Article : अंगूर की बेटी दिल्ली की यूपी की

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar17 Mar 2023 06:18 PM
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अंजना भागी

Article : अंगूर की बेटी इस वर्ष ऐसे भी क्या तुम्हारे सुर्खाब के पंख निकल आए। तुमने तो आबकारी विभाग (Excise Department) को मालामाल कर दिया, राजस्व विभाग भी खुशहाल है। कहते हैं कि विभाग ने भी शराब ( Liquor) से संबन्धित बहुत से नियमों का सरलीकरण किया है। यही नहीं विभाग अधिक से अधिक राजस्व अर्जित करने के लिए नए से नये स्रोत भी विकसित कर रहा है और इसका असर अब दिखाई भी देने लगा है। जैसे की उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, वे नई डिस्टिलरियों की स्थापना करें। पहले से स्थापित डिस्टिलरियों की कार्य क्षमता में विस्तार करने के लिए जैसे कि अधिकाधिक माइक्रोब्रेवरी की स्थापना, नए सिस्टम पास, लाइसेंसी की स्वीकृति, रिटेल के अन्य शब्द, होम लाइसेंस इत्यादि प्रदान किए जाने की दिशा में बहुत मेहनत की जा रही है। शायद इसी का असर है -

Article :

मार्च 2023, होली (Holi) पर लगभग 60 करोड़ ( 60 Crores) की शराब गटक गए दिल्लीवासी! एक दिन में बिकी लगभग 26 लाख बोतलें। 2023 में एक मार्च से हर दिन 14 लाख से ज्यादा बोतलें बिकीं। 8 मार्च होली को ड्राइडे घोषित था। ऐसे में 6 मार्च को एक ही दिन में 58.8 करोड़ रुपये की लगभग 26 लाख बोतल शराब की बिक्री हो गई थी। राजधानी दिल्ली में आबकारी विभाग ने इस महीने 227 करोड़ रुपये की1.13 करोड़ शराब की बोतलें 6 मार्च तक ही बेच दी थीं। यहाँ तक की अधिकारियों को एस्टीमेट था कि केवल 7 मार्च को ही 20 लाख दारू की बोतलों की बिक्री हो सकती है।

