हवा का जहर: कैसे वायु प्रदूषण ने छीन ली करोड़ों जिंदगियां?

दिल्ली-एनसीआर का आसमान इन दिनों किसी गैस चेंबर में बदल गया है। हवा में धूल, धुआं और ज़हर का ऐसा घना परदा फैला है कि सूरज भी धुंध के पीछे धुंधला पड़ गया है। सड़क पर निकलते हर शख्स के लिए सांस लेना एक चुनौती बन गया है। दुनिया भर में यही जहरीली हवा अब मौत की सबसे बड़ी वजह बन गई है। ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2023’ रिपोर्ट के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ साल 2023 में करीब 79 लाख लोगों ने वायु प्रदूषण के चलते अपनी जान गंवाई। Air Pollution
यह आंकड़ा इतना भयावह है कि अब यह कैंसर जैसी घातक बीमारी के बराबर खड़ा दिखता है जिसने 2022 में दुनिया से 97 लाख जिंदगियां छीन ली थीं। रिपोर्ट तैयार करने वाली अमेरिकी संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट (HEI) के अनुसार, भारत की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है। साल 2000 में जहां 14 लाख मौतें वायु प्रदूषण से दर्ज हुई थीं, वहीं 2023 में यह संख्या 20 लाख पार कर गई। Air Pollution
भारत में मौत की सबसे बड़ी वजह बना वायु प्रदूषण
आंकड़े बताते हैं कि भारत में वायु प्रदूषण अब मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। साल 2000 में जहां इससे 14 लाख लोगों की मौत हुई थी, वहीं 2023 तक यह संख्या 20 लाख तक पहुँच गई। यानी अब हवा ही हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई है, जिसने ब्लड प्रेशर और अस्वस्थ खानपान जैसी पारंपरिक समस्याओं को भी पीछे छोड़ दिया है। विशेष बात यह है कि देश में हर चार में से तीन लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां हवा में मौजूद PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण WHO के तय मानकों से कहीं अधिक हैं। यही वजह है कि भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में करीब 89% का संबंध दिल की बीमारियों, फेफड़ों की समस्याओं, डायबिटीज़ और डिमेंशिया जैसे गैर-संचारी रोगों (NCDs) से है।
बाहर की हवा से बढ़ा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि पहले भारत में ज़्यादातर स्वास्थ्य समस्याएं घरेलू प्रदूषण - जैसे लकड़ी, कोयले या मिट्टी के तेल से रसोई में उठने वाले धुएं के कारण होती थीं। लेकिन अब सरकार की स्वच्छ ऊर्जा योजनाओं के लागू होने से रसोई में धुएं की समस्या काफी हद तक कम हो गई है। हालांकि, चिंता की बात यह है कि अब बाहरी हवा यानी एंबिएंट एयर पॉल्यूशन लगातार अधिक खतरनाक हो रही है और इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है। HEI की वरिष्ठ वैज्ञानिक पल्लवी पंत के मुताबिक, “असुरक्षित पानी और गंदगी से होने वाली बीमारियां धीरे-धीरे घट रही हैं, लेकिन अब खराब हवा नई और गंभीर बीमारियों को जन्म दे रही है। 2000 से 2023 के बीच हवा में मौजूद PM2.5 और ओज़ोन गैस का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ा है, जिससे स्वास्थ्य पर असर और गंभीर हो गया है।
डिमेंशिया और कैंसर जैसी नई बीमारियों से जुड़ता जा रहा है प्रदूषण
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वायु प्रदूषण और डिमेंशिया (याददाश्त खोने की बीमारी) के बीच गहरा और चिंताजनक संबंध है। केवल साल 2023 में ही 6.25 लाख लोगों की मौत डिमेंशिया के कारण हुई, जो सीधे खराब हवा से जुड़ी थी। इसके अलावा, लगभग 1.2 करोड़ लोगों के स्वस्थ जीवन वर्ष (Healthy Life Years) भी वायु प्रदूषण के चलते प्रभावित हुए। HEI की वरिष्ठ वैज्ञानिक पल्लवी पंत के मुताबिक, “खराब हवा अब अरबों लोगों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है, विशेषकर एशिया और अफ्रीका में। हालांकि कई देशों में हवा की निगरानी, कड़े कानून और प्रदूषण कम करने के उपाय लागू किए जा रहे हैं, जिससे कुछ हद तक सुधार दिखाई दे रहा है।
