Wednesday, 19 February 2025

केदारनाथ के बहाने नरेंद्र मोदी गढ़ रहे हैं एक नई छवि!

क्या ये है नरेंद्र मोदी का मकसद? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति करने का तरीका अक्सर लोगों को चौंकाता है।…

केदारनाथ के बहाने नरेंद्र मोदी गढ़ रहे हैं एक नई छवि!

क्या ये है नरेंद्र मोदी का मकसद?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति करने का तरीका अक्सर लोगों को चौंकाता है। फिलहाल, पेट्रोल-डीजल से लेकर खाद्य तेलों की महंगाई और किसानों के आंदोलन की चारों ओर चर्चा है। जबकि, आर्यन खान को बेल मिलते टीआरपी बटोरने वाले इस मुद्दे को मीडिया ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर भारत में पहाड़ों की यात्रा पर निकल पड़े और केदारनाथ मंदिर परिसर से ऐसा भाषण दिया जिसकी चारो ओर चर्चा होने लगी।

प्रधानमंत्री ने दिवाली के मौके पर यह भाषण क्यों दिया? क्यों केदारनाथ मंदिर परिसर को ही भाषण स्थल के तौर पर चुना गया? रोम में पोप से मिलने के बाद क्या यह हिंदू सेंटीमेंट को संभालने की कोशिश है? या इसके पीछे कोई और मकसद है?

धार्मिक भावनाओं को समझने का सबसे सही वक्त
मोदी और अमितशाह ने भारतीय राजनीति में एक नई चीज शुरू की है। ये दोनों किसी भी घटना, दुर्घटना, पर्व, प्रयोजन को इवेंट में तब्दील करने और उसका राजनीतिक इस्तेमाल करना जानते हैं। मोदी को पता है कि दशहरे से लेकर दीवाली के बीच का समय पूरे भारत में, खासतौर पर उत्तर भारत में पर्व और त्योहारों का समय होता है। धार्मिक भावनाएं चरम पर होती हैं। ऐसे में धर्म से जुड़ा कोई भी संदेश देने का यही सबसे सही समय है।

मोदी ने मौके की नजाकत को देखते हुए केदारनाथ में शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया, पूजा-पाठ करने के बाद केदानाथ मंदिर परिसर से ही उत्तराखंड की जनता के साथ उन राज्यों को भी संदेश दे दिया जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

देवभूमि के धर्माचार्यों को दिया खास संदेश
केदारनाथ के अपने भाषण में मोदी ने शंकराचार्यों, पुरोहितों, धर्माचार्यों, ऋषियों, योगियों की जमकर प्रशंसा की। मोदी ने हिंदू धर्म और धार्मिक संस्थाओं से जुड़े प्रतिष्ठित लोगों को यह संदेश दिया कि उनकी सरकार में उन्हें किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। जाहिर है इसकी एक बड़ी वजह अगले साल होने वाला उत्तराखंड चुनाव है। उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है और हिंदू धर्म से जुड़ी लगभग सभी प्रतिष्ठित धार्मिक संस्थाओं का यह केंद्र है।

सपा, बसपा और कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ा
उत्तराखंड के साथ उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी के लिए यूपी में हिंदू वोट बैंक को जातियों में बंटने से रोकना बड़ी चुनौती है। जाति के नाम पर राजनीति करने वाली दो प्रमुख पार्टियां, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा कांग्रेस भी इस बार जातियों को साधने की कोशिश में है। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण से सपा, बसपा और कांग्रेस की इस रणनीति पर अप्रत्यक्ष हमला किया। मोदी ने शंकराचार्य की मूर्ति के अनावरण के साथ यह संदेश दिया कि वह जातिवाद को हिंदू धर्म का हिस्सा ही नहीं मानते थे। मोदी ने कहा कि शंकराचार्य ने बहुत छोटी सी उम्र में यह समझ लिया था कि देश की अखंडता और संस्कृति को बचाए रखने के लिए हिंदू धर्म को जातीयता से उपर उठ कर सोचने की जरूरत है। शंकराचार्य के बहाने उन्होंने जातिवाद की राजनीति करने वालों को निशाना बनाया है।

विकास के रास्ते धर्म तक पहुंचने का प्लान
धर्म, राष्ट्रवाद और विकास का मिश्रण ही मोदी की राजनीति का आधार है। केदारनाथ के अपने संबोधन में उन्होंने धर्म को राष्ट्रवाद से जोड़ने की भी पूरी कोशिश की। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार मथुरा, काशी, अयोध्या, सारनाथ, कुशीनगर से लेकर केदारनाथ सहित सभी धार्मिक स्थलों को आपस में जोड़ने का काम तेजी से कर रही है। इस अवसर पर उन्होंने अयोध्या में होने वाले दीपोत्सव का खास उल्लेख किया।

मोदी ने कहा कि धार्मिक स्थलों को जोड़ने से न सिर्फ इन शहरों का खोया हुआ गौरव वापस आएगा, बल्कि पर्यटन बढ़ने से युवाओं का पलायन भी रुकेगा। इस मौके पर उन्होंने 130 करोड़ की परियोजनाओं का उद्धाटन भी किया। मोदी ने दावा किया कि पिछले 100 सालों में जितने लोग केदारनाथ आए हैं, अगले दस साल में उससे भी ज्यादा लोग यहां आएंगे। केदानाथ मंदिर तक कार से पहुंचने और हेमकुंड साहब तक रोपवे से जाने की सुविधा बहुत जल्द शुरू होने वाली है। इससे बड़े पैमाने पर पर्यटन बढ़ेगा।

पहाड़ से जुड़ा राष्ट्रवाद
मोदी के भाषण में धर्म और विकास के बाद अगला मुद्दा राष्ट्रवाद था। उन्होंने कहा कि पहाड़ के लोग देश की रक्षा करने के लिए सीमाओं पर खड़े हैं। ऐसे परिवारों के लिए हमने वन रैंक वन पेंशन की योजना को लागू की जिसे पिछले चालीस सालों से लटका कर रखा गया था।

एक नई छवि गढ़ रहे हैं मोदी
राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखते ही मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला किया। अयोध्या हमेशा से ही बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था। मोदी खुद को अयोध्या, मथुरा, काशी जैसे कुछ धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं रखना चाहते। अब वह धार्मिक स्थलों की राजनीति करने के बजाए, यह बताना चाहते हैं कि वह हिंदू धर्म के असली सेवक और शुभचिंतक हैं। यही वजह है कि अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और जातिवाद की राजनीति करने वाली विपक्षी पार्टियों के लिए वह सबसे बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं।

बीजेपी की राजनीति अब धर्म तक सीमित नहीं रह गई है। इसमें विकास और राष्ट्रवाद के साथ मोदी के नेतृत्व और अमित शाह जैसे सफल संगठनकर्ता का मिश्रण शामिल है। पिछले दो लोकसभा चुनावों और ज्यादातर विधानसभा चुनावों में यह फॉर्मूला बीजेपी के लिए बेहद कारगर साबित हुआ है। देखना दिलचस्प होगा कि यूपी सहित आगामी पांच विधानसभा चुनावों में यह कितना असर दिखाता है।

– संजीव श्रीवास्तव

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