EPF Balance check: कैसे कटता है ईपीएफ का पैसा?, पीएफ खाते में कंपनी पैसा जमा कर रही या नहीं, ऐसे जानें

EPF Balance check
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userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:25 AM
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EPF Balance check : हर महीने किसी कर्मचारी के वेतन खाते से कर्मचारी भविष्य निधि का पैसा काटा जाता है। इसके साथ ही नियोक्ता भी अपने कर्मचारियों के पीएफ खाते में पैसे का योगदान करता है। नियोक्ता हर महीने आपके वेतन से एक निश्चित राशि काटकर पीएफ का पैसा जमा करता है और आपको इस पर सालाना ब्याज मिलता है। यह रकम नौकरी पेशा लोगों के लिए सबसे सुरक्षित होती है और बुढ़ापे में मददगार होती है।

कैसे कटता है ईपीएफ का पैसा?

- किसी भी कर्मचारी के मूल वेतन और डीए का 12 प्रतिशत पीएफ खाते में जमा होता है। - कंपनी कर्मचारी के पीएफ खाते में 12 फीसदी अंशदान भी जमा करती है। - कंपनी के योगदान में से 3.67 फीसदी ईपीएफ खाते में जमा किया जाता है। - वहीं, 8.33 फीसदी पैसा पेंशन स्कीम में जमा होता है।

कैसे पता करें पैसा (PF) जमा हो रहा है या नहीं?

पीएफ तो कट रहा, मैसेज भी आ रहे लेकिन हम महीनों तक यह चेक नहीं करते कि हमारे पीएफ खाते में कितना पैसा जमा हुआ है या हो रहा है या नहीं? हम कई क्या सालों तक ईपीएफओ की साइट पर जाकर लॉगइन भी नहीं करते। ऐसे में आपको कैसे पता चलेगा कि आपकी कंपनी में ईपीएफ का पैसा जमा हो रहा है या नहीं? और अगर जमा हो रहा है तो पीएफ में कितनी राशि है और कितना ब्याज मिला है, इसकी जानकारी नहीं होती। पीएफ खाते के काटे गए पैसे की जानकारी आपको या तो एसएमएस के जरिए मिल जाती है या फिर किसी अन्य तरीके से जांच करनी पड़ती है। अब बात आती है कि हम कैसे चेक करें कि कंपनी पीएफ का पैसा खाते में जमा कर रही है या नहीं? इसके लिए आपको अपने ईपीएफ खाते की पासबुक चेक करनी होगी। जैसे आपके सामान्य बैंक का पासबुक होता है और उसमें सारे लेनदेन के विवरण होते हैं, ऐसे ही पीएफ का भी पासबुक होता है जिसे आप ईपीएफ के वेबसाइट पर लॉगइन करके जांच सकते हैं। कैसे चेक करें, इसके लिए नीचे तरीके बताए गए हैं-

ईपीएफओ पोर्टल पर पासबुक कैसे चेक करें (EPF Passbook Balance Check)

स्टेप 1- सबसे पहले EPFO पोर्टल https://www.epfindia.gov.in/site_en/index.php पर जाएं। इसके लिए आपका यूएएन (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर) एक्टिवेट होना जरूरी है। चरण 2- साइट खुलने के बाद, 'हमारी सेवाएं' टैब पर जाएं और फिर ड्रॉप-डाउन मेनू 'कर्मचारियों के लिए' चुनें। स्टेप 3- सर्विस कॉलम के नीचे 'सदस्य पासबुक' पर क्लिक करें। स्टेप 4- अगले पेज पर आपको अपना यूएएन और पासवर्ड डालना होगा। कैप्चा डालकर लॉग इन करें। स्टेप 5- लॉग इन करने के बाद मेंबर आईडी डालें। इसके बाद आपका ईपीएफ बैलेंस दिख जाएगा। इसमें आपको खाते की शेष राशि, सभी जमाओं का विवरण, स्थापना आईडी, सदस्य आईडी, कार्यालय का नाम, कर्मचारी शेयर और नियोक्ता शेयर के बारे में भी जानकारी मिलती है।

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'सहारा श्री’ का जाना: हिन्दी मीडिया को नया कलेवर और अप मार्केट अंदाज़ देने के लिए भी किया जाएगा याद

जिस वक्त हिन्दी की पत्रकारिता अँग्रेजी के मुक़ाबले ढीली और झोला छाप नज़र आती थी,उन्होने हिन्दी मीडिया को अप मार्केट और प्रतिस्पर्धी बना कर पेश किया

