Thursday, 2 January 2025

अचानक मिल गई है सरस्वती नदी की जलधारा, उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक चर्चा

UP News : सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत तेजी से वायरल हो रही है। इस वायरल वीडियो की उत्तर…

अचानक मिल गई है सरस्वती नदी की जलधारा, उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक चर्चा

UP News : सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत तेजी से वायरल हो रही है। इस वायरल वीडियो की उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक खूब चर्चा हो रही है। दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना तथा सरस्वती नदी की जो त्रिवेणी बनती है उसी सरस्वती नदी (Saraswati River) की जलधारा मिल गई है।  वायरल वीडियो पर उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक के यूजर्स लगातार दावा कर रहे हैं कि लम्बे अर्से से सोई हुई सरस्वती नदी की जलधारा अपने आप धरती पर प्रकट हो गई है। सरस्वती नदी हमेशा से पूज्यनीय नदी रही है।

क्या है सरस्वती नदी (Saraswati River) की जलधारा मिलने का राज

उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक अचानक सरस्वती नदी (Saraswati River) की चर्चा हो रही है। इस चर्चा का मुख्य कारण राजस्थान के जैसलमेर में अचानक प्रगट हुई एक जलधारा है। जैसलमेर के मोहनगढ़ का वायरल वीडियो तो शत प्रतिशत सही है, लेकिन सरस्वती नदी (Saraswati River) की जलधारा को लेकर किए जा रहे दावों का अभी तक कोई प्रमाण नहीं है। मौके पर पहुंचे भूजल वैज्ञानिक एनडी इनखिया ने कह रहे हैं कि बोरवेल खोदे जाने के दौरान अचानक इतना पानी आने की घटना सभी लोगों को अंचभित कर रही है लेकिन फिलहाल इस पानी के बहाव को सरस्वती नदी से कनेक्ट करना जल्दबाजी होगी। यह जांच का विषय है, जिस पर आगे जानकारी दी जाएगी। इसलिए यह दावा भ्रामक है कि मोहनगढ़ में जमीन के अंदर से निकल रह जल प्रवाह सरस्वती नदी (Saraswati River) का है। आप भी तेजी से वायरल हो रहे वीडियो को यहां नीचे दिए गए लिंक में देख सकते हैं। UP News

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से जुड़ी है सरस्वती नदी  

एक तरफ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ-2025 का आगमन होने वाला है. इस महाकुंभ की मान्यता इसलिए भी अधिक है, क्योंकि प्राचीन काल से यह मान्यता चली आ रही है कि प्रयागराज में त्रिवेणी यानी तीन नदियों का संगम है. यह तीन नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती हैं। जहां गंगा वर्तमान में परम पवित्र नदी है, जिसे मां का दर्जा प्राप्त है तो वहीं यमुना प्राचीन संस्कृतियों और सभ्यताओं की विरासत है. इस दोनों से ही अलग सरस्वती वह नदी है, जो सबसे प्राचीन है. यह योग, अध्यात्म, चेतना और शास्त्रों की विरासत को खुद में समेटे रखने वाली वह नदी है, जिसके किनारे सबसे पहले सभ्यता जन्मी। वेदों के सूक्त यहीं लिखे गए हैं और मंत्रद्रष्टा ऋषियों ने इसी पवित्र नदी के किनारे श्लोकों के संकलन गढ़े। UP News
किसी भी सभ्यता के पनपने, फलने-फूलने और विकसित होने में जल का बहुत बड़ा महत्व है. जल को जीवन ऐसे ही नहीं कहा गया है. यह प्राणियों में पनपने वाली पिपासा (प्यास) नाम की अग्नि का शमन (प्यास बुझाने वाला) करने वाला प्राकृतिक पदार्थ है। यह यज्ञ, शुचिता, भोजन, प्रवाह, गमन और ऊर्जा सभी की पूर्ति करने वाला है। ऐसे में जब वैदिक सभ्यता अभी पनप रही थी तो इसने सरस्वती नदी के तट को अपने अनुकूल पाया. यह तट हरा-भरा था। जीवन की जरूरत के सभी तत्व, पदार्थ और अवस्थाएं यहां मौजूद थीं। ऐसे में ऋषियों ने यहीं अपने आश्रम बसाए और फिर बाद में इसे सामाजिक व्यवस्था और ढांचे में बांटा।
यह सब कुछ सरस्वती नदी की ही वजह से संभव हो पाया इसलिए वशिष्ठ, अत्रि, दीर्घतमस, अंगिरस, मधुच्छन्दा आदि सभी ऋषियों ने सरस्वती नदी (Saraswati River) को माता कहा और इसे देवी कहकर संबोधित किया गया। ऋग्वेद के नदी सूक्त में कई नदियों का वर्णन हैं, लेकिन इसके एक सूक्त में सरस्वती नदी को नदीतमा कहा गया है। नदीतमा का अर्थ है, नदियों में सबसे उच्च और पवित्र। ऋग्वेद के सातवें मंडल में सरस्वती नदी का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है. ऋषि वशिष्ठ ने सरस्वती को न केवल भौगोलिक नदी के रूप में, बल्कि एक दैवी शक्ति और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित किया है।

