OBC के बाद ब्राह्मणों पर फोकस, जनसंघ के तीन स्तंभों से BJP का बड़ा संदेश

OBC आधार को दोबारा साधने के संकेत पार्टी पहले ही दे चुकी है, और अब फोकस उन वर्गों पर लौटता दिख रहा है जो लंबे समय तक उसके पारंपरिक समर्थन के मजबूत स्तंभ रहे हैं खासकर ब्राह्मण समाज। इसी रणनीतिक पृष्ठभूमि में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ के ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ का लोकार्पण करेंगे।

लखनऊ का ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’
लखनऊ का ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar25 Dec 2025 11:28 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश में 2027 का चुनाव अभी दूर है, लेकिन उसकी सियासी स्क्रिप्ट अभी से लिखी जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बदले समीकरणों ने BJP को यह संदेश दे दिया कि अब जीत का रास्ता सिर्फ संगठन से नहीं, सामाजिक संदेश की बारीक ‘ट्यूनिंग’ से भी तय होगा। OBC आधार को दोबारा साधने के संकेत पार्टी पहले ही दे चुकी है, और अब फोकस उन वर्गों पर लौटता दिख रहा है जो लंबे समय तक उसके पारंपरिक समर्थन के मजबूत स्तंभ रहे हैं खासकर ब्राह्मण समाज। इसी रणनीतिक पृष्ठभूमि में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ के ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ का लोकार्पण करेंगे। जनसंघ की वैचारिक विरासत से जुड़े डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की विशाल प्रतिमाओं के साथ यह परिसर सिर्फ स्मृति का स्थल नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में संकेतों का नया मंच बनता दिख रहा है जहां इतिहास के जरिए 2027 के सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश की जा रही है।

लखनऊ से ‘अटल’ जुड़ाव और राजनीतिक संकेत

अटल बिहारी वाजपेयी और लखनऊ का रिश्ता सिर्फ चुनावी गणित तक सीमित नहीं रहा—यह शहर उनकी राजनीति की पहचान और कर्मभूमि दोनों बन गया। जनसंघ के शुरुआती दौर से लेकर BJP के राष्ट्रीय विस्तार तक, लखनऊ ने अटलजी को एक ऐसा मंच दिया जहां उनकी वाणी, विचार और नेतृत्व की छाप लगातार गहरी होती गई। 1990 के दशक से 2004 तक लखनऊ ने उन्हें बार-बार लोकसभा भेजा और इसी अवधि में अटलजी की राष्ट्रीय नेतृत्व-यात्रा निर्णायक ऊंचाइयों तक पहुंची। इसलिए उत्तर प्रदेश की राजधानी में अटलजी के नाम पर समर्पित स्मारक का विचार केवल स्मृतियों का संग्रह नहीं, बल्कि यूपी की राजनीति में भावनाओं और संदेशों का संगम भी है

तीन चेहरों के जरिए एक संदेश

लखनऊ में आकार ले चुका ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में संदेश देने वाला एक बड़ा सार्वजनिक परिसर बनकर उभरा है। यहां लगी प्रतिमाएं जनसंघ से लेकर BJP तक की वैचारिक यात्रा के उन चेहरों की याद दिलाती हैं, जिन्हें पार्टी अपने विचार-परिवार की धुरी मानती है। राजनीतिक मायने तब और गहरे हो जाते हैं जब यह तथ्य सामने आता है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी तीनों ब्राह्मण समाज के ऐसे राष्ट्रीय प्रतीक रहे हैं, जिनकी स्वीकार्यता पार्टी के ‘कोर सपोर्ट बेस’ में स्वाभाविक रूप से मजबूत रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में संकेत साफ पढ़ा जा रहा है पारंपरिक समर्थन स्तंभों को भरोसा दिलाना, अपने आधार को फिर से जोड़ना और ‘अपनों’ को साथ बनाए रखने का संदेश सबसे ऊंचे मंच से देना।

OBC के बाद अब ब्राह्मणों की तरफ क्यों बढ़ी नजर?

उत्तर प्रदेश में 2024 के नतीजों के बाद BJP के भीतर यह समझ और पुख्ता हुई है कि चुनावी बढ़त अब किसी एक सामाजिक धुरी पर टिककर लंबी नहीं चल सकती। इसलिए पार्टी एक तरफ OBC समुदायों के साथ संवाद, संगठन और संदेश का नया संतुलन गढ़ने में जुटी है, तो दूसरी ओर ऊंची जातियों खासकर ब्राह्मण समाज के भीतर उभरती असंतोष की हल्की-सी फुसफुसाहट को भी नजरअंदाज करने के मूड में नहीं दिखती। इसी पृष्ठभूमि में लखनऊ में हुई BJP के ब्राह्मण विधायकों की बैठक महज एक औपचारिक जुटान नहीं मानी जा रही। बैठक के बहाने जो संकेत बाहर आए, उनका निष्कर्ष यही है कि जातीय संतुलन की राजनीति में प्रतिनिधित्व, हिस्सेदारी और ‘आवाज’ को लेकर भीतरखाने मंथन तेज है। और उत्तर प्रदेश की सियासत में इस बैठक का वजन इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ऐसे वक्त हुई है जब संगठन में नए समीकरण, संभावित फेरबदल और 2027 की रणनीति को लेकर चर्चाएं लगातार गर्म हैं।

