पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हवा पर योगी सरकार सख्त, 7 विभागों से रिपोर्ट तलब

यह निर्देश वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़ी एजेंसी/आयोग के पत्र के अनुपालन में जारी हुए हैं, ताकि उत्तर प्रदेश के एनसीआर बेल्ट में प्रदूषण नियंत्रण केवल “अभियान” नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली मापनीय रणनीति बनकर लागू हो सके।

योगी सरकार ने 7 विभागों से मांगी कार्रवाई रिपोर्ट
योगी सरकार ने 7 विभागों से मांगी कार्रवाई रिपोर्ट
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar15 Dec 2025 10:49 AM
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UP News : दिल्ली -एनसीआर की सरहद से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर योगी सरकार ने रुख और कड़ा कर दिया है। प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए शासन ने सात विभागों से अब तक उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। साथ ही उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद समेत मेरठ, हापुड़–पिलखुआ, बुलंदशहर, खुर्जा, बागपत–बड़ौत और मुजफ्फरनगर के विकास प्राधिकरणों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि वे “सालभर लागू” रहने वाली वार्षिक कार्ययोजना (Annual Action Plan) बनाकर शासन को सौंपें ताकि उत्तर प्रदेश में प्रदूषण पर नियंत्रण सिर्फ ‘सीजनल’ अभियान न रहे, बल्कि पूरे वर्ष सतत और परिणाम-आधारित रूप से लागू की जा सके।

एनसीआर बेल्ट में “धूल-धुआं” सबसे बड़ा खतरा

शासन की प्राथमिकता अब एनसीआर बेल्ट और उससे सटे उत्तर प्रदेश के जिलों में प्रदूषण के “असली कारणों” पर सीधी चोट करने की है। अधिकारियों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि इस बार रिपोर्ट सिर्फ कागजों की खानापूरी न बने, बल्कि जमीन पर दिखने वाले असरदार कदमों का पूरा ब्लूप्रिंट सामने आए अब तक क्या कार्रवाई हुई, कहां ढिलाई या कमी रही, किन बिंदुओं पर तुरंत सुधार जरूरी है और आगे उत्तर प्रदेश में निगरानी, नियंत्रण व जवाबदेही की व्यवस्था किस तरह मजबूत की जाएगी।

विकास प्राधिकरणों से मांगा गया “साल भर का रोडमैप”

उत्तर प्रदेश में एनसीआर से सटे जिलों के विकास प्राधिकरणों को सरकार ने साफ-साफ “टास्क मोड” में डाल दिया है। आदेश है कि हर प्राधिकरण अपने इलाके की वर्तमान वायु गुणवत्ता की तस्वीर शासन के सामने रखे, यह बताए कि प्रदूषण घटाने के लिए अब तक जमीन पर क्या-क्या कदम उठाए गए, और 2026 के लिए महीने-दर-महीने/सीजन-वार एक्शन प्लान भी पेश करे। खास तौर पर निर्माण स्थलों पर उड़ती धूल को रोकने, मलबा प्रबंधन, नियमित पानी के छिड़काव, और ग्रीन कवर बढ़ाने जैसी कार्रवाइयों का स्पष्ट रोडमैप मांगा गया है। यह निर्देश वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़ी एजेंसी/आयोग के पत्र के अनुपालन में जारी हुए हैं, ताकि उत्तर प्रदेश के एनसीआर बेल्ट में प्रदूषण नियंत्रण केवल “अभियान” नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली मापनीय रणनीति बनकर लागू हो सके।

सात विभागों को सौंपा गया जिम्मेदारी का दायरा

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदूषण पर नियंत्रण को लेकर इस बार विभागों की जवाबदेही तय कर दी है। शासन स्तर पर कृषि, परिवहन, नगर विकास, गृह, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास, लोक निर्माण (PWD) और आवास एवं शहरी नियोजन विभागों से प्रस्ताव और विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई है। इन विभागों को यह स्पष्ट करना होगा कि प्रदेश में सालभर हवा की गुणवत्ता के औसत स्तर में सुधार कैसे लाया जाएगा, AQI/PM की निगरानी रोजाना या तय अंतराल पर किस सिस्टम से होगी, और प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर समझते हुए हॉटस्पॉट/संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कैसे की जाएगी। साथ ही, सरकार ने 2021 से 2025 के बीच किए गए सुधारात्मक कार्यों का लेखा-जोखा और 2026 में लागू होने वाले नए, ठोस और परिणाम-आधारित कदमों का रोडमैप भी मांगा है—ताकि उत्तर प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण सिर्फ मौसमी कवायद नहीं, बल्कि सालभर चलने वाली रणनीति बन सके।

