National News : गूगल के प्रतिस्पर्धा-रोधी कदमों से भारतीय उपभोक्ताओं, अर्थव्यवस्था को नुकसान : मैपमायइंडिया

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Google's Anti-Competition Moves Harm Indian Consumers, Economy: MapMyIndia
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Dec 2022 11:24 PM
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नई दिल्ली। गूगल की प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधियां 'स्वदेशी' प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुंचाकर भारतीय उपभोक्ताओं और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है। स्वदेशी नेविगेशन फर्म मैपमायइंडिया के एक शीर्ष अधिकारी ने यह बात कही।

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भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने अक्टूबर में गूगल पर एंड्रायड मोबाइल उपकरणों के संबंध में कई बाजारों में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के लिए 1,337.76 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना लगाया था। इसके साथ ही सीसीआई ने गूगल को अनुचित कारोबारी तरीके बंद करने का निर्देश भी दिया। गूगल ने सीसीआई के इस आदेश के खिलाफ अपीलीय न्यायाधिकरण एनसीएलएटी में अपील की है।

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मैपमायइंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एवं कार्यकारी निदेशक रोहन वर्मा ने एक बयान में कहा कि यह इस मामले का विस्तार से अध्ययन करने वाले लोगों, उद्योग, सरकार और नियामकों की आम धारणा है कि गूगल के पास प्रतिस्पर्धा को बाधित करने वाली एकाधिकार स्थिति है। वह प्रतिस्पर्धा-रोधी तरीकों से नये बाजारों में अपने एकाधिकार को कायम रखती है। उन्होंने कहा कि ऐसे में गूगल ने वैकल्पिक ऑपरेटिंग सिस्टम, ऐप स्टोर और मैप्स जैसे ऐप के लिए उपयोगकर्ताओं के बीच प्रसार को बहुत मुश्किल बना दिया है।

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रोहन वर्मा ने कहा कि 2020 में कोविड महामारी के दौरान मैपमायइंडिया ने लोगों को आसपास के कंटेनमेंट जोन और स्वास्थ्य परीक्षण तथा उपचार केंद्रों के बारे में जानकारी देकर उन्हें सुरक्षित रहने में मदद की थी। जबकि गूगल मैप ने ऐसी सुविधाएं नहीं दीं। लेकिन, गूगल ने मैपमायइंडिया के ऐप को अपने प्ले स्टोर से ही हटा दिया था।

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वर्मा ने कहा कि कंपनी ने गूगल को मैपमायइंडिया ऐप हटाने के बारे में कई बार लिखा और इसका जिक्र सोशल मीडिया पर भी किया। कुछ जगहों पर इस बारे में खबर प्रकाशित होने के बाद गूगल ने इसे फिर से अपने प्ले स्टोर पर जगह दी। उन्होंने कहा कि गूगल की ऐसी गैर-प्रतिस्पर्धी गतिविधियां मैपमायइंडिया जैसे भारतीय स्वदेशी प्रतिस्पर्धियों का गला घोंटकर भारतीय उपभोक्ताओं और भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं।

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Covid-19 : भारतीयों में ‘हर्ड इम्युनिटी’ विकसित हुई, बीएफ.7 चीन जितना गंभीर नहीं होगा : सीसीएमबी प्रमुख

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'Herd immunity' developed in Indians, BF.7 will not be as serious as China: CCMB chief
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 10:21 AM
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हैदराबाद। सीएसआईआर-कोशिकीय आणविक जीव विज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि भारत में कोरोना वायरस के बीएफ.7 स्वरूप का चीन जितना गंभीर प्रभाव होने की आशंका कम है, क्योंकि भारतीयों ने पहले ही ‘हर्ड इम्युनिटी’ हासिल कर ली है।

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सीसीएमबी के निदेशक विनय के नंदीकूरी ने कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि हमेशा एक चिंता बनी रहती है कि इन सभी स्वरूपों में प्रतिरोधक प्रणाली से बचने की क्षमता होती है और ये उन लोगों को भी संक्रमित कर सकते हैं, जिन्हें टीका लग चुका है और यहां तक कि जो ओमिक्रोन स्वरूप से संक्रमित हो चुके हैं।