पार्क-पॉलिटिक्स की परंपरा और BJP की ‘नई राजनीतिक लकीर’

उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्मारक और पार्क सिर्फ ‘विकास’ की इमारतें नहीं रहे वे सत्ता की भाषा और समाज को भेजे जाने वाले संदेश का सबसे बड़ा मंच भी बने हैं। लखनऊ में बसपा ने दलित प्रतीकों को केंद्र में रखकर अपने सामाजिक आधार को पहचान और सम्मान की शक्ल दी, तो सपा ने समाजवादी विचारधारा से जुड़े नेताओं के नाम पर बड़े पार्क और स्थलों के जरिए अपना नैरेटिव गढ़ा। अब BJP उसी राजधानी लखनऊ में जनसंघ के तीन वैचारिक स्तंभों को केंद्र में रखकर एक नई राजनीतिक रेखा खींचती दिख रही है जहां उद्देश्य केवल स्मृति-संरक्षण नहीं, बल्कि विचारधारा की मुहर लगाना और अपने समर्थक वर्गों को भावनात्मक रूप से फिर से जोड़कर 2027 की राह के लिए जमीन तैयार करना भी है।

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोट की अहमियत

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण मतदाता संख्या के लिहाज से भले बहुत बड़े समूह की तरह न दिखें, लेकिन चुनावी मैदान में उनका असर कई बार निर्णायक साबित होता है। पूर्वांचल की कुछ सीटों से लेकर अवध के सियासी केंद्र तक और कानपुर-बुंदेलखंड पट्टी के कई क्षेत्रों में ब्राह्मण वोटिंग पैटर्न ऐसा ‘टर्निंग पॉइंट’ बन जाता है जो जीत-हार की रेखा बदल देता है। यही वजह है कि BJP के लिए यह वर्ग सिर्फ सामान्य समर्थक नहीं, बल्कि स्थिरता देने वाला कोर बेस माना जाता है और पार्टी यह संदेश साफ रखना चाहती है कि इस आधार में किसी भी तरह की ढील, दूरी या असंतोष की गुंजाइश नहीं छोड़ी जाएगी।

BJP के सामने दोहरी चुनौती

उत्तर प्रदेश में BJP के सामने इस वक्त चुनौती दोहरी है एक तरफ 2024 के बाद OBC आधार को फिर से सहेजकर भरोसा लौटाना, और दूसरी तरफ ऊंची जातियों के भीतर यह धारणा बनने से रोकना कि संगठन और सत्ता की हिस्सेदारी में उनका वजन घट रहा है। लखनऊ का ‘राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल’ इसी संतुलन-साधने वाली रणनीति की एक अहम कड़ी माना जा रहा है जहां विकास और विरासत की शब्दावली में राजनीतिक संदेश को बेहद नरमी और कौशल से पैक किया गया है। उत्तर प्रदेश की चुनावी प्रयोगशाला में BJP का यह कदम संकेत देता है कि 2027 से पहले पार्टी हर बड़े सामाजिक समूह को उसकी ‘भाषा’ में अलग-अलग सिग्नल देकर साथ रखने की तैयारी कर रही है। और राजधानी लखनऊ का यह आयोजन, ठीक इसी रणनीतिक दिशा में, एक बड़ा पड़ाव बनकर उभरता दिख रहा है। UP News

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लखनऊ की बदनाम जमीन बनेगी प्रेरणा-भूमि, पीएम मोदी आज देश को देंगे बड़ी सौगात

उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी में तैयार यह परिसर केवल स्मारक नहीं, बल्कि विचारों की विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने वाला केंद्र है जहां राष्ट्रनायकों के संघर्ष, योगदान और दर्शन को समेटता अत्याधुनिक संग्रहालय भी विकसित किया गया है, जिसका प्रधानमंत्री स्वयं निरीक्षण करेंगे।