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वायु प्रदूषण है वैश्विक स्वास्थ्य आपदा
संयुक्त राष्ट्र ने वायु प्रदूषण को पहले ही विश्व के पांच सबसे बड़े स्वास्थ्य खतरों में शामिल कर दिया है। इसके साथ ही सूची में तंबाकू, अस्वस्थ आहार, शारीरिक निष्क्रियता और शराब का सेवन भी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसे अपनी नीतियों में प्राथमिकता देकर वैश्विक स्तर पर इस चुनौती पर ध्यान केंद्रित किया है। NCD एलायंस की नीति निदेशक एलिसन कॉक्स का कहना है, “यदि सरकारें वायु प्रदूषण और गैर-संचारी रोगों (NCDs) के खिलाफ समानांतर कदम उठाएं, तो इसका लाभ केवल लोगों की सेहत तक सीमित नहीं रहेगा। यह जलवायु की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए भी एक बड़ा अवसर साबित होगा। ऐसे प्रयासों से न केवल जीवन बचेंगे, बल्कि समग्र विकास की राह भी खुल जाएगी। Air Pollution
कैसे तैयार हुई यह रिपोर्ट
‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर’ रिपोर्ट तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने हवा की गुणवत्ता का डेटा जमीन पर लगे सेंसर, उपग्रहों और एडवांस्ड वैज्ञानिक मॉडलों के माध्यम से इकट्ठा किया। वहीं, घरेलू प्रदूषण से जुड़ी जानकारी WHO और अन्य राष्ट्रीय-वैश्विक सर्वेक्षणों से जुटाई गई। इन सभी आंकड़ों को मिलाकर शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि वायु प्रदूषण न केवल हमारी सेहत पर बल्कि जीवन प्रत्याशा पर भी गहरा असर डाल रहा है। यानी यह सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं, बल्कि एक मानव जीवन पर छाया लंबा-साया संकट बन चुका है। Air Pollution
दिल्ली-एनसीआर का आसमान इन दिनों किसी गैस चेंबर में बदल गया है। हवा में धूल, धुआं और ज़हर का ऐसा घना परदा फैला है कि सूरज भी धुंध के पीछे धुंधला पड़ गया है। सड़क पर निकलते हर शख्स के लिए सांस लेना एक चुनौती बन गया है। दुनिया भर में यही जहरीली हवा अब मौत की सबसे बड़ी वजह बन गई है। ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2023’ रिपोर्ट के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ साल 2023 में करीब 79 लाख लोगों ने वायु प्रदूषण के चलते अपनी जान गंवाई। Air Pollution
यह आंकड़ा इतना भयावह है कि अब यह कैंसर जैसी घातक बीमारी के बराबर खड़ा दिखता है जिसने 2022 में दुनिया से 97 लाख जिंदगियां छीन ली थीं। रिपोर्ट तैयार करने वाली अमेरिकी संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट (HEI) के अनुसार, भारत की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है। साल 2000 में जहां 14 लाख मौतें वायु प्रदूषण से दर्ज हुई थीं, वहीं 2023 में यह संख्या 20 लाख पार कर गई। Air Pollution
भारत में मौत की सबसे बड़ी वजह बना वायु प्रदूषण
आंकड़े बताते हैं कि भारत में वायु प्रदूषण अब मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। साल 2000 में जहां इससे 14 लाख लोगों की मौत हुई थी, वहीं 2023 तक यह संख्या 20 लाख तक पहुँच गई। यानी अब हवा ही हमारे स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई है, जिसने ब्लड प्रेशर और अस्वस्थ खानपान जैसी पारंपरिक समस्याओं को भी पीछे छोड़ दिया है। विशेष बात यह है कि देश में हर चार में से तीन लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां हवा में मौजूद PM2.5 जैसे सूक्ष्म कण WHO के तय मानकों से कहीं अधिक हैं। यही वजह है कि भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में करीब 89% का संबंध दिल की बीमारियों, फेफड़ों की समस्याओं, डायबिटीज़ और डिमेंशिया जैसे गैर-संचारी रोगों (NCDs) से है।
