Sunday, 24 November 2024

Parachute: उड़ें हैं आप क्या  पैराशूट पहनकर 

पैराशूट बनाने की दास्तान  अब हमारे पास अलादीन की तरह जादुई कालीन तो है नहीं जिससे हम हवा में सैर…

Parachute: उड़ें हैं आप क्या  पैराशूट पहनकर 
पैराशूट बनाने की दास्तान 

अब हमारे पास अलादीन की तरह जादुई कालीन तो है नहीं जिससे हम हवा में सैर कर सकें, पंछियों की तरह हवा में कही भी उड़ान भर सके परे इसमें उदास होने वाली कौन सी बात है! अरे आपने नाना पाटेकर का वो डायलाग नहीं सुना क्या भगवान् का दिया सब कुछ है दौलत है शौहरत है इज़्ज़त है और भी कई चीजे हैं जैसे की दिमाग और क्रिएटिविटी और इन्ही दोनों की मदद से हवा में उड़ने का सपना सिर्फ ख़याली पुलाव बनके नहीं रहा। सोची हुई कोई इच्छा अगर पूरी हो जाये तो कितनी ख़ुशी मिलती हैं ना अब जैसे की पैराशूट को ही देख लीजिए कहाँ लोगो ने इमेजिन किया था की काश! वो भी पंछियों की तरह हवा में मज़े से सैर करने का लुफ्त उठा पाते पर उन्हें कहां पता था उनका यह सपना हकीकत में बदल सकता है। आप सभी ने पैराशूट के बारे सुना ही होगा कई लोगो ने पैराशूट को देखा भी होगा और कइयों ने तो पैराशूट की सवारी भी की होगी लेकिन क्या आपने कभी पैराशूट के खोज से जुड़ी किस्से कहानियो को जानने में दिलचपी जताई है अगर नहीं तो देर किस बात की आइये शुरू करते हैं इस वीडियो को जहाँ आपको पैराशूट के खोज से जुड़ी रोचक किस्सों के बारे में बताया जायेगा।

वैसे तो दुनिया में व्यवहारिक रूप से सफल पैराशूट बनाने का श्रेय एक फ्रांसीसी व्यक्ति लुइस सेबेस्टिन लेनोरमैंड को दिया जाता है। 1783 में पहली बार सेबेस्टिन द्वारा पैराशूट शब्द दुनिया लाया गया था साथ ही पहली बार पैराशूट का सार्वजनिक प्रदर्शन भी उन्होंने ही किया था।आपको जानकर हैरत होगी की पैराशूट के अविष्कार से सालों पहले ही लिओनार्दो दा विंची नामक एक व्यक्ति ने पैराशूट का स्केच बना दिया था। इन्होने पैराशूट का पूरा काया कल्प ही अपने स्केच में बना दिया था। हालाकि लियोनार्डो के कल्पना के बाद ही पैराशूट के खोज के पीछे लोग लगे। 16वी सदी में ‘फॉस्ट ब्रांसिस’ ने लिओनार्दो दा विंची के पैराशूट की डिजाइन को ध्यान में रखकर एक सख्त फ्रेम वाला होमो वोलंस नाम का पैराशूट बनाया। 1617 में पहली बार वेनिस टॉवर से पैराशूट की मदद लेकर छलांग लगाई गई थी। ये छलांग खुद ‘फॉस्ट ब्रांसिस’ ने अपनी बनाई हुई पैराशूट होमो वोलंस से लगाई थी। जबकि उस समय आकाश से इस तरह छलांग लगाना कोई आसान काम नहीं था।