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उन्होंने बताया कि मौजूदा स्वरूप का संक्रमण उतना गंभीर नहीं है, जितना कि वायरस के ‘डेल्टा’ स्वरूप का संक्रमण हुआ करता था। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमारे पास एक हद तक ‘हर्ड इम्युनिटी’ है। वास्तव में हमारे पास ‘हर्ड इम्युनिटी’ है, क्योंकि हम अन्य वायरस के संपर्क में हैं। मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि भारत में कोरोना वायरस के बीएफ.7 स्वरूप के चार मामले सामने आ चुके हैं। उन्होंने कहा कि हमने (भारत) डेल्टा लहर देखी है, जो काफी गंभीर थी। हमने टीकाकरण किया है और फिर ओमिक्रोन लहर आई और हमने एहतियाती खुराक लगाना जारी रखा। हम कई मायनों में अलग हैं। चीन में जो हो रहा है, वह भारत में नहीं हो सकता है।

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि भारत में कोविड-19 के 201 नए मामले आए, जबकि उपचाराधीन मरीजों की संख्या बढ़कर 3,397 हो गई। अधिकारी ने कहा कि चीन द्वारा अपनाई जाने वाली ‘शून्य कोविड नीति’ देश में संक्रमण के तेजी से फैलने के मुख्य कारणों में से एक है। उन्होंने कहा कि टीकाकरण की कम दर ने भी वहां संक्रमण की गंभीरता को और बढ़ा दिया।

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नंदीकूरी ने कहा कि भारत में टीकाकरण की दर अधिक है। बड़े पैमाने पर वृद्ध और अतिसंवेदनशील आबादी को एहतियाती खुराक भी दी गई है। हालांकि, इससे यह दावा नहीं किया जा सकता कि भारत में संक्रमण की कोई लहर नहीं आ सकती, लेकिन अभी ऐसा नहीं लगता है कि संक्रमण की कोई लहर तुरंत आ रही है।

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National News : न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाने से बेहतर काम नहीं करने वालों की सेवाएं बढ़ सकती हैं : सरकार

Govt. 1
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locationभारत
userचेतना मंच
calendar27 Nov 2025 02:51 AM
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नई दिल्ली। न्याय विभाग ने एक संसदीय समिति को बताया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से बेहतर काम नहीं करने वाले न्यायाधीशों की सेवा के वर्षों का विस्तार हो सकता है और सरकारी कर्मचारियों द्वारा भी इसी तरह की मांग उठाने पर इसका व्यापक प्रभाव हो सकता है।

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विभाग ने यह भी कहा कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उपायों के साथ-साथ न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने पर भी विचार किया जाएगा।

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कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने संसद को सूचित किया था कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। न्याय विभाग ने कार्मिक, कानून और न्याय पर संसदीय समिति के समक्ष एक प्रस्तुति दी। समिति की अध्यक्षता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद एवं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कर रहे हैं।

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विधि और न्याय मंत्रालय के विभाग ने प्रस्तुति दी, जिसमें उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की संभावना सहित न्यायिक प्रक्रियाओं और सुधारों का विवरण शामिल था। विभाग ने अपनी प्रस्तुति में कहा, ‘सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से कुछ अनुपयुक्त मामलों में सेवा की अवधि बढ़ाने के संदर्भ में लाभ बढ़ सकता है और बेहतर प्रदर्शन नहीं करने वाले और खराब प्रदर्शन करने वाले न्यायाधीशों की सेवाओं को जारी रखना पड़ सकता है।’ इसने यह भी सुझाव दिया कि लंबित मामलों को कम करने और न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के साथ-साथ न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए।

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विभाग ने कहा कि सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारी या न्यायिक सदस्यों के तौर पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से वंचित रह जायेंगे। इसने यह भी आगाह किया कि सेवानिवृत्ति की आयु का व्यापक प्रभाव हो सकता है। उसने कहा कि न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि का व्यापक प्रभाव होगा, क्योंकि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारी कर्मचारी, पीएसयू, आयोग आदि इसी तरह की मांग उठा सकते हैं। इसलिए, इस मुद्दे की समग्रता से जांच किए जाने की जरूरत है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं और देश के 25 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।

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