JSW Cement IPO: निवेशकों में जबरदस्त जोश, बाजार में छा गया JSW ग्रुप




अगर आप सोचते हैं कि पैन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी आपके पास होना भारत की नागरिकता का पक्का सबूत है, तो जरा ठहरिए। बॉम्बे हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ये दस्तावेज़ सिर्फ़ पहचान और सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हैं, नागरिकता का कानूनी प्रमाण नहीं। ठाणे निवासी एक व्यक्ति ने अदालत में दलील दी थी कि उसके पास आधार, पैन, पासपोर्ट और वोटर आईडी—सभी वैध दस्तावेज़ हैं, जो आयकर, बैंक खातों, बिजली-पानी और व्यवसायिक पंजीकरण से भी जुड़े हैं। लेकिन पुलिस का आरोप है कि वह बांग्लादेशी नागरिक है और 2013 से भारत में रह रहा है। न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने कहा—ये कागज़ पहचान देते हैं, लेकिन नागरिकता अधिनियम, 1955 में तय मूल कानूनी कसौटियों को पूरा करने की गारंटी नहीं हैं। Citizenship of India
अदालत के मुताबिक, जब किसी पर विदेशी मूल का या जाली दस्तावेज़ इस्तेमाल करने का आरोप हो, तो केवल पहचान पत्रों के आधार पर नागरिकता तय नहीं की जा सकती। इसके लिए ठोस कानूनी सबूत ज़रूरी हैं, जैसे—
जन्म प्रमाणपत्र — जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत जारी, जिसमें जन्म स्थान और तारीख दर्ज हो।
10वीं व 12वीं के प्रमाणपत्र — कई मामलों में इन्हें भी वैध जन्म/नागरिकता प्रमाण माना जाता है।
डोमिसाइल प्रमाणपत्र — राज्य सरकार द्वारा जारी, जो किसी विशेष राज्य में स्थायी निवास की पुष्टि करता है।
पुराने सरकारी दस्तावेज़ — 1987 से पहले के भूमि आवंटन पत्र, पेंशन आदेश आदि।
भारतीय नागरिकता चार तरीकों से हासिल की जा सकती है—
जन्म से —
26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में जन्मा हर व्यक्ति, माता-पिता की नागरिकता चाहे जो हो, भारतीय माना जाएगा।
1 जुलाई 1987 से 3 दिसंबर 2004 के बीच जन्म पर, माता या पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना ज़रूरी।
3 दिसंबर 2004 के बाद जन्म के लिए, एक माता-पिता भारतीय और दूसरा अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए।
वंश से — भारत के बाहर जन्मा व्यक्ति, यदि माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक है, तो उसे नागरिकता मिल सकती है।
पंजीकरण से — भारतीय मूल का व्यक्ति, जो कम से कम सात साल से भारत में रह रहा हो, या भारतीय नागरिक से विवाहित हो और सात साल का निवास पूरा कर चुका हो, पंजीकरण से नागरिकता पा सकता है।
देशीयकरण से — कोई भी व्यक्ति, जो 12 साल से भारत में रह रहा हो और अधिनियम की तीसरी अनुसूची की शर्तें पूरी करता हो, देशीयकरण से नागरिकता प्राप्त कर सकता है। Citizenship of India
अगर आप सोचते हैं कि पैन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी आपके पास होना भारत की नागरिकता का पक्का सबूत है, तो जरा ठहरिए। बॉम्बे हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ये दस्तावेज़ सिर्फ़ पहचान और सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हैं, नागरिकता का कानूनी प्रमाण नहीं। ठाणे निवासी एक व्यक्ति ने अदालत में दलील दी थी कि उसके पास आधार, पैन, पासपोर्ट और वोटर आईडी—सभी वैध दस्तावेज़ हैं, जो आयकर, बैंक खातों, बिजली-पानी और व्यवसायिक पंजीकरण से भी जुड़े हैं। लेकिन पुलिस का आरोप है कि वह बांग्लादेशी नागरिक है और 2013 से भारत में रह रहा है। न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने कहा—ये कागज़ पहचान देते हैं, लेकिन नागरिकता अधिनियम, 1955 में तय मूल कानूनी कसौटियों को पूरा करने की गारंटी नहीं हैं। Citizenship of India
