रवि अरोड़ा
Ramesh Bidhuri : संसद की नई इमारत में आखिर नई इबारत लिख ही दी गई। 125 साल से जो बातें भगवा ब्रिगेड गली- गली चौराहे- चौराहे कहती आ रही थी, वह संसद में भी उसके एक कारकुन ने दोहरा ही दी। मुस्लिम होने के नाते यकीनन अमरोहा के सांसद दानिश अली ने पहली बार ये शब्द नहीं सुने होंगे। बेशक दक्षिणी दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधूडी ने भी नफरतियों का ओहदेदार होने के चलते पहली बार ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया होगा। पहली बार हुआ है तो बस इतना कि 75 सालों से जिन शब्दों को संसद में कहने से परहेज़ किया जा रहा था, वह झिझक भी अब समाप्त कर ही दी गई।
Ramesh Bidhuri
शर्म का वह घूंघट उतार दिया गया है जो नफरतियों को भीतर ही भीतर खाए जाता है। यह भी भला कोई बात हुई कि जिन गालियों के दम पर संसद की आलीशान इमारत में पहुंचे, वहीं पर उन गालियों को नहीं दे सकते ? चलिए यह बाधा भी अब इन लोगों ने पार कर ली। बस अब किसी दिन मां बहन की गालियां और संसद में दे दें तो अमृतकाल का अमृत कलश छलके।
वे नादान ही कहना पड़ेगा जिन्हें लगता है कि रमेश बिधूड़ी ने संसद में जो गालियां दीं, वह अचानक उनके मुंह से निकल गईं। वे जाहिल माने जायेंगे जिन्हे लगता है कि अपने सांसद की बेइज्जती बसपा सुप्रीमो मायावती बर्दाश्त नहीं करेंगी। वे बेवकूफ ही कहलाएंगे जिन्हें लगता है कि बिधूड़ी की राजनीति अब खत्म हो जाएगी। उन्हें तो बाल मना ही कहा जा सकता है जो मानेंगे की कि लोकसभा अध्यक्ष बिधूड़ी का भी राहुल गांधी जैसा हश्र करेंगे। अजी, अंधे को भी दिख रहा है कि यह गालियां तो अब बिधूड़ी की राजनीति के लिए लॉन्चिंग पैड ही साबित होने जा रही हैं। चालीस साल की राजनीति, तीन तीन बार विधायक और दो बार से सांसद होने के बावजूद बड़ा नेता नहीं बन पाया मगर अब रास्ता खुल गया है।
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बिधूड़ी ही तो ओपनिंग बैट्स मैन साबित हुए हैं वरना अब तक पार्टी केवल रैलियों में ही ‘गोली मारो सालों को’ कह कर काम चला रही थी। कार्यकर्ताओं को भी हनुमान जयंती जैसे जुलूसों का रूट मस्जिदों की तरफ से तय करने भर से ही संतोष करना पड़ रहा था मगर अब कुछ बात आगे बढ़ी है। संसद में बकी गईं बिधुड़ी की गालियों पर भगवा ब्रिगेड ने जमकर ठहाका लगाया। रविशंकर प्रसाद और डॉक्टर हर्षवर्धन जैसे मोदी जी की सरकार के दो पूर्व मंत्री तो कैमरे में कैद भी हो गए। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अभी तक दानिश अली से मिलना गंवारा नहीं किया। मोदी जी ने ‘मन से माफ न करने’ जैसी बात भी नहीं की। राजनाथ सिंह ने सफाई में अगर मगर किया। बाकी नेताओं ने मुंह में दही जमा ली, अब इनका अर्थ भी कोई न लगाए तो उसे नादान न कहें तो क्या कहें।
बीरेन सिंह , ब्रज भूषण शरण सिंह, चिन्मयानंद और कुलदीप सेंगरों जैसों की जमात के बावजूद जो लोग भाजपा को अब भी संस्कारी पार्टी मानने से इंकार करते थे, रमेश बिधूड़ी उनकी आंखें खोलने को अवतरित हुए हैं। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का नारा देने वाले मगर फिर भी कपड़ों से आदमी को पहचान लेने वाले और नफरतियों को ट्वीटर पर फॉलो करने वाले प्रधानमंत्री की सदाशयता पर फिर कोई उंगली न उठे, इस लिए ही बिधूड़ी जी आगे आए हैं। अब कोई लाख कहे कि बिधूड़ी पर कार्रवाई नहीं हुई तो यह भाजपा की मर्दाना कमजोरी मानी जायेगी मगर अपने राम तो अच्छी तरह समझ चुके हैं कि यह संयोग नहीं प्रयोग था और इसके नतीजे भी जल्द सामने आने लगेंगे। Ramesh Bidhuri