पूर्वी यूपी में भी बढ़ी चिंता

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी प्रदूषण का असर तेज दिख रहा है। प्रयागराज में हाल के दिनों में हवा की गुणवत्ता गंभीर बताई जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार PM2.5 के स्तर में बेहद ऊंची रीडिंग दर्ज होने की बात सामने आई है। हालात को देखते हुए शहर में कई इलाकों में पानी का छिड़काव शुरू किया गया है और डॉक्टरों ने खासकर सुबह-शाम बाहर निकलने से बचने व मास्क के इस्तेमाल की सलाह दी है। विशेषज्ञों के मुताबिक तापमान गिरने के साथ कोहरा-धुंध प्रदूषक कणों को हवा में लंबे समय तक रोक रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश के कई शहरों में चल रहे पुनर्विकास/निर्माण कार्य भी धूल बढ़ाने का बड़ा कारण बन रहे हैं। प्रयागराज जैसे शहरों में स्टेशन, बस अड्डा, मेला क्षेत्र सहित कई जगहों पर काम तेज होने से धूल का असर बढ़ रहा है, हालांकि संबंधित एजेंसियों द्वारा छिड़काव और अस्थायी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। UP News

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उत्तर प्रदेश में कफ सिरप रैकेट का महाखुलासा, फर्जी फर्मों से हुई अरबों की कमाई

ना कहीं दुकान, ना गोदाम, ना स्टाफ और ना ही असली कारोबार के ठोस निशान। कई जगहों पर तो फर्मों में “अधिकृत” बताए गए लोग भी केवल दस्तावेजों में दर्ज नाम निकले, जिससे इस नेटवर्क की पकड़ उत्तर प्रदेश से निकलकर कई कड़ियों तक जाती दिख रही है।

उत्तर प्रदेश में अब तक का सबसे बड़ा कथित कागजी फर्जीवाड़ा
उत्तर प्रदेश में अब तक का सबसे बड़ा कथित कागजी फर्जीवाड़ा
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar15 Dec 2025 10:27 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश में कफ सिरप तस्करी के खिलाफ ईडी की जांच ने जैसे ही रफ्तार पकड़ी, वैसे ही “कागजों पर खड़े कारोबार” का एक चौंकाने वाला जाल सामने आने लगा। ईडी सूत्रों के मुताबिक इसे उत्तर प्रदेश में यह अब तक के सबसे बड़े कथित कागजी फर्जीवाड़ों में गिना जा रहा है, जहां 700 से ज्यादा फर्जी फर्मों के जरिए अरबों रुपये की काली कमाई को वैध कारोबार की शक्ल देने की कोशिश हुई। तीन राज्यों में 40 घंटे से अधिक चली छापेमारी में मिले शुरुआती सबूत बताते हैं कि करीब 220 लोगों के नाम-पते का इस्तेमाल कर फर्मों की पूरी “लाइन” तैयार कर दी गई। हैरत की बात यह है कि इनमें से बड़ी संख्या ऐसी फर्मों की रही, जिनका अस्तित्व सिर्फ फाइलों तक सीमित मिला ना कहीं दुकान, ना गोदाम, ना स्टाफ और ना ही असली कारोबार के ठोस निशान। कई जगहों पर तो फर्मों में “अधिकृत” बताए गए लोग भी केवल दस्तावेजों में दर्ज नाम निकले, जिससे इस नेटवर्क की पकड़ उत्तर प्रदेश से निकलकर कई कड़ियों तक जाती दिख रही है।

25+ ठिकाने, 3 राज्य और यूपी से जुड़ी कड़ियां

ईडी ने उत्तर प्रदेश की जड़ों से जुड़े इस नेटवर्क की तह तक पहुंचने के लिए गुजरात और झारखंड तक छापेमारी का दायरा फैलाते हुए 25 से ज्यादा ठिकानों पर एक साथ जांच की। कार्रवाई के दौरान हर कदम पर फर्जी दस्तावेजों की परतें, संदिग्ध बैंक ट्रांजैक्शन और कथित “डमी” फर्मों का ऐसा ताना-बाना सामने आया, जिसने निगरानी तंत्र की कमजोरी पर भी सवाल खड़े कर दिए। अधिकारियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पहली बार इतनी सुनियोजित और परतदार “फर्म-फर्जी” संरचना के संकेत मिले हैं। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि फेंसेडिल सिरप बनाने वाली एक कंपनी के कुछ अफसरों तक को इस खेल की भनक होने के संकेत हैं, लेकिन समय रहते उन्होंने चुप्पी साधे रखी। इससे पहले एसटीएफ के एएसपी लाल प्रताप सिंह भी इशारा कर चुके हैं कि कार्रवाई का दायरा दवा कंपनी के कुछ अधिकारियों तक पहुंच सकता है। अब ईडी के हाथ लगे नए सबूतों के बाद माना जा रहा है कि जांच की रफ्तार और तेज होगी, और यूपी में इस पूरे रैकेट की बड़ी कड़ियां जल्द सामने आ सकती हैं।

