UP NEWS: पुलिस कमिश्नरी लिटमस टेस्ट

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इसलिए सौंपे गए दायित्व का न तो IG मुखर विरोध कर पा रहे हैं और न ही समर्थन। हां, कई जिलों का अधिकार छीन कर मात्र एक जनपद का कमिश्नर POLICE COMMISSIONER बना दिये जाने से उनमें घुटन जरूर है। कारण, उनकी हैसियत पुलिस उपमहानिरीक्षक DIG से भी नीचे मसलन, जनपद के पुलिस कप्तान तक ही सिमट कर रह गयी है। न तो इनका अलग से कोई दफ्तर है और न ही कोई आवास। पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER ये सब चीजें पुलिस कप्तान का ही यूज कर रहे हैं। [caption id="attachment_62311" align="alignnone" width="300"]
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चूंकि, सत्ता व सर्विस से ऐसे बंधे हैं कि जुबान खोल नहीं सकते। केवल एक चीज व एक नाम उनको मिला है और वह है पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER। पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER नाम तो सुनने में जरूर भारी भरकम है लेकिन, केवल और केवल एक जिले तक। जैसे दिल्ली और मुंबई में पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER का दायरा काफी बड़ा है। उनकी अहमियत भी है। दिल्ली का पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER पूरे दिल्ली प्रदेश का है। वैसे ही मुंबई एक बहुत बड़ा इकोनॉमी कैपिटल है और उस कैपिटल का पुलिस कमिश्नर होना शॉन की बात है। लेकिन, दिल्ली व मुंबई की नकल करके उसे उत्तर प्रदेश के जनपदों में लागू करना सफलता की परवान नहीं चढ़ पा रहा है। हां, यही पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER उत्तर प्रदेश में अकेला होता है बड़ी बात होती। उसका अलग प्रभाव होता।
बता दें, पुलिस कमिश्नरी की पहल तो अभी प्रदेश के केवल सात जनपदों गौतमबुद्वनगर, गाजियाबाद, आगरा, लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी में बतौर लिटमस टेस्ट है। वरिष्ठतम आईपीएस IPS अफसर पुलिस महानिरीक्षकों को पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER बनाकर एक जिले का इंचार्ज बना दिया गया है। पुलिस कमिश्नरी बनने के बाद अपराध पर लगाम लगा हो ऐसा नहीं दिखता। बल्कि, अपराध का ग्राफ बढ़ा ही है। कारण, इन अधिकारियों का मनोबल टूटा है।
सर्वविदित है, जिले का पुलिस इंचार्ज पुलिस कप्तान यानि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक SSP होता है अथवा छोटा जिला है तो वहां पर पुलिस अधीक्षक SP को भी बतौर कप्तानी दी जाती है। उसके ऊपर होते हैं पुलिस उप महानिरीक्षक DIG जो कई जिलों मसलन, एक मंडल जिसमें कई जिले होते हैं के अधिकारी इंचार्ज होते हैं। उनके अंदर कई पुलिस कप्तान होेते हैं। इसके बाद नंबर आता है पुलिस महानिरीक्षक IG का। ये कई मंडलों के इंचार्ज होते हैं। यानि कई पुलिस उप महानिक्षक DIG उनके अंदर काम करते हैं। कुल मिलाकर करीब IG कम से कम दस जिलों का इंचार्ज होता है। उसका तब अलग रूतबा होता है। लेकिन, पदनाम कमिश्नर POLICE COMMISSIONER पाकर वह अब एक ही जिले तक सिकुड़ कर रह गया है।
अगर सूत्रों पर भरोसा करें तो यूपी में पुलिस कमिश्नरी फेलियर साबित हो रहा है। इसलिए इस लिटमस टेस्ट को सरकार वापस भी ले सकती है। लिटमस टेस्ट इसलिए कि यदि यह फेल साबित हुआ तो निर्णय वापस हो जाता है। सफल रहने पर जारी भी रख सकते हैं।
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इसलिए सौंपे गए दायित्व का न तो IG मुखर विरोध कर पा रहे हैं और न ही समर्थन। हां, कई जिलों का अधिकार छीन कर मात्र एक जनपद का कमिश्नर POLICE COMMISSIONER बना दिये जाने से उनमें घुटन जरूर है। कारण, उनकी हैसियत पुलिस उपमहानिरीक्षक DIG से भी नीचे मसलन, जनपद के पुलिस कप्तान तक ही सिमट कर रह गयी है। न तो इनका अलग से कोई दफ्तर है और न ही कोई आवास। पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER ये सब चीजें पुलिस कप्तान का ही यूज कर रहे हैं। [caption id="attachment_62311" align="alignnone" width="300"]
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चूंकि, सत्ता व सर्विस से ऐसे बंधे हैं कि जुबान खोल नहीं सकते। केवल एक चीज व एक नाम उनको मिला है और वह है पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER। पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER नाम तो सुनने में जरूर भारी भरकम है लेकिन, केवल और केवल एक जिले तक। जैसे दिल्ली और मुंबई में पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER का दायरा काफी बड़ा है। उनकी अहमियत भी है। दिल्ली का पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER पूरे दिल्ली प्रदेश का है। वैसे ही मुंबई एक बहुत बड़ा इकोनॉमी कैपिटल है और उस कैपिटल का पुलिस कमिश्नर होना शॉन की बात है। लेकिन, दिल्ली व मुंबई की नकल करके उसे उत्तर प्रदेश के जनपदों में लागू करना सफलता की परवान नहीं चढ़ पा रहा है। हां, यही पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER उत्तर प्रदेश में अकेला होता है बड़ी बात होती। उसका अलग प्रभाव होता।