पैराशूट का इतिहास
आपको बता दें सन 1785 में पहली बार किसी नागरिक द्वारा पैराशूट का आपातकाल में प्रयोग किया गया था । नागरिक नाम ज्यां पियरे था और वह फ्रांस के रहने वाले थे। ज्यां पियरे ने ऊंचाई पर उड़ रहे एक हॉट एयर बैलून से एक कुत्ते को पैराशूट बंधी टोकरी की मदद से नीचे उतारा था। इन्होंने पहली बार सिल्क के कपड़े से पैराशूट बनाया क्योंकि वो उपयोग करने में बहुत आसान साबित हुए। 1797 में सिल्क से बने हुए पैराशूट का प्रयोग करते हुए फ्रांस के आंद्रे गार्नेरिन ने 3000 फूट की ऊंचाई से एक सफल छलांग लगाई। बाद में गार्नेरिन ने पैराशूट के कंपन को कम करने के लिए कुछ सुधार किए जिसके बाद पहला छिद्रित पैराशूट अस्तित्व में आया। वर्ष 1797 में ही एंड्रयू नामक व्यक्ति ने एक हॉट एयर बलून में पेरिस के ऊपर 3200 फिट की ऊंचाई पर उड़कर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। 24 जुलाई 1837 पैराशूट के इतिहास में एक दर्दनाक दिन है जिसमे एक व्यक्ति की 5000 फूट की ऊंचाई से गिरने की वजह से मौत हो गई थी। दरअसल लंदन के बॉक्स हॉल गार्डन में रॉबर्ट कोकिंग पैराशूट से उड़ान भरने का प्रदर्शन कर रहे थे पर नीचे आते समय पैराशूट का लकड़ी का ढांचा हवा के दबाव से टूट गया और उनकी मौत हो गई। फान टासल ने सूती कपड़े का एक छतरी के आकार का पैराशूट बनाया जिसे बहुत पसंद किया गया जबकि इससे पहले पैराशूट के लकड़ी के ढांचे पर सिर्फ कपड़ा डालकर ही बनाया जात था। बदलते समय के साथ सूती कपड़े की जगह रेशमी कपड़े का इस्तेमाल किया जाने लगा क्योंकि रेशमी कपड़े के उपयोग से पैराशूट पहले से ज्यादा हल्के और मजबूत हो गए। खैर अब पैराशूट बनाने के लिए नायलॉन को उपयोग में लिया जाता है। और आजकल तो वैसे भी इतने बड़े-बड़े पैराशूट बन चुके हैं, जो आपातकाल में उड़ते हुए हवाई जहाज या विमान को हवा में लटका कर सुरक्षित नीचे उतार सकते हैं।

रामचंद्र चटर्जी सबसे पहले लाये भारत में पैराशूट
22 मार्च 1890 भारत के इतिहास में बड़ा दिन है क्यूंकि इस दिन पहली बार भारत में स्वयं भारतीय द्वारा ही पैराशूट की लैंडिंग हुई थी। भारत में पहली बार पैराशूट से उतरने वाले व्यक्ति रामचंद्र चटर्जी थे। चटर्जी भारतीय कलाबाज जिमनास्ट, बैलूनिस्ट और पैराशूटिस्ट होने के साथ ही एक देशभक्त के तौर पर भी पहचाने जाते थे. आपकी जानकारी के लिए बतादे चटर्जी ने ‘द एम्प्रैस ऑफ इंडिया’ नाम के गुब्बारे में अपना पैराशूट फिट किया और कलकत्ता के मिंटो पार्क के पास तिवोली गार्डन से उड़ान भरी. इसके बाद 3500 फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वे पैराशूट से नीचे उतरे और इस तरह से पैराशूट को भारत में पहली बार इंट्रोड्यूस करने का गौरव हासिल किया।

पैराशूट का उपयोग

पैराशूट का उपयोग वर्ष 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के समय विमानों से बमवर्षा के लिए किया गया था। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी विमान चालकों द्वारा पैराशूट का उपयोग किया गया था ताकि हजारों लोगों की जान बचाई जा सके । दूसरे विश्व युद्ध के समय अमेरीकी सैनिकों को कहीं आने जाने के लिए भी पैराशूट का इस्तेमाल किया गया था। पैराशूट के द्वारा युद्ध के समय में शत्रु के क्षेत्र में सैनिक, गोला बारूद और खाने पीने की सामग्री सेना के लिए गिराए जाते हैं। बता दे लड़ाकू जहाज काफी तेज गति से उड़ते व रनवे पर उतरते हैं ऐसे में पैराशूट की मदद से आपातकाल के समय में गति को नियंत्रण में करके विमान को सुरक्षित उतार सकते हैं। अन्तरिक्ष यात्री जिस केप्सूल में बैठकर धरती पर उतरते हैं, उसमें पैराशूट लगे होने की वजह से यात्री सुरक्षा के साथ उतर पाते हैं। पैराशूट का उपयोग समुद्र के किनारे सैलानियों को हवा में उड़ने के लिए किया जाता है इसके साथ ही जैव वैज्ञानिक और डिस्कवरी चैनल वाले भी जंगलों के ऊपर घूमने के लिए पैराशूट इस्तेमाल करते हैं।

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