UP Election 2022 बसपा के लिए खोया जनाधार पाना चुनौतीपूर्ण

UP Election 2022 : कभी दलित राजनीति का केन्द्र रहा सहारनपुर बसपा (BSP) का गढ़ भी रहा है। सहारनपुर की हरोड़ा विधानसभा सीट से दो बार चुनाव जीतकर मायावती (Mayawati) मुख्यमंत्री भी बनी थीं, लेकिन वर्ष 2012 के बाद से सहारनपुर जनपद में लगातार बसपा (BSP) का ग्राफ गिरता जा रहा है। अब 2022 में हो रहे विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में बसपा (BSP) के सामने अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने की बड़ी चुनौती होगी।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता निणार्यक की भूमिका निभाते रहे हैं। इसमें सहारनपुर में दलितों का कुछ अधिक ही प्रभाव है। वह किसी भी सियासी हवा का रुख मोड़ने में सक्षम है। इसी के चलते बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने संघर्ष के शुरूआती दिनों में सहारनपुर को अपना केन्द्र बिंदू बनाकर रखा। यहां से वह वर्ष 1996 में चुनाव लड़ीं और विधायक बनीं। सहारनपुर से ही विधायक बनकर वह पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी थीं। इसके बाद वर्ष 2002 में भी मायावती सहारनपुर की हरौड़ा सीट से चुनाव जीतीं और दोबारा मुख्यमंत्री बनीं।
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UP Election 2022[/caption]
इसके बाद बसपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2002 में बसपा ने हरौड़ा से मायावती के साथ ही बेहट सीट से जगदीश राणा, नकुड़ सीट से डा. धर्म सिंह सैनी, नागल सुरक्षित सीट से इलम सिंह और देवबंद से राजेन्द्र राणा ने चुनाव लड़ा। वर्ष 2007 में भी जिले की सात में से पांच सीटों पर बसपा ने विजय प्राप्त की थीं। वर्ष 2012 में सपा की लहर के बावजूद यहां बसपा का प्रदर्शन खासा चौंकाने वाला रहा और सात में से चार सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। उसके बाद बसपा का जिले में जनाधार लगातार कम होता रहा। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में तो बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी।
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मायवती का सहारनपुर से खासा लगाव रहा है। बहुचर्चित शब्बीरपुर कांड के विरोध में उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। बसपा के संस्थापक कांशीराम के लिए भी सहारनपुर खासा प्रिय रहा है। उन्होंने यहां से वर्ष 1999 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था। हालांकि वह उस समय भाजपा प्रत्याशी स्व. नकली सिंह से हार गए थे।
बसपा को अब तक मिली सीटें वर्ष 2002 में 4 सीट वर्ष 2007 में 5 में सीट वर्ष 2012 में 4 सीट वर्ष 2017 में एक भी नहीं
UP Election 2022 : कभी दलित राजनीति का केन्द्र रहा सहारनपुर बसपा (BSP) का गढ़ भी रहा है। सहारनपुर की हरोड़ा विधानसभा सीट से दो बार चुनाव जीतकर मायावती (Mayawati) मुख्यमंत्री भी बनी थीं, लेकिन वर्ष 2012 के बाद से सहारनपुर जनपद में लगातार बसपा (BSP) का ग्राफ गिरता जा रहा है। अब 2022 में हो रहे विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में बसपा (BSP) के सामने अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने की बड़ी चुनौती होगी।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में दलित मतदाता निणार्यक की भूमिका निभाते रहे हैं। इसमें सहारनपुर में दलितों का कुछ अधिक ही प्रभाव है। वह किसी भी सियासी हवा का रुख मोड़ने में सक्षम है। इसी के चलते बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने संघर्ष के शुरूआती दिनों में सहारनपुर को अपना केन्द्र बिंदू बनाकर रखा। यहां से वह वर्ष 1996 में चुनाव लड़ीं और विधायक बनीं। सहारनपुर से ही विधायक बनकर वह पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी थीं। इसके बाद वर्ष 2002 में भी मायावती सहारनपुर की हरौड़ा सीट से चुनाव जीतीं और दोबारा मुख्यमंत्री बनीं।
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इसके बाद बसपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2002 में बसपा ने हरौड़ा से मायावती के साथ ही बेहट सीट से जगदीश राणा, नकुड़ सीट से डा. धर्म सिंह सैनी, नागल सुरक्षित सीट से इलम सिंह और देवबंद से राजेन्द्र राणा ने चुनाव लड़ा। वर्ष 2007 में भी जिले की सात में से पांच सीटों पर बसपा ने विजय प्राप्त की थीं। वर्ष 2012 में सपा की लहर के बावजूद यहां बसपा का प्रदर्शन खासा चौंकाने वाला रहा और सात में से चार सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। उसके बाद बसपा का जिले में जनाधार लगातार कम होता रहा। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में तो बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी।
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मायवती का सहारनपुर से खासा लगाव रहा है। बहुचर्चित शब्बीरपुर कांड के विरोध में उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। बसपा के संस्थापक कांशीराम के लिए भी सहारनपुर खासा प्रिय रहा है। उन्होंने यहां से वर्ष 1999 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था। हालांकि वह उस समय भाजपा प्रत्याशी स्व. नकली सिंह से हार गए थे।
बसपा को अब तक मिली सीटें वर्ष 2002 में 4 सीट वर्ष 2007 में 5 में सीट वर्ष 2012 में 4 सीट वर्ष 2017 में एक भी नहीं








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