बता दें, पुलिस कमिश्नरी की पहल तो अभी प्रदेश के केवल सात जनपदों गौतमबुद्वनगर, गाजियाबाद, आगरा, लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी में बतौर लिटमस टेस्ट है। वरिष्ठतम आईपीएस IPS अफसर पुलिस महानिरीक्षकों को पुलिस कमिश्नर POLICE COMMISSIONER बनाकर एक जिले का इंचार्ज बना दिया गया है। पुलिस कमिश्नरी बनने के बाद अपराध पर लगाम लगा हो ऐसा नहीं दिखता। बल्कि, अपराध का ग्राफ बढ़ा ही है। कारण, इन अधिकारियों का मनोबल टूटा है।
सर्वविदित है, जिले का पुलिस इंचार्ज पुलिस कप्तान यानि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक SSP होता है अथवा छोटा जिला है तो वहां पर पुलिस अधीक्षक SP को भी बतौर कप्तानी दी जाती है। उसके ऊपर होते हैं पुलिस उप महानिरीक्षक DIG जो कई जिलों मसलन, एक मंडल जिसमें कई जिले होते हैं के अधिकारी इंचार्ज होते हैं। उनके अंदर कई पुलिस कप्तान होेते हैं। इसके बाद नंबर आता है पुलिस महानिरीक्षक IG का। ये कई मंडलों के इंचार्ज होते हैं। यानि कई पुलिस उप महानिक्षक DIG उनके अंदर काम करते हैं। कुल मिलाकर करीब IG कम से कम दस जिलों का इंचार्ज होता है। उसका तब अलग रूतबा होता है। लेकिन, पदनाम कमिश्नर POLICE COMMISSIONER पाकर वह अब एक ही जिले तक सिकुड़ कर रह गया है।
अगर सूत्रों पर भरोसा करें तो यूपी में पुलिस कमिश्नरी फेलियर साबित हो रहा है। इसलिए इस लिटमस टेस्ट को सरकार वापस भी ले सकती है। लिटमस टेस्ट इसलिए कि यदि यह फेल साबित हुआ तो निर्णय वापस हो जाता है। सफल रहने पर जारी भी रख सकते हैं।
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Admission) दिलाने का आश्वासन देते थे। छात्रों को अपने ऑफिस बुलाकर उन्हे बेंगलुरु व अन्य राज्यों के मेडिकल कॉलेजों (Medical Colleges) में कम पैसों में दाखिला दिलाने झांसा देते थे। छात्रों व उनके परिजनों का भरोसा जीतने के लिए यह उनका बकायदा एयर टिकट करा कर देते थे और उन्हें आईटीसी के लग्जरी होटलों में रुकवाते थे। अन्य राज्य में पहुंचने पर यश चतुर्वेदी उर्फ जय मेहता का एक आदमी छात्रों के परिजनों से संपर्क कर उन्हें खुद को मेडिकल कॉलेज का अधिकारी बताकर दाखिला दिलाने का पूरा आश्वासन देता था। इसके बाद होटल में बैठकर एडमिशन की एवज में रकम तय की जाती थी। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि आरोपियों ने उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान, दिल्ली व हरियाणा के दर्जनों लोगों को दाखिला दिलाने के नाम पर ठगी का शिकार बनाया है। आरोपी इतने शातिर है कि यह एक मोबाइल से केवल एक ही पार्टी से बात करते थे। उक्त मोबाइल का इस्तेमाल यह किसी अन्य से बात करने के लिए नहीं करते थे। जांच में पता चला है कि आरोपी करीब 13 बैंक अकाउंट प्रयोग में ला रहे थे। एडीसीपी ने बताया कि पुलिस ने ठगी के पैसों से दीपेंद्र द्वारा खरीदी गई अर्टिगा कार को सीज किया गया है। इनके पास से ठगी में प्रयुक्त मोबाइल फोन, सिम कार्ड, आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज बरामद हुए हैं। आरोपियों द्वारा ठगी में प्रयुक्त किए जाने वाले बैंक अकाउंट को भी सीज कराया गया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है कि अब तक इन लोगों ने कितने लोगों को अपनी ठगी का शिकार बनाया है।
दो से तीन महीने में बंद कर देते थे ऑफिस
पकड़े गए आरोपी ठगी की वारदात को अंजाम देने के तुरंत बाद अपना ठिकाना बदल लेते थे। किसी भी स्थान पर यह 2 से 3 माह से अधिक अपना ऑफिस नहीं रखते थे।
जांच में पता चला है कि आरोपियों ने कानपुर, लखनऊ, (Lucknow, Kanpur and Delhi) मालवीय नगर में भी ठगी का ऑफिस खोला था। यहां भी यह 2 से 3 महीने के भीतर ही ऑफिस बंद कर रफूचक्कर हो गए थे। पकड़े गए आरोपी दीपक, राजेश व यश चतुर्वेदी ऑफिस आने वाले लोगों से खुद ही डील करते थे और अपने स्टाफ को इस गोरखधंधे की भनक तक नहीं लगने देते थे। स्टाफ को भी यह लंबे समय तक ऑफिस में नहीं टिकने देते थे। ऑफिस में काम करने वाले स्टाफ को 15 से 20 दिनों के भीतर ही नौकरी से निकाल कर नया स्टाफ नियुक्त कर देते थे।