Tuesday, 3 December 2024

Kota Suicide Cases: लगातार हो रही छात्रों की मौत के बाद उठा सवाल, क्यों बन रहा है कोटा सुसाइड सेंटर? कारण और उपाय, एक समीक्षा

Kota Suicide Cases: राजस्थान का कोटा शहर वो जगह है, जहां डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना लिए हमारे देश…

Kota Suicide Cases: लगातार हो रही छात्रों की मौत के बाद उठा सवाल, क्यों बन रहा है कोटा सुसाइड सेंटर? कारण और उपाय, एक समीक्षा

Kota Suicide Cases: राजस्थान का कोटा शहर वो जगह है, जहां डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना लिए हमारे देश का भविष्य यहां प्रवेश करता है। यहां इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए आवश्यक नीट जैसी प्रतियोगी की तैयारी के लिए बच्चे आते हैं।

अनुमान कहता है कि इन परीक्षाओं की तैयारी के लिए देशभर से हर साल लगभग दो लाख छात्र-छात्राएं राजस्थान के कोटा आते हैं। ये सिलसिला नया नहीं है, ये सालों से चला आ रहा है। लेकिन जो नया है, वो है इनमें से कुछ छात्रों का असफल होने के बाद सुसाइड करना। Kota Suicide Cases

बढ़ रहा है कोटा में छात्रों के सुसाइड का सिलसिला

कोटा शहर में छात्रों के सुसाइड करने का जो सिलसिला कुछ सालों पहले शुरू हुआ था, वो अब थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते रविवार को नीट (NEET) की तैयारी कर रहे 2 छात्रों ने जान दे दी। जिसके बाद राजस्थान सरकार ने फिलहाल कोटा के कोचिंग सेंटरों में रूटीन टेस्ट कराने पर दो महीने के लिए रोक लगा दी है।

अगर 2023 की बात करें तो इस साल जनवरी से लेकर अब तक कोटा में सुसाइड (Kota Suicide Cases) के 24 केस सामने आ चुके हैं। इनमें से अकेले अगस्त महीने में ही 6 छात्रों ने अपनी जान दे दी है। आंकड़े बताते हैं कि कोटा में हर महीने औसतन 3 छात्र सुसाइड करते हैं। साल 2022 में 15 छात्रों ने आत्महत्या की थी।

आखिर क्यों अनमोल जीवन समाप्त कर रहे हैं किशोर?

लगातार घट रही इन घटनाओं के बाद विचारणीय प्रश्न ये है कि इस तरह की दुखद घटनाओं के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? आखिर क्यों हमारे बच्चे अपने अमूल्य जीवन को इतना सस्ता समझ रहे हैं? आखिर क्यों उन्हें जीवन में संघर्ष करने के बजाय अपनी जीवन लीला समाप्त करना कहीं ज्यादा बेहतर लग रहा है?

Kota Suicide Cases हम अगर इन सवालों के जवाब खोजेंगे तो पाएंगे, कि ये बात दुर्भाग्यपूर्ण किन्तु सत्य है, कि उनकी स्वयं से लगाई जा रही अपेक्षाएं, साथ ही अभिभाभकों और समाज की उनसे की जा रही अपेक्षाएं उनके ऊपर इतना मानसिक दबाव बना रहीं हैं, कि वो इस अपेक्षाओं के बोझ को सह नहीं पा रहे हैं।

इन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरने के कारण वो गहरा मानसिक तनाव ले रहे हैं, जो उनकी असफलता का कारण बन रहा है। पाठ्यक्रम परीक्षाओं में असफल होने के कारण उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय नजर आता है। इस अंधेरे से हार मानकर वो न सिर्फ पढ़ाई की जंग, बल्कि ज़िंदगी की जंग भी हार जाते हैं।

Kota Suicide Cases क्या हो इस समस्या का उपाय ?

समाज को झकझोरने वाली इस समस्या का हम सभी को मिलकर निदान सोचना होगा। अन्यथा हमारे नौनिहाल इसी तरह ज़िंदगी दांव पर लगाते रहेंगे। इसका ये उपाय हो सकता है कि हम अपने बच्चों पर उनके भविष्य की चिंता करते हुए इतना मानसिक प्रेशर न डालें, कि वो उस प्रेशर को सह न पाएं।

हमें ये समझना होगा कि अगर बच्चे होंगे, तभी उनका भविष्य होगा। अगर वही नहीं रहे, तो भविष्य कैसे हो सकता है। इसलिए हमें पहले खुद ये समझना होगा कि बच्चो का जीवन पहले है, करियर बाद में। अगर जीवन ही नहीं रहा तो करियर कैसा? अगर जीवन होगा तो हम असफल होने के बाद भी सफलता के लिए प्रयास कर सकते हैं।

हमें अपने बच्चों को भी यही बात समझनी होगी कि जीवन होना जरूरी होना है। सफलता और असफलता तो जीवन में आती रहती हैं। अगर आज अंधेरा छाया है, तो कल उजाला भी होगा। ये बात आप कई महान लोगों का उदाहरण देकर उन्हें समझा सकते हैं। जिन्होंने असफलता का सामना किया और फिर अपने अंदर के आत्मविश्वास के सहारे जीत हासिल की।

Kota Suicide Cases

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