Saturday, 5 April 2025

उत्तर प्रदेश में अनूठी पहल, गायों के बनेंगे आधार कार्ड

UP News : उत्तर प्रदेश में एक अनूठी पहल हुई है। इस पहल के तहत उत्तर प्रदेश में गायों तथा…

उत्तर प्रदेश में अनूठी पहल, गायों के बनेंगे आधार कार्ड

UP News : उत्तर प्रदेश में एक अनूठी पहल हुई है। इस पहल के तहत उत्तर प्रदेश में गायों तथा पूरे गौवंश के आधार कार्ड बनाए जाएंगे। उत्तर प्रदेश में गायों के आधार कार्ड यानि कि डिजिटल पहचान-पत्र बनाने की योजना पर उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) में काम शुरू हो गया है। अब तक 300 गौवंश के परिचय-पत्र आधार कार्ड की तरह बनाए जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश के वैज्ञानिकों का कहना है कि गायों के परिचय-पत्र बनाने के बाद सभी प्रकार के पशुओं के डिजिटल पहचान-पत्र बनाए जाएंगे।

क्या है पूरी योजना

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में देश का सबसे पुराना पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान IVRI मौजूद है। IVRI के निदेशक ने शनिवार को बताया कि भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से पशुओं की बायोमेट्रिक पहचान की कवायद शुरू की है। यह पहचान मनुष्यों के आधार कार्ड की तरह से होगी। प्रोजेक्ट में गोवंश की डिजिटल आईडी यानी पहचान प्रक्रिया पर काफी सफलता मिली है। भेड़, बकरी, सूअर की भी आईडी बनाने पर कार्य हो रहा है। डिजिटल आईडी बनाने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आईआईटी के साथ संयुक्त प्रयास जारी है। बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. समीर श्रीवास्तव के मुताबिक प्रोजेक्ट की शुरुआत गायों की डिजिटल आईडी बनाने से हुई है। संस्थान के डेयरी फार्म के गोवंश को इसमें शामिल किया गया है। अब तक करीब पांच सौ गोवंश के थूथन के दानों के पैटर्न को डिजिटल इमेजिंग के साथ कंप्यूटर में दर्ज कर चुके हैं। बताया कि थूथन पर विशेष संरचना होती है। इसे आधार बनाकर बायोमेट्रिक पहचान के लिए डिजिटल आईडी बना रहे हैं। देसी, साहीवाल, थारपारकर, वृंदावनी समेत सभी प्रजाति के गोवंश के थूथन पर विशेष आकृति होती है। जैसे मनुष्य की अंगुली, आंख, जीभ में होती हैं। डॉ. समीर के मुताबिक पहले चरण में तीन हजार पशुओं की बायोमेट्रिक पहचान बनाई जाएगी।

कहां और कैसा है उत्तर प्रदेश में स्थित IVRI

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में स्थित इज्जतनगर में देश का सबसे पुराना भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान ( IVRI) स्थापित है। उत्तर प्रदेश में स्थित यह भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ)134 साल पुराना संस्थान है। 1889 में पुणे की एक लैब से शुरू हुआ सफर तमाम यादें समेटे हुए कई एकड़ के संस्थान के रूप में देश भर में प्रसिद्ध है। करीब 240 वैज्ञानिकों वाले उत्तर प्रदेश में स्थित इस संस्थान में पशुओं पर बेहतरीन शोध, सौ से ज्यादा नई टेक्नोलॉजी से लेकर 50 से ज्यादा वैक्सीन तैयार की जा चुकी हैं। उत्तर प्रदेश के इस संस्थान को एनआईआरएफ (नेशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क) की ओर से छठी रैंकिंग की प्राप्त हो चुकी है। साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद तमाम कोर्स शुरू होने से संस्थान स्किल डेवलपमेंट सेंटर के रूप में स्थापित हुआ है। संस्थान की स्थापना बैक्टीरियोलॉजिकल प्रयोगशाला के रूप में हुई थी।

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आइवीआरआइ संस्थान का सबसे बड़ा योगदान देश से रिंडरपेस्ट पशु महामारी का उन्मूलन है। उसके बाद संस्थान ने कई नैदानिकों और टीकों का विकास किया और पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान के साथ ही पशु उत्पादन और विकास पर कार्य कर वृंदावनी गाय और लैंडली सूकर का विकास किया। निदेशक एवं कुलपति डा. त्रिवेणी दत्त ने कहा कि संस्थान ने 50 तकनीकों को 150 वाणिज्यकों घरानों को हस्तांतरित किया है। 71 नये डिप्लोमा, ट्रेनिंग तथा सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किये गये हैं। संस्थान नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के अनुरूप कार्य कर रहा है। डीम्ड यूनिवर्सिटी से ग्लोबल यूनिवर्सिटी बनाए जाने के प्रयास किये जा रहे हैं। संस्थान के संयुक्त निदेशालय शोध द्वारा शोध को गति देने के लिए अनेक वित्तीय परियोजनाएं चलायी जा रही हैं और 77 प्रोजेक्ट अटेंड किये हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान के कैडराड द्वारा समय-समय पर आउटब्रेक अटेंड किये गये और नेशनल एडवाइजरी जारी किए जाने समेत अन्य महत्वपूर्ण कार्य है।

उत्तर प्रदेश में पहले भी बन चुके हैं गायों के आधार कार्ड

उत्तर प्रदेश के बरेली से गायों के आधार कार्ड की सरकारी शुरूआत हुई है। इससे पहले उत्तर प्रदेश की एक गौशाला में गायों के आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं। हमारे उत्तर प्रदेश के संवाददाता संदीप तिवारी के अनुसार अभी तक आपने इंसानो के आधार कार्ड के बारे में सुना होगा, लेकिन शायद गौवंशों के आधार कार्ड के बारे में नहीं सुना होगा। हम बात कर रहे हैं डिजिटल इंडिया की उत्तर प्रदेश की एक डिजिटल गौशाला की जिसमे गौवंशों को रखकर गौसेवा की झूठी कसमें नहीं खाई जा रही, बल्कि वाकई में गौवंशों को कैसे रखना चाहिए और कैसे उनको स्वस्थ्य रखना है वो यहां आकर सीख सकते हैं। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट की इस सद्गुरु गौशाला में तकऱीबन 1400 गौवंश हैं, जिसमें अधिकांशत: वह हैं जिनके मालिकों ने उनको छोड़ दिया है। उनको यहाँ शरण देकर उनके पालन पोषण का काम किया जाता है। इतना ही नहीं यहाँ हर एक गौवंशों का डिजिटल आधार कार्ड बनाया जाता है. जिसमे गायों के जबड़े का फोटो लेकर उनका सभी डाटा सॉफ्टवेयर में फीड किया जाता है. जिसके बाद यहाँ एक क्लिक में गायों के जबड़े को स्कैन करके उनका पूरा डाटा देखा जा सकता है, इस डिजिटल आधार कार्ड में गायों का नाम, लम्बाई, चौड़ाई, वजऩ, पूर्व में कौन कौन सी बीमारियां और कौन कौन सा इलाज दिया गया इत्यादि पूरा डाटा मौजूद है। इस आधार कार्ड के बन जाने से गौवंशों के खोने का भी ख़तरा नहीं होता, ऐसे में गौवंशों को डिजिटल आधार कार्ड इस डिजिटल गौशाला को हाईटेक गौशाला बनाता है। UP News

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