घरेलू हिंसा से दहेज हत्याओं तक… भारत में महिलाएं कितनी सुरक्षित ?

घरेलू हिंसा से दहेज हत्याओं तक… भारत में महिलाएं कितनी सुरक्षित ?
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 03:00 AM
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महिला ही वह शक्ति है जो परिवार को संवारती है, समाज को दिशा देती है और राष्ट्र को नई ऊँचाइयों तक ले जाती है। लेकिन दुख की बात है कि वही महिला आज असुरक्षा और हिंसा की सबसे बड़ी शिकार बनी हुई है। कभी दहेज के नाम पर, तो कभी घरेलू हिंसा, यौन शोषण या कार्यस्थल पर उत्पीड़न के रूप में  हर मोर्चे पर उसे अपने हक और अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है।  Dowry Cases In India

भारत में महिलाओं की सुरक्षा पर किए जा रहे तमाम दावे एक बार फिर कटघरे में हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि देश की हर तीसरी विवाहित महिला अपने ही पति के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार है। यह स्थिति न केवल घरेलू हिंसा की गहराई को दर्शाती है, बल्कि समाज की सोच और न्याय व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है।

दहेज हत्याएं: आंकड़े जो चौंकाते हैं

भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले तमाम दावे NCRB की ताज़ा रिपोर्ट के आगे बौने नज़र आते हैं। सिर्फ साल 2022 में दहेज उत्पीड़न ने 6,516 महिलाओं की जान ले ली, और यह संख्या बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के बाद हुई हत्याओं से 25 गुना अधिक है। यह सच्चाई बताती है कि दहेज नाम की कुरीति आज भी भारतीय समाज की सबसे खतरनाक चुनौती बनी हुई है, जहां शादी जैसे पवित्र बंधन को ही औरतों के लिए हिंसा और मौत की जंजीर बना दिया गया है।

कानून होने के बावजूद रिपोर्टिंग कम

1961 में दहेज निषेध कानून लागू होने के छह दशक बाद भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। NCRB के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में इस कानून के तहत महज़ 13,641 शिकायतें दर्ज हुईं, जबकि हकीकत यह है कि दहेज उत्पीड़न झेलने वाली हर तीसरी महिला अपनी जान गंवा रही है। यह खामोशी डर से नहीं, बल्कि उस समाज और व्यवस्था की विफलता से पैदा होती है, जहां महिलाएं तब तक आवाज़ नहीं उठातीं जब तक हालात निक्की भाटी जैसी दर्दनाक घटनाओं तक न पहुंच जाएं।

घरेलू हिंसा की काली तस्वीर

घर, जिसे महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह माना जाता है, वही उनकी सबसे बड़ी असुरक्षा का गढ़ बन चुका है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 2019-21 के अनुसार, 18 से 49 वर्ष की हर तीसरी महिला अपने ही पति के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेलती है। ये आंकड़े न सिर्फ घरेलू हिंसा की भयावह तस्वीर पेश करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि भारतीय समाज में महिलाओं की सुरक्षा सबसे गहरे संकट से जूझ रही है।

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न्याय प्रक्रिया की धीमी चाल

रिपोर्ट बताती है कि 2022 के अंत तक अदालतों में 60,577 दहेज हत्या के केस लंबित थे। इनमें से 54,416 पुराने मामले थे। साल 2022 में निपटाए गए 3,689 मामलों में केवल 33% में ही दोषसिद्धि हो पाई। वहीं नए दाखिल 6,161 मामलों में महज़ 99 में सज़ा सुनाई गई। इसका मतलब है कि किसी भी दहेज हत्या के केस में एक साल के भीतर न्याय मिलने की संभावना 2% से भी कम है।

समाज की सोच अब भी पिछड़ी

2010 में प्रकाशित किताब ‘भारत में मानव विकास: परिवर्तनशील समाज की चुनौतियां’ बताती है कि शादी का औसत खर्च दुल्हन पक्ष के लिए दूल्हे की तुलना में डेढ़ गुना अधिक होता है। सर्वे के मुताबिक 24% परिवारों ने माना कि उन्होंने शादी में टीवी, फ्रिज, कार या मोटरसाइकिल जैसी चीजें दहेज में दीं। वहीं 29% परिवारों ने स्वीकार किया कि दहेज न मिलने पर बहू को पीटना आम चलन है। यह आंकड़े समाज की जड़ में मौजूद सोच को उजागर करते हैं।  Dowry Cases In India