क्या है सरस्वती नदी  का इतिहास

वैदिक काल के बाद जब पौराणिक युग आता है, जिनमें पुराणों की रचना हुई और पुराण कथाएं लिखी गईं, तब तक सरस्वती के किनारे पनपी सभ्यता का फैलाव अन्य मैदानी इलाकों में हो चुका था. लिहाजा यह प्राचीन समय जैसे-जैसे लुप्त होता गया, सरस्वती नदी भी लुप्त होने की ओर बढ़ चली। पुराण कथाओं में सरस्वती के नदी रूप से अधिक उनकी चर्चा त्रिदेवियों में पहली देवी के रूप में अधिक होती है। जिसमें वह कई जगहों पर ब्रह्मा की ब्राह्मी शक्ति सरस्वती के रूप में सामने आती हैं। इनका स्थान ब्रह्मलोक में हैं. वह वीणा वादिनी हैं। शु्भ्र सफेद हंस उनका वाहन है, जो कि ज्ञान का प्रतीक है। स्फटिक की माला धारण करती हैं। ज्ञान की देवी होने के कारण वेदों की वाणी भी वही हैं और सुर की देवी भी हैं। बल्कि ब्रह्मा उनकी ही सहायता से संसार की रचना करते हैं और देवी सरस्वती के कारण ही इस संसार में स्वर हैं, गूंज है। ध्वनि का प्रवाह है। जब तक देवी नहीं थीं तो यह संसार रंग-बिरंगा तो था, लेकिन शांत था।  इस बारे में एक जैसी ही कथा, विष्णु पुराण, वामन पुराण और नारद पुराण में मिलती है। कथा का सार कुछ यूं है कि, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, लेकिन वह प्रसन्न नहीं थे। सृष्टि मौन थी और ब्रह्मा रिक्तता (खालीपन) का अनुभव कर रहे थे। इस रिक्तता (खालीपन) की प्रेरणा से उन्होंने एक स्त्री देवी की कल्पना की और उनका सृजन किया। जब देवी ने अपनी वीणा की तान छेड़ी तो झरनों में शोर आया। नदियां कल-कल करने लगीं। पक्षी चहचहाने लगे. यानी सृष्टि रस से भर गई। यह देख ब्रह्मा भी प्रसन्न हुए। UP News

चूंकि देवी के आने से सृष्टि से सरस हुई थी, इसलिए इन्हें सरस्वती का नाम दिया गया. शब्द और नाद की उत्पत्ति को स्वर देने के कारण वह वाणी की देवी भी कहलाईं और श्रुतियों के संकलन के कारण वेदों का ज्ञान भी उन्हीं से प्राप्त हुआ. ब्रह्मदेव ने जिस पावन दिन देवी की उत्पत्ति की कल्पना की वह समय माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का था। इसी कारण इस दिन को वसंत पंचमी कहते हैं और देवी सरस्वती की पूजा करते हैं. पंचमी होने के कारण इसे श्री पंचमी भी कहा जाता है। बहुत शुभ तिथि होने के कारण यह दिन अबूझ तिथि कहलाता है. यानि कि इस दिन किसी शुभ कार्य को करने के लिए ग्रह-नक्षत्र का विचार नहीं करना पड़ता है। इस तरह पुराणों में सरस्वती अपने नदी रूप से उठकर देवी के रूप में स्थापित हुई हैं। बल्कि पुराणों में तो यह भी कथा कही गई है कि देवी सरस्वती जो कि ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव के साथ निवास करती हैं, एक श्राप के कारण उन्हें ही धरती पर नदी रूप में आना पड़ा था। UP News