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दिल्ली (Delhi) में फिलहाल में 560 शराब की दुकानें हैं। आम दिनों में जहां 12 से 13 लाख बोतलें रोजाना बिकती थीं। वहीं होली के मौके पर शनिवार, रविवार और सोमवार को ही शराब की सेल के आंकड़े बढक़र क्रमश: 15 लाख, 22 लाख और 26 लाख डेली हो गई थी। शराब विक्रेताओं (Liquor Vendors) को शायद इस बार अधिक बिक्री का अंदाजा भी था। इसीलिए होली से पहले ही जिन क्षेत्रों में 2 या 3 दुकानें थीं वहाँ गिनती 5 या 6 दुकानों या ठेकों तक पहुँच गई थी। कहते हैं किसी भी विद्यालय परिसर के आस-पास नशीले पदार्थों की दुकान नहीं होनी चाहिए। लेकिन अब तो यह सुविधा लगभग सभी जगह उपलब्ध है। इस साल दिल्ली ने शराब की बिक्री से 6,100 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया है। इस राशि में शराब की बोतलों पर उत्पाद शुल्क (एक्साइज) से 5,000 करोड़ रुपये और मूल्य वर्धित कर (वैल्यू ऐडेड टैक्स) के रूप में 1,100 करोड़ रुपये शामिल हैं। आबकारी विभाग के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में इस मार्च में राजस्व संग्रह कहीं बेहतर रहा है। 1 मार्च को शराब की 15.2 लाख बोतलें 27.9 करोड़ रुपये में बिकीं, 2 मार्च को 26.5 करोड़ रुपये की 14.6 लाख बोतलें, 3 मार्च को 31.9 करोड़ रुपये की 16.5 लाख बोतलें बिकी हैं। होली से पहले 4 मार्च को 35.5 करोड़ रुपये की 17.9 लाख बोतलें; 5 मार्च को 46.5 करोड़ रुपये की 22.9 लाख बोतलें और 6 मार्च को 26 लाख बोतलें बिकीं थीं । जिनकी कुल कीमत 58.8 करोड़ रुपये थी। शहर में अब भी 11 से 12 लाख बोतलों की दैनिक औसत बिक्री दर्ज की गई है। 1 मार्च से हर दिन 14 लाख या उससे अधिक बोतलें ही बेची गई हैं। देसी-विदेशी हर प्रकार कि दारू बिकी और लगभग 400 से 1000 रुपये प्रति बोतल वाली शराब अधिक खरीदी गई। इस वर्ष जुलाई तक बढक़र 1,710 करोड़ अधिक आय अर्जित करते हुए 12,874 करोड़ का राजस्व हासिल हुआ है। जो पिछले वर्ष की तुलना में 15.31 प्रतिशत अधिक है। राजस्व लक्ष्यों को पाने के लिए अब आबकारी विभाग निरंतर प्रयास करते हुए पूरी तरह से कटिबद्ध है। नोएडा/ग्रेटर नोएडा (Noida/Greater Noida) में कुल मिलाकर 549 शराब की दुकानें राजधानी दिल्ली से सटे हैं अच्छी हैं या जहां भी गली कूँचे में हैं बिना मुर्हूत या इनोऔगरैशन के खुल गईं और झक्कास व्यापार दे रही हैं। यूपी में भी ये ही सबसे अच्छी कमाऊ पूत हैं। खाली नोएडा/ग्रेटर नोएडा (Noida/Greater Noida) में ही 1 से 7 मार्च तक 14 करोड का व्यापार दिया। इतना ही नहीं लॉकडाउन के बाद इन दुकानों ने 300 करोड का व्यापार दे उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत की थी। गाजियाबाद में होली पर 39 करोड का व्यापार दिया। बिजनौर का आबकारी विभाग तो 27 करोड की सेल उठा मालामाल हो गया। कानपुर इनसे भी आगे 50 करोड की यानि देसी विदेशी दोनों .. हमें पीने दो, हमें जीने दो ...

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जो ज्ञानी होता है उसे समझाया जा सकता है। जो अज्ञानी होता है उसे भी समझाया जा सकता है। पर यदि कोई अभिमानी हो जाए तो उसे कोई नहीं समझा सकता। सिवाय वक्त के! यह भी सच है की अहंकार भी उसी को होता है जिसे बिना मेहनत के ही सब कुछ मिलने लग जाता है। मेहनत से सुख प्राप्त करने वाला व्यक्ति दूसरों की मेहनत का भी सम्मान करता है। आज-कल कुछ लोगों को नींद ही नहीं आती। क्या करें? दिन भर तो चारपाई पर लेटे हुए ही काटना होता है। रात में जब वे नहीं सोते तो बाकी घर वाले परेशान होते हैं। उनके फालतु शोर मचाने के कारण, रात में बेबात क्लेश करने के कारण या कारण जो भी हो। अब जो परिवार के लोग दिन भर काम करके आते हैं। आखिरकार आत्मसात कर ही लेते हैं कि इसे तो रोज पी कर ही सोना है। पीना इसकी मजबूरी है। ये भी क्या करें? सबके दिन आते हैं इनके भी आए हैं। कोरोना काल में कोई भूखा न रहे इसलिए सरकार ने व्यवस्था दी थी फ्री राशन की। जो कि एक वर्ष के लिए और बढा दी गई है। बाकी सामान तो हर रोज खरीदा नहीं जाता सिर्फ खाने का सामान ही हर रोज खरीदना होता है उसकी तो अब कोई चिंता ही नहीं है। इनके घर से इनकी औरतें जो सुबह ही कमाने निकलती हैं घरों में सहायिका के रूप में कार्य करती हैं। भोजन कपड़ा तथा अन्य सामान उन घरों से भी वे ले ही आती हैं। इनके घर की बेटियां भी नौकरी करने वालों के घर में अच्छी तनख्वाह पर उनके बच्चों की संभालने के काम पा जाती है। अब पुरुषों के पास यही काम रह जाता है घर में चारपाई पर सोना और टाइम पास (time pass) के लिए देसी-विदेशी (Domestic-Foreign) दारू  (Alcohol) पीना। ऐसे में होली तो एक अच्छा ‘मौका’ बन गई और पिछले सालों के सारे ही रिकॉर्ड तोड़ गई। लोगों का यह भी मानना है कि ये भी एक व्यवस्था सी ही बन गई है। सरकार फ्री में इनको खाने को राशन दे रही है। ये अपनी बचत दारू पीकर सरकार को अच्छा राजस्व दे लौटा देते हैं। पर ये अकेले नहीं हैं। इनके सहयोगी वे लोग भी हैं जो कि मल्टीनेशनल कंपनियों में मोटी तनख्वाह पर कार्यरत हैं या व्यापारी जो कि बहुत मोटा टैक्स भर इस व्यवस्था का बोझ ढो रहे हैं। उन्हें भी रातों को नींद नहीं आती कि यदि नौकरी न रही तो मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा। जवाब नेगेटिव ही दिखता है इसलिए वे भी पीते हैं। अब जो व्यापार तरक्की करेगा काम भी तो उसी पर किया जाएगा न? अंगूर कि बेटी के पंखों को उड़ान ऐसे ही नहीं है। (लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता व चेतना मंच की प्रतिनिधि हैं)  