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उत्तर प्रदेश वालों के लिए बड़ी खबर, मुख्यमंत्री के ऊपर बनी फिल्म जल्द होगी रिलीज

उत्तर प्रदेश वालों के लिए बड़ी खबर, मुख्यमंत्री के ऊपर बनी फिल्म जल्द होगी रिलीज
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 03:33 AM
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बॉम्बे हाई कोर्ट से मिली फिल्म ‘अजेय’ को हरी झंडी: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आधारित फिल्म ‘अजेय’ को आखिरकार बॉम्बे हाई कोर्ट से रिलीज की अनुमति मिल गई है। यह फिल्म लंबे समय से सेंसर बोर्ड (CBFC) की आपत्तियों के कारण अटकी हुई थी। जब सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट देने से इंकार कर दिया, तो फिल्म के निर्माता अदालत का दरवाजा खटखटाने पहुंचे।

कोर्ट ने खुद देखी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर बनी फिल्म, नहीं मिला कोई आपत्तिजनक कंटेंट

बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस नीला गोखले की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की। अदालत ने साफ किया कि वे खुद फिल्म देखेंगे और उसके बाद ही फैसला सुनाएंगे। 21 अगस्त को फिल्म देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि इसमें किसी भी तरह की आपत्तिजनक सामग्री नहीं है। साथ ही फिल्म का डिस्क्लेमर देखकर कोर्ट ने संतोष जताया, जिसमें साफ लिखा गया है कि यह एक सिनेमैटिक अडॉप्शन है।

योगी आदित्यनाथ पर बनी फिल्म 'अजेय' से सेंसर बोर्ड की आपत्तियां खारिज:

सेंसर बोर्ड ने कोर्ट में दलील दी थी कि इस फिल्म से योगी आदित्यनाथ की छवि खराब हो सकती है। लेकिन जब कोर्ट ने पूछा कि उन्होंने फिल्म देखी है या किताब पढ़ी है जिस पर यह आधारित है, तो CBFC के वकील ने ‘ना’ में जवाब दिया। इस पर अदालत ने कहा कि बिना देखे आपत्ति जताना उचित नहीं है। अदालत ने साफ किया कि फिल्म में डीसेंसी या छवि खराब करने जैसी कोई बात नहीं है।

निर्माताओं के तर्क पर कोर्ट का फैसला

फिल्म निर्माताओं ने कोर्ट में दलील दी कि यह उनका फंडामेंटल राइट है कि वे अपनी फिल्म लोगों तक पहुंचा सकें। उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड की आपत्तियां केवल उनकी राय हैं और कानूनी रूप से मान्य नहीं हैं। कोर्ट ने निर्माताओं की याचिका को सही माना और फिल्म की रिलीज को मंजूरी दी। अब निर्माता अदालत के आदेश की कॉपी लेकर रिलीज डेट तय करेंगे।

जल्द सिनेमाघरों में दिखाई देगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर बनी फिल्म ‘अजेय’

कोर्ट के आदेश के बाद अब यह साफ हो गया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर बनी फिल्म ‘अजेय’ जल्द ही बड़े पर्दे पर दिखाई जाएगी। इस फिल्म का दर्शक लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब दर्शकों को इस फिल्म को देखने का मौका मिलेगा। उत्तर प्रदेश सरकार का बड़ा फैसला, प्रदेश में लगेगा रोजगार महाकुंभ
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जाट समाज के हर परिवार में चर्चित है धन्ना जाट की कहानी