बाहर की हवा से बढ़ा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि पहले भारत में ज़्यादातर स्वास्थ्य समस्याएं घरेलू प्रदूषण - जैसे लकड़ी, कोयले या मिट्टी के तेल से रसोई में उठने वाले धुएं के कारण होती थीं। लेकिन अब सरकार की स्वच्छ ऊर्जा योजनाओं के लागू होने से रसोई में धुएं की समस्या काफी हद तक कम हो गई है। हालांकि, चिंता की बात यह है कि अब बाहरी हवा यानी एंबिएंट एयर पॉल्यूशन लगातार अधिक खतरनाक हो रही है और इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है। HEI की वरिष्ठ वैज्ञानिक पल्लवी पंत के मुताबिक, “असुरक्षित पानी और गंदगी से होने वाली बीमारियां धीरे-धीरे घट रही हैं, लेकिन अब खराब हवा नई और गंभीर बीमारियों को जन्म दे रही है। 2000 से 2023 के बीच हवा में मौजूद PM2.5 और ओज़ोन गैस का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ा है, जिससे स्वास्थ्य पर असर और गंभीर हो गया है।
डिमेंशिया और कैंसर जैसी नई बीमारियों से जुड़ता जा रहा है प्रदूषण
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वायु प्रदूषण और डिमेंशिया (याददाश्त खोने की बीमारी) के बीच गहरा और चिंताजनक संबंध है। केवल साल 2023 में ही 6.25 लाख लोगों की मौत डिमेंशिया के कारण हुई, जो सीधे खराब हवा से जुड़ी थी। इसके अलावा, लगभग 1.2 करोड़ लोगों के स्वस्थ जीवन वर्ष (Healthy Life Years) भी वायु प्रदूषण के चलते प्रभावित हुए। HEI की वरिष्ठ वैज्ञानिक पल्लवी पंत के मुताबिक, “खराब हवा अब अरबों लोगों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है, विशेषकर एशिया और अफ्रीका में। हालांकि कई देशों में हवा की निगरानी, कड़े कानून और प्रदूषण कम करने के उपाय लागू किए जा रहे हैं, जिससे कुछ हद तक सुधार दिखाई दे रहा है।
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वायु प्रदूषण है वैश्विक स्वास्थ्य आपदा
संयुक्त राष्ट्र ने वायु प्रदूषण को पहले ही विश्व के पांच सबसे बड़े स्वास्थ्य खतरों में शामिल कर दिया है। इसके साथ ही सूची में तंबाकू, अस्वस्थ आहार, शारीरिक निष्क्रियता और शराब का सेवन भी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसे अपनी नीतियों में प्राथमिकता देकर वैश्विक स्तर पर इस चुनौती पर ध्यान केंद्रित किया है। NCD एलायंस की नीति निदेशक एलिसन कॉक्स का कहना है, “यदि सरकारें वायु प्रदूषण और गैर-संचारी रोगों (NCDs) के खिलाफ समानांतर कदम उठाएं, तो इसका लाभ केवल लोगों की सेहत तक सीमित नहीं रहेगा। यह जलवायु की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए भी एक बड़ा अवसर साबित होगा। ऐसे प्रयासों से न केवल जीवन बचेंगे, बल्कि समग्र विकास की राह भी खुल जाएगी। Air Pollution
कैसे तैयार हुई यह रिपोर्ट
‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर’ रिपोर्ट तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों ने हवा की गुणवत्ता का डेटा जमीन पर लगे सेंसर, उपग्रहों और एडवांस्ड वैज्ञानिक मॉडलों के माध्यम से इकट्ठा किया। वहीं, घरेलू प्रदूषण से जुड़ी जानकारी WHO और अन्य राष्ट्रीय-वैश्विक सर्वेक्षणों से जुटाई गई। इन सभी आंकड़ों को मिलाकर शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि वायु प्रदूषण न केवल हमारी सेहत पर बल्कि जीवन प्रत्याशा पर भी गहरा असर डाल रहा है। यानी यह सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं, बल्कि एक मानव जीवन पर छाया लंबा-साया संकट बन चुका है। Air Pollution