SUBARATA e1700127132523
Subrata Roy
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 06:44 PM
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Subrata Roy : सुब्रत रॉय के हर काम में Lager than life वाला अंदाज़ जरूर रहता था । जब उन्होने मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा तो हिन्दी मीडिया को आधुनिक कलेवर में ढाल कर पेश किया । जिस वक्त हिन्दी की पत्रकारिता अँग्रेजी के मुक़ाबले ढीली और झोला छाप नज़र आती थी,उन्होने हिन्दी मीडिया को अप मार्केट और प्रतिस्पर्धी बना कर पेश किया । सुब्रत रॉय को याद कर रहे हैं सहारा के पूर्व पत्रकार - अमित शर्मा 

'सहारा श्री’ का जाना

‘सहारा श्री’ नहीं रहे। हमलोगों ने जब सहारा ज्वाइन किया था, तब तक सुब्रत राय, ‘सहारा श्री’ बन चुके थे। सहारा ने अपना एक साम्राज्य खड़ा कर लिया था। गोरखपुर में मात्र दो हजार रुपये से शुरुआत कर, पैराबैंकिंग के व्यवसाय को सहारा पूरे देश में स्थापित कर चुका था। भारतीय क्रिकेट टीम की स्पांसरशिप से लेकर सिनेमा की चकाचौंध करने वाली दुनिया तक सहारा ने अपना नाम बना लिया था। पैराबैंकिंग के साथ-साथ मीडिया,एअरलाइंस,रिएलिटी,हॉस्पिटेलिटी जैसे कितने ही क्षेत्र थे, जहां सहारा अपनी दमदार उपस्थिति जमा चुका था। नब्बे के दशक के शुरुआती दिनों में सहारा का नाम लोग ठीक से जानते तक नहीं थे। लेकिन एक दशक बीतते-बीतते सहारा एक ऐसा नाम था जो बच्चे-बच्चे की जुबान पर था। सहारा इंडिया की सफलता की इस सपनों जैसी कहानी के नायक बन कर उभरे थे – सुब्रत राय सहारा। Subrata Roy  सहारा का जितना बड़ा नाम हुआ, इस साम्राज्य को खड़ा न रख पाने की विफलता भी उनके ही हिस्से आयी। सहारा, जब लोगों के खून-पसीने से जमा किए निवेश को लोगों को लौटाने में विफल रहा, तो हर निवेशक उनको ही कोस रहा था। लेकिन अब जब सुब्रत राय सहारा इस दुनिया से जा चुके हैं, उनको इन तारीफों और बदनामियों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। ऐशो-आराम के सर्वश्रेष्ठ साधनों से लेकर जेल की कोठरी तक – सबकुछ यहीं रह गया है। इस दुनियावी मायाजाल से वो अब आजाद हैं। कहते हैं हर आदमी अपना स्वर्ग-नर्क इसी दुनिया में भोग लेता है। शायद सुब्रत राय सहारा ने भी अपना स्वर्ग-नर्क यहीं जी लिया। लेकिन आप उन्हें कोसे या उनकी तारीफों के कसीदें पढ़ें – उन्हें भूल पाना एक बहुत ब़ड़ी जमात के लिए तो संभव नहीं होगा। खासकर उनलोगों के लिए जो किसी न किसी रुप में सहारा से जुड़े रहे। मैंने सहारा टीवी में अपने कई साल बिताए। पत्रकारिता जीवन की कई बेहतरीन यादें सहारा से जुड़ी हैं। मैं अकेला नहीं हूं। मेरे जैसे कई लोग हैं। पत्रकारिता की एक पूरी पीढ़ी सहारा ने तराश कर तैयार की है। कई के संस्थान अब बदल चुके हैं। शायद ही आज कोई ऐसा अखबार, चैनल, डिजीटल मीडिया का प्लेटफार्म या पत्रकारिता संस्थान हो – जहां सहारा के पुराने लोग काम नहीं कर रहे हैं। अलग-अलग जगहों पर लोग काम कर रहे हैं। लेकिन सहारा का परिचय सामने आते ही, एक अपनेपन का एहसास आपस में जुड़ जाता है। वो इसलिए क्योंकि इस अपनेपन की विरासत हमें सहारा ने ही दी। सहारा वो संस्थान रहा जहां लोगों ने दशकों तक काम किया। पहले राष्ट्रीय सहारा अखबार और फिर बाद में नेशनल और रीज़नल न्यूज चैनल्स के जरिए सहारा ने मीडिया में कई बड़े बदलाव लाए। ये बदलाव ऐसे रहे जो बाद में मीडिया का चलन बन गए। इन बदलावों के पीछे सुब्रत राय सहारा का विज़न ही था। हिन्दी भाषी पत्रकारिता को तो सहारा ने नयी पहचान दी। राष्ट्रीय सहारा अखबार जब शुरु हुआ था उस वक्त अखबार में रंगीन पन्ने का होना बड़ी बात होती थी। कुछ अखबार ही सिर्फ रविवार के दिन एक-दो पन्ने रंगीन परिशिष्ट देते थे। राष्ट्रीय सहारा ने सप्ताह के सातों दिन रंगीन परिशिष्ट देकर एक नयी शुरुआत की। गंभीर कंटेंट देने में भी सहारा ने सबको पीछे छोड़ दिया था। सहारा के ‘हस्तक्षेप’ को लोग आज भी याद करते हैं। चार पन्नों में आने वाले इस स्पेशल परिशिष्ट को लेना यूपीएससी की तैयारी करने वालों के लिए भी अनिवार्य जैसा होता था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सहारा की अपनी दमदार उपस्थिति थी। हिन्दी भाषी राज्यों में 24 घंटे के रीजनल चैनल लाने का कॉन्सेप्ट सहारा का ही था।