जाट समाज के हर परिवार में चर्चित है धन्ना जाट की कहानी
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Aug 2025 05:13 PM
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जाट समाज भारत का प्रतिष्ठित समाज है। जाट समाज में अनेक महान विभूतियां पैदा हुई हैं। भारत का जाट समाज अपनी महान विभूतियों पर गर्व करता है। भारत के जाट समाज की विभूतियों में एक नाम है धन्ना जाट का नाम। धन्ना जाट का धन्ना सेठ तथा धन्ना भक्त के नाम से भी जाना जाता है। भारत में एक प्रसिद्ध कहावत भी धन्ना जाट के ऊपर बहुत प्रचलित है। कहावत यह है कि जब किसी पूंजीपति का जिक्र होता है तो कहा जाता है कि-‘‘तू कौन सा धन्ना सेठ है”। यहां हम धन्ना जाट की पूरी कहानी आपको बता रहे हैं। Dhanna Jatt

धन्ना जाट के ऊपर प्रचलित हैं अनेक कहानियां

जाट समाज के लगभग हर परिवार में धन्ना जाट की कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित है। दुर्भाग्य से जाट समाज की युवा पीढ़ी धन्ना जाट की कहानी को नहीं जानती। युवा पीढ़ी को भी धन्ना जाट के विषय में जानकारी मिले हम यहां यही प्रयास कर रहे हैं। धन्ना जाट कहें, धन्ना सेठ कहें अथवा धन्ना भक्त कहें यह तीनों एक ही व्यक्तित्व के नाम हैं। धन्ना सेठ की कहानी तथा उनका परिचय अलग-अलग ढंग से दिया जाता है। धन्ना जाट के विषय में एक कहानी तो यह है कि वह बेहद गरीब किसान थे। एक काले पत्थर के अंदर भगवान मानकर उसकी पूजा करने लगे। उन्होंने इतनी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान की पूजा तथा सेवा की कि उन्हें साक्षात भगवान विष्णु मिल गए। भगवान विष्णु ने धन्ना जाट के ऊपर मेहरबान होकर उनका घर धन-धान्य से भर दिया। इसी प्रकार अलग-अलग ढंग से धन्ना जाट की कहानियां सुनाई जाती हैं।

धन्ना जाट की सर्वाधिक प्रमाणिक तथा ज्यादा सुनाई जाने वाली कहानी

