Home Remedies : भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों को नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं। एलोपैथी में इनका इलाज या तो स्थायी तौर पर नहीं हो पाता है। यदि होता भी है तो वह काफी खर्चीला होता है जो सबके लिए संभव नहीं है। ऐसी ही एक बीमारी मूत्राशय से संबंधित। मूत्राशय में जलन या अन्य मूत्र विकार। आज हम आपको बताते हैं कि देशी तरीके से इस बीमारी से कैसे निजात पाई जा सकती है। यह उपाय हमें बताये हैं प्रसिद्ध चिकित्सक डा. अजय मेहता ने।
डा. अजीत मेहता के मुताबिक शुष्क धनिया (दाना) को मोटा-मोटा कूटकर इसका छिलका अलग करें और बीजों के अन्दर की गिरी निकालकर 300 ग्राम धनिया की गिरी (प्राय: 450 ग्राम धनिया में से 300 ग्राम गिरी निकल जाती है) तथा बराबर वजन 300 ग्राम मिकूंजा (या चीनी) लें। दोनों को अलग-अलग पीसकर आपस में मिला लें। बस, दवा तैयार है।
सेवन विधि : प्रात: सायं 6-6 ग्राम की मात्रा से यह चूर्ण बासी पानी के साथ दिन में दो बार लें। प्रात: बिना खाये-पीये रात को बासी पानी से छ: ग्राम फाँक लें और तत्पश्चात् एक-दो घंटे तक और कुछ न खाएँ। इसी प्रकार छ: ग्राम दवा शाम 4 बजे लगभग प्रात: के रखे हुए पानी के साथ फाँक लें। रात का भोजन इसके दो घंटे पश्चात् करें। यह मूत्राशय की जलन दूर करने में अद्वितीय हैं। आवश्यकतानुसार तीन दिन से इक्कीस दिन तक लें।
विशेष- मूत्राशय की जलन के अतिरिक्त वीर्य की उत्तेजना दूर करने में यह प्रयोग अचूक है। भयंकर और कठिन से कठिन स्वप्नदोष की बीमारी में इसकी पहली दो खुराकों से ही लाभ प्रतीत होगा। इसे इस बीमारी में तीन दिन से सात दिन तक लेना चाहिए। शौच यदि अधिक पतले दस्त के रूप में होता हो तो दूसरी मात्रा सायं चार बजे लेने की बजाय रात्रि के समय सोने से आधा घंटे पहले, परन्तु यदि कब्ज की शिकायत अधिक रहती हो तो दूसरी मात्रा सायं चार बजे। ही लें और रात्रि सोते समय ईसबगोल की भूसी (छिलका) चार-पाँच ग्राम से लेकर पन्द्रह ग्राम तक ताजा पानी से फाँकिये, बिना किसी कष्ट के शौच होगा। ईसबगोल का उपयोग पहली रात में थोड़ी मात्रा में करे। यदि इससे लाभ न हो तो दूसरी रात्रि को इसकी मात्रा बढ़ा लें यहाँ तक कि प्रात: शौच साफ होने लगे (चार-पाँच ग्राम से लेकर पन्द्रह ग्राम तक का यही मतलब है)। ईसबगोल एक हानिरहित कब्जनाशक होने के अतिरिक्त पतले वीर्य को गाढ़ा करने, स्वप्नदोष और मूत्राशय की उत्तेजना दूर करने के लिए उपरोक्त औषधि की विशेष सहायता करता है। इस औषधि के सेवन से जहाँ प्रमेह नष्ट होता है, वहाँ प्रमेह, स्वप्नदोष या यौन अव्यवस्थाओं के परिणामस्वरूप होने वाले रोगों जैसे नजर की कमजोरी, धुँधलाहट, सिरदर्द, चक्कर, नींद न आना आदि में अत्यन्त हितकर है। और पोटेशियम ब्रोमाइड की तरह दिल और दिमाग को कमजोर नहीं करती बल्कि इन्हें बल मिलता है। वीर्य की उत्तेजना और स्वप्नदोष में केवल भुजंगासन (सर्पासन) के उचित अभ्यास से स्थायी लाभ होता है।
