Thursday, 21 November 2024

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गूंज रहा है हर-हर गंगे का नारा, कारण है बहुत खास

UP News : उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में हर-हर गंगे का नारा खूब गूंज रहा है। उत्तर प्रदेश के…

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गूंज रहा है हर-हर गंगे का नारा, कारण है बहुत खास

UP News : उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में हर-हर गंगे का नारा खूब गूंज रहा है। उत्तर प्रदेश के इस भाग को पश्चिमी उत्तर प्रदेश कहा जाता है। इसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर-हर गंगे का नारा गूंजने का कारण बहुत खास है। दरअसल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हर-हर गंगे तथा जय गंगा माई का उदघोष पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर साल सुनाई पड़ता है। लाखों की संख्या में गंगा जी के भक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एकत्र होते हैं।

गढ़ गंगा में लगा है बड़ा मेला

आपको बता दें कि हर साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर में गढ़ गंगा का मेला लगता है। वर्ष-2024 के गढ़ गंगा के मेले में 45 लाख से ज्यादा गंगा भक्तों के आने की उम्मीद जताई जा रही है। कार्तिक पूर्णिमा-2024 का पर्व 15 नवंबर को है। 15 नवंबर 2024 को गढ़ गंगा में मुख्य स्नान होगा। अनुमान है कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली एनसीआर (NCR) से बड़ी संख्या में भक्त मुख्य स्नान के दिन गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा के घाटों पर गंगा स्नान करेंगे। इस दौरान मेले को व्यवस्थित ढंग से चलाने को सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

जिला प्रशासन ने कर दिया है रूट डायवर्जन

उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर में लग रहे गढ़ गंगा मेले के कारण अनेक सावधानियां बरती जा रही हैं। हापुड़ के जिला प्रशासन ने रविवार से एनएच-9 पर रूट डायवर्ट किया है। हापुड़ में आने-जाने वाले ट्रैफिक को वैकल्पिक मार्ग से निकला जा रहा है। इससे गाजियाबाद, बुलंदशहर, अमरोहा और मेरठ से आने वाले वाहन प्रभावित हो रहे हैं। यह डायवर्जन 16 नवंबर की शाम तक जारी रहेगा। इन वाहनों को वैकल्पिक मार्गों से भेजा जाएगा। हापुड़ के एसपी ज्ञानंजय सिंह ने बताया कि भैंसा-बुग्गी रोकने के भी निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए दूसरे जिलों को सूचना दी गई। उन्होंने बताया शुरुआत में भारी वाहनों को डायवर्ट किया जाएगा, लेकिन यातायात का दबाव होने पर हल्के वाहनों को भी डायवर्ट किया जा सकता है।

बता दें कि 15 नवंबर को मुख्य स्नान है लेकिन इससे पहले ही गढ़ में लोगों की भीड़ जुट गई है। हापुड़ के एसपी ने बताया कि दिल्ली से मुरादाबाद, बरेली और लखनऊ जाने वाला ट्रैफिक डासना में ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे से बुलंदशहर, नरौरा, डिबाई होकर जाएगा। मेरठ से मुरादाबाद, लखनऊ जाने वाला ट्रैफिक मवाना रोड, मीरापुर, बैराज, बिजनौर सिटी होते हुए जाएगा। मुरादाबाद से दिल्ली, गाजियाबाद जाने वाला ट्रैफिक छजलैट कांठ, धामपुर, नगीना होकर गाजियाबाद जाएगा। गजरौला से दिल्ली, गाजियाबाद जाने वाला ट्रैफिक गजरौला चौपला से मंडी धनौरा, हल्दौर होकर जाएगा। मेरठ से बुलंदशहर, संभल, रामपुर जाने वाला ट्रैफिक किठौर, मुदाफरा, ततारपुर अंडरपास होते हुए बबराला, बहजोई जाएगा। दिल्ली, पंजाब, राजस्थान से मुरादाबाद और बरेली जाने वाला ट्रैफिक लालकुआं से दादरी, नरौरा, चंदौसी होकर मुरादाबाद जाएगा। गाजियाबाद से मुरादाबाद जाने वाला ट्रैफिक सोना पेट्रोल पंप से बुलंदशहर, बबराला, चंदौसी होकर जाएगा। अलीगढ़ जाने वाला ट्रैफिक सोना पेट्रोल पंप से बुलंदशहर होते हुए जाएगा। अलीगढ़ से देहरादून जाने वाला ट्रैफिक ततारपुर चौराहे से मेरठ होते हुए जाएगा।

विशेष महत्व है गढ गंगा मेले का

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर में लगने वाले गढ गंगा के मेले का विशेष महत्व है। गढ गंगा का स्नान धार्मिक मान्यताओं तथा परंपराओं से जुड़ा हुआ है। गढ़मुक्तेश्वर का एक लंबा और शानदार इतिहास है जो अभी के युग से पहले का है। महाभारत और भागवत पुराण जैसे प्राचीन हिंदू साहित्य के अनुसार, गढ़मुक्तेश्वर का हजारों साल पहले निर्माण किया गया था, जब हस्तिनापुर साम्राज्य था। इसे पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर का एक पुराना हिस्सा माना जाता है। वर्तमान में गढ़मुक्तेश्वर उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 120 किलोमीटर दूर है।

पुराने जमाने में शिव मंदिर की स्थापना और महान वल्लभ वंश का केंद्र होने के कारण, इस स्थान का नाम शिवल्लभपुर पड़ा जिसका उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। भगवान विष्णु, जय और विजय के भक्तों को नारद मुनि ने श्राप दिया था। उन्होंने कई धार्मिक स्थलों का दौरा किया लेकिन मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके वे शिवलल्लभुर आए और भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें श्राप से मुक्त किया ताकि वे मोक्ष प्राप्त कर सकें। यही कारण है कि इस स्थान को गढ़ (भक्त) मुक्तेश्वर (मोक्ष प्राप्त) कहा जाता है।

गढ़ गंगा का मेला पूरे एक सप्ताह तक चलता है। इस मेले का 5000 साल पुराना इतिहास है। कहा जाता है कि महाभारत की लड़ाई के बाद, युधिष्ठिर, अर्जुन और भगवान कृष्ण ने बहुत अपराध बोध महसूस किया क्योंकि परिवार के सदस्यों, दोस्तों और यहां तक कि दुश्मनों सहित हजारों लोग मारे गए थे। उनकी आत्मा को शांति नहीं थी। ऐसा करने के लिए, वे सभी बहुत परेशान हुए। वे सभी विभिन्न वेदों, पुराणों में समाधान खोजने लगे। अंत में, भगवान कृष्ण के नेतृत्व में योगियों और विद्वानों ने स्वयं खांडवी वन (वर्तमान गढ़ मुक्तेश्वर) में, जहां शिव मंदिर स्थित है में सभी आवश्यक अनुष्ठानों के साथ एक यज्ञ की मेजबानी करने का फैसला किया। उस यज्ञ के द्वारा महाभारत के युद्ध में मारे गये सभी  योद्घाओं की आत्मा को शांति प्राप्त हुई। पांडवों द्वारा यज्ञ की पूर्णाहुति कार्तिक पूर्णिमा को दी ई थी। इसी कारण कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गढ़ गंगा में स्नान करने का विशेष महत्व कायम है। यही कारण है कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर-हर गंगे का नारा गूंज रहा है। UP News

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