धन्ना जाट की सबसे प्रमाणिक मानी जाने वाली कहानी हम आपको बता रहे हैं। धन्ना जाट की इस कहानी के मुताबिक, धन्ना जाट का जन्म राजस्थान के एक जाट परिवार में 20 अप्रैल 1415 को हुआ था। जिनके पिता खासतौर से खेती और माता गौ पालन करती थी। कहानी की शुरुआत उस वक्त से होती है जब एक दिन धन्ना जाट के परिवार के कुलगुरु जिनका नाम पंडित त्रिलोचन था, तीर्थयात्रा करके लौटे और कुछ दिनों के लिए धन्ना जाट के घर पर ठहरे। पंडित त्रिलोचन शालिग्राम भगवान की सेवा किया करते थे, वे बड़े भाव से शालिग्राम शिला की सेवा करते, फूल अर्पित करते और उन्हें भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण किया करते थे। बालक धन्ना जाट पंडित जी को यह सब करते हुए देखता था, उसे भगवान की सेवा बहुत पसंद आयी। कुछ दिन बाद जब पंडित जी उनके घर से जाने लागे तो धन्ना जाट पंडित जी से शालिग्राम पत्थर लेने की जिद करने लगा और कहने लगा कि मझे ठाकुर जी चाहिए लेकिन पंडित जी ऐसे ठाकुर जी को कैसे दे सकते थे। धन्ना जाट को उनके माता-पिता ने बहुत समझाया लेकिन वो नहीं माने। आखिर में यही हुआ कि ये तो छोटा सा बच्चा है इसे क्या ही पता चलेगा कि आम पत्थर और शालिग्राम पत्थर में क्या अंतर होता है और अगले दिन पंडित जी ने स्नान किया तो वे नदी से एक काला पत्थर ले आए और धन्ना जाट से बोले कि मैं दो ठाकुर जी लाया हूं एक बडे वाले और दूसरा छोटे वाले आप को कौन सा चाहिए। तब उन्होंने ने बड़ा वाला ठाकुर जी मांग लिया। वही पत्थर जो पंडित जी नहाते वक्त लेकर आए थे उसे धन्ना जाट को शालीग्राम ठाकुर जी बताकर दे दिया। ठाकुर जी को पाकर धन्ना जाट बहुत खुश हुए और अपने साथ ही गाय चराने खेतों में लेकर जाने लगे। धन्ना जाट की मां अक्सर उन्हें बाजरे की रोटी और गुड दिया करती थी। ऐसे में धन्ना जाट ने ये निर्णय किया कि अब वो भी पंडित जी की ही तरह ठाकुर जी को भोग लगाकर ही खाना खायेंगे। उन्होंने जोर से आवाज लगाकर ठाकुर जी को भोग लगाया लेकिन ठाकुर जी ने उनका भोग नहीं लिया। तभी धन्ना जाट ने ये फैसला लिया कि जब तक तक ठाकुर जी प्रकट होकर उनका भोग नहीं लेते वो भी खाना नहीं खाएंगे। जब ठाकुरजी ने भोग नहीं लगाया तो धन्ना जाट ने शाम को वह रोटी गाय को खिला दी। तीन दिनों तक ऐसा ही चलता रहा न ठाकुरजी भोग लगाते और ना धन्ना जाट भोजन ग्रहण करते।

