Manipur Violence : इंफाल ईस्ट के इथम से सेना जब्त किए गए हथियारों के साथ रवाना

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Army leaves from Itham in Imphal East with seized weapons
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 12:15 AM
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इंफाल/कोलकाता। इंफाल ईस्ट के इथम गांव में महिलाओं के नेतृत्व वाली भीड़ और सुरक्षा बलों के बीच गतिरोध के बाद सेना ने नागरिकों की जान जोखिम में न डालने का परिपक्व फैसला लिया। उसके बाद सेना बरामद किए गए हथियारों व गोला-बारूद के साथ वहां से हट गई। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।

Manipur Violence

गांव में छिपे थे केवाईकेएल के 10 सदस्य सुरक्षा बलों ने इथम गांव को घेर लिया था, जहां प्रतिबंधित उग्रवादी समूह कांगलेई योल कान-ना लुप (केवाईकेएल) के 10 से अधिक सदस्य छिपे हुए थे। इस कार्रवाई के बाद भीड़ और सैनिकों के बीच गतिरोध उत्पन्न हो गया था। अधिकारियों ने बताया कि केवाईकेएल एक मेइती उग्रवादी समूह है, जो 2015 में छह डोगरा इकाई पर घात लगाकर किए गए हमले सहित कई हमलों में शामिल रहा है। इथम में गतिरोध शनिवार को पूरे दिन चलता रहा, हालांकि महिलाओं के नेतृत्व वाली उग्र भीड़ के खिलाफ बल के इस्तेमाल और उससे लोगों के हताहत होने की बात को ध्यान में रखते हुए अभियान के कमांडर द्वारा परिपक्व निर्णय लिए जाने के बाद यह सामप्त हो गया।

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जब 1,500 लोगों की भीड़ ने सेना को घेरा अधिकारियों के मुताबिक, गांव में छिपे लोगों में स्वयंभू लेफ्टिनेंट कर्नल मोइरांगथेम तंबा उर्फ उत्तम भी शामिल था, जो एक वांछित उग्रवादी है और जिसे डोगरा हमले का मुख्य साजिशकर्ता माना जाता है। उन्होंने बताया कि इथम में महिलाओं के नेतृत्व में 1,500 लोगों की भीड़ ने सेना की टुकड़ी को घेर लिया था, और उसे अभियान को अंजाम देने से रोका था। सुरक्षा बलों ने बार-बार आक्रामक भीड़ से उन्हें कानून के तहत कार्रवाई करने देने की अपील की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद सेना ने मणिपुर में व्याप्त अशांति के कारण जानमाल के अतिरिक्त नुकसान से बचने के लिए वहां से हटने का निर्णय किया।

Manipur Violence

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हिंसा में अब तक जा चुकी है 100 से अधिक लोगों की जान मणिपुर में मेइती और कुकी समुदाय के बीच मई की शुरुआत में भड़की जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं। मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेइती समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह मुख्यत: पर्वतीय जिलों में रहती है। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
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आज से ठीक 48 साल पहले भारत में हुआ था लोकतंत्र का चीरहरण, कभी नहीं भुलाया जा सकता यह दिन Emergency 1975

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Emergency 1975
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 05:11 PM
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Emergency 1975 : आज से ठीक 48 वर्ष पहले 25 जून 1975 को भारत भारत में लोकतंत्र का चीरहरण हुआ था। वह आज का ही दिन था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए देश को आपातकाल यानि इमरजेंसी (Emergency) लगा दी थी। इस तारीख यानि 25 जून को भारत का इतिहास कभी भुला नहीं सकता। वह आज का ही दिन था, जब उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से संविधान के आर्टिकल 352 के आधार पर आपात काल लगाने वाले आदेश पर हस्ताक्षर कराए थे। इस बात की भनक उस समय की कैबिनेट तक को नहीं लगने दी गई थी। रात के ठीक 12 बजे राष्ट्रपति से गुपचुप ढंग से हस्ताक्षर कराकर 26 जून को सुबह सुबह आकाशवाणी पर इंदिरा गांधी ने यह घोषणा कर दी कि देश में आपातकाल लगा ​दिया गया है। तर्क यह दिया गया कि देश की सुरक्षा को खतरा है, इस कारण देश में इमरजेंसी लागू कर दी गई है।