दुर्वासा ऋषि ने सरस्वती को श्राप दे दिया था 

श्राप की यह कथा ऋषि दु्र्वासा से जुड़ी हुई है। इसके अनुसार एक बार ऋषि दु्र्वासा वेद ज्ञान के लिए ब्रह्मलोक गए। वहां वह ब्रह्मदेव से वेद की ऋचाएं सीख रहे थे। वेद की ऋचाएं गायन के पद में थीं। ब्रह्मदेव तो उन ऋचाओं को गाकर सुना रहे थे, लेकिन जब ऋषि दुर्वासा उन्हें दुहरा रहे थे तो वह अपनी मोटी आवाज में उन्हें स्वर में नहीं गा पा रहे थे. इस वजह से श्लोक के अक्षर और श्रुतियों में भी त्रुटि हो रही थी. बार-बार एक ही गलती के कारण और उनकी मोटी आवाज वाले स्वर सुनकर पास बैठीं सरस्वती नदी खिलखिला कर हंस पड़ी। पल में क्रोधित हो जाने वाले ऋषि दुर्वासा ने इसे अपना अपमान समझा और देवी सरस्वती को अहंकारी बता दिया. तब उन्होंने देवी सरस्वती को श्राप दिया कि जिस स्वर और वाणी के कारण आपको अहंकार हो गया है, अब वही स्वर और वाणी स्थल पर पानी की तरह बिखर जाएगा. जो दिव्य स्वर और वाणी अभी हर किसी के लिए दुर्लभ है, वह धरती पर सहज और सुलभ होकर बहेगा. उनके इस श्राप के कारण ही सरस्वती अगले ही पल जलधारा में बदल गईं और ब्रह्नलोक से गिरकर धरती पर आ गईं। इस कथा को न सिर्फ सरस्वती के श्राप से जोडक़र देखा जाता है, बल्कि इसे पुराणों में धरती पर जल के आगमन की पहली कथा के तौर पर भी देखा जाता है। इसी कथा के अनुसार धरती पर सरस्वती नदी का प्रवाह आया।
देवी सरस्वती का नदी रूप में आना ही नहीं, बल्कि यहां लुप्त हो जाने की भी वजह एक श्राप ही है। अभी आप चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम जाते हैं तो यहां माणा गांव के समीप पहाड़ी सोतों से गर्जना के साथ सरस्वती नदी का उद्गम होता हुआ देखा जा सकता है. हालांकि कुछ दूर चलने के बाद ही यह नदी उसी गांव की सीमा से भूमिगत हो जाती है. इसकी कई सारी वीडियो इंटरनेट और सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। सरस्वती नदी का जल यहां क्यों विलुप्त हो जाता है, इसके पीछे भी एक कथा है, जो कि महाभारत काल से जुड़ती है।
इसके अनुसार, महर्षि वेदव्यास के आग्रह पर विनायक श्रीगणेश ने महाभारत कथा का लेखन यहीं बद्रीनाथ धाम के पास स्थित एक गुफा में किया था। जिस समय गणेश जी व्यास जी से सुनकर श्लोक लिखते तब सरस्वती नदी अपनी तेज गर्जना के साथ उन्हें परेशान करतीं. इससे वह सही श्लोक नहीं सुन पा रहे थे। उन्होंने देवी से अपने वेग और प्रवाह को मंद करने के लिए कहा, लेकिन देवी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तब क्रोध में आए गणेश जी ने उन्हें भूमिगत हो जाने का श्राप दिया। इसके कारण ही हिमालय की कंदराओं से निकलती सरस्वती नदी माणा गांव की ही सीमा पर धरती के भीतर लुप्त होती दिखाई देती हैं।
उत्तर प्रदेश के तीर्थराज प्रयाग में तीनों नदियों का संगम होता था, लेकिन जब श्राप के कारण सरस्वती नदी लुप्त हो गईं तब यहां गंगा-यमुना का संगम होता तो दिखता है, लेकिन मान्यता है कि आज भी सरस्वती नदी की एक धारा भूमिगत होकर ही इन नदियों के साथ मिलती है और यहां अदृश्य त्रिवेणी का निर्माण करती हैं। UP News

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