज़ोर विपक्ष लोकतंत्र के लिए खतरा

Democracy
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 10:35 AM
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विनय संकोची

किसी भी देश में लोकतांत्रिक प्रणाली को जिंदा रखने के लिए मजबूत विपक्ष अनिवार्य घटक है। यह विपक्ष ही है जो लोकतंत्र की आधारभूत मान्यताओं को सत्यापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विपक्ष ही सरकार की अनियंत्रित और निरंकुश प्रवृत्ति पर अंकुश लगाता है। जनता की उचित आवश्यक मांगों को उपेक्षा का शिकार होने से बचाता है। सच तो यह है कि बिना विपक्ष की सक्रियता के कोई भी लोकतंत्र न तो स्वस्थ हो सकता है, न जिंदा ही रह सकता है।

भारत की लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली में विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका है। विपक्ष अपनी भूमिका का निर्वाह भी करता रहा है, कर रहा है। लेकिन वर्तमान सरकार न केवल विपक्ष की उपेक्षा, अनदेखी कर रही है, अपितु तरह-तरह से अपमानित करने का भी परोक्ष रूप से प्रयास करती रही है। सत्ताधारी विपक्ष को उतना महत्व नहीं दे रहे जितना उसे दिया जाना चाहिए।

1947 में आजादी मिलने के बाद जिस मजबूत विपक्ष की बेहद आवश्यकता थी, वह तब मौजूद नहीं था ऐसे में जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया ने मजबूत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कई फैसलों को चुनौती दी। 1953 में जेपी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया तब अकेले लोहिया ने ही विपक्ष क्या होता है और उसे क्या-क्या करना चाहिए इसका पाठ भारतीय लोकतंत्र को सिखाया-रटाया, जिसका परिणाम यह हुआ कि लोहिया के जीवित रहते कांग्रेसी सरकार कभी खुलकर मनमानी नहीं कर सकी।

आज स्थिति यह है कि संसद में किसी भी दल के पास विरोधी दल का दर्जा तक नहीं है। यही कारण है कि सरकार मनमर्जी के फैसले लेती है और विपक्ष के विरोधी स्वरों को अनसुना कर देती है कितने ही बिल पारित हो गए, जिन पर सरकार ने बहस कराने तक की आवश्यकता महसूस नहीं की। पहले विपक्ष का सम्मान सत्तापक्ष करता था और महत्वपूर्ण मामलों पर उसकी राय लेने में गुरेज नहीं करता था लेकिन आज ऐसा माहौल नहीं रहा है। कमजोर विपक्ष को कई महत्वपूर्ण निर्णय में शामिल ही नहीं किया जाता है। अचानक रात 8:00 बजे टीवी पर आकर प्रधानमंत्री नोटबंदी की घोषणा कर देते हैं, इतने बड़े फैसले में विपक्ष की सलाह लेने तक की जरूरत महसूस नहीं की गई। ऐसे तमाम उदाहरण पिछले 7 सालों की अवधि के मिल जायेंगे, जब सरकार ने विपक्ष को भाव न देकर मनमाने फैसले ले लिए। विपक्ष चिल्लाता रहा मगर उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गई, बेअसर।

इसमें संदेह नहीं है कि भारतीय राजनीति में विपक्ष की ताकत खो रही है। आज लगभग वैसी ही स्थिति है जैसी 1950 और 1960 के दशक में थी, जिसका प्रभाव 1970 के दशक में लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाले उन फैसलों से पड़ा, जो इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में लिए थे।

विपक्ष के कमजोर होते जाने के पीछे उसका मतदाताओं के बदलते सोच को न पहचान पाना भी है। भाजपा सरकार कहें या प्रधानमंत्री मोदी, अपनी चुनावी रणनीति से मतदाताओं को यह बताने-समझाने में सफल रहे कि वे जो कुछ कर रहे हैं, मतदाताओं के सपने पूरे करने के लिए ही कर रहे हैं। विकास ही उनका एजेंडा है।

विपक्ष मतदाताओं की नब्ज पकड़ने में असफल रहा है। विपक्ष समझ ही नहीं पा रहा कि मतदाता चाहता क्या है और उसकी चाहत को लेकर उसे किस तरह संतुष्ट किया जा सकता है। विपक्ष को लोकतंत्र को निरंकुश होने से बचाना है, तो उसे मतदाताओं की मनोभावना का सटीक आकलन करके अपनी रणनीति तैयार करनी होगी। यदि जल्दी ही विपक्ष ने स्वयं को मजबूत नहीं किया तो भारतीय लोकतंत्र तानाशाही का शिकार हो सकता है और इसके लिए दोषी विपक्ष को भी ठहराया जाएगा।