धन्ना जाट की श्रद्धा के कारण प्रकट हुए भगवान

धन्ना जाट तीन दिन तक भूखे रहे। चौथे दिन धन्ना जाट की माताजी फिर से रोटी लेकर आयी तो धन्ना जाट खेतों में जोर-जोर से रोने लगे और ठाकुर जी से गुहार लगाने लगे, वे बोले आप तो बड़े वाले ठाकुरजी है, आपको तो लोग रोज ही छप्पन भोग चढ़ाते होंगे, लेकिन मैं बालक तीन दिन से भूखा और परेशान हूं, आपको मुझ पर दया नहीं आती है क्या, मुझ पर दया करके ही थोड़ा भोग लगा लो जिससे मैं भी कुछ खा सकूँ, क्योकि पंडितजी ने कहा है कि आपको खिलाये बिना कुछ नहीं खाना। इसलिए पहले आप खा लो उसके बाद ही मैं खा सकूंगा। धन्ना जाट के भोलेपन से की गयी प्रार्थना को सुनकर भगवान श्री कृष्ण साक्षात् प्रकट हो गए। अपने ठाकुरजी को देखकर धन्ना जी बहुत प्रसन्न हो गए। उन्होंने ठाकुर जी को माँ की दी हुई बाजरे की रोटी साग और गुड़ खाने को दिया। ठाकुरजी बड़े चाव रोटी खाने लगे। चार रोटियों में से दो रोटी ठाकुर जी ने खा ली, जब ठाकुरजी तीसरी रोटी को खाने लगे तब धन्ना जाट ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा सारी रोटियां आप ही खा जायेगें क्या, मुझे भी तो भूख लगी है, मैंने तो चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया। दो रोटी आपने खा ली अब दो रोटी मेरे लिए छोड़ दो। इसके बाद ठाकुर जी मुस्कुराने लगे और बची हुई दो रोटियां धन्ना जाट ने खाई। ठाकुर जी को भोग लगाकर खाना अब जाट का रोज का नियम हो गया था जाट जब गायें चराने जाते तो भोजन खेतों में जाकर ठाकुरजी के साथ ही करते। एक दिन ठाकुरजी ने जाट से कहा तुम रोज मुझे रोटी खिलाते हो, मैं मुफ्त में रोटी नहीं खाना चाहता इसलिए मैं तुम्हारा कोई काम कर दिया करूंगा। धन्ना जाट ने कहा मैं तो बालक हूं केवल गायें ही चराता हूँ, मैं आपको क्या काम बता सकता हूं। तब ठाकुर जी ने कहा मैं तुम्हारी गायें ही चरा दिया करूंगा। उस दिन के बाद से ठाकुर जी धन्ना जाट की गायें चराने लगे। एक दिन धन्ना जाट ने ठाकुरजी से पूछा आप मुझे अपने ह्रदय से क्यों नहीं लगाते हैं, तब ठाकुर जी ने कहा मैं तुम्हारे सामने प्रत्यक्ष प्रकट हो गया हूं। लेकिन पूरी तरह से मैं तब मिलता हूँ जब कोई सदगुरु जीव को अपना लेते है, अभी तक तुमने किसी गुरु की शरणागति ग्रहण नहीं की है, इसलिए मैं तुम्हे अपने हृदय से नहीं लगा सकता। तब धन्ना जाट बोले मैं तो जानता नहीं की गुरु किसे कहते है, फिर मैं किसे अपना गुरु बनाऊं। ठाकुर जी बोले काशी में जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य मेरे ही स्वरूप में विराजमान है, तुम जाकर उनकी शरण ग्रहण करो। ठाकुर जी के कहे अनुसार धन्ना जाट ने काशी जाकर श्री रामानंदाचार्य जी की शरणागति ग्रहण कर ली, उस समय धन्ना जाट की आयु पंद्रह-सोलह वर्ष के आसपास थी। ठाकुर जी ने जब धन्ना जाट को गले से लगाया श्री रामानंदाचार्य जी ने धन्ना जी को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया और उन्हें आदेश दिया की अब तुम अपने घर चले जाओ। धन्ना जाट बोले गुरूजी अब मैं घर नहीं जाना चाहता तो आप मुझे घर जाने का आदेश क्यों दे रहें है। गुरूजी बोले अगर तुम यहां रहकर भजन करोगे तो केवल तुम्हारा ही कल्याण होगा, लेकिन अगर तुम अपने घर जाकर खेती किसानी करते हुए अपने माता-पिता की सेवा करते हुए भजन करोगे तो तुम्हारे साथ कई जीवों का उद्धार हो जायेगा। गुरूजी के आदेश पर धन्ना जाट घर लौट आये, इसके बाद जैसे ही धन्ना जाट घर पहुंचे ठाकुर जी ने उन्हें अपने ह्रदय से लगा लिया।

