– डॉ. नीता सक्सेना
त्योहार व पर्व भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। अगली पीढ़ियों के लिए इन्हें सहेजकर रखना सबकी नैतिक जिम्मेदारी है। यूं भी भारत अकेला देश है, जहां त्योहारों का इतना लंबा और विशाल सिलसिला कायम है। शुद्ध भारतीय पर्व दीपावली का अपना विशिष्ट महत्व है। दीवाली 5 पर्वों की पूरी श्रृंखला है। क्रमशः धनतेरस से आरंभ होकर नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज पर संपन्न होता है।
Diwali Special :
इन पांचों पर्व का अपना एक अर्थ है। धन समृद्धि के लिए कुबेर की, रोग मुक्ति के लिए औषधि के देवता, मृत्यु भय नरक से मुक्ति के लिए यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है। माता लक्ष्मी समृद्धि की देवी हैं तो गजानन बुद्धि, मां सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं। दिवाली पर तीनों की पूजा का विधान है। यह दर्शाता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में धन के साथ साथ बुद्धि और विवेक का संतुलन बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है।
गोवर्धन पूजा गोवंश को समृद्ध करने का आधार है :
हमारे पुराणों में दीपावली मनाने की विभिन्न मान्यताएं प्रचलित हैं। नरक चतुर्दशी तिथि पर श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर 160000 हजार कन्याओं को उसके चंगुल से मुक्त कराया था। उनके प्रति आभार प्रकट करने के लिए स्वागत अभिनंदन के लिए दीप प्रज्ज्वलित किए गए। पांडवों की सकुशल वनवास वापसी पर दीपावली पूजन का उल्लेख मिलता है। हमारे ग्रंथों में यह भी वर्णन मिलता है कि वामन रूप में नारायण को कार्तिक त्रयोदशी से अमावस्या तक यानि तीन दिनों में तीन पगों में तीनों लोकों को दान कर दिया था, तब प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा बलि से वर मांगने को कहा। राजा बलि ने प्रार्थना की, हे प्रभु मुझे बस यह वर दें कि जो भी व्यक्ति इस दिन पवित्र भाव से दीप दान करेगा, उसका घर सदा लक्ष्मी का वास रहे। वह कभी यम की यातनाआंे से पीड़ित न हो। तब से आज तक दीप दान की सुंदर परंपरा चली आ रही है।
Diwali Special :
इसके अलावा महराजा विक्रमादित्य की महान विजयों के उपलक्ष्य में नगरवासियों ने दीप मालिका प्रज्ज्वलित कर उनका स्वागत किया।
लेकिन, दिवाली मनाने की सबसे प्राचीन प्रख्यात मान्यता रघुवंशी श्रीराम की रावण पर विजय को अयोध्यावासियों ने विजयोत्सव को आलोक पर्व के रूप में मनाया गया।
त्योहार तो आज भी बहुत जोर शोर से मना रहे हैं, लेकिन बदलते परिवेश में त्योहार मनाने के तरीकों में बदलाव आया है। कहीं ना कहीं आज हम पुरानी परंपराओं को भूलते जा रहे हैं। बाजार में ऑफर के लालच में फालतू की खरीददारी, दिखावे के लिए कीमती उपहार देना, देर रात तक पार्टी के नाम पर मदिरा सेवन, जुआ खेलने का चलन आम बात है। आतिशबाजी चलाना तो पैसे में आग लगाना जैसा ही है।
Diwali Special :
दीपावली को भारतीय संस्कृति परंपरा से मनाने के लिए इससे जुड़े रीति रिवाजों और कर्मकांडों को जानने समझने के लिए उसके मर्म को भी समझने की जरूरत है। अपनी परम्पराओं के अनुरूप त्योहार मनाएं। अंधविश्वास और झूठे आडम्बर और दिखावे से बचें, जिससे हम दीपावली के सकारात्मक शुभ परिणामों का लाभ ले सकें और हानिकारक प्रभावों से बच सकें। पर्व व त्योहार हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। इस धरोहर को सहेजना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
(लेखिका लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर हैं)