पीएम मोदी करेंगे ‘राष्ट्र प्रेरणा स्थल’ का उद्घाटन
पीएम मोदी करेंगे ‘राष्ट्र प्रेरणा स्थल’ का उद्घाटन
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar25 Dec 2025 09:40 AM
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UP News : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आज एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने जा रही है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आज एक ऐसे ऐतिहासिक क्षण की दहलीज पर खड़ी है, जो विकास और विरासत दोनों का संदेश देता है। जिस जगह कभी दुर्गंध, गंदगी और कूड़े के ढेर के कारण लोग रास्ता बदल लेते थे, वही भूमि अब राष्ट्रनिर्माण की प्रेरणा का नया प्रतीक बनने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचकर भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती के अवसर पर भव्य ‘राष्ट्र प्रेरणा स्थल’ का लोकार्पण करेंगे। इस अवसर पर वे अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की कांस्य प्रतिमाओं का अनावरण भी करेंगे। उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी में तैयार यह परिसर केवल स्मारक नहीं, बल्कि विचारों की विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने वाला केंद्र है जहां राष्ट्रनायकों के संघर्ष, योगदान और दर्शन को समेटता अत्याधुनिक संग्रहालय भी विकसित किया गया है, जिसका प्रधानमंत्री स्वयं निरीक्षण करेंगे।

यूपी की मिट्टी से निकली विकास की मिसाल

करीब 65 एकड़ में फैला यह राष्ट्र प्रेरणा स्थल लगभग 230 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है। स्थापत्य, संस्कृति और विचारधारा का यह संगम उत्तर प्रदेश को देश के वैचारिक मानचित्र पर एक नई पहचान देता है। यह स्थल केवल स्मारक नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए राष्ट्रभक्ति और सेवा भाव की पाठशाला के रूप में विकसित किया गया है।

कभी कूड़े का पहाड़, आज प्रेरणा का प्रतीक

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आईआईएम रोड स्थित घैला क्षेत्र कभी शहर का सबसे बदनाम डंपिंग ग्राउंड माना जाता था। चारों तरफ कूड़े के पहाड़, तेज दुर्गंध और जहरीली मिट्टी इसका असर सिर्फ आसपास के मोहल्लों तक सीमित नहीं था यह इलाका गोमती नदी के प्रदूषण का कारण बन रहा था और आसपास की उपजाऊ जमीन भी लगातार बर्बाद हो रही थी। मगर नगर निगम ने इस बदनुमा दाग को इतिहास बनाने का फैसला किया। साढ़े छह लाख मीट्रिक टन से ज्यादा कचरा हटाना आसान नहीं था—यह एक बड़ा ऑपरेशन था, जिसे करीब छह साल की सतत मेहनत और लगभग 13 करोड़ रुपये की लागत के साथ अंजाम दिया गया। कचरे को मोहान रोड स्थित शिवरी में शिफ्ट करने के बाद लिगेसी वेस्ट को खत्म करने की प्रक्रिया चली, जिसमें करीब डेढ़ साल लगे। जमीन जब दोबारा “सांस लेने” लगी, तो उसे लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) को सौंप दिया गया और फिर अगले तीन वर्षों में वही बदनाम डंपिंग ग्राउंड बदलकर भव्य ‘राष्ट्र प्रेरणा स्थल’ के रूप में सामने आ गया।

अभेद सुरक्षा में प्रधानमंत्री का कार्यक्रम

प्रधानमंत्री के आगमन को लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और उसके आसपास का पूरा इलाका अभेद सुरक्षा व्यवस्था में तब्दील कर दिया गया है। एसपीजी, खुफिया एजेंसियों और तीनों सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारी बीते कई दिनों से सुरक्षा इंतजामों की हर परत पर पैनी नजर बनाए हुए हैं। जमीन से लेकर आसमान तक निगरानी का मजबूत घेरा तैयार किया गया है, ताकि किसी भी तरह की चूक की गुंजाइश न रहे। प्रधानमंत्री विशेष सैन्य हेलीकॉप्टर से सीधे कार्यक्रम स्थल पर उतरेंगे। उनके मूवमेंट को देखते हुए सभी प्रमुख मार्गों को पूरी तरह बाधा-मुक्त किया गया है। सड़कों की मरम्मत, रोशनी, साफ-सफाई और यातायात प्रबंधन पर खास ध्यान दिया गया है।

1.25 लाख लोगों के बैठने की व्यवस्था

लोकार्पण समारोह को लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तैयारियां चरम पर हैं। आयोजन स्थल पर करीब 1.25 लाख कुर्सियां लगाई गई हैं, ताकि भारी संख्या में लोग प्रधानमंत्री के संबोधन के साक्षी बन सकें। कार्यक्रम के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगभग 1 घंटा 55 मिनट तक परिसर में रहेंगे,लोकार्पण और प्रतिमाओं के अनावरण के बाद वे जनसभा को भी संबोधित करेंगे। इस ऐतिहासिक अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी भी कार्यक्रम को खास महत्व दे रही है। लखनऊ रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर कहा कि देश की महान विभूतियों की विरासत का सम्मान और संरक्षण सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने इस पहल को राष्ट्रनिर्माण की दिशा में एक अहम कदम बताते हुए इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का केंद्र बताया। UP News