धन्ना जाट ने शुरू कर दी संत महात्माओं की सेवा

वापस अपने घर पर आकर धन्ना जाट ने संत तथा महात्माओं की सेवा शुरू कर दी। जब भी उनके गाँव में कोई साधु संत आते धन्ना जाट उन्हें अपने घर ले आते और बड़े प्रेम से उनकी सेवा करते उन्हें भोजन खिलते। संतों की सेवा करने के कारण अब उनके घर दूर-दूर से साधु-संत पधारने लगे। धन्ना जाट उन सभी का बड़े प्रेम से सत्कार करते और उन सभी को भोजन खिलाते। पिता ने साधुओं को घर आने से रोका एक दिन धन्ना जाट के पिताजी ने धन्ना जाट से कहा, देखो भाई हम लोग गृहस्त लोग है, यदि महीने में एकआध बार कोई साधु आ जाये तो हम उनकी सेवा भी कर दें और उन्हें भोजन भी करा दें, लेकिन तुम्हारी इन साधुओं से ऐसी दोस्ती हो गयी है की हर दूसरे दिन कोई न कोई साधु चला आता है और अपने साथ एक दो को और ले आता है। यह ठीक नहीं है, हम अपनी खेती-बाड़ी का काम करें या इन साधुओं की सेवा करें। तुम तो अभी बालक हो कुछ कमाते हो नहीं, तुम्हारा पालन पोषण भी हम ही करतें है और ऊपर से तुम साधुओं को बुला लाते हो। इस प्रकार इन निठल्ले साधुओं की सेवा करना ठीक नहीं है। इसलिए एक बात कान खोलकर सुन लो आज के बाद यदि तुम किसी साधु को घर लेकर आये तो मैं उन्हें घर में नहीं घुसने दूंगा। तुम्हे यदि साधु सेवा करनी है तो पहले कुछ कमाई करो फिर अपनी कमाई से साधु सेवा करना। पिताजी की बात सुनकर धन्ना जाट उदास हो गए और चुपचाप खड़े हो गए, तब पिताजी ने धन्ना जाट को डांटते हुए कहा आज के बाद किसी साधु को घर में लेकर मत आना और जाओ खेतों में गेहूं बोकर आओ। खेत तैयार है, बोरी में बीज का गेहूं रखा है, इसे बैलगाड़ी में ले जाओ और खेत में बो दो। धन्ना जाट ने बैलगाड़ी में गेहूं रख लिया और खेत में बोने चल दिए। धन्ना जाट थोड़ी दूर ही चले थे उन्हें मार्ग में पांच- छ: साधु-संतों की टोली आती दिखाई दी। धन्ना जाट ने बैलगाड़ी से उतरकर उन्हें शाष्टांग प्रणाम किया। संतों ने धन्ना जाट को आशीर्वाद दिया और पूछा बेटा इस गाँव में धन्ना जाट का घर कौन सा है, सुना है वे जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य के शिष्य है और बहुत छोटी उम्र में ही उन्होंने भगवान का दर्शन प्राप्त कर लिया है। हम भी उनका दर्शन करना चाहते है। यह सुनकर धन्ना जाट संकोच में पड गए और वे हाथ जोडक़र बड़ी विनम्रता से बोले महाराज मुझे ही लोग धन्ना जाट कहते है। संत बोले भगवान ने बड़ी कृपा की, हम जिनसे मिलने आये थे वे यहीं मिल गए, निश्चित ही आप ऐसे ही भक्त है, जैसा आपके विषय में सुना था, कितनी विनम्रता है आपमें। चलिये आपके घर चलतें है, वहीं बैठ कर आपसे चर्चा करेंगे। धन्ना जाट ने सोचा अभी पिताजी ने साधुओं को घर लाने के लिए मना किया है, यदि मैं खेतों में बीज बोने के बजाय इन साधु-संतों को घर ले गया तो पिताजी आसमान सिर पर उठा लेंगे और इन साधुओं को भी भगा देंगे। तब धन्ना जाट कुछ विचार करके बोले महाराज अभी घर पर कोई नहीं है, मैं भी खेतों की तरफ जा रहा हूँ, आप मेरे साथ वहीं चलिए। संत बोले ठीक है हमें तो आपसे मिलना था, अब आप जहाँ ले चलें हम वहीं चलेगें। फिर धन्ना जाट उन सभी को अपने खेत ले गए, खेत में एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर साधुओं को बैठाकर बोले महाराज आप यहीं पर कुछ देर विश्राम कीजिये तब तक मैं आपके भोजन की व्यवस्था करता हूँ। यह कहकर धन्ना जाट वहाँ से बैलगाड़ी लेकर चले गए। बैलगाड़ी लेकर धन्ना जाट सीधे बनिये की दुकान पर पहुंचे, वहां पर उन्होंने बैलगाड़ी में जो बीज वाला गेहूं जो खेत में बोने के लिए रखा था, उसे बनिये को बेच दिया और उससे दाल-बाटी और चूरमा बनाने का सारा सामान खरीद लिया। सामान लेकर धन्ना जाट खेत पहुंचे। वहाँ पर उन्होंने संतों के साथ मिलकर बहुत बढ़िया दाल बाटी और चूरमे का प्रसाद बनाया। भगवान को प्रसाद का भोग लगाने के बाद बड़े प्रेम से उन्होंने संतों को भोजन करवाया, इसी बीच भगवत चर्चा भी होती रही। संतों को भोजन करवाने के बाद बड़े प्रेम से उन्हें विदा भी कर दिया।