अन्य विधि – 10 ग्राम धनिया रात्रि में पानी भिगो दें। उसे सुबह ठण्डाई (सर्दाई) की तरह पीसकर छानकर मिमिलाकर सेवन करें। तासीर ठण्डी होने के कारण, सावधानी से आवश्यकतानुसार दो-चार दिन लें। मूत्र की जलन नष्ट होगी। दही में पिसी हुई प्याज की चटनी मिलाकर कुछ दिन खाने मूत्र की जलन बन्द होती है। यदि मूत्र करते समय मूत्र नली में जलन हो त तुलसी की चार-पाँच पत्तियाँ दिन में दो बार खाली पेट चबाएँ। ऊपर से एक-दो घुट पानी भी पी सकते हैं। तीन-चार दिन में आराम होगा। बेल की दस पत्तियों सुबह-शाम बारीक पीसकर 250 ग्राम पानी में मिलाकर पीएँ। तीन-चार दिन में आराम हो जायेगा। स्वप्नदोष दूर करने के लिए पन्द्रह दिन तक लें। मूत्र जलन, रुकावट होने पर केवल ठंडे पानी में तौलिया गीला करके नाभि से नीचे पेडू पर रखकर 15-20 मिनट लेटे रहने से ही जलन मिट जाती है।
मूत्र कम आना : दो छोटी इलाचयी को पीसकर फाँककर दूध पीने से पेशाब खुलकर आता है और मूत्रदाह भी बन्द हो जाता है।
मूत्र साफ लाने के लिए – जौ का पानी, नारियल का पानी, गन्ने का रस और कुल्थी का पानी विशेष सहायक है। रात में तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी भी लाभकारी है। भोजन के साथ छाछ (अधिक पानी वाली) में थोड़ा हरा धनिया मिलाकर पीना लाभप्रद है। मूत्र ज्यादा लाने के लिए (मूत्र का जुलाब)-मक्की के भुट्टे के रेशम से सुनहरे बाल 25 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में उबालें। एक तिहाई रहने पर, छानकर (बिना कुछ उसमें मिलाए) वैसे ही पी जाएँ। इससे मूत्र साफ और खुलकर आता है और जलन मिटकर, रुक-रुक कर, बूँद- बूँद आना बन्द होता है। गुर्दे का दर्द होने पर प्रात: एवं सायं लें। दर्द के समय भी इसे प्रत्येक 2-3 घंटे बाद लिया जा सकता है। कई बार गुर्दे की छोटी पथरी भी इसे दिन में दो-तीन बार लेने से दो-चार दिन में निकल जाती है।
रुका हुआ मूत्र : दो ग्राम जीरा और दो ग्राम मिदोनों को पीसकर ठंडे जल के साथ फाँक लेने से रुका हुआ मूत्र खुल जाता है तथा मूत्र की जलन मिटती है। ऐसी मात्रा दिन में तीन बार लें।
विकल्प : गुर्दे की खराबी से यदि मूत्र बनना बन्द हो जाय तो मूली और मूली के पत्तों का रस 60 ग्राम (दो औंस) की मात्रा से पीने से वह फिर से बनने लगता है। इससे पेशाब की जलन और वेदना भी मिट जाती है।
मूत्र किसी भी कारण बन्द हो — एरण्ड का तेल पच्चीस से पचास ग्राम तक गर्म पानी में मिलाकर पीने से पन्द्रह बीस मिनट में ही मूत्र खुल जाता है। जब हर प्रकार से हार जाएँ और किसी उपाय से मूत्र न उतरे तो यह प्रयोग अवश्य आजमाने योग्य है।
मूत्र बार-बार और अधिक आता हो
प्रतिदिन मेथी का साग खाने से मूत्र अधिक होना बन्द होता है और आँव की बीमारी अच्छी होती है। सप्ताह-दो सप्ताह तक लें।
सहायक उपचार— जिन लोगों को मूत्र बार-बार या अधिक मात्रा में या जलन के साथ आता हो, उन्हें दो पके केलों का सेवन दोपहर के भोजन के बाद कुछ दिन करना चाहिए। बार-बार मूत्र जाने की आदत अंगूर खाने से कम होती है। रात को बार-बार पेशाब जाना पड़ता हो तो शाम को पालक की सब्जी खाने से लाभ होता है।
विकल्प – बार-बार मूत्र आने पर 25 से 50 ग्राम की मात्रा में भुने हुए चने (छिलका सहित) खूब चबा-चबाकर खाने के बाद ऊपर से थोड़ा सा गुड़ खाकर पानी पी लें। दस-पन्द्रह दिन लगातार शाम चार बजे या आधा पेट शाम को भोजन करने के बाद खाने से बहुमूत्रता रोग में आशातीत लाभ होता है। वृद्धों को अधिक दिन तक यह खुराक लेनी चाहिए। पाचन शक्ति यदि अधिक बिगड़ी हुई हो तो यह प्रयोग न करें। सुबह-शाम गुड़ से बना हुआ तिल का एक-एक लड्डू (बीस-बीस ग्राम का) खाने से बार-बार मूत्र आना बन्द होता है। आवश्यकतानुसार चार-पाँच दिन खायें। सर्दियों में यह प्रयोग उपयुक्त रहता है।
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