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Microplastic Pollution : माइक्रो प्लास्टिक के ‘टाइम बम’ पर दुनिया

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar03 Mar 2023 09:31 PM
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[caption id="attachment_71824" align="alignleft" width="191"] संजीव रघुवंशी(वरिष्ठ पत्रकार)[/caption]
Microplastic Pollution : प्यू चेरिटेबल ट्रस्ट की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 11 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंच रहा है। मुंबई, केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास का समुद्र सबसे अधिक प्रदूषित हो चुका है। गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ की रिपोर्ट ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे (plastic waste) को लेकर डराने वाली तस्वीर पेश करती है। देश के 70 जिलों के 700 गांवों पर अध्ययन के बाद तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 67 फ़ीसदी प्लास्टिक कचरा जला दिया जाता है, जिससे बेहद खतरनाक गैसें (Dangerous Gases) निकलती हैं। बाकी बचे कचरे में से अधिकांश डंप कर दिया जाता है, जो खेतों के जरिए फसलों में और फिर माइक्रो प्लास्टिक (Microplastic Pollution) के रूप में मानव शरीर में पहुंच रहा है।

Microplastic Pollution: पिछले महीने आयी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ओजोन परत के छेद धीरे-धीरे भर रहे हैं और 2066 तक इनके पूरी तरह से खत्म होने की संभावना है। वायु प्रदूषण को लेकर इस अच्छी खबर के साथ ही मानव सभ्यता पर जल और थल से जुड़े प्रदूषण को लेकर बेहद गंभीर खतरा बताने वाली एक दूसरी रिपोर्ट भी सामने आयी है। कई देशों के वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में दावा किया है कि मानव शरीर में औसतन पांच ग्राम प्लास्टिक रोजाना पहुंच रहा है। माइक्रो प्लास्टिक, यानी पांच मिलीमीटर से छोटे कणों के रूप में शरीर में दाखिल हो रहा यह प्लास्टिक मानव सभ्यता के लिए एक ‘टाइम बम’ जैसा है।

