सुप्रीम फैसला : VVPAT से पर्ची मिलान की सभी याचिकाएं खारिज

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calendar01 Dec 2025 09:07 PM
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Supreme Court Rejects EVM-VVPAT: सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट वेरिफिकेशन  के मामले पर शुक्रवार, 26 अप्रैल को बड़ा फैसला सुनाया। दऱअसल कोर्ट ने वीवीपैट वेरिफिकेशन की मांग को लेकर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले से ईवीएम के जरिए डाले गए वोट की वीवीपैट की पर्चियों से शत-प्रतिशत मिलान की मांग को झटका लगा है। इस फैसले को जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षा वाली बेंच अपनी सहमति दी है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में इस बात को साफ कर दिया है कि मतदान ईवीएम मशीन से ही होगा। साथ ही ईवीएम-वीवीपैट का 100 फीसदी मिलान नहीं किया जाएगा। 45 दिनों तक वीवीपैट की पर्ची सुरक्षित रहेगी। ये पर्चियां उम्मीदवारों के हस्ताक्षर के साथ सुरक्षित रहेगी। कोर्ट ने सिंबल लोडिंग यूनिट सील करने का निर्देश दिया है।

Supreme Court Rejects EVM-VVPAT

ये VVPAT क्या है?

बता दें कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने साल 2013 में VVPAT यानी वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल मशीनों को डिजाइन किया था। ये दोनों वही सरकारी कंपनियां हैं, जो EVM यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें बनाकर तैयार करती है। VVPAT मशीनों का सबसे पहले इस्तेमाल साल 2013 के नागालैंड विधानसभा चुनाव के वक्त हुआ था। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों पर भी इस मशीन का इस्तेमाल किया गया था। बाद में 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में भी इनका इस्तेमाल हुआ। दऱअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार VVPAT मशीनों उपयोग देशभर में किया गया था। उस चुनाव में 17.3 लाख से ज्यादा VVPAT मशीनों को यूज किया गया। Supreme Court Rejects EVM-VVPAT

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दुनिया का पहला मंगलसूत्र भगवान शिव ने पहनाया था पार्वती को

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Mangalsutra
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calendar01 Dec 2025 08:06 PM
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Mangalsutra : भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक बयान के कारण मंगलसूत्र अचानक चर्चा का विषय बन गया है। हर कोई मंगलसूत्र की बात कर रहा है। ऐसे में मंगलसूत्र का इतिहास भी खूब तलाश किया गया है। भारतीय सनातन परंपरा की बात करें तो सबसे पहला मंगलसूत्र भगवान शिव ने माता पार्वती को पहनाया था। हम आपको बताते हैं मंगलसूत्र का पूरा इतिहास तथा मंगलसूत्र की मान्यता के विषय में।