अदालत के मुताबिक, जब किसी पर विदेशी मूल का या जाली दस्तावेज़ इस्तेमाल करने का आरोप हो, तो केवल पहचान पत्रों के आधार पर नागरिकता तय नहीं की जा सकती। इसके लिए ठोस कानूनी सबूत ज़रूरी हैं, जैसे—
जन्म प्रमाणपत्र — जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत जारी, जिसमें जन्म स्थान और तारीख दर्ज हो।
10वीं व 12वीं के प्रमाणपत्र — कई मामलों में इन्हें भी वैध जन्म/नागरिकता प्रमाण माना जाता है।
डोमिसाइल प्रमाणपत्र — राज्य सरकार द्वारा जारी, जो किसी विशेष राज्य में स्थायी निवास की पुष्टि करता है।
पुराने सरकारी दस्तावेज़ — 1987 से पहले के भूमि आवंटन पत्र, पेंशन आदेश आदि।
भारतीय नागरिकता चार तरीकों से हासिल की जा सकती है—
जन्म से —
26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में जन्मा हर व्यक्ति, माता-पिता की नागरिकता चाहे जो हो, भारतीय माना जाएगा।
1 जुलाई 1987 से 3 दिसंबर 2004 के बीच जन्म पर, माता या पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना ज़रूरी।
3 दिसंबर 2004 के बाद जन्म के लिए, एक माता-पिता भारतीय और दूसरा अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए।
वंश से — भारत के बाहर जन्मा व्यक्ति, यदि माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक है, तो उसे नागरिकता मिल सकती है।
पंजीकरण से — भारतीय मूल का व्यक्ति, जो कम से कम सात साल से भारत में रह रहा हो, या भारतीय नागरिक से विवाहित हो और सात साल का निवास पूरा कर चुका हो, पंजीकरण से नागरिकता पा सकता है।
देशीयकरण से — कोई भी व्यक्ति, जो 12 साल से भारत में रह रहा हो और अधिनियम की तीसरी अनुसूची की शर्तें पूरी करता हो, देशीयकरण से नागरिकता प्राप्त कर सकता है। Citizenship of India

भारत में अवारा कुत्तों का मुद्दा अब एक गंभीर जनस्वास्थ्य, सड़क सुरक्षा और पर्यावरणीय चुनौती बन चुका है। अनुमान है कि देशभर में करीब 6 करोड़ कुत्ते सड़कों पर घूमते हैं, जो हर साल लाखों लोगों पर हमला करते हैं और हजारों मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। रेबीज जैसी घातक बीमारी के चलते भारत को दुनिया की ‘रेबीज राजधानी’ कहा जाने लगा है। लेकिन इन कुत्तों को शहरों और कस्बों से हटाने की प्रक्रिया उतनी आसान नहीं जितनी लगती है। वैज्ञानिक इसे "वैक्यूम इफेक्ट" कहते हैं—एक ऐसी स्थिति जिसमें किसी क्षेत्र से कुत्तों को हटाते ही खाली पड़ी जगह और आसानी से मिलने वाला भोजन नए कुत्तों को आकर्षित कर लेता है। नतीजा—समस्या वहीं की वहीं लौट आती है। Stray Dogs
जब किसी इलाके से कुत्तों को हटाया जाता है, तो वहां मौजूद भोजन के स्रोत—जैसे खुले में पड़ा कचरा—खाली जगह के साथ मिलकर नए कुत्तों के लिए चुंबक की तरह काम करता है। इसीलिए विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि कचरा प्रबंधन और भोजन के स्रोतों पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो महज हटाने की कोशिश नाकाम हो जाएगी।
सड़क हादसे: अवारा कुत्ते देश में सड़क दुर्घटनाओं का बड़ा कारण हैं।
पर्यावरण पर चोट: रोजाना करीब 30,000 टन जहरीला मल सड़कों पर गिरता है, जो मिट्टी और पानी दोनों को प्रदूषित करता है।
वन्यजीव संकट: ये कुत्ते कई जंगली प्रजातियों पर हमला कर उनके अस्तित्व को खतरे में डालते हैं।
बीमारियों का फैलाव: मल और कचरा फैलाने से चूहे व अन्य रोगवाहक जीव पनपते हैं।
