UP News : उत्तर प्रदेश में ढेर सारे अनोखे मंदिर मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश के इन्हीं अनोखे मंदिरों में भूत मंदिर भी शामिल है। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के इस भूत मंदिर को भूतों ने बनाया था। इसी कारण उत्तर प्रदेश के इस मंदिर का नाम भूत मंदिर अथवा भूतों वाला मंदिर पड़ गया। भूतों द्वारा बनाए गए उत्तर प्रदेश के इस इस मंदिर के निर्माण के साथ बहुत सारे किस्से जुड़े हुए हैं
उत्तर प्रदेश के वृंदावन में मौजूद है भूतों का मंदिर
उत्तर प्रदेश का मथुरा तथा वृंदावन पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। उत्तर प्रदेश के इसी वृंदावन में मौजूद है भूतों का मंदिर। लिखा पढ़ी में इस मंदिर का नाम गोविंद देव मंदिर है। उत्तर प्रदेश के वृंदावन में लाल बलुआ पत्थर से बने गोविंद देव मंदिर से कई अनोखे किस्से जुड़े हुए हैं। लता पताओं से घिरे वन क्षेत्र में जब सात मंजिला यह भव्य मंदिर बना, तो लोक मान्यता बन गई कि ऐसा चमत्कार तो भूत ही कर सकते हैं। कभी यह सात मंजिला मंदिर था, लेकिन वर्तमान में यह तीन मंजिला है। किंवदंती है कि भूत इसे रात को बना रहे थे। लेकिन मंदिर रात भर में सिर्फ तीन मंजिल ही बन सका और भूत इसका निर्माण अधूरा ही छोड़कर चले गए।
लोक मान्यता में भले ही इसे भूतों का मंदिर माना जाता हो, लेकिन इतिहास के पन्ने बताते हैं कि आमेर के राजा मानसिंह ने 1590 ई. में इसका निर्माण करवाया था। इसकी एक दीवार पर संस्कृत में लिखा शिलालेख इसकी गवाही देता है। यह बताता है कि अकबर के शासन के 34वें वर्ष में इसे बनवाया गया। शिल्पकार माणिकचंद चौपर का नाम भी लिखा है। मंदिर वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। इसके मूल तीन स्थान देव स्थान, पिरामिडनुमा छत वाला बंद मंडप और तीन तरफ से प्रवेशवाला दो मंजिला विशाल सभाकक्ष इसकी भव्यता को बयां करते हैं। महत्वपूर्ण विशेषता बालकनी और तोड़ेदार मेहराब हैं। मुख्य मंदिर के सामने ही त्रिरथ व सीढ़ीनुमा शिखर है। सभामंडप लैटिन क्रॉस आकार का है। छत समकालीन मुगल वास्तुकला शैली से प्रभावित है।
औरंगजेब ने तुड़वा दिया था उत्तर प्रदेश का भूत मंदिर
ब्रज संस्कृति शोध संस्थान, वृंदावन के शोध अधिकारी डॉ. राजेश शर्मा बताते हैं, ‘सप्त देवालयों में शामिल गोविंद देव मंदिर गोमा टीले पर चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी रूप गोस्वामी की प्रेरणा से बना था। रूप गोस्वामी को टीले पर श्री राधा वल्लभ का विग्रह प्राप्त हुआ, जिसे इस मंदिर में स्थापित कर भव्य मंदिर निर्माण हुआ। मुगलकाल में जब मंदिर तोड़े जाने लगे, तो सेवायत श्री राधा वल्लभ के इस विग्रह को कामवन होते हुए आमेर ले गए। उस वक्त कामवन मुगल सत्ता की सीमा से बाहर था। वह विग्रह आज भी जयपुर में विराजमान है। किंवदंती यह भी है कि सात मंजिला इस मंदिर के शिखर पर रोज रात भर दीपक जलता था। आगरा में बैठे औरंगजेब ने एक दिन रात को इसे देखा, तो वह चिढ़ गया और उसने इस मंदिर के शिखर को वर्ष 1669 में तुड़वा डाला। ऊपरी भाग पर एक मस्जिद का निर्माण करा दिया। इसे लोग कलंदरी मस्जिद कहने लगे। जब ब्रिटिश हुकूमत आई, तो मंदिर क्षतिग्रस्त था। जिले में अंग्रेज कलक्टर बनकर आए एफएस ग्राउस ने सन 1870 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। ग्राउस ने अपनी पुस्तक मथुरा ए डिस्ट्रिक्ट मेमॉयर में भी इस मंदिर का जिक्र किया है। UP News
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