मलेशिया, इंडोनेशिया और नीदरलैंड के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि माइक्रो प्लास्टिक मानव शरीर के आधे से अधिक अंगों तक पहुंच चुका है। इंडोनेशिया की ‘एअरलंग्गा यूनिवर्सिटी’ (Airlangga University) के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्लास्टिक उत्पाद बनाने में 10,000 से अधिक रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इनमें से अधिकतर रसायन मानव शरीर के लिए बेहद खतरनाक हैं। मलेशिया के साइंस विश्वविद्यालय के शोधकर्ता ली योंग ये ने अपने अध्ययन में पाया कि मानव शरीर में प्लास्टिक के 12 से लेकर एक लाख कण तक रोज पहुंच रहे हैं। नीदरलैंड (Netherlands) के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट और अधिक डराने वाली है। इसमें दावा किया गया है कि मां के दूध के जरिए भी बच्चों के शरीर में माइक्रो प्लास्टिक पहुंच रहा है। दूध के 25 में से 18 नमूनों और सी-फूड के 8 में से 7 नमूनों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए हैं। रिपोर्ट कहती है कि समुद्री नमक ( sea ​​salt) में भी माइक्रो प्लास्टिक है। शरीर में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाचन तंत्र, किडनी, लीवर, फेफड़े, दिल से जुड़े गंभीर रोगों के साथ ही कैंसर का कारण बनते हैं। यही नहीं, मोटापा, प्रजनन क्षमता और भू्रण के विकास पर नकारात्मक असर भी माइक्रो प्लास्टिक की वजह से हो सकता है।

2019 में आई एक रिपोर्ट में 2020 तक विश्व में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा होने का अनुमान लगाया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 500 अरब प्लास्टिक कैरी बैग इस्तेमाल किए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) का दावा है कि 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा हर साल समुद्र में पहुंच जाता है। यह माइक्रो प्लास्टिक के रूप में समुद्री जीवों के जरिए लोगों के शरीर में प्रवेश कर रहा है। वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि समुद्री जीवों की कम से कम 267 प्रजातियों को प्लास्टिक कचरा नुकसान पहुंचा रहा है। पिछले साल जून में वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका की बर्फ में भी माइक्रो प्लास्टिक मिला था। ये तथ्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरे की घंटी है। इंडोनेशिया के शोधकर्ताओं ने तो यहां तक दावा किया है कि अगर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो 2050 तक समुद्र में मछलियों के वजन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा जमा हो जाएगा।

माइक्रो प्लास्टिक को प्लास्टिक कचरे से अगली कड़ी के खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। यह प्लास्टिक उत्पादों के इस्तेमाल के साथ ही प्लास्टिक के विघटन के जरिए भी पैदा होता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद प्लास्टिक कचरा बढऩे का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन इसके अलावा भी कई पहलू हैं जो सीधे तौर पर माइक्रो प्लास्टिक से जुड़े हैं। आईयूसीएन की रिपोर्ट के मुताबिक, माइक्रो प्लास्टिक में 35 फीसदी हिस्सेदारी सिंथेटिक टेक्सटाइल की है। इसके अलावा 28 फीसदी टायर, 24 फीसदी सिटी डस्ट, 7 फीसदी रोड मार्किंग, 4 फीसदी प्रोटेक्टिव मेरिन कोटिंग और 2 फीसदी हिस्सेदारी पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स की है। पिछले साल दिसंबर में आई अमेरिकन केमिकल फोरम की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि धूप के बजाय ड्रायर में कपड़े सुखाने पर 40 गुना अधिक माइक्रो फाइबर निकलते हैं, जो माइक्रो प्लास्टिक का ही एक रूप है। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की ओर से सिडनी के 32 घरों में किए गए अध्ययन में पाया गया कि धूल में 39 फीसदी तक माइक्रो प्लास्टिक मौजूद है। इसका मतलब यह है कि हम बाहर ही नहीं, घर के अंदर भी सुरक्षित नहीं है। सिंथेटिक कपड़ों से लेकर खाने-पीने की पैकिंग, गिलास, प्लेट, पानी एवं शीतल पेय की बोतल, सौंदर्य प्रसाधन, सजावटी सामान जैसी चीजों के जरिए हम चौबीसों घंटे माइक्रो प्लास्टिक के संपर्क में हैं। प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण हमारे शरीर में भी पहुंच रहे हैं।