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प्रयागराज का रहा है गौरवपूर्ण राजनीतिक इतिहास

ब्रिटिश शासन के दौरान प्रयागराज को संयुक्त प्रांत की राजधानी बनाया गया। राजधानी होने के कारण यहाँ प्रशासन, न्याय और नीति-निर्माण की गतिविधियाँ केंद्रित हुईं। इसी दौर में यह शहर राष्ट्रवादी विचारधाराओं और राजनीतिक जागरूकता का प्रमुख मंच बन गया।

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इलाहाबाद विवि
locationभारत
userयोगेन्द्र नाथ झा
calendar24 Dec 2025 06:53 PM
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UP News : प्रयागराज भारत के उन चुनिंदा नगरों में शामिल है, जिनकी पहचान केवल धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण में निभाई गई ऐतिहासिक राजनीतिक भूमिका से भी बनी है। यह नगर आधुनिक भारत की राजनीतिक चेतना, नेतृत्व और वैचारिक विकास का सशक्त केंद्र रहा है।

1. औपनिवेशिक काल में राजनीतिक महत्व

ब्रिटिश शासन के दौरान प्रयागराज को संयुक्त प्रांत की राजधानी बनाया गया। राजधानी होने के कारण यहाँ प्रशासन, न्याय और नीति-निर्माण की गतिविधियाँ केंद्रित हुईं। इसी दौर में यह शहर राष्ट्रवादी विचारधाराओं और राजनीतिक जागरूकता का प्रमुख मंच बन गया।

2. स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रयागराज की भूमिका अत्यंत निर्णायक रही। यहाँ से कई आंदोलनकारी रणनीतियाँ तैयार की गईं। विदेशी शासन के विरुद्ध जनमत तैयार करने में इस नगर के बुद्धिजीवियों, छात्रों और पत्रकारों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्रयागराज के अनेक नागरिकों ने जेल यात्राएँ कीं और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई।

3. नेहरू परिवार और राजनीतिक चेतना

प्रयागराज भारतीय राजनीति में नेहरू परिवार की कर्मभूमि के रूप में विशेष स्थान रखता है। मोतीलाल नेहरू ने इस नगर में रहकर न केवल कानून और राजनीति को नई दिशा दी, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम को संगठित स्वरूप भी प्रदान किया। जवाहरलाल नेहरू का राजनीतिक व्यक्तित्व यहीं विकसित हुआ, जिसने आगे चलकर भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को आकार दिया। आनंद भवन और स्वराज भवन जैसे स्थल राजनीतिक विचार-विमर्श और राष्ट्रीय आंदोलनों के जीवंत केंद्र बने।

4. प्रधानमंत्री देने वाला ऐतिहासिक नगर

प्रयागराज उन गिने-चुने नगरों में है, जिसने देश को कई प्रधानमंत्री दिए। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह नगर केवल जनसंख्या का नहीं, बल्कि नेतृत्व-निर्माण का केंद्र रहा है। यहाँ का राजनीतिक वातावरण राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व को जन्म देने में सक्षम रहा है।

5. शिक्षा और वैचारिक राजनीति

इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने राजनीतिक और बौद्धिक दृष्टि से प्रयागराज को विशेष पहचान दिलाई। यहाँ लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और संविधानिक मूल्यों पर गंभीर विमर्श हुआ। विश्वविद्यालय से निकले छात्र आगे चलकर राजनीति, प्रशासन और नीति-निर्धारण के महत्वपूर्ण पदों तक पहुँचे।

6. न्यायपालिका और राजनीतिक प्रभाव

प्रयागराज स्थित उच्च न्यायालय ने भारतीय लोकतंत्र की रक्षा में अहम भूमिका निभाई। कई ऐसे निर्णय यहीं से आए जिन्होंने देश की राजनीति की दिशा को प्रभावित किया। न्याय और राजनीति के संतुलन को बनाए रखने में इस नगर की भूमिका ऐतिहासिक रही है।

7. उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में योगदान

प्रयागराज लंबे समय तक उत्तर प्रदेश की राजनीति का वैचारिक मार्गदर्शक रहा। यहाँ से चुने गए जनप्रतिनिधियों ने विधानसभा से लेकर संसद तक प्रभावी नेतृत्व दिया। यह नगर राजनीतिक संवाद, बहस और नीति-निर्माण की प्रयोगशाला के रूप में कार्य करता रहा।

प्रयागराज केवल आस्था का संगम नहीं, बल्कि विचार, नेतृत्व और लोकतंत्र का संगम भी है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक भारत के शासन ढांचे तक, इस नगर ने राजनीतिक चेतना को दिशा दी है। भारतीय राजनीति के इतिहास में प्रयागराज का स्थान स्थायी, विशिष्ट और अत्यंत गौरवशाली है।

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