घरेलू हिंसा से दहेज हत्याओं तक… भारत में महिलाएं कितनी सुरक्षित ?

महिला ही वह शक्ति है जो परिवार को संवारती है, समाज को दिशा देती है और राष्ट्र को नई ऊँचाइयों तक ले जाती है। लेकिन दुख की बात है कि वही महिला आज असुरक्षा और हिंसा की सबसे बड़ी शिकार बनी हुई है। कभी दहेज के नाम पर, तो कभी घरेलू हिंसा, यौन शोषण या कार्यस्थल पर उत्पीड़न के रूप में हर मोर्चे पर उसे अपने हक और अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है। Dowry Cases In India
भारत में महिलाओं की सुरक्षा पर किए जा रहे तमाम दावे एक बार फिर कटघरे में हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि देश की हर तीसरी विवाहित महिला अपने ही पति के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार है। यह स्थिति न केवल घरेलू हिंसा की गहराई को दर्शाती है, बल्कि समाज की सोच और न्याय व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है।
दहेज हत्याएं: आंकड़े जो चौंकाते हैं
भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले तमाम दावे NCRB की ताज़ा रिपोर्ट के आगे बौने नज़र आते हैं। सिर्फ साल 2022 में दहेज उत्पीड़न ने 6,516 महिलाओं की जान ले ली, और यह संख्या बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के बाद हुई हत्याओं से 25 गुना अधिक है। यह सच्चाई बताती है कि दहेज नाम की कुरीति आज भी भारतीय समाज की सबसे खतरनाक चुनौती बनी हुई है, जहां शादी जैसे पवित्र बंधन को ही औरतों के लिए हिंसा और मौत की जंजीर बना दिया गया है।
कानून होने के बावजूद रिपोर्टिंग कम
1961 में दहेज निषेध कानून लागू होने के छह दशक बाद भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। NCRB के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में इस कानून के तहत महज़ 13,641 शिकायतें दर्ज हुईं, जबकि हकीकत यह है कि दहेज उत्पीड़न झेलने वाली हर तीसरी महिला अपनी जान गंवा रही है। यह खामोशी डर से नहीं, बल्कि उस समाज और व्यवस्था की विफलता से पैदा होती है, जहां महिलाएं तब तक आवाज़ नहीं उठातीं जब तक हालात निक्की भाटी जैसी दर्दनाक घटनाओं तक न पहुंच जाएं।
घरेलू हिंसा की काली तस्वीर
घर, जिसे महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह माना जाता है, वही उनकी सबसे बड़ी असुरक्षा का गढ़ बन चुका है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 2019-21 के अनुसार, 18 से 49 वर्ष की हर तीसरी महिला अपने ही पति के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेलती है। ये आंकड़े न सिर्फ घरेलू हिंसा की भयावह तस्वीर पेश करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि भारतीय समाज में महिलाओं की सुरक्षा सबसे गहरे संकट से जूझ रही है।
यह भी पढ़े: बलोचिस्तान में फिर भड़की हिंसा, बरसी पर BLA ने सेना को बनाया निशाना
न्याय प्रक्रिया की धीमी चाल
रिपोर्ट बताती है कि 2022 के अंत तक अदालतों में 60,577 दहेज हत्या के केस लंबित थे। इनमें से 54,416 पुराने मामले थे। साल 2022 में निपटाए गए 3,689 मामलों में केवल 33% में ही दोषसिद्धि हो पाई। वहीं नए दाखिल 6,161 मामलों में महज़ 99 में सज़ा सुनाई गई। इसका मतलब है कि किसी भी दहेज हत्या के केस में एक साल के भीतर न्याय मिलने की संभावना 2% से भी कम है।
समाज की सोच अब भी पिछड़ी
2010 में प्रकाशित किताब ‘भारत में मानव विकास: परिवर्तनशील समाज की चुनौतियां’ बताती है कि शादी का औसत खर्च दुल्हन पक्ष के लिए दूल्हे की तुलना में डेढ़ गुना अधिक होता है। सर्वे के मुताबिक 24% परिवारों ने माना कि उन्होंने शादी में टीवी, फ्रिज, कार या मोटरसाइकिल जैसी चीजें दहेज में दीं। वहीं 29% परिवारों ने स्वीकार किया कि दहेज न मिलने पर बहू को पीटना आम चलन है। यह आंकड़े समाज की जड़ में मौजूद सोच को उजागर करते हैं। Dowry Cases In India