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विवाह एक बड़ी परंपरा

मंगलसूत्र की बात करने से पहले विवाह की परंपरा को समझ लेते हैं। भारतीय सनातन परंपरा में जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच 16 संस्कारों का विधान है. इन 16 संस्कारों में विवाह संस्कार सबसे खास बना रहा है। यह दो परिवार के लिए उनका निजी उत्सव, उत्साह और समय के साथ-साथ संपन्नता को प्रदर्शित करने का भी एक जरिया रहा है। बल्कि राजाओं-महाराजाओं के युग में तो विवाह संस्कार कूटनीति का भी हिस्सा रहे हैं, इनके जरिए बिना किसी युद्ध और शक्ति प्रदर्शन के समाज को सांकेतिक भाषा में ही अपनी ताकत का अहसास करा दिया जाता था। इसलिए पौराणिक कथाओं में विवाहों के भी अलग-अलग प्रकार मिलेंगे. किसी ने स्वेच्छा से प्रेम विवाह किया तो उसे गंधर्व विवाह कहा गया, लड़के ने किसी लड़की को जबरन किडनैप करके उससे विवाह कर लिया तो उसे राक्षस विवाह कहा गया. माता-पिता ने वर का पूजन कर कन्यादान करते हुए उसका विवाह किया और वर-वधू दोनों को ही एक सूत्र में बांधा तो उसे प्रजापत्य विवाह कहा जाता है. आम तौर पर आजकल हम जिन हिंदू विवाहों में शामिल होते हैं, वे इसी तरह के प्रजापत्य विवाह के ही प्रकार हैं. इस विवाह में तीन बातें प्रमुख हैं. 1.कन्यादान, 2. फेरे और 3. सूत्र बंधन। पिता या भाई द्वारा लड़की का कन्यादान किए जाने के बाद, होने वाले पति-पत्नी अग्नि के फेरे लेते हैं और इसके बाद कन्या को पत्नी के तौर पर स्वीकारने के तौर पर पति उसकी मांग में सिंदूर भरता है और मंगलसूत्र पहनाता है. पौराणिक कथाओं में मांग में सिंदूर भरने का जिक्र तो मिलता है, लेकिन विवाह के पहचान की तौर पर किसी खास आभूषण के पहनाने का जिक्र नहीं मिलता है. हालांकि विवाहित स्त्रियों के पास स्त्री धन के तौर पर केशों से लेकर पांव की अंगुलियों तक के लिए कई तरह के आभूषण होते हैं, जो उन्हें विवाह में ही मिलते हैं और सभी मंगल प्रतीकों से ही जुड़े होते हैं। इन्हें धन की देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है, और इस तरह के आभूषणों में खुद पार्वती देवी विराजमान होती हैं, इसलिए ये सभी आभूषण अपने आप ही सुहाग और पतिव्रता की निशानी बन जाते हैं। ये जरूर है कि पुराण कथाओं में भी पतियों की ओर से पत्नियों को समय-समय पर आभूषण दिए गए, जो कि आज के दौर में उदाहरण बनते हुए सुहाग की निशानी बन गए हैं. जैसे श्रीराम ने सीता जी को मुंहदिखाई में चूड़ामणि दिया था. ये जूड़े के ऊपर मुकुट की तरह खोंसा जाने वाला एक आभूषण होता था, जो अब प्रचलित नहीं है. इसके अलावा उन्होंने सीता जी को अंगूठी भी पहनाई थी. अंगूठी भी आज भारतीय विवाह का एक प्रतीक आभूषण है, जिसे पति-पत्नी दोनों ही पहनते हैं। महाभारत में वर्णन मिलता है कि पांचों पांडवों ने द्रौपदी से विवाह करते हुए उसे अलग-अलग आभूषण दिए थे. जिनमें कर्ण फूल, कंठहार, कड़े, मणिबंध (कमर में बांधने वाली लड़ी) और मुंदरी (अंगूठी) शामिल थी. इसी तरह जब श्रीकृष्ण ने जब रुक्मिणी से विवाह किया था, तो उन्हें वनफूल की माला पहनाकर स्वीकार किया था। उत्तर प्रदेश और बिहार की विवाह परंपरा में जब किसी लड़की की शादी होने वाली होती है, तो वह उससे कुछ दिन पहले गौरी व्रत करके, गौरी पूजन करती है। मां गौरी, देवी पार्वती का ही अपर्णा स्वरूप हैं। कहानी के अनुसार, जब पार्वती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो वह शिवजी से विवाह करने की इच्छा लेकर उनकी तपस्या करने चली गईं। कठोर तप के कारण उन्होंने अन्न-जल भी त्याग दिया और अपर्णा कहलाईं. इस कठोर तप से शिवजी प्रसन्न हुए। सबसे पहले उन्होंने देवी को अनुपम सौंदर्य दिया, जिसके कारण वह गौरी कहलाईं, फिर उन्होंने इच्छित पति का वरदान दिया। लड़कियां गौरी मां का ये व्रत इसलिए करती हैं ताकि उन्हें भी शिवजी की तरह योग्य वर मिले और माता पार्वती की तरह वह भी उसमें निष्ठा रख सकें। इस व्रत की विधि में देवी पार्वती को लाल जोड़ा, चूड़ियां और हल्दी-कुमकुम और केसर से रंगा धागा अर्पित किया जाता है, जिसे प्रसाद के तौर महिलाएं पहनती हैं. लाल जोड़ा सौभाग्य लाता है, चूड़ियां सुहाग की निशानी होती हैं और हल्दी-कुमकुम का धागा पवित्र रिश्ते और उसकी अखंडता की निशानी होता है, जिसकी मान्यता मंगलसूत्र से ही मिलती-जुलती है. सीताजी ने भी गौरी मां का व्रत किया था और प्रसाद के तौर पर मां ने उन्हें अपनी ही माला उतारकर दे दी थी. संत तुलसीदास ने मानस में इसका जिक्र किया है।