हालांकि सहारा से पहले ई.टी.वी. रीजनल चैनल शुरु कर चुका था। लेकिन उसका जोर इंटरटेनमेंट के कार्यक्रमों पर ज्यादा था। इन कार्यक्रमों के बीच न्यूज बुलेटिन भी आते थे। लेकिन सहारा ने नया कायदा शुरु किया। सहारा के उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड, बिहार-झारखंड, मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ और राजस्थान,दिल्ली एनसीआर जैसे चैनलों ने इलेक्ट्रॉनिक चैनलों का चेहरा ही बदल दिया था। नेशनल चैनलों के बीच रीजनल चैनलों ने अलग पहचान बनायी। पहली बार लोगों को ये एहसास हुआ कि उनके आस-पड़ोस की खबरें भी टीवी की पर्दे पर दिखायी दे सकती हैं। सहारा ने हर राज्य में अपने कई ब्यूरो खोले। अपने रिपोर्टर्स नियुक्त किए। इन ब्यूरो में ओबी वैन दी गयी। वी-सैट सिस्टम लगाए गए थे। आप कहीं से भी लाइव हो सकते थे। पहले दूर-दराज की जगहों से फुटेज राजधानी तक आने में समय लगता था। इन ब्यूरो ने ये दूरी कम कर दी थी। विजुअल्स घटना घटने के तुरंत बाद अब लोगों तक पहुंचने लगे थे। ये सब कुछ उस वक्त के लिए बिल्कुल नया था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की क्रांति को गांव-घरों तक पहुंचाने का बहुत श्रेय सहारा को भी जाता है। नेशनल चैनलों की ब्रांडिंग भले ही बड़ी थी लेकिन खबरें ब्रेक करने और उसके विजुअल्स सबसे पहले पहुंचाने का काम सहारा ही कर रहा था। उस दौर में ब्रेकिंग खबरों की मारामारी के बीच भी सहारा ने अपनी विश्वसनीयता बनायी थी। हमें ये निर्देश होते थे कि भले ही पांच मिनट देर हो जाए लेकिन खबर कन्फर्म करके ही दी जाए। ऐसे में धीरे-धीरे ये माना जाने लगा कि सहारा सिर्फ सही खबरें ही दिखाता है। मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर जिलाधिकारी कार्यालय तक – सभी प्रमुख जगहों पर एक स्क्रीन पर सहारा समय जरुर चल रहा होता। सहारा पर चलने वाली खबरें नोटिस ली जाती थी। स्थानीय मुद्दे राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अपनी जगह बनाने लगे थे। बाद में दूसरे चैनलों ने भी क्षेत्रीय चैनलों के महत्व को समझा। Subrata Roy‘सहारा श्री’ का व्यक्तित्व हम सब के लिए बहुत बड़ा था। उनकी सफलता की कहानियां उनके आगे-आगे चलती थीं। वो लोगों की आंखों में सपने सजा देते थे। जब कभी उन्हें दूर या नजदीक से देखा, उनका व्यक्तित्व और विशाल होता गया। उनकी बातों में गजब का आकर्षण होता। उनकी कार्यक्षमता भी गजब की थी। वो रात के तीन बजे तक काम करके अगले दिन सात बजे फिर से ऑफिस में नजर आ सकते थे। उसी चुस्ती-फुर्ती और स्फूर्ति के साथ। उनके कार्यक्रम बिल्कुल तय समय पर शुरु होते। थोड़ी भी देर वो बर्दाश्त नहीं करते थे। वो अक्सर ये कहते थे कि पूरी जिन्दगी में वो सिर्फ दो बार ही लेट हुए हैं। सहारा को ऊंचाई तक पहुंचाने में उनके व्यक्तित्व का बहुत बड़ा योगदान रहा। लेकिन सफलता के दौर में कुछ कमियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। सहारा से भी वहीं गलती हुई। सुब्रत राय सहारा वन-मैन शो की तरह रहे। ये बात सहारा में सबको पता थी किSubrata Roy सहारा श्री की लेगेसी को कोई दूसरा आगे कैरी नहीं कर सकता। आखिरकार वहीं हुआ। सहारा के भी बुरे दिन आए। जिस मुसीबत से बाहर निकलने में सहारा श्री चूके, वहीं सहारा भी थम गया। अपने बुरे दौर से सहारा फिर कभी उबर नहीं पाया। सहारा श्री का जाना एक सुनहरे दौर का अंत है। उनको आखिरी सलाम। --अमित शर्मा