महिला ही वह शक्ति है जो परिवार को संवारती है, समाज को दिशा देती है और राष्ट्र को नई ऊँचाइयों तक ले जाती है। लेकिन दुख की बात है कि वही महिला आज असुरक्षा और हिंसा की सबसे बड़ी शिकार बनी हुई है। कभी दहेज के नाम पर, तो कभी घरेलू हिंसा, यौन शोषण या कार्यस्थल पर उत्पीड़न के रूप में हर मोर्चे पर उसे अपने हक और अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है। Dowry Cases In India
भारत में महिलाओं की सुरक्षा पर किए जा रहे तमाम दावे एक बार फिर कटघरे में हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि देश की हर तीसरी विवाहित महिला अपने ही पति के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार है। यह स्थिति न केवल घरेलू हिंसा की गहराई को दर्शाती है, बल्कि समाज की सोच और न्याय व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है।
दहेज हत्याएं: आंकड़े जो चौंकाते हैं
भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले तमाम दावे NCRB की ताज़ा रिपोर्ट के आगे बौने नज़र आते हैं। सिर्फ साल 2022 में दहेज उत्पीड़न ने 6,516 महिलाओं की जान ले ली, और यह संख्या बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के बाद हुई हत्याओं से 25 गुना अधिक है। यह सच्चाई बताती है कि दहेज नाम की कुरीति आज भी भारतीय समाज की सबसे खतरनाक चुनौती बनी हुई है, जहां शादी जैसे पवित्र बंधन को ही औरतों के लिए हिंसा और मौत की जंजीर बना दिया गया है।
कानून होने के बावजूद रिपोर्टिंग कम
1961 में दहेज निषेध कानून लागू होने के छह दशक बाद भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। NCRB के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में इस कानून के तहत महज़ 13,641 शिकायतें दर्ज हुईं, जबकि हकीकत यह है कि दहेज उत्पीड़न झेलने वाली हर तीसरी महिला अपनी जान गंवा रही है। यह खामोशी डर से नहीं, बल्कि उस समाज और व्यवस्था की विफलता से पैदा होती है, जहां महिलाएं तब तक आवाज़ नहीं उठातीं जब तक हालात निक्की भाटी जैसी दर्दनाक घटनाओं तक न पहुंच जाएं।
घरेलू हिंसा की काली तस्वीर
घर, जिसे महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह माना जाता है, वही उनकी सबसे बड़ी असुरक्षा का गढ़ बन चुका है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 2019-21 के अनुसार, 18 से 49 वर्ष की हर तीसरी महिला अपने ही पति के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेलती है। ये आंकड़े न सिर्फ घरेलू हिंसा की भयावह तस्वीर पेश करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि भारतीय समाज में महिलाओं की सुरक्षा सबसे गहरे संकट से जूझ रही है।
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न्याय प्रक्रिया की धीमी चाल
रिपोर्ट बताती है कि 2022 के अंत तक अदालतों में 60,577 दहेज हत्या के केस लंबित थे। इनमें से 54,416 पुराने मामले थे। साल 2022 में निपटाए गए 3,689 मामलों में केवल 33% में ही दोषसिद्धि हो पाई। वहीं नए दाखिल 6,161 मामलों में महज़ 99 में सज़ा सुनाई गई। इसका मतलब है कि किसी भी दहेज हत्या के केस में एक साल के भीतर न्याय मिलने की संभावना 2% से भी कम है।
समाज की सोच अब भी पिछड़ी
2010 में प्रकाशित किताब ‘भारत में मानव विकास: परिवर्तनशील समाज की चुनौतियां’ बताती है कि शादी का औसत खर्च दुल्हन पक्ष के लिए दूल्हे की तुलना में डेढ़ गुना अधिक होता है। सर्वे के मुताबिक 24% परिवारों ने माना कि उन्होंने शादी में टीवी, फ्रिज, कार या मोटरसाइकिल जैसी चीजें दहेज में दीं। वहीं 29% परिवारों ने स्वीकार किया कि दहेज न मिलने पर बहू को पीटना आम चलन है। यह आंकड़े समाज की जड़ में मौजूद सोच को उजागर करते हैं। Dowry Cases In India