पहले, कानून के तहत अवारा कुत्तों को पकड़कर नसबंदी, टीकाकरण या मानवीय ढंग से मारने की इजाजत थी। लेकिन 2001 के ABC नियम और उसके बाद के संशोधन ने फोकस केवल नसबंदी और टीकाकरण पर रखा—जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं दी। पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) की नीतियां कई बार अवारा कुत्तों के खतरों को कम करके दिखाती हैं और सार्वजनिक स्थानों पर इन्हें खाना खिलाने को बढ़ावा देती हैं, जो विशेषज्ञों के मुताबिक समस्या की जड़ को और मजबूत करता है।
कचरा प्रबंधन: जब तक कचरा हटेगा नहीं, वैक्यूम इफेक्ट रुकेगा नहीं।
जनजागरूकता: लोगों को यह समझाना कि सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाना खतरा बढ़ाता है।
संपूर्ण नसबंदी और पुनर्वास: पकड़े गए कुत्तों को सुरक्षित आश्रयों में रखा जाए।
स्वास्थ्य और सुरक्षा प्राथमिकता: नीतियों का फोकस सिर्फ पशु अधिकार नहीं, बल्कि इंसानों की सुरक्षा भी हो। Stray Dogs
भारत में अवारा कुत्तों का मुद्दा अब एक गंभीर जनस्वास्थ्य, सड़क सुरक्षा और पर्यावरणीय चुनौती बन चुका है। अनुमान है कि देशभर में करीब 6 करोड़ कुत्ते सड़कों पर घूमते हैं, जो हर साल लाखों लोगों पर हमला करते हैं और हजारों मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। रेबीज जैसी घातक बीमारी के चलते भारत को दुनिया की ‘रेबीज राजधानी’ कहा जाने लगा है। लेकिन इन कुत्तों को शहरों और कस्बों से हटाने की प्रक्रिया उतनी आसान नहीं जितनी लगती है। वैज्ञानिक इसे "वैक्यूम इफेक्ट" कहते हैं—एक ऐसी स्थिति जिसमें किसी क्षेत्र से कुत्तों को हटाते ही खाली पड़ी जगह और आसानी से मिलने वाला भोजन नए कुत्तों को आकर्षित कर लेता है। नतीजा—समस्या वहीं की वहीं लौट आती है। Stray Dogs
जब किसी इलाके से कुत्तों को हटाया जाता है, तो वहां मौजूद भोजन के स्रोत—जैसे खुले में पड़ा कचरा—खाली जगह के साथ मिलकर नए कुत्तों के लिए चुंबक की तरह काम करता है। इसीलिए विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि कचरा प्रबंधन और भोजन के स्रोतों पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो महज हटाने की कोशिश नाकाम हो जाएगी।
सड़क हादसे: अवारा कुत्ते देश में सड़क दुर्घटनाओं का बड़ा कारण हैं।
पर्यावरण पर चोट: रोजाना करीब 30,000 टन जहरीला मल सड़कों पर गिरता है, जो मिट्टी और पानी दोनों को प्रदूषित करता है।
वन्यजीव संकट: ये कुत्ते कई जंगली प्रजातियों पर हमला कर उनके अस्तित्व को खतरे में डालते हैं।
बीमारियों का फैलाव: मल और कचरा फैलाने से चूहे व अन्य रोगवाहक जीव पनपते हैं।
पहले, कानून के तहत अवारा कुत्तों को पकड़कर नसबंदी, टीकाकरण या मानवीय ढंग से मारने की इजाजत थी। लेकिन 2001 के ABC नियम और उसके बाद के संशोधन ने फोकस केवल नसबंदी और टीकाकरण पर रखा—जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं दी। पशु कल्याण बोर्ड ऑफ इंडिया (AWBI) की नीतियां कई बार अवारा कुत्तों के खतरों को कम करके दिखाती हैं और सार्वजनिक स्थानों पर इन्हें खाना खिलाने को बढ़ावा देती हैं, जो विशेषज्ञों के मुताबिक समस्या की जड़ को और मजबूत करता है।
कचरा प्रबंधन: जब तक कचरा हटेगा नहीं, वैक्यूम इफेक्ट रुकेगा नहीं।
जनजागरूकता: लोगों को यह समझाना कि सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाना खतरा बढ़ाता है।
संपूर्ण नसबंदी और पुनर्वास: पकड़े गए कुत्तों को सुरक्षित आश्रयों में रखा जाए।
स्वास्थ्य और सुरक्षा प्राथमिकता: नीतियों का फोकस सिर्फ पशु अधिकार नहीं, बल्कि इंसानों की सुरक्षा भी हो। Stray Dogs