Emergency 1975

हो गया था एक ही एक ही व्यक्ति का शासन

26 जून 1975 की सुबह जैसे ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आल इंडिया रेडियो के स्टूडियो से आपातकाल की घोषणा की तो वैसे ही पूरे देश में अफरा तफरी मच गई थी। लोग बुरी तरह डर गए थे। चारों तरफ एक ही सवाल था कि अब क्या होगा ? उस समय देश की जनता आपातकाल का मतलब ही नहीं समझती थी। अगले कुछ दिनों में जनता को समझ में आया कि आजादी के 25 वर्षों में वें जिस लोकतंत्र में जी रहे थे, इंदिरा गांधी ने उस लोकतंत्र को एक ही झटके में समाप्त कर दिया है। अब केवल एक ही व्यक्ति की सत्ता रह गई थी और वह थी स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। केवल उन्हीं का आदेश देश में चल रहा था।

सेना को लगाया गया मोर्चें पर

इमरजेंसी लागू होते ही देश की सेना को इस काम पर लगा दिया गया कि कहीं से भी कोई विरोध का स्वर उठे तो उसे जबरन दबाना है। जो भी नेता अथवा संगठन इमरजेंसी के विरोध में बोला उसे तुरंत गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। जो नहीं भी बोले उन्हें भी शांति भंग करने की आशंका में जेलों में ठूंस दिया गया। उस वक्त के सबसे उम्रदराज नेता जयप्रकाश नारायण तक को नहीं बख्शा गया। उन्हें भी जबरन उठाकर जेल में भेज दिया गया। सब जानते थे कि जयप्रकाश नारायण ने देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी फिर भी उनके उपर देशद्रोह का मामला तक दर्ज कर दिया गया।

देश के प्रत्येक समाचार पत्र के दफ्तर में सरकारी अधिकारी बैठा दिए गए। जो भी खबर समाचार पत्र में प्रकाशित होनी थी उसे पहले सरकारी अधिकारी को दिखाया जाता था। सरकारी अधिकारी यदि चाहता तो खबर प्रकाशित की जा सकती है तो की जाती थी अन्यथा खबर को रिजेक्ट कर दिया जाता था। उस समय देश के विदेशी पत्रकार भी मौजूद थे उन सभी विदेशी पत्रकारों को जबरन उनके देशों में वापस भेज दिया गया। गुपचुप ढंग से कुछ छोटे समाचार पत्रों ने इमरजेंसी के विरोध में लेख लिखे, उन समाचार पत्रों को न केवल बेन कर दिया गया बल्कि उनके मालिकों को उठाकर जेल में डाल दिया गया।

आजाद भारत की नालायक बेटी

उस समय अंग्रेजी के अखबार टाइम्स आफ इंडिया में वी.एस. वर्मा नाम के एक पत्रकार काम करते थे। उन्होंने एक लेख लिखा। लेख के हेडिंग का हिन्दी में अ​र्थ था 'आजाद भारत की नालायक बेटी'। इस लेख में इंदिरा गांधी की खुलकर आलोचना की गई थी। इस लेख के प्रकाशित होते ही अखबार के दफ्तर पर छापा पड़ा, कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया किंतु वी. एस. वर्मा गुपचुप ढंग से कार्यालय से फरार हो गए। इमरजेंसी समाप्त होने के बाद श्री वर्मा सार्वजनिक रुप से सामने आए और उन्होंने बताया कि जब पुलिस के अधिकारी व सेना के जवान उनके दफ्तर में छापा मारने पहुंचे तो वे सफाई कर्मी का वेश धारण करके एक सफाई की टोकरी सिर पर रखकर कार्यालय से फरार हो गए।

बाद में उन्होंने अपनी फरारी हरिद्वार, रिषीकेश एवं अल्मोडा आदि जगहों पर रहकर काटी। इस लेख के कारण अखबार के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई भी चली। इसी प्रकार के अनेक किस्से इमरजेंसी की कहानी बयां करते हैं। सबसे बड़ी समस्या तो यह थी कि एक तरफ तो इमरजेंसी चल रही थी और दूसरी तरफ जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर जबरन नसबंदी अभियान चलाया जा रहा था।

घरों से उठाकर कर दी जाती थी नसबंदी

आपातकाल का एक बेहद काला पक्ष यह भी था कि देश में जबरन नसबंदी करने का अभियान शुरू कर दिया गया। बाकायदा डाक्टरों को टारगेट दिए गए कि उन्हें एक दिन में 10 से 15 लोगों की नसबंदी करनी है। टारगेट पूरा न करने पर सजा की चेतावनी भी दी गई। फिर क्या था डाक्टरों ने बूढ़ा देखा न जवान, घरों से उठा उठाकर जबरन नसबंदी कर डाली। कई स्थानों पर तो पूरे गांव के गांव को पुलिस ने घेरकर गांव के सभी पुरुषों की नसबंदी करवा डाली। एक आंकडा बताता है कि इमरजेंसी के दौरान भारत में 50 लाख से अधिक लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई थी। जबरन नसबंदी की वजह से 5 हजार से अधिक लोगों की मौत भी हो गई थी।

चारों तरफ हा हाकार मचा हुआ था। इंदिरा गांधी उनके पुत्र संजय गांधी और हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंशी लाल इस पूरे नसबंदी अभियान का स्वयं संचालन कर रहे थे। तभी एक नारा भी बना था जो बाद के चुनाव में खुब जोर से चला। नारा यह था 'नसबंदी के तीन दलाल - इंदिरा, संजय, बंशी लाल' कुल मिलाकर देश के हालात बेहद भयावह थे। वह तो भला हो जयप्रकाश नारायण का कि तमाम विपरित परिस्थितियों में उन्होंने विपक्ष को एकजुट किया और लोकसभा का चुनाव कराकर इंदिरा गांधी को सिंहासन से उतार फेंका। उस चुनाव में एक और नारा गूंजा था वह नारा था 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'। Emergency 1975

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Bihar News : नाराज 'फूफा' की भूमिका में क्यों नजर आ रहे हैं केजरीवाल।

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Bihar News: Why is Kejriwal seen in the role of angry 'fufa'.
locationभारत
userचेतना मंच
calendar24 Jun 2023 09:12 PM
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  Bihar News :  बिहार की राजधानी पटना में शुक्रवार को तमाम विपक्षी दलों की महाबैठक हुई जिसमे एंटी-बीजेपी विपक्षी दलों के सभी बड़े चेहरे देखने को मिले तकरीबन 15 पार्टियों के नेता आए और एक साथ मिशन 2024 की हुंकार भरी गई। नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट है, इसका ढिंढोरा भी खूब पीटा गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी एकजुटता के लिए संयोजक की जिम्मेदारी दी गई हालांकि नीतीश इस किरदार को बहुत पहले से ही खुलकर निभा भी रहे हैं  । राजनीतिक इंजीनियरों का कहना कि अभी पटना में सिर्फ टीजर दिखा है अगले महीने शिमला में पूरी पिक्चर दिखाने का वादा भी हो गया । वहां पर कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी दल पटना मीटिंग से आगे की रणनीति को तय करेंगे।

Bihar News :

  लेकिन इसी बीच कुछ दिलचस्प किरदार भी सामने आए विपक्षी एकता आकार लेने से पहले ही ढहती हुई दिख रही है। आम आदमी पार्टी ने पटना मीटिंग के बाद हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस से खुदको अलग कर लिया फिर भी यहां तक तो ठीक था लेकिन आम आदमी पार्टी ने बयान जारी कर धमकी भी दे दी कि अगर उसकी बात नहीं मानी गई तो वह किसी भी ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी, खासकर जिसमें कांग्रेस होगी। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के तेवरों ने नीतीश कुमार की मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं । क्या चाहती है काँग्रेस  आम आदमी पार्टी चाहती है कि जितने भी विपक्षी दल है वे सब एक साथ आए और दिल्ली में नौकरशाही पर कंट्रोल को लेकर लाए गए केंद्र के अध्यादेश के विरोध में उसका साथ दे। क्योंकि अध्यादेश के बाद अरविंद केजरीवाल के मुंह का निवाला भी बीजेपी ने छीन लिया जो की सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए केजरीवाल ने शरद पवार, नीतीश कुमार, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, एमके स्टालिन समेत जितने भी विपक्ष के नेता है उन सबसे अलग-अलग मुलाकात कर उनका समर्थन मांगा था। हालांकि, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल को न तो मिलने का समय दिया और न ही अध्यादेश पर कुछ खुलकर बोला है यही बात केजरीवाल को पच नहीं रही है। पटना में विपक्ष की बैठक से पहले आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए धमकी दी कि अगर कांग्रेस ने संसद में अध्यादेश के विरोध का भरोसा नहीं दिया तो वह मीटिंग में नहीं शामिल होगी। इतना ही नहीं, मीटिंग में वह सबसे पहले अध्यादेश के मुद्दे पर ही चर्चा की मांग पर अड़ गए थे केजरीवाल । लेकिन उसे कोई भाव नहीं मिला। खैर, मीटिंग हुई तो उसमें अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान भी शामिल हुए। उन्हें उम्मीद थी कि मीटिंग में कांग्रेस अध्यादेश के मुद्दे पर चुप्पी तोड़ेगी और समर्थन का भरोसा देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद तो उसके सब्र का बांध मानो टूट ही गया और साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस से खुदको अलग कर लिया। पटना की बैठक के बाद विपक्ष के नेताओं ने संयुक्त रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। इसमें बाकी सभी चेहरे तो दिखे लेकिन जो चेहरा नहीं था वो था अरविंद केजरीवाल का। आम आदमी पार्टी का कोई भी नेता प्रेस वार्ता में नहीं सम्मलित हुआ। लेकिन अब सवाल ये है की उस प्रेस वार्ता ने दिखे तो डीएमके चीफ एमके स्टालिन भी नही । लेकिन चेन्नई पहुंचने के बाद कोई धमकी सुनने को नहीं मिली अरविंद केजरीवाल की तरह जिससे विपक्षी एकता को झटका लगे लेकिन बैठक से निकलने के बाद केजरीवाल की तरफ से एक धमकी भरा बयान आता है की जबतक कांग्रेस केंद्र के अध्यादेश की निंदा नहीं करती, तब तक उसके साथ पार्टी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकती। बयान में कहा गया, 'जबतक कांग्रेस सार्वजनिक तौर पर केंद्र के काले अध्यादेश का विरोध नहीं करती, ये ऐलान नहीं करती कि राज्यसभा में उसके सभी 31 सांसद इसका विरोध करेंगे, तब तक AAP भविष्य में समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों की ऐसी किसी बैठक में हिस्सा नहीं लेगी खासकर जिसमें कांग्रेस हो । हाला की बीजेपी जो इस महगठबंधन की बैठक को ठगबंधन और फोटो सेशन बता रही थी वो होता हुआ कही न कही नजर भी आया । आम आदमी पार्टी ने अपने बयान में कहा, 'पटना की मीटिंग में 15 पार्टियों ने हिस्सा लिया। इनमें से 12 पार्टियां ऐसी हैं जिनके राज्यसभा में भी सांसद हैं। लेकिन कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी पार्टियों ने अध्यादेश के खिलाफ साथ देने की इच्छा जाहिर की है और ऐलान किया है कि सब एक साथ मिलकर राज्यसभा में इस अध्यादेश का विरोध करेंगे। इस बयान के बाद केजरीवाल के शीर्ष नेताओं ने कहा की कांग्रेस और बीजेपी दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है किसी पर पूर्णतया यकीन नही किया जा सकता। ऐसे में जहां नीतीश कुमार खुदको विपक्षी एकजूटता का मुखिया समझ रहे है वही क्या केजरीवाल ने नीतीश के सपने पर पानी फेरने का काम कर दिया है देखना दिलचस्प रहेगा की नीतीश की अगली बाजी क्या होगी।

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