दक्षिण भारत से आया मंगलसूत्र

मंगलसूत्र शब्द का जिक्र दक्षिण भारत में बहुत प्रमुखता से मिलता है। वहां विवाह को मंगलकल्याणम कहते हैं. यानी मांगलिक और कल्याणकारी कार्य। दक्षिण भारत की तमिल-तेलुगू संस्कृति में विवाह सबसे मंगलकारी और कल्याणकारी संस्कार है। यह संसार में प्रेम को स्थापित करता है और इसके साथ ही नए संसार के निर्माण की नींव भी बनता है। इसलिए यहां के विवाह में बहुत से ऐसे प्रतीकों का इस्तेमाल होता है, जिनके जरिए वर-वधू को विवाह की पवित्रता और उसका महत्व याद दिलाया जाता है, ताकि वे इसे सिर्फ शारीरिक जरूरत का जरिया न समझें।  तमिल विवाह परंपरा में सप्तपदी से पहले कन्या के हाथों में एक पीला धागा बांधा जाता है। ये पीला धागा उसके जीवन में आने वाले बदलावों का प्रतीक होता है, लेकिन जब हम तेलुगू की पारंपरिक विवाह व्यवस्था को देखते हैं तो हमें वहां, मंगलसूत्र की एक पूरी परंपरा मिलती है। इसमें सात डोरों के एक समूह को एक साथ मिलाकर हल्दी में डुबोकर रखा जाता है, फिर इसमें सोने की दो लटकन (पेंडेंट) जोड़ी जाती है. अब इससे बनी माला को शादी के समय सप्तपदी से पहले पति, अपनी पत्नी को गले में तीन गांठें बांधकर पहनाता है। ये तीन गांठें पहले तो यह तय करती हैं कि मंगलसूत्र ठीक से बंधा है और गिरेगा नहीं, और इन तीन गांठों को प्रेम, विश्वास और समर्पण की गांठें कहा जाता है। कहते हैं कि पति, पत्नी को इन तीनों का वचन देता है और पत्नी इन वचनों को याद रखते हुए खुद भी इनके पालन का वचन देती है।