ईडी की एंट्री के बाद बढ़ी हलचल

बताया जा रहा है कि एसटीएफ की जांच पूरी होने के बाद भी कथित मास्टरमाइंड शुभम जायसवाल, पूर्व सांसद के करीबी आलोक सिंह और अमित टाटा ने खुद को बचाने के लिए अलग-अलग स्तर पर रणनीतियां अपनाईं। एसटीएफ की गिरफ्तारी के बावजूद शुरुआत में इनका पक्ष काफी निश्चिंत नजर आया, लेकिन जैसे ही ईडी ने ठिकानों पर छापेमारी कर वित्तीय साक्ष्य जुटाने शुरू किए, पूरे नेटवर्क में हलचल बढ़ गई।

बैंक खातों में संदिग्ध ट्रांजैक्शन

ईडी सूत्रों के मुताबिक दुबई में छिपे होने के आरोप झेल रहे शुभम जायसवाल के साथ-साथ आलोक सिंह, अमित टाटा और शुभम के पिता भोला प्रसाद जायसवाल के बैंक खातों में बड़े और संदिग्ध लेन-देन के संकेत मिले हैं। इनमें कुछ ट्रांजैक्शन ऐसे बताए जा रहे हैं जिनका पूरा विवरण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।

वहीं, फर्मों के नाम पर खोले गए खातों में भी कुछ लेन-देन “ट्रैक” नहीं हो पा रहे हैं। रांची और धनबाद से जुड़ी कुछ फर्मों के साथ रकम के आदान-प्रदान के सुराग भी मिले हैं। UP News

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जौनपुर में ‘बहू भोज’ की धूम, दूल्हे के डबल सरनेम ने खींचा सबका ध्यान

उस दौर में परिवार के पुरखे लाल बहादुर दुबे जमींदार बताए जाते हैं। समय के साथ पीढ़ियों में धर्म परिवर्तन हुआ, लेकिन परिवार ने अपनी ऐतिहासिक पहचान के प्रतीक के तौर पर ‘दुबे’ उपनाम को बनाए रखा।

जौनपुर का ‘बहू भोज’ जहां नाम नहीं, विरासत चर्चा में रही
जौनपुर का ‘बहू भोज’: जहां नाम नहीं, विरासत चर्चा में रही
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar15 Dec 2025 09:36 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में आयोजित एक विवाह समारोह इन दिनों खास चर्चा में है। वजह है दूल्हे का डबल सरनेम मोहम्मद खालिद दुबे। इस नाम के साथ जुड़ी कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि मुगलकाल से लेकर आज तक चलती आ रही वंश-परंपरा, पहचान और सामाजिक समरसता की मिसाल बनकर सामने आई है।

नाम में छुपा 17वीं सदी का इतिहास

जौनपुर की केराकत तहसील के देहरी गांव में रविवार को हुए इस विवाह को लोग सामान्य आयोजन की तरह नहीं देख रहे। परिवार का दावा है कि उनके पूर्वज 1669 में आजमगढ़ क्षेत्र से यहां आकर बसे थे। उस दौर में परिवार के पुरखे लाल बहादुर दुबे जमींदार बताए जाते हैं। समय के साथ पीढ़ियों में धर्म परिवर्तन हुआ, लेकिन परिवार ने अपनी ऐतिहासिक पहचान के प्रतीक के तौर पर ‘दुबे’ उपनाम को बनाए रखा।

‘बहू भोज’ में दिखी उत्तर प्रदेश की गंगा-जमुनी तहजीब

शादी के बाद आयोजित ‘बहू भोज’ (दावत-ए-वलीमा) का आयोजन खालिद दुबे के चाचा नौशाद अहमद दुबे ने किया। उनका कहना है कि यह सिर्फ नाम का मामला नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़े रहने का भाव है। उन्होंने परिवार की सोच साझा करते हुए कहा कि आस्था बदल सकती है, लेकिन वंश और इतिहास की स्मृति नहीं मिटती—और यही भाव इस आयोजन की सबसे बड़ी पहचान बन गया।

अलग-अलग समाजों की मौजूदगी ने बढ़ाई आयोजन की गरिमा

इस समारोह की एक और खास बात यह रही कि इसमें विभिन्न धर्मों और सामाजिक पृष्ठभूमियों से जुड़े लोग शामिल हुए। कार्यक्रम में पातालपुरी पीठ के जगद्गुरु बाबा बालकदास देवाचार्य महाराज, महंत जगदीश्वर दास, भारत सरकार की उर्दू काउंसिल की सदस्य नजनीन अंसारी और विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव गुरु की उपस्थिति रही।परिवार के मुताबिक, आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी कृष्ण गोपाल और इंद्रेश कुमार ने फोन पर शुभकामनाएं भी दीं। इससे यह आयोजन केवल पारिवारिक कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि उत्तर प्रदेश की साझी संस्कृति और सामाजिक सौहार्द का संदेश देने वाला मंच बन गया। UP News

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