Microplastic Pollution

अगर भारत की बात करें, तो प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में हम काफी पिछड़े हुए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, देश में हर दिन 26000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। इसमें से लगभग 30 फीसदी ही रीसाइकल हो पाता है। बाकी को या तो डंप कर दिया जाता है या फिर नदी-नालों के जरिए समुद्र तक पहुंचकर जल प्रदूषण का प्रमुख कारण बनता है। यह माइक्रो प्लास्टिक के रूप में बारिश के पानी के साथ भी वापस लोगों के पास पहुंच रहा है। प्यू चेरिटेबल ट्रस्ट की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 11 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंच रहा है। मुंबई, केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास का समुद्र सबसे अधिक प्रदूषित हो चुका है। गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ की रिपोर्ट ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे को लेकर डराने वाली तस्वीर पेश करती है। देश के 70 जिलों के 700 गांवों पर अध्ययन के बाद तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 67 फीसदी प्लास्टिक कचरा जला दिया जाता है, जिससे बेहद खतरनाक गैसें निकलती हैं। बाकी बचे कचरे में से अधिकांश डंप कर दिया जाता है, जो खेतों के जरिए फसलों में और फिर माइक्रो प्लास्टिक के रूप में मानव शरीर में पहुंच रहा है।

12 अगस्त, 2021 को भारत सरकार ने प्लास्टिक उपभोग को नियंत्रित करने के लिए त्रिस्तरीय योजना की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत एक जुलाई, 2022 से दैनिक जीवन में अधिकाधिक इस्तेमाल होने वाले 19 प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध, 30 सितंबर से 75 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग पर बैन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन से कम मोटे बैग पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी। जमीनी तौर पर यह अधिसूचना कितनी कारगर हो पाई यह किसी से छिपा नहीं है। शुरुआत में अधिसूचना के तहत कार्यवाही का हो-हल्ला जरूर मचा, लेकिन कुछ दिनों में ही सारे दावे फुस्स हो गए। बाजार प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादों से अटे पड़े हैं, तो वहीं लोग इसका बेरोकटोक इस्तेमाल कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 की धारा 15 के तहत प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के उल्लंघन पर 7 साल की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। हकीकत यह है कि कभी-कभार किसी छोटे-मोटे दुकानदार से प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादों की छोटी-मोटी बरामदगी दिखाकर संबंधित विभाग अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। ऐसे में, पर्यावरण प्रेमियों की इस दलील में ज्यादा दम नजर आता है कि इस्तेमाल के बजाय प्लास्टिक उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग को नियंत्रित किया जाए तो ज्यादा प्रभावी नतीजे आ सकते हैं।

Microplastic Pollution

संबंधित विभागों की खानापूर्ति के बीच ऐसी खबरें कुछ सुकून जरूर देती हैं, जिनमें हैदराबाद के प्रोफेसर सतीश द्वारा प्लास्टिक कचरे से पेट्रोलियम ईंधन बनाने, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की ओर से जैविक चारकोल बनाने और प्लास्टिक कचरे से सडक़ों का निर्माण करने के दावे किए जा रहे हैं। हालांकि, इन प्रयासों से मानव स्वास्थ्य पर मडऱाते अत्यंत गंभीर खतरे को किस हद तक कम किया जा सकता है, इस बारे में किसी नतीजे पर पहुंचना अभी जल्दबाजी होगी।

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Greater Noida : ऑटो एक्सपो 2023 : गाडियां देखने पहुंचे दर्शक निराश, एक्सपो में महंगा खान-पान