भगवान शिव ने पहनाया पहला मंगलसूत्र

लोककथा है कि शिव ने जब पार्वती से विवाह किया तो उन्हें उनके पूर्व जन्म की याद आ गई। तब शिव को दुख हुआ कि काश सती अपने पिता के दक्ष यज्ञ में न जातीं तो उन्हें भस्म नहीं होना पड़ता और दूसरा कि अगर वहां मैं साथ होता तो शायद ये अनिष्ट नहीं होता, तब शिव ने हल्दी-चंदन के धागे में खुद की शक्ति बांधकर पार्वतीजी के गले में पहनाईं थीं और इस तरह तेलुगू विवाह परंपरा में इसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण हो गया। वैदिक परंपराओं का विकास भले ही उत्तर भारत में हुआ, लेकिन उनका जन्म दक्षिण भारत में ही माना जाता है. हमारी उत्तर भारतीय विवाह परंपरा की वैदिक रीतियां, मंत्र-ऋचाएं सभी प्राचीन तेलुगू परंपरा से ही निकली हैं, बस लोकाचार में स्थान के आधार पर इनके स्वरूप में थोड़ा बहुत बदलाव है, नहीं तो सभी तौर-तरीके एक जैसे ही हैं. इसलिए उत्तर भारत में भी मंगलसूत्र भले ही काले दाने और सोने की माला से बना दिखता है, लेकिन उसके पहनने-पहनाने का तरीका एक ही जैसा है। समय के साथ नजर न लगना, बुरी शक्तियों को दूल्हा-दुल्हन से दूर रखना और किसी ऊपरी बाधा आदि से बचाव ने ऐसा प्रभाव डाला कि मंगलसूत्र ने अपना रंग ही बदल लिया। उसके मूल में ही वही पीली डोरी शामिल है, लेकिन अब वह शुद्ध सोने की है, सोना पवित्र धातु है, वह लक्ष्मी का प्रतीक है, आरोग्य का वरदान है, इसके साथ ही काले दाने नकारात्मक शक्तियों को दूर करने वाले हैं और शिव स्वरूप हैं, लिहाजा मंगलसूत्र की भारतीय विवाह परंपरा में बड़ी मान्यता है।

विकास सर अचानक बन गए बहुत बड़े डाक्टर, बताई बड़ी बात

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विकास सर अचानक बन गए बहुत बड़े डाक्टर, बताई बड़ी बात

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Dr. Vikas Divyakirti
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Apr 2024 10:53 PM
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Dr. Vikas Divyakirti : "विकास सर" यह नाम आपने जरूर सुना होगा। नहीं सुना है तो हम बता देते हैं। "विकास सर" डा. विकास दिव्यकीर्ति (Dr. Vikas Divyakirti) का ही एक प्रचलित नाम है। डा. विकास दिव्यकीर्ति भारत में IAS तथा IPS अधिकारी बनने के लिए सबसे प्रसिद्ध कोचिंग सेंटर चलाते हैं। डा. विकास दिव्यकीर्ति के कोचिंग सेंटर का नाम दृष्टि IAS कोचिंग इंस्टीटयूट है। डा. विकास दिव्यकीर्ति को UPSC की पढ़ाई कराने वाला सबसे सफल अध्यापक माना जाता है। विकास के नाम के आगे डाक्टर शब्द जुड़ा हुआ है। वें PHD करने के कारण डाक्टर कहलाते हैं। इन दिनों डा. विकास दिव्यकीर्ति सचमुच के बड़े चिकित्सक यानि कि डाक्टर बन गए हैं।

Dr. Vikas Divyakirti

कैसे बने डा. विकास दिव्यकीर्ति बड़े डाक्टर

आपको पता है कि दुनिया में डायबिटीज एक बड़ी बीमारी है। अकेले भारत में करोड़ों मरीज डायबिटीज के बीमार हैं। इस बीमारी का असली कारण दुनिया का बड़े से बड़ा डाक्टर आज तक तलाश नहीं कर पाया। IAS तथा IPS की पढ़ाई कराने वाले डा. विकास दिव्यकीर्ति ने बड़ी आसानी से डायबिटीज का कारण सबको बता दिया है। डायबिटीज जैसी बीमारी का कारण बताने वाले डा. विकास दिव्यकीर्ति को सभी लोग अब बहुत बड़ा डाकटर बताने लगे हैं। इस प्रकार डा. विकास दिव्यकीर्ति एक गुरू, शिक्षक तथा कोच से सचमुच के डाक्टर भी बन गए हैं।