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Sahara India Pariwar News: सुब्रत रॉय के निधन के बाद कौन होगा सहारा ग्रुप का अगला मालिक?

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar16 Nov 2023 02:23 PM
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Sahara India Pariwar News: सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय (Subrata Roy) का लंबी बीमारी के कारण 14 नवंबर को निधन हो गया। रॉय के निधन के बाद इसकी चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि आखिर सहारा को 'सहारा' कौन देगा। इसका अगला मालिक कौन होगा? क्योंकि वर्तमान में सहारा इंडिया परिवार की कीनेटवर्थ 2.59 लाख करोड़ रुपए है।

Sahara India Pariwar News

सुब्रत रॉय 75 वर्ष की आयु में इस परिवार को छोड़ गए। उन्हें अपने समूह की कंपनियों-सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एसआईआरईएल) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) को लेकर कई विनियामक और कानूनी लड़ाइयों का सामना करना पड़ा। इन कंपनियों पर पोंजी योजनाओं के साथ नियमों को दरकिनार करने का आरोप लगाया गया था, उनके समूह ने हमेशा इन आरोपों से इनकार किया था।

Sahara Group News

सेबी ने 2011 में सहारा ग्रुप की दो कंपन‍ियों को 3 करोड़ निवेशकों से जुटाए गए पैसे को वापस करने का आदेश दिया था। सेबी के इस आदेश को लेकर रॉय ने लंबी लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा था कि 95% निवेशकों के पैसे वापस कर दिए गए हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो शीर्ष अदालत ने भी 31 अगस्त 2012 को सेबी के आदेश को बरकरार रखा। इसके साथ ही दोनों कंपनियों को निवेशकों से इकट्ठा क‍िये गए पैसे को 15 परसेंट ब्याज के साथ वापस करने को कहा गया। आदेश का पालन नहीं करने पर सुब्रत रॉय को 2 साल जेल में बिताने पड़े।

कौन होगा सहारा इंडिया परिवार का अगला मालिक? (Who will be the owner of Sahara Group?)

अब जब सुब्रत रॉय नहीं हैं तो उनके साम्राज्य को कौन संभालेगा, इसकी चर्चाएं भी जोरों पर हैं। रॉय की पत्नी स्वप्ना रॉय हैं। इसके साथ ही उनके दो बेटे- सुशांतो रॉय और सीमांतो रॉय हैं। सुब्रत रॉय ने कभी भी अपने वारिश के नाम की घोषणा नहीं की। वहीं कंपनी ने भी यह नहीं बताया है कि इस ग्रुप को अब कौन संभालेगा।

Sahara Business

गौरतलब है कि भी सहारा ग्रुप के पास अभी भी करीब 9 करोड़ निवेशक हैं। कंपनी के 5,000 से ज्यादा ऑफिस, मॉल और बिल्डिंग भी हैं। सहारा ग्रुप ने रियल एस्टेट, फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर, मीडिया, एंटरटेनमेंट, हेल्थ केयर, हॉस्पिटैलिटी, रिटेल और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, एयरलाइन, फॉर्मूला वन रेस, आईपीएल में कारोबार करती थी। वहीं भारत में अरबों की जमीन और विदेश में होटल और घर भी हैं।

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