धन्ना जाट की श्रद्धा से रेत भी बन गया गेहूं का बीज

संतों के जाने के बाद धन्ना जाट सोचने लगे कि बीज वाले गेहूं को तो बेचकर संतों को भोजन करा दिया अब खेत में क्या बोया जाये। अगर पिताजी से फिर बीज माँगने गया तो पिताजी बहुत नाराज होंगे। यह सोचकर धन्ना जाट ने बोरियों में रेत भर ली और आसपास के लोगों को दिखने के लिए उस रेत को ही खेतों में बोने लगे। धन्ना जाट ने राम-राम का नाम लेते हुए शाम तक बोरियों की सारी रेत खेत में छिड़क दी। आस-पास के खेतों के किसान देख रहे थे की धन्ना जाट खेतों में गेहूं बो रहे है परन्तु वे तो खेतों में रेत बो रहे थे। खेत बोने के बाद धन्ना जाट बड़े प्रसन्न मन से घर की ओर चल दिए, वे सोचने लगे खेत में तो कुछ उगना नहीं है, तो देखभाल भी नहीं करनी पड़ेगी। घर पर पिताजी ने पूछा खेत बो आये, धन्ना जाट बोले, जी पिताजी बो आया। कुछ दिन बाद धन्ना जाट के पिताजी और गाँव के कुछ बड़े बूढ़े लोग धन्ना जाट के पास आये और बोले की तुमने कैसा खेत बोया है ऐसी फसल तो हमने अपने जीवन में आज तक नहीं देखी। ऐसा लगता है जैसे गेहूं का एक एक दाना नाप-नाप कर एक समान दूरी पर बोया गया है, और सारे ही दाने उग आएं हो। इतनी सुंदर फसल तो हमने आज तक नहीं देखी, ये सब तुमने कैसे किया। धन्ना जाट सोचने लगे ये सब उनको ताने मार रहें है, खेत में कुछ उगा ही नहीं होगा इसलिए ऐसी बातें बोल रहें है। तब धन्ना जाट ने स्वयं खेत पर जाकर देखा। वहाँ जाकर वे आश्चर्यचकित रह गए उन्होंने देखा जिस खेत में उन्होंने रेत बोई थी, वहाँ पर फसल उग आयी थी, और ऐसी सुन्दर फसल उन्होंने कभी नहीं देखी थी। फसल को देखकर धन्ना जाट को भगवान की कृपा का अहसास हुआ और उनकी आँखों से आँसू निकल आये। धन्ना जाट जोर-जोर से रोने लगे। जब धन्ना जाट के पिताजी और अन्य गाँव वालों ने रोने का कारण पूछा। तब धन्ना जाट ने रोते हुए सारी घटना कह सुनाई। धन्ना जाट बोले पिताजी जब आपने संतों को घर लाने के लिए मना किया था और खेत बोने के लिए गेहूं दिया था, उसी दिन मुझे मार्ग में कुछ संत मिल गए। मैंने उन संतों को अपने खेत पर ठहराया और बीज वाला गेहूं बनिये को बेचकर संतों को भोजन करवाया। इसके बाद मैंने खेतों में रेत बो दी, रेत बोने के बाद यह फसल कैसे उग आयी मुझे नहीं मालूम। धन्ना जाट की यह बात सुनकर उनके पिताजी के भी आंसू निकल आये और वे बोले मेरा धन्य भाग जो मेरे घर में ऐसे पुत्र ने जन्म लिया। आज के बाद हम तुम्हेंं रोकेंगे नहीं खूब साधु बुलाओ खूब संत सेवा करो हम तुम्हें अब कभी मना नहीं करेंगें। आज से मैं भी भगवान की भक्ति किया करूँगा और तुम्हारे साथ संतों की सेवा किया करूँगा। इसके बाद धन्ना जाट और उनके परिवार वाले खूब संत सेवा करने लगे। कुछ समय बाद धन्ना जाट की उगाई हुई फसल को काटने का समय आ गया। उस फसल से उतने ही आकर की खेती से 50 गुना ज्यादा गेहूँ निकला, यह गेहूँ इतना ज्यादा था की उसे रखने तक की जगह नहीं बची थी। गाँव से सभी लोग धन्ना जाट की फसल देखकर आश्चर्य करने लगे। इस प्रकार धन्ना जाट एक साधारण जाट से धन्ना सेठ बन गए। बाद में उन्हें धन्ना भक्त के नाम से जाना गया।

धन्ना जाट के ऊपर दारा सिंह ने बनाई थी फिल्म

भारत के प्रसिद्ध पहलवान दारा सिंह भी जाट समाज से आते थे। पहलवानी की पारी पूरी करके दारा सिंह फिल्म निर्माता तथा अभिनेता बन गए थे। दारा सिंह ने धन्ना जाट के जीवन पर आधारित बहुत ही शानदार फिल्म का निर्माण किया था। यहां दिए गए लिंक के द्वारा आप धन्ना जाट के ऊपर बनाई गई फिल्म को भी देख सकते हैं। Dhanna Jatt