Wednesday, 27 November 2024

भारत माता का वो लाड़ला सपूत जिसने अंग्रेजों को दिखाए दिन में तारे

Mangal Pandey : भारत माता के लाखों प्रसिद्ध सपूत हुए हैं। भारत माता का एक सपूत ऐसा ही हुआ है…

भारत माता का वो लाड़ला सपूत जिसने अंग्रेजों को दिखाए दिन में तारे

Mangal Pandey : भारत माता के लाखों प्रसिद्ध सपूत हुए हैं। भारत माता का एक सपूत ऐसा ही हुआ है जिसने अंग्रेजों को दिन में ही तारे दिखा दिए थे। भारत माता के इस वीर सपूत का नाम है मंगल पांडे। मंगल पांडे को बागी बलिया के सपूत के तौर पर भी याद किया जाता है। 19 जुलाई को मंगल पांडे की जन्म जयंती है। मंगल पांडे की जन्म जयंती पर उनके जीवन के कुछ अनछुए तथ्य जान लेते हैं।

मंगल पांडे के नाम से थर-थर कांपते थे अंग्रेज

मंगल पांडे भारत माता का वो लाड़ला सपूत था जिसने 1857 की क्रांति का बिगुल फूंका था। मंगल पांडे की हुंकार से अंग्रेज अफसर तथा अंग्रेज सैनिक थर-थर कांपा करते थे। बात मंगल पांडे की जयंती की करें तो मंगल पांडे के जन्मदिन को लेकर देश में एक अलग-अलग मत है। जहां बलिया के लोग उनका जन्मदिन 30 जनवरी को मनाते है तो उनके प्रामण पत्र के अनुसार उनका जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ था।सबको पता है कि 1857 के उस विद्रोह का जिक्र ना करें तो मामला कुछ अधूरा सा लगेगा। 1857 में मंगल पांडे के विद्रोह ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। उसी समय से बलिया को बागी धरती का नाम भी मिल गया। मंगल पांडे का जन्म आज ही के दिन 1831 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवां गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सुदिष्ट पांडे और माता का नाम जानकी देवी था।

आज भी बलिया जिले के लोग उनका जन्मदिन 30 जनवरी को मनाते हैं, जबकि नौकरी प्रमाण पत्रों के मुताबिक उनका जन्म 19 जुलाई 1827 को माना जाता है। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल में ही प्राप्त की थी। 1849 में वे ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए। मंगल पांडे के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें देशद्रोही और विद्रोही घोषित कर दिया था, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ अपने विद्रोह के कारण वे हर भारतीय के लिए एक महान नायक बन गए थे।

मंगल पांडे का वह गजब का विद्रोह

बता दें कि एक समय था जब ब्रिटिश सेना द्वारा लॉन्च की गई एनफील्ड राइफल पी-53 में जानवरों की चर्बी से बना एक खास तरह का कारतूस इस्तेमाल किया जाता था। इसे राइफल में डालने से पहले मुंह से छीलना पड़ता था। अंग्रेज इस कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल करते थे। यह जानने पर मंगल पांडे ने आपत्ति जताई, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। इसके बाद उन्होंने अपने साथी सैनिकों को यह भी बताया कि अंग्रेज अधिकारी भारतीयों का धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं। यह हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए अपवित्र था। यह जानने पर पूरी छावनी के सैनिक भडक़ गए। 29 मार्च 1857 को जब पैदल सेना को नए कारतूस बांटे जा रहे थे, तो मंगल ने उन्हें लेने से इनकार कर दिया। इससे नाराज अंग्रेजों ने उनका हथियार छीनने और वर्दी उतारने का आदेश दिया।

Mangal Pandey

जब अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूजेस उनकी राइफल छीनने के लिए आगे बढ़ा, तो मंगल ने उसे मार डाला। उसने एक अन्य अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बाब को भी मार डाला। मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल हुआ और उन पर मुकदमा चला। 6 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। सुनाई गई फैसले के मुताबिक उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने तय तारीख से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी पर लटका दिया। स्थानीय जल्लादों ने मंगल पांडे जैसे भारत माता के वीर सपूत को फांसी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद कोलकाता से चार जल्लादों को बुलाया गया और मंगल पांडे को फांसी पर लटका दिया गया। ऐसे थे भारत माता के वीर सपूत मंगल पांडे। Mangal Pandey

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