डा. विकास दिव्यकीर्ति ने बताया डायबिटीज का यह कारण

हाल ही में डा. विकास दिव्यकीर्ति ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक भाषण दिया था। उस भाषण में डा. विकास दिव्यकीर्ति ने बताया कि लगातार खतरनाक होती जा रही डायबिटीज बीमारी चीनी के खाने से नहीं होती है। डा. विकास दिव्यकीर्ति ने पूरे विस्तार के साथ बताया कि दरअसल डायबिटीज की बीमारी तनाव (स्ट्रैस) के कारण होती है। जो लोग अधिक से अधिक तनाव यानि स्ट्रैस लेते हैं उन्हें ही डायबिटीज की बीमारी पकड़ लेती है। चीनी खाने से डायबिटीज होने का कोई कारण ही नहीं है। डा. विकास दिव्यकीर्ति के इस भाषण का वीडियो खूब वायरल हुआ है। इस वीडियो के वायरल होने के बाद लोग "विकास सर" को असली डाक्टर कहने लगे हैं। तो इस प्रकार डा. विकास दिव्यकीर्ति शिक्षक के साथ ही साथ अब डाक्टर भी बन गए हैं।

खतरनाक है डायबिटीज

आपको बता दें कि डायबिटीज एक खतरनाक बिमारी है। भारत में तो डायबिटीज महामारी की तरह से फैल रही है। भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक नए शोध में डराने वाले आंकड़े सामने आए हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत तेजी से दुनिया का 'डायबिटीज कैपिटल' बनता जा रहा है। एक ताजा स्टडी में कहा गया कि 2019 में जहां भारत में डायबिटीज के सात करोड़ मरीज थे अब इस संख्या में 44% का उछाल आया है। शोध में कहा गया कि भारत की 15.3% आबादी (कम से कम 13.6 करोड़ लोग) प्री-डायबिटीज हैं। भविष्य में डायबिटीज होने के खतरे को प्री-डायबिटीज कहा जाता है। यह आंकड़ा पूर्व में डायबिटीज को लेकर लगाए गए अनुमानों से काफी अधिक है, जिसने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अनुमान लगाया था कि भारत में लगभग 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रसित होंगे जबकि शोध में डायबिटीज मरीजों का असल आंकड़ा 10.1 करोड़ सामने आया है। वहीं, WHO का अनुमान था कि 2.5 करोड़ प्री-डायबिटीज होंगे लेकिन असल आंकड़ा इससे काफी बड़ा है।

क्या है डायबिटीज ?

डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। यह तब होती है जब शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हार्मोन नहीं बना पाता या इंसुलिन का अच्छी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाता। इंसुलिन पैंक्रियाज द्वारा बनाया गया एक हार्मोन है जो कार्बोहाइड्रेट के टूटने से बने ग्लूकोज को ऊर्जा के लिए उपयोग करने में मदद करता है। डायबिटीज के लक्षण- बार-बार पेशाब आना, नींद पूरी होने के बाद भी थकान महसूस होना, बार-बार भूख लगना, वजन कम होना, आंखों की रोशनी कम होना और धुंधला दिखाई देना, घाव का जल्दी न भरना आदि।

कौन है डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति

आपको बता दें कि डॉ. विकास दिव्यकीर्ति इन दिनों भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय शिक्षकों में से एक हैं। डॉ. विकास दिव्यकीर्ति ने UPSC की परीक्षा पास करके एक आईपीएस के तौर पर भारत सरकार की सेवा शुरू की थी। कुछ समय बाद ही उन्होंने IPS जैसी महत्वपूर्ण नौकरी छोड़ दी थी। इन दिनों डॉ. विकास दिव्यकीर्ति छात्र-छात्राओं को UPSC की परीक्षा की तैयारी करवाते हैं। UPSC की कोचिंग के लिए उन्होंने दृष्टि के नाम से एक कोचिंग सेंटर दिल्ली में स्थापित कर रखा है। पढ़ाने का उनका सरल व अनोखा तरीका छात्र-छात्राओं को खूब पसंद आता है। डॉ. विकास दिव्यकीर्ति सोशल मीडिया पर खूब चर्चित चेहरा हैं। आए दिन उनकी कोई न कोई टिप्पणी वायरल होती ही रहती हैं। Dr. Vikas Divyakirti

दक्षिण भारत के इस लाडले बेटे ने पूरे भारत में कर दिया है कमाल, छा गया है लाल

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