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar16 Jan 2023 09:55 PM
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दिनेश गुप्ता Greater Noida : ग्रेटर नोएडा। कोरोना महामारी के चलते 3 साल बाद ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) में इन दिनों चल रहे ऑटो एक्सपो (Auto Expo 2023) में पहुंच रहे दर्शक काफी निराश हैं। महंगे टिकट के बाद एक्सपो में बने फूड कोर्ट (Food Court) में बिक रही खाने-पीने की चीजों की कीमतें दर्शकों की जेब और हल्की कर रही है। ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) के एक्सपो मार्ट में तीन साल बाद ऑटो एक्सपो का आयोजन किया जा रहा है। लम्बे इंतजार के बाद ऑटोमोबाइल्स (Automobiles) के शौकीन दर्शकों को काफी उम्मीदें थी। लेकिन ऑटो एक्सपो देखने पहुंचे दर्शक एक्सपो में लगी गाडिय़ों को देखकर निराश हैं। दर्शक एक्सपो में पूर्व की तरह अधिक से अधिक नई कारें देखने आए थे। लेकिन मन्हिन्द्रा (Manhindra ) जैसी बड़ी कंपनी ने अपनी कोई भी कार ऑटो एक्सपो (Auto Expo) में डिस्प्ले नहीं की है। ऑटो एक्सपो में शामिल अधिकतर कंपनियों ने भविष्य को देखते हुए ईवी (इलेक्ट्रोनिक सेगमेंट) की गाडिय़ां डिस्पले की हैं जिनकी कीमतें आम दर्शकों की सोच के परे हैं। हुंडई की नई इलेक्ट्रोनिक कार की ही कीमत 45 लाख के आस-पास है। ऑटो एक्सपो में टोयटा (Toyota) ने अपनी एसयूवी फाच्र्यूनर (SUV Fortuner) के जहां उपग्रेड मॉडल पेश किय हैं। वहीं लेक्सस ने भी ऑटो एक्सपो में महंगे मॉडल की कारें प्रदर्शित की हैं। एमजी मोटर (MG Motor) ने भी अपने कई इलेक्ट्रोनिक्स मॉडल की कार डिस्पले की है। ऑटो एक्सपो में मारूति की काम्पेक्ट जीप जिमी दर्शकों के आकर्षक का केन्द्र बनी हुई है।

Greater Noida

बाइक के शौकीन निराश ऑटो एक्सपो-2023 (Auto Expo 2023)  में बाइक देखने के लिए आने वाले दर्शक खासे निराश हैं। दर्शकों को उम्मीद थी कि लम्बे समय बाद उन्हें एक्सपो में हाईस्पीड बाइक देखने को मिलेगी। गुडग़ांव से आये ऋषि आहुजा ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि एक्सपो में बीएमडब्ल्यू, होंडा व यामाहा (BMW, Honda and Yamaha) जैसी बड़ी कंपनियां अपनी फ्यूचर बाइक डिस्प्ले करेंगी, लेकिन ऐसा नहीं है। अधिकतर इलेक्ट्रोनिक्स स्कूटर ही पवेलियन में लगाये गये हैं जो काफी महंगे हैं। खाने-पीने की चीजें काफी महंगी ऑटो एक्सपो में आने वाले दर्शकों के लिए खाने-पीने की चीजें काफी महंगी हैं। यहां हाल नं0-9 के सामने ग्रेटर नोएडा के क्राउन प्लाजा होटल (Crowne Plaza Hotel) ने भी फूड कोर्ट बनाया है। वहीं इसके पास फूड कोर्ट-3 भी है। यहां कई फूड प्रोडेक्ट तैयार करने वाली कंपनियों ने अपने स्टॉल लगाये। इन स्टॉलों में बिकने वाली खाने की चीजें काफी महंगी हैं। फूड कोर्ट में सबसे ज्यादा पीने जाने वाली चाय (Tea) की कीमत सुनकर हैरान हो जाएंगे। सादी चाय का कप आपको 150 रूपये में मिलेगा। यहां स्टॉल पर चाय की कीमत 200 रू0 तक है। इसके अलावा अगर आप मसाला डोसा (Masala Dosa) खाते हैं तो 203 रू0 और छोले-भटूरे (Chole bhature) खाते हैं तो 211रू0 देने होंगे। केएफसी (KFC) पर बर्गर (Burger) के लिए 280 रू0 देने होंगे। फूड कोर्ट में लगे हर स्टॉल पर खाने-पीने की चीजें काफी महंगी है।।

नोएडा में सनसनी: नोएडा में महिला टीचर नाबालिग